क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा की 115 वीं पूण्यतिथि पर विशेष ....!!
मदनलाल ढींगरा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम क्रांतिकारी योद्धा थे। भारतीय स्वतंत्रता की चिनगारी को अग्नि में बदलने का श्रेय महान शहीद मदन लाल ढींगरा को ही जाता है। भले ही मदन लाल ढींगरा के परिवार में राष्ट्रभक्ति की कोई ऐसी परंपरा नहीं थी किंतु वह खुद से ही देश भक्ति के रंग में रंगे गए थे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में मदनलाल ढींगरा उन चुनिंदा क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने युवा अवस्था में देश के लिए अपने प्राणों की चिंता ना कर एक दमनकारी अंग्रेज अफसर की हत्या कर आत्मसमर्पण कर दिया था। मदनलाल ढींगरा अपने हालात के बिलकुल विपरीत शख्स बन कर निकले थे। अमीर परिवार के सदस्य होने के बाद भी उनका मन देश के गरीब लोगों और उनके हालात के लिए द्रवित होता था। वहीं परिवार के अंग्रेजों के प्रति वफादार होने पर भी धीरे धीरे अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों को समझने लगे थे और उनसे घृणा करते थे। उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों को अपनाया और परिवार की सुविधाएं छोड़ने तक के लिए भी तैयार हो गए थे।
मदन लाल ढींगरा का जन्म और पारिवारिक जीवन
मदनलाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब के अमृतसर में, हिंदू पंजाबी खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता डॉ दित्तामल ढींगरा एक सिविल सर्जन थे और मदल लाल आठ भाई-बहन थे। उनके पिता का परिवार अंग्रेजों के प्रति बहुत वफादर था और लेकिन किसी को भी अंदाजा भी नहीं था मदनलाल परिवार के परंपराओं के ठीक उलट देशभक्त होकर क्रांतिकारी बन जाएंगे। साल 1904 में अमृतसर में स्कूली पढ़ाई खत्म करने के बाद मदनलाल ढींगरा को मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के लिए लाहौर भेज दिया गया। यहीं वह स्वतंत्रता आंदोलन के संपर्क में आए और राष्ट्रप्रेम की भावना जगी।
अमृतसर और लाहौर में शिक्षा के दौरान देशप्रेम का बीज पनपा
मदनलाल ढींगरा और उनके सभी भाइयों की शिक्षा देश के बाहर हुई थी। उनकी शुरुआती पढ़ाई अमृतसर के एमबी इंटरमीडिएट कॉलेज और उसके बाद लाहौर के गर्वनमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी में हुई थी। वे इसी दौरान होम रूल की मांग कर राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हुए थे और लाहौर में क्रांतिकारियों के सानिध्य में उनके मन में देशप्रेम का बीज अच्छे से पनपने लगा था।
उच्च शिक्षा के लिए मदन लाल ढींगरा का भारत से लंदन जाना
जल्दी ही उनके बड़े भाई डॉ बिहारी लाल ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन जाने के लिए मना लिया और वे मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज चले गए. लंदन में ही ढींगरा की मुलाकात विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा से हुई और देशभक्ति में फिर रम गए. उसी दौरान खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिंदर पाल और काशीराम जैसे क्रांतिकारियों को मृत्युदण्ड की सजा सुनाई गई थी. ढींगरा ने इसका बदला लेने का फैसला कर लिया.
