भगत सिंह ने लाहौर जेल में क्यों लिखा “मैं नास्तिक क्यों हूँ?”

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अपनी जेल डायरी में लिखा है कि महान लोग इसलिए महान हैं क्योंकि हम घुटनों पर हैं। आईए, हम उठें! “मैं नास्तिक क्यों हूँ?” यह कोई साधारण डायरी नहीं है। उर्दू और अंग्रेजी में लिखी गई इस डायरी के पन्ने अब जर-जर हो चले हैं लेकिन इसमें दर्ज एक-एक शब्द सरफ़रोशी की समां जला देते हैं। हम बात कर रहे हैं शहीद-ए-आजम भगत सिंह के उस ऐतिहासिक दस्तावेज का जिसे उन्होंने अपने आखिरी दिनों में लाहौर (जो अब पाकिस्तान में है) जेल में लिखी थी। सिर्फ 23 साल की उम्र में शहादत को प्राप्त‍ करने वाले भगत सिंह पढ़ने-लिखने में काफी रुचि लेते थे। इसीलिए वो जेल में रहते हुए भी अपने विचार लिखना चाहते थे। जेल प्रशासन ने 12 सितंबर, 1929 को उन्हें डायरी प्रदान की थी। जिसमें उन्होंने अपने विचार लिखे। इस डायरी पर जेलर और भगत सिंह के हस्ताक्षर हैं। इसका एक-एक पन्ना उनके पूरे व्यक्तित्व को समझने के लिए काफी है।
भगत सिंह लिखते हैं कि 'महान लोग इसलिए महान हैं क्योंकि हम घुटनों पर हैं। आइए, हम उठें!' डायरी के पेज नंबर 177 पर वह लिखते हैं "यह प्राकृतिक नियम के विरुद्ध है कि कुछ मुट्ठी भर लोगों के पास सभी चीजें इफरात में हों और जन साधारण के पास जीवन के लिए जरूरी चीजें भी न हों।" इसके 41वें पेज पर धर्म के बारे में उन्होंने अपने विचार जाहिर किए हैं। 'लोग धर्म द्वारा उत्पन्न झूठी खुशी से छुटकारा पाए बिना सच्ची खुशी हासिल नहीं कर सकते। यह मांग कि लोगों को इस भ्रम से मुक्त हो जाना चाहिए, उसका मतलब यह मांग है कि ऐसी स्थिति को त्याग देना चाहिए जिसमें भ्रम की जरूरत होती है।'

पेज नंबर 124 पर लिखा है Aim of life (जीवन का उद्देश्य)

शहीद-ए-आजम भगत सिंह की आवाज, उनके क्रांतिकारी विचार आम लोगों तक पहुंचाने के लिए पहली बार उनकी जेल डायरी हिंदी में छपवाई गई है। खास बात यह है कि इसमें एक तरफ भगत सिंह की लिखी डायरी के पन्नों की स्कैन प्रति लगाई गई है और दूसरी तरफ उसका ट्रांसलेशन (अनुवाद) है। भगत सिंह ने अंग्रेजी और उर्दू में डायरी लिखी है। इस पर लाहौर जेल के जेलर के भी हस्ताक्षर हैं। डायरी पर 'नोटबुक' भारती भवन बुक सेलर लाहौर छपा हुआ है।
उस समय भगत सिंह के वंशज यादवेंद्र सिंह संधू दिल्ली से सटे हरियाणा के फरीदाबाद में रहते थे। उन्होंने भगत सिंह द्वारा लाहौर सेंट्रल जेल में लिखी गई डायरी की मूल प्रति संजोकर रखी थी। संधू कहते हैं, 'हम चाहते थे कि डायरी में लिखी बातों का हिंदी में अनुवाद कर आम लोगों तक पहुचायां जाए। खासकर हिंदी पट्टी के लोग उनके विचार उन्हीं के शब्दों में जान सकें।'
जेल डायरी में भगत सिंह ने जेम्स लोवेल रसेल की कविता 'फ्रीडम' लिखी है। 'भगत सिंह के बारे में जब भी पढ़ते हैं, तो एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि जो कुछ भी उन्होंने किया, उसकी प्रेरणा, हिम्मत और ताकत उन्हें कहां से मिली? उनकी उम्र मात्र 23 साल थी और उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। लाहौर सेंट्रल जेल में आखिरी बार कैदी रहने के दौरान (1929-1931 के बीच) भगत सिंह ने आजादी, इंसाफ़, खुद्दारी, मजदूरों, क्रांति और समाज के बारे में महान दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों और नेताओं के विचारों को खूब पढ़ा और आत्मसात् किया। 
सरदार भगत सिंह लाहौर के सेंट्रल जेल में बंद थे। लाहौर के कॉलेज के पास में ही पुस्तकालय था। भगत सिंह को पढ़ने का काफी शौक था। इसी पुस्तकालय से उन्हें किताबें जाती थीं। अंग्रेज देख न लें इसके लिए तत्कालीन लाइब्रेरियन राजा राम शास्त्री उन्हें छिपा के किताबें देते थे। भगत सिंह जब कॉलेज में पढ़ते थे तो उस समय वे इस पुस्तकालय में किताबें पढ़ने के लिए आते थे। धीरे धीरे उनकी यहां के तत्कालीन लाइब्रेरियन राजा राम शास्त्री से दोस्ती हो गई। बाद में राजा राम भी उन्हें कौन सी किताबें पढ़नी है, उसकी सलाह देते थे। भगत सिंह को क्रांतिकारियों के जीवन पर किताबें पढ़ने का बड़ा शौक था। भगत सिंह को कार्ल मार्क्स और लेनिन की किताबें बहुत पसंद थीं। वे क्रांतिकारियों और क्रांतिकारी सिद्धांतों की किताबों को खूब पसंद करते थे। भगत सिंह ने गॉड एंड स्टेट, मदर, द जंगल, ए नोवेल किंग कोल, लेस मिजरेब्लस, ऑयल ए नोवेल, सिविल वार इन फ्रांस, मार्टिन चुजलेविट, लाइफ ऑफ वाल्टायर, गैरीबाल्डी एंड द मेकिंग ऑफ इटली, गैरी बाल्डी एंड हिज रेड शर्टस सहित अन्य किताबें उन्होंने पढ़ी थी। इसी आधार पर उन्होंने जेल डायरी में कमेंट्स लिखे।'
इस डायरी में 'यह सब आप उन्हीं के शब्दों में, उन्हीं की हैंडराइटिंग में पढ़ सकते हैं। भगत सिंह ने सब भारतीयों को यह बताने के लिए लिखा कि आजादी क्या है, मुक्ति क्या है और इन अनमोल चीजों को बेरहम और बेदर्द अंग्रेजों से कैसे छीना जा सकता है, जिन्होंने भारतवासियों को बदहाल और मजलूम बना दिया था। भगत सिंह ने किस तरह के भविष्य का सपना देखा था? मौजूदा हालात में भगत सिंह की जेल डायरी इन सवालों का जवाब दे सकती हैं।'

