राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज की 148 वीं जयंती पर विशेष ..!!

राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज की 148 वीं जयंती पर विशेष :
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव साहित्यिक मंडली शंखनाद
छत्रपति शिवाजी के वंशज कोल्हापुर के शासक कुर्मी कुल गौरव राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून 1874 को कोल्हापुर में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबा साहब घाटगे तथा उनकी माता का नाम राधाबाई साहिबा था। शाहूजी के जन्म का नाम यशवंतराव था। शिवाजी IV की मृत्यु के बाद उन्हें गोद ले लिया गया और उनका नाम बदलकर छत्रपति शाहूजी महाराज रखा गया। उसके बाद इन्हें कोल्हापुर स्टेट का वारिस बना दिया गया। प्रारंभिक शिक्षा पुरी करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे 1890 से 1894 वो धाड़बाड़ में रहे। अप्रैल 1897 में उनका विवाह लक्ष्मीबाई से कर दिया गया। शाहूजी महाराज के दो बेटे और दो बेटियाँ थी।
शाहूजी महाराज 2 जुलाई 1894 को बीस वर्ष की उम्र में कोल्हापुर स्टेट के राजा बने। राजा बनने के बाद उन्होंने शूद्रों एवं दलितों के लिए शिक्षा का दरवाजा खोलकर उन्हें मुक्ति की राह दिखाने में बहुत बड़ा कदम उठाया। आमतौर पर सभी राजाओं की छवि जनता से जबरन कर वसूलने और हड़पने के लिए जानी जाती है, लेकिन शाहूजी महाराज ने अपने शासन के दौरान ऐसा कुछ भी नहीं किया। उन्होंने राज्य में बहुत सारे परिवर्तन किए। वो परिवर्तन के लिए समाज के सभी जाति के लोगों की सहभागिता चाहते थे, लेकिन उस वक्त उनके शासनकाल में सभी अधिकारी ब्राह्मण थे। ब्राह्मणों ने चाल चली और छोटी जाति के लोगों को शिक्षा से दूर रखा ताकि वो पढ़ लिखकर आगे बढ़ न सके। इस बात को जानकर शाहूजी महाराज बहुत परेशान हो गए। उन्होंने नीचे तबके के लोगों के लिए आरक्षण देने का कानून बनाया।
जिस बंधुआ मजदूरी प्रथा को पूरे भारत के स्तर पर भारत सरकार 1975 में जाकर कर खत्म कर पाई, उस प्रथा को 3 मई 1920 के एक आदेश से शाहूजी ने कोल्हापुर राज्य में खत्म कर दिया। इसके पहले उन्होंने 1919 में महारों से दास श्रमिक के रूप में काम कराने की प्रथा को समाप्त कर दिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने मनु संहिता की मूल आत्मा को उलटते हुए अन्तरजातीय विवाह की अनुमति प्रदान करने के लिए भी कानून पारित कराया। महिलाओं को समता का अधिकार दिलाने के लिए जो हिंदू कोड बिल डॉ. आंबेडकर ने प्रस्तुत किया था, उसका आधार शाहूजी ने 15 अप्रैल 1911 को प्रस्तुत कर दिया था। इसमें उन्होंने विवाह, संपत्ति एवं दत्तक पुत्र-पुत्री के संदर्भ में महिलाओं को समता का अधिकार प्रदान करने की दिशा में ठोस कदम उठाए थे। गंगाधर काम्बले जो कि अछूत जाति के थे उनकी चाय की दुकान खुलवाकर स्वयं महाराज चाय पीने जाते थे ताकि जाति प्रथा और ऊंच नीच को जड़ से मिटाया जा सके। इसलिए उन्हें सबसे बड़ा समाज सुधारक भी माना जाता है।

राजर्षि शाहूजी महाराज ने किसानों के लिए अपनी सारी तोपें दान कर दी 

भारतीय समाज में एक ऐसा भी राजा हुआ, जिसने अपनी प्रजा की भलाई के लिए अपनी सारी तोपें हल बनाने के लिए दान कर दिया। इस प्रजापालक राजा का नाम है कोल्हापुर रियासत के राजा राजर्षि शाहूजी महाराज। शाहूजी महाराज ने अपनी सारी तोपों को दान करने के अलावा सूखे की समस्या से निजात दिलाने के लिए किसानों का लगान भी माफ कर दिया। बात 120 साल पहले की है, जब किसानों के हल लोहे के बजाय लकड़ी के होते थें। कोल्हापुर रियासत के राजा शाहूजी महाराज और पड़ोस की रियासत ‘औंध’ के राजा ने मिलकर लोहे  के हल का कारखाना लगाया। ताकि किसानों को खेत की जुताई करने में आसानी हो। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारत में कच्चे लोहे का आयात रूक गया। जिसकी वजह से किसानों को दिक्कत होने लगी और इसका प्रतिकूल असर खेती पर पड़ने लगा। इस समस्या से उबरने के लिए शाहूजी महाराज उस जमाने की प्रसिद्ध कंपनी किर्लोस्कर को अपने राज्य की सभी तोपें दान कर दी, ताकि इन लोहे की तोपों को गलाकर इनसे लोहे के हल बनाए जा सकें। शाहूजी महाराज के इस पहल से किसानों को हल मिल गए और फसल अच्छी होने लगी। जब 1887 में अकाल और हैजे की बीमारी ने रियासत की कमर तोड़ दी तो उस दौरान शाहूजी ने 1887 में किसानों के लिए रोजगार के विशेष अवसर प्रदान किए। किसानों का लगान माफ किया। सस्ते दामों में अनाज और बुआई के लिए भी उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराए।

