भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में बाल श्रमिकों की स्थिति भयावह...!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
बाल श्रम एक ऐसी व्यवस्था है जो बच्चों से उनका बचपन छीन लेती है। बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है। किसी भी देश के बच्चे अगर शिक्षित और स्वस्थ्य होंगे तो वह देश उन्नति औऱ प्रगति करेगा। और देश में खुशहाली आयेगी। लेकिन अगर बच्चे बचपन से ही किताबों को छोड़कर कल-कारखनों में काम करने लगेंगे तो देश समाज का भविष्य उज्ज्वल नहीं होगा। महानगरों और शहरों में कान्वेंट स्कूलों में रंग-बिरंगे यूनिफॉर्म पहन कर हंसते-खिलखिलाते हुए बच्चों को देखकर कौन खुश नहीं होगा। लेकिन ये देश के बच्चों की सही तस्वीर नहीं है। ऐसे बच्चों की संख्या बहुत कम है। देश में आज भी करोड़ों बच्चे स्कूलों की बजाए कल-कारखानों, ढाबों और खतरनाक कहे जाने वाले उद्योगों में कार्य कर रहे हैं। जहां दो पेट के भोजन की शर्त पर उनका बचपन और भविष्य तबाह हो रहा है। सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया भर में बच्चे पढ़ाई छोड़कर काम करने को मजबूर हैं।

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का महत्व

2011 की जनगणना के अनुसार, देश में 5 से 14 वर्ष की आयु के लगभग 43.53 लाख बच्चे काम करते थे। गरीबी सबसे बड़ी है बाल श्रम की, जिसकी वजह से बच्चे शिक्षा का विकल्प छोड़कर मजबूरी वश मजदूरी करना चुनते हैं। इसके अलावा, कई सारे बच्चों को संगठित अपराध रैकेट द्वारा भी बाल श्रम के लिए मजबूर किया जाता है। तो इस दिन को विश्व स्तर पर मनाए जाने का उद्देश्य इन्हीं चीज़ों के ऊपर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है, जिससे बच्चों को बाल श्रम से रोका जा सके।

 विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का इतिहास

यह दिवस दुनियाभर के देशों में मनाया जाता है। बाल श्रम के खिलाफ पहला विश्व दिवस 12 जून 2002 को जिनेवा, स्विट्जरलैंड में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा मनाया गया था। जिसके तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी करवाना अपराध माना गया। अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ के लगभग 187 देश इसके सदस्य हैं। विश्व में श्रम की स्थितियों में सुधार के लिए कई सम्मेलनों को पारित किया है। 1973 में, अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ के सम्मेलन संख्या 138 को अपनाकर रोजगार के लिए न्यूनतम आयु पर लोगों का ध्यान केंद्रित किया गया था। जिसका मकसद सदस्य राज्यों को रोजगार की न्यूनतम आयु बढ़ाने और बाल मजदूरी को समाप्त करना था।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है। तब से, 12 जून को दुनिया भर में विश्व बाल श्रम के खिलाफ यह दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2 करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार तो लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं। इन बालश्रमिकों में से 15 प्रतिशत के लगभग घरेलू नौकर हैं, ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में तथा कृषि क्षेत्र से लगभग 80 प्रतिशत जुड़े हुए हैं। शेष अन्य क्षेत्रों में, बच्चों के अभिभावक ही बहुत थोड़े पैसों में उनको ऐसे ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैं जो अपनी व्यवस्था के अनुसार उनको होटलों, कोठियों तथा अन्य कारखानों आदि में काम पर लगा देते हैं। उनके नियोक्ता बच्चों को थोड़ा सा खाना देकर मनमाना काम कराते हैं। 18 घंटे या उससे भी अधिक काम करना, आधे पेट भोजन और मनमाफ़िक काम न होने पर पिटाई यही उनका जीवन बन जाता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, दुनिया में लगभग 160 मिलियन बच्चे बाल श्रमिक के रूप में काम कर रहे हैं। अफ़्रीकी महाद्वीप में सबसे अधिक बाल श्रमिक पाए जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का आंकड़ा बताता है कि दुनिया में कुल बाल श्रमिकों का लगभग पांचवां हिस्सा, या 72 मिलियन बाल श्रमिक अफ्रीका में हैं। अफ़्रीका के बाद, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बाल श्रमिकों की संख्या सबसे ज़्यादा है - 62 मिलियन या दुनिया के बाल श्रमिकों का 07 प्रतिशत। उनके बाद 11 मिलियन के साथ अमेरिका, 6 मिलियन के साथ यूरोप और मध्य एशिया और 01 मिलियन के साथ अरब देश हैं।

बाल श्रमिकों से सम्बंधित अन्य समस्याएं 

केवल घर का काम नहीं इन बालश्रमिकों को पटाखे बनाना, कालीन बुनना, वेल्डिंग करना, ताले बनाना, पीतल उद्योग में काम करना, कांच उद्योग, हीरा उद्योग, माचिस, बीड़ी बनाना, खेतों में काम करना, कोयले की खानों में, पत्थर खदानों में, सीमेंट उद्योग, दवा उद्योग में तथा होटलों व ढाबों में झूठे बर्तन धोना आदि सभी काम मालिक की मर्ज़ी के अनुसार करने होते हैं। इन समस्