भगत सिंह की जेल डायरी में वतनपरस्ती झलकती है

भगत सिंह की जेल डायरी की 404 पेज की इस डायरी के हर पन्ने पर वतनपरस्ती झलकती है। आजाद भारत के सपने को लेकर भगत सिंह ने लाहौर जेल में जो कठिन दिन गुजारे उसका हर लम्हा इसमें कैद है। इसके पेज नंबर 124 पर उन्होंने Aim of life (जीवन का उद्देश्य) शीर्षक से लिखा है, 'ज़िंदगी का मकसद अब मन पर काबू करना नहीं बल्कि इसका समरसता पूर्ण विकास है। मौत के बाद मुक्ति पाना नहीं बल्कि दुनिया में जो है उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना है। सत्य, सुंदर और शिव की खोज ध्यान से नहीं बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के वास्तविक अनुभवों से करना भी है। सामाजिक प्रगति सिर्फ कुछ लोगों की नेकी से नहीं, बल्कि अधिक लोगों के नेक बनने से होगी। आध्यात्मिक लोकतंत्र अथवा सार्वभौम भाईचारा तभी संभव है जब सामाजिक, राजनीतिक और औद्योगिक जीवन में अवसरों की समानता हो।' यहां भी वो समानता की बात करते नजर आते हैं।
डायरी में पूंजीवाद और साम्राज्यवाद को बताया है खतरा

27 सितंबर, 1907 को लाहौर में जन्मे भगत सिंह ने अपनी डायरी में पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के खतरे भी बताए हैं। डायरी के पन्ने उनकी साहित्यिक रुचि का भी बयान करते हैं। जिसमें उन्होंने स्वच्छंदवाद के हिमायती मशहूर अमेरिकी कवि जेम्स रसेल लावेल की आजादी के बारे में लिखी गई कविता ‘फ्रीडमʼ लिखी है। इसके अलावा शिक्षा नीति, जनसंख्या, बाल मजदूरी और सांप्रदायिकता आदि विषयों को भी छुआ है।

डायरी में भगत सिंह ने लिया था बटुकेश्वर दत्त का ऑटोग्राफ

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के चाहने वाले करोड़ों में हैं, लेकिन क्याझ आपको पता है कि भगत सिंह किस क्रांतिकारी के प्रशंसक थे? भगत सिंह स्वोतंत्रता सेनानी बटुकेश्विर दत्तक के प्रशंसक थे। इसका एक सबूत उनकी जेल डायरी में है। उन्हों ने बटुकेश्विर दत्तक का एक ऑटोग्राफ लिया था।
बटुकेश्विर दत्त और भगत सिंह लाहौर सेंट्रल जेल में कैद थे। बटुकेश्व र के लाहौर जेल से दूसरी जगह शिफ्ट होने के चार दिन पहले भगत सिंह उनसे जेल के सेल नंबर 137 में मिलने गए थे। यह तारीख थी 12 जुलाई, 1930. इसी दिन उन्होंोने अपनी डायरी के पेज नंबर 65 और 67 पर उनका ऑटोग्राफ लिया था।

भगत सिंह जेल में रहते हुए लिखा था “मैं नास्तिक क्यों हूँ?”

मैं नास्तिक क्यों हूँ? यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “द पीपल” में प्रकाशित हुआ था। इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण, मनुष्य के जन्म, मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता, उसके शोषण, दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है। यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है। स्वतंत्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930-31के बीच लाहौर के सेन्ट्रल जेल में कैद थे। वे एक धार्मिक व्यक्ति थे जिन्हें यह जान कर बहुत कष्ट हुआ कि भगतसिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं है। वे किसी तरह भगत सिंह की कालकोठरी में पहुँचने में सफल हुए और उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर यकीन दिलाने की कोशिश की। असफल होने पर बाबा ने नाराज होकर कहा, “प्रसिद्धि से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है और तुम अहंकारी बन गए हो जो कि एक काले पर्दे के तरह तुम्हारे और ईश्वर के बीच खड़ी है। इस टिप्पणी के जवाब में ही भगतसिंह ने यह लेख लिखा था।

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