बचपन से ही स्वदेशी आंदोलन की ओर झुकाव था ढींगरा का
मदनलाल का मन बचपन से ही संवेदनशील और समझदारी से भरपूर था। उनके मन में देश की गरीबी का बहुत प्रभाव हुआ था। उन्होंने गरीबी क्यों है इसे समझने केलिए साहितय का अध्ययन किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि स्वराज और स्वदेशी अपनाने से ही इसका हल निकल सकेगा। इसीलिए उन्होंने भारतीय उद्योगों की आत्मनिर्भरता बढ़ाने वाले और ब्रिटिश सामान का बहिष्कार करने वाला स्वदेशी आंदोलन अपनाया।
मदन लाल ढींगरा माफी नहीं मांगी तो कॉलेज से निकाल दिया
लाहौर में पढ़ाई के दौरान मदनलाल ढींगरा ने ब्रिटेन से मंगाए गए कपड़ों के खिलाफ बगावत कर दी। कॉलेज प्रबंधन ने उनपर माफी मांगने का दबाव डाला लेकिन माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। कॉलेज से निकाले जाने के बाद मदन लाल ढींगरा वापस घर नहीं लौटे बल्कि शिमला और मुंबई में छोटी-मोटी नौकरी शुरू कर दी। साल 1906 में उनके परिवार ने उन्हें लंदन पढ़ने के लिए मना लिया। ढींगरा का दाखिला यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में कराया गया।
मदनलाल ढींगरा और सावरकर से लंदन में मुलाकात
लंदन में पढ़ाई के दौरान ही मदनलाल ढींगरा विनायक दमोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आए, जो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अभियान चला रहे थे। साल भर पहले ही वर्मा ने लंदन में ”इंडिया हाउस” की नींव रखी थी, जो क्रांतिकारियों का गढ़ बन चुका था। ढीगरा अक्सर इंडिया हाउस जाने लगे और वहां होने वाली मीटिंग में हिस्सा लेने लगे। कुछ वक्त बाद ही मदन लाल ढींगरा, सावरकर और उनके भाई द्वारा स्थापित ”अभिनव भारत मंडल” के सदस्य बन गए। इसी दौरान ढींगरा के पिता को उनके बारे में पता लगा और अखबार में विज्ञापन देकर उनसे संबंध तोड़ लिए।
विलियम हट कर्जन वायली को 5 गोली मार ढेर किया मदनलाल ढींगरा
1 जुलाई 1909 को लंदन के इंपीरियल इंस्टिट्यूट में इंडियन नेशनल एसोसिएशन की तरफ से ‘एट होम’ फंक्शन का आयोजन किया गया। इस फंक्शन में ब्रिटिश अफसर विलियम हट कर्जन वायली भी अपनी पत्नी के साथ शामिल हुआ। कर्जन उस वक्त ढींगरा और उनके साथियों के बारे में गुपचुप तरीके से सूचना इकट्ठा कर रहा था। जब कर्जन फंक्शन से जाने लगा तो ढींगरा ने उस पर पांच गोलियां चलाईं, जिसमें से 4 गोली सीधे निशाने पर लगी। छठवीं और सातवीं गोली पारसी डॉक्टर कारवाश ललकाका को लगी, जो कर्जन को बचाने की कोशिश कर रहे थे। दोनों मौके पर ही ढेर हो गए। ढींगरा को फौरन गिरफ्तार कर लिया गया।
विलियम हट कर्जन वायली की हत्या और मदन लाल ढींगरा को फांसी
ढींगरा एक जुलाई 1909 को इंडियन नेशनल एसोसिएशन के सालाना जलसे में भाग लेने के लिए आए भारतीय सचिव के राजनैतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्जन वायली के चेहरे पर पांच गोलियां दागीं जिसमें से चार निशाने पर लगीं। इसके बाद ढींगरा ने खुद को गोली मारने का प्रयास भी किया लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया। लेकिन उन्होंने भागने का प्रायस नहीं किया। उन्हें इसके लिए मृत्युदण्ड की सजा सुनाई गई और 17 अगस्त 1909 को लंदन के पेंटविले जेल में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। महज 24 साल की उम्र में फांसी के फंदे को चूमने वाले मदन लाल ढींगरा ने जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत शुरू की तो उनके परिवार ने ही उनका बहिष्कार कर दिया था। संबंध तोड़ लिये थे। यहां तक कि फांसी के बाद उनका शव लेने से भी इनकार कर दिया था।
67 साल बाद भारत आया था मदन लाल ढींगरा के शव का अवशेष
करीब डेढ़ महीने के अंदर ही मदन लाल ढींगरा को दोषी करार दे दिया गया और 17 अगस्त 1909 को पेंटोविल जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। ढींगरा के शव को लंदन में ही दफना दिया गया था। 1976 में ढींगरा के शव के अवशेष को भारत लाया गया और अमृतसर के मल्ल मंडी इलाके में अंतिम संस्कार किया गया था।
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