भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की 66 वीं पूण्यतिथि पर विशेष ...!!
“स्कूल प्रयोगशालाएं हैं जो देश के भावी नागरिक तैयार करती हैं।” ये दूरदर्शी कथन भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का है। आज़ाद, स्वतंत्र भारत के सिर्फ प्रथम शिक्षा मंत्री ही नहीं थे। बल्कि वे भारत में शिक्षा की बुनियाद रखने वाली उच्च कोटि की संस्थाओं के ‛शिल्पकार’ भी थे। आज (22 फरवरी) देश के पहले शिक्षा मंत्री मैलाना अबुल कलाम आजाद की पुण्यतिथि है. वह एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद्, पत्रकार और लेखक थे।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म और पारिवारिक जीवन
स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद का जन्म 11 नवंबर, 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था। उनका असल नाम अबुल कलाम गुलाम मोहिउद्दीन अहमद था, लेकिन वह मौलाना आजाद के नाम से मशहूर हुए। मौलाना आजाद स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। वह दूरदर्शी नेता के साथ-साथ उद्भट विद्वान, प्रखर पत्रकार और लेखक भी थे। मौलाना आजाद के पिता का नाम मौलाना सैयद मोहम्मद खैरुद्दीन बिन अहमद अलहुसैनी था। मौलाना आज़ाद अफगान उलेमाओं के खानदान से ताल्लुक रखते थे, उनके पिता एक फारसी और माता अरब मूल की थीं। उनके पिता एक विद्वान थे जिन्होंने 12 किताबें लिखी थीं और उनके सैकड़ों शागिर्द (शिष्य) थे। कहा जाता है कि वे इमाम हुसैन के वंश से थे। उनकी मां का नाम शेख आलिया बिंते मोहम्मद था जो शेख मोहम्मद बिन जहर अलवत्र की बेटी थीं। साल 1890 में उनका परिवार मक्का सेवापस कलकत्ता आ गया। 13 साल की उम्र में उनकी शादी खदीजा बेगम से हो गई।
मौलाना अबुल कलाम आजाद की शिक्षा और पत्र-पत्रिकाओं का संपादन
देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का बिहार और झारखंड से गहरा नाता रहा है। यहां अंजुमन इस्लामिया से लेकर कई शिक्षण संस्थानों की उन्होंने बुनियाद रखी। शिक्षा के क्षेत्र में जागरूकता लाने में उनका अहम योगदान है। मौलाना आजाद उच्चकोटि के पथदर्शक व् परोपकारी राजनेता थे, देश के स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने अहम् भूमिका निभाई थी, उनका वक्तव्य सुनने के लिए लोग दूर दूर से आते थे, पत्रकारिता के अलावा लेखन और कविता रचना में भी वह पारंगत थे। ये बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्होंने उर्दू, हिन्दी, फारसी, बंगाली, अरबी और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में महारत हासिल कर ली थी। पढ़ाई के दिनों में वह काफी प्रतिभाशाली और मजबूत इरादे वाले छात्र थे। काहिरा के 'अल अज़हर विश्वविद्यालय' में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। परिवार के कोलकाता में बसने पर उन्होंने 'लिसान-उल-सिद' नामक पत्रिका शुरू की। उन पर उर्दू के दो महान आलोचकों 'मौलाना शिबली नाओमनी' और 'अल्ताफ हुसैन हाली' का गहरा असर रहा। तेरह से अठारह वर्ष की उम्र के बीच उन्होंने बहुत सी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। मौलाना आजाद ने कई पुस्तकों की रचना और अनुवाद भी किया, जिसमें प्रमुख इंडिया विन्स फ्रीडम और गुबार-ए-खातिर हैं। वह नेता नहीं बनना चाहते ही थे। वह कहते भी थे कि राजनीति के पीछे वह कभी नहीं दौड़े, राजनीति ने ही उन्हें पकड़ लिया। वह तो लाजवाब शायर थे। अबुल कलाम आज़ाद उस वक्त राजनीति से जुड़े, जब ब्रिटिश ने सन् 1905 में धार्मिक आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया। वह क्रांतिकारी संगठन में शामिल होने के बाद अरविंद घोष, श्यामसुंदर चक्रवर्ती आदि के संपर्क में पहुंच गए। उन्होंने 1912 में एक साप्ताहिक पत्रिका निकालना शुरू किया। उस पत्रिका का नाम अल हिलाल रखा। अल हिलाल के माध्यम से उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द और हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना शुरू किया और साथ ही ब्रिटिश शासन पर प्रहार