 कोल्हापुर में आज भी नहीं पड़ता सूखा

ये राजर्षि शाहूजी महाराज की दूरदृष्टि का ही परिणाम है कि आज जहां पूरे महाराष्ट्र में सूखा और कर्ज की वजह से किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं, लेकिन महाराष्ट्र में ही स्थित कोल्हापुर में इस तरह की खबर नहीं आती है। शाहूजी महाराज ने  1909 में सिंचाई हेतु राधानगरी में बांध का निर्माण कराया। कृषि पैदावार को वाजिब दाम मिलने के लिए व्यापार में पैठ बनाई। कोल्हापुर के गुड़ को देश का बाजार मुहैया कराया। सहकारिता को बढ़ावा दिया। आज कोल्हापुर जिला 100 सिंचाई से युक्त है। कृषि पैदावार में अग्रणी है। हर तहसील में शुगर फैक्ट्री, स्पिनिंग मिल, एमआयडीसी की उद्योग इकाईयां स्थित हैं।

शाहू जी के सहयोग से उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए अंबेडकर 


आरक्षण के जनक कोल्हापुर रियासत के राजा शाहू जी महाराज ने न केवल वंचितों, किसानों को सरकारी नौकरियों में उचित सम्मान दिया, बल्कि संविधान के निर्माता बाबा साहब भीम राव अंबेडकर को विदेश में उच्च शिक्षा के लिए आर्थिक मदद भी की। शाहूजी महाराज ने बाबा साहब अंबेडकर को ‘मूकनायक’ नामक पत्रिका प्रकाशित करने में भी सहयोग किया। कोल्हापुर रियासत की गद्दी पर 17 मार्च 1884 में बैठने के बाद शाहू जी महाराज ने सबसे पहले अछूतों को उचित इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करने का आदेश जारी किया। पहले अछूतों को अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाता था। बाबा साहब अम्बेडकर से उनके भावनात्मक सम्बन्ध थे, वे बाबा साहब के सबसे बड़े हितैषी और सहयोगी थे, उन्होंने बाबा साहब अम्बेडकर को पिछड़ों के लिए उनका अपना हितैषी नेता घोषित किया था।

शाहू जी ने ज्योतिबा फुले की सिफारिशों को लागू किया था 

शाहू जी महाराज ने दलित समाज के प्रति शालीनता का व्यवहार करने के लिए 15 जनवरी 1919 में शासनादेश जारी किया। आपने शासनादेश के तहत प्राथमिक, माध्यमिक विद्यालयों में जातीय आधार पर भेदभाव को लेकर सख्त हिदायतें दी। समान शिक्षा के लिए ज्योतिबा फुले जी की सिफारिशों को लागू किया गया।
ज्योतिबा फुले के सत्यशोधक समाज को रियासत में शाहूजी महाराज ने गाँव-गाँव में सत्यशोधक समाज की शाखाओं का विस्तार किया। जिससे राष्ट्रपिता ज्योतिबा की विचारधारा गांव-गांव तक पहुंचाई जा सके। 18 अप्रैल 1901 में मराठा स्टूडेंट्स इंस्टीट्यूट एवं विक्टोरिया मराठा बोर्डिंग संस्थान की स्थापना की और 47 हजार रूपये खर्च करके इमारत बनवाई। 1904 में जैन होस्टल, 1906 में मॉमेडन हॉस्टल और 1908 में अस्पृश्य मिल क्लार्क हॉस्टल जैसी संस्था का निर्माण करके छत्रपति शाहूजी महाराज ने शिक्षा फैलाने की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया। जो मील का पत्थर साबित हुआ। छत्रपति साहू महाराज के कार्यों से उनके विरोधी भयभीत थे और उन्हें जान से मारने की धमकियाँ दे रहे थे। इस पर उन्होंने कहा था कि “वे गद्दी छोड़ सकते हैं, मगर सामाजिक प्रतिबद्धता के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते।” साहू महाराज जी ने 15 जनवरी, 1919 को आदेश में कहा था कि “उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में भी दलित-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो, यह सुनिश्चित किया जाये। उनका स्पष्ट कहना था कि “छुआछूत को बर्दास्त नहीं किया जायेगा। उच्च जातियों को दलित जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए। जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा जायेगा, समाज का चौतरफा विकास असम्भव है।” छत्रपति शाहूजी महाराज का कार्यकाल 1892 से 1922 तक रहा। छत्रपति शाहूजी महाराज का शासनकाल बहुजन समाज के उत्थान का स्वर्णिम काल रहा।

वंचितों के लिए विद्यालय, छात्रावास व छात्रवृत्ति

शाहू जी महाराज ने शूद्रों व अछूतों के बच्चों के लिए छात्रवृत्तियां, छात्रावास की व्यवस्था की और हर गांव में प्राथमिक विद्यालय बनवाए। महिलाओं की शिक्षा के लिए 500 से 1000 तक की आबादी वाले हर गांव में कन्या विद्यालय बनवाने की योजना चलाई। जब शाहूजी महाराज ने सत्ता संभाली थी तो उनके राज्य में 158 प्राथमिक पाठशालाएं थीं, लेकिन उनके निधन के समय प्राथमिक विद्यालयों की संख्या बढ़कर 579 हो गईं।

अछूतों के सम्मेलन को संबोधित किए शाहूजी

शाहूजी महाराज ने 28 मार्च 1920 को नागपुर में आयोजित अछूतों के एक अखिल भारतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की। और गांव में रहने के ऐवज में शूद्र को दी गई जगह हेतु पूरे गांव की मुफ्त सेवा प्रथा को समाप्त की। ‘वतनदारी’ प्रथा को समाप्त कर भूमि सुधार लागू कर दलित समाज को भूमि का अधिकार दिया। इससे महार भाईयों की आर्थिक गुलामी काफी हद तक दूर हो गई।

शाहूजी महाराज ने सबसे पहले देश में लागू किया आरक्षण 

छत्रपती शाहूजी महाराज एक ऐसे राजा थे जिन्होंने मनुवादी व्यवस्था से पीड़ित पिछड़े समाज को अपनी संतान के रूप में स्वीकार कर लिया था। उन्होंने पिछड़े समाज के दुःख-दर्द तथा जरूरतों को समझते हुए निवारण करने का बीड़ा उठाया। आधुनिक भारत में समाज के निचले तबके को मुख्यधारा में लोने के लिए सबसे पहले छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज एवं कोल्हापुर रियासत के राजा शाहूजी महाराज ने आरक्षण लागू की। 17 मार्च 1884 में कोल्हापुर का राजा बनने के बाद शाहू जी महाराज ने देखा कि अछूतों को अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाता था। सत्ता संभालते ही उन्होंने शासनादेश जारी किया कि किसी भी अछूत को ससम्मान अस्पताल में भर्ती व इलाज किया जाए और इसका उल्लंघन करने पर कर्मचारी को नौकरी से निकाल देने की सजा तय की गई।

नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था
 वर्ष 1902 के मध्य में साहू महाराज इंग्लैण्ड गए हुए थे। उन्होंने वहीं से एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत शासन-प्रशासन के 50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिये। महाराज के इस आदेश से कोल्हापुर के ब्राह्मणों पर जैसे गाज गिर गयी। शाहू जी ने 16 जुलाई 1901 में अपने शासन की नौकरियों में गैर ब्राह्मण वर्ग के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया। शाहू जी ने चार जातियों ब्राह्मण, शेणवी, प्रभु और पारसी को छोड़कर शेष सभी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था।

दरबार के 71 अधिकारियों में 60 ब्राह्मण

सत्ता संभालने पर शाहू जी ने पाया कि उनके दरबार में 71 उच्च पदों में से 60 ब्राह्मण और 11 गैर ब्राह्मण जातियों के लोग कार्य कर रहे हैं। इसी तरह निजी सेवा में 52 में से 45 ब्राह्मण अधिकारी और केवल 7 गैर ब्राह्मण अधिकारी थे। ऐसे में दरबार में पदों पर समाज के सभी तबकों को प्रतिनिधित्व व काम करने का मौका देने के लिए उन्होंने आरक्षण का प्रावधान किया। उस समय शाहूजी महाराज के आरक्षण के फैसले का काफी विरोध हुआ। कई गणमान्य लोगों ने भी इस फैसले की आलोचना की। महाराष्ट्र के एक बड़े नेता ने तो किसानों (कुन्बी– उत्तर प्रदेश में कुर्मी) के बच्चों को शिक्षा देने का पुरजोर विरोध किया।
 
 शाहूजी ने दलितों को दिलाया भूमि रखने का अधिकार

शाहूजी महाराज ने 1918 में कानून बनाकर राज्य की एक और पुरानी प्रथा ‘वतनदारी’ का अंत किया और भूमि सुधार लागू कर महारों को भू-स्वामी बनने का हक दिलाया। इस आदेश से महार भाईयों की आर्थिक गुलामी काफी हद तक दूर हो गई।

महान सामाज सुधारक राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज का निधन

छत्रपति साहूजी महाराज का निधन 10 मई, 1922 मुम्बई में हुआ। महाराज ने पुनर्विवाह को क़ानूनी मान्यता दी थी। उनका समाज के किसी भी वर्ग से किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था।   के मन में दलित वर्ग के प्रति गहरा लगाव था। उनके निधन के बाद बड़े पुत्र राजाराम तृतीय कोल्हापुर के महाराजा बने थे। साहू महाराज ने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जो क्रांतिकारी उपाय किये थे, वह इतिहास में हमेशा याद रखे जायेंगे।

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