किया। पर सरकार ने इस पत्रिका को बंद कर दिया। अल हिलाल' के बंद होने के बाद आज़ाद ने 'अल बलघ' नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। वर्ष 1916 में उनके गिरफ्तार हो जाने के बाद यह पत्रिका भी बंद हो गयी। आज़ाद भारत में वह पहले शिक्षामंत्री बने। नि:शुल्क शिक्षा, भारतीय शिक्षा पद्धति, उच्च शिक्षण संस्थानों का मार्ग प्रशस्त किया, साथ ही 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना का श्रेय इन्हें ही जाता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में 1947 से 1958 तक मौलाना अबुल कलाम आजाद शिक्षा मंत्री रहे। साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में उनके कार्यों के सम्मान में उनके जन्म दिवस, (11 नवम्बर) को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस घोषित किया गया। उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र, इतिहास और समकालीन राजनीतिक का भी अध्य्यन किया। उन्होंने अफगानिस्तान, इराक, मिस्र, सीरिया और तुर्की जैसे देशों का सफर किया।
अबुल कलाम आजाद जी ब्रिटिश शासन में कई बार जेल गये
ब्रिटिश शासन के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल होकर अंग्रेजी हुकूमत का विरोध किया। उन्होंने अपनी एक साप्ताहिक पत्रिका ‘अल-बलाग’ में हिन्दू-मुस्लिम एकता पर आधारित भारतीय राष्ट्रवाद और क्रांतिकारी विचारों का प्रचार-प्रसार किया। मौलाना आजाद हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर और भारत विभाजन के धुर विरोधी थे।
अबुल कलाम आजाद का संविधान निर्माण में योगदान
अबुल कलाम आज़ाद जी कांग्रेस के टिकट पर संयुक्त प्रांत से संविधान सभा के लिए चुने गए थे। वह पांच अलग-अलग समितियों के सदस्य थे और उन्होंने राष्ट्रीय भाषा और शिक्षा से जुड़ी बहस में हस्तक्षेप किया। हालाँकि वह विधानसभा में ज्यादा नहीं बोलते थे, लेकिन पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के रूप में वह पर्दे के पीछे और विभिन्न समितियों में होने वाले आंतरिक विचार-विमर्श का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जवाहर लाल नेहरू के बहुत घनिष्ठ मित्र थे। लेकिन वह सुभाष चंद्र बोस और सरदार वल्लभ भाई पटेल के भी अच्छे मित्र थे। उस समय भारत में जब कानून का खाका बना तो मौलाना ने “नेहरू रिपोर्ट” का समर्थन किया। मोहम्मद अली जिन्हा ने “नेहरू रिपॉर्ट” का समर्थन नहीं किया, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद हालात को जितना सही करने में दम लगाते, जिन्हा उतने ही दम से सारा काम बिगाड़ के रख देते थे। इसी वजह से दोनों राजनेताओं में तीखी नोकझोक भी बहुत होती थी।
आज़ादी के बाद भारतीय राजनीति में योगदान
आज़ादी के बाद, आज़ाद को शिक्षा मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया , इस पद पर वे 1958 तक पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में एक दशक तक रहे। भारत और पूर्वी देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सुरक्षित करने के लिए भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) की स्थापना करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। एक स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, विद्वान और कवि के रूप में उनके प्रयासों को मान्यता देते हुए उन्हें वर्ष 1992 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
मौलाना अबुल कलाम आजाद का निधन
पंडित जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में 1947 से 1958 तक मौलाना अबुल कलाम आजाद शिक्षा मंत्री रहे। 22 फरवरी, 1958 को हृदय आघात से उनका निधन हो गया था। 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्यों के सम्मान में उनके जन्म दिवस, 11 नवम्बर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस घोषित किया गया। इसके अलावा देश भर के कई शिक्षा संस्थानों और संगठनों का नामकरण उनके नाम पर किया गया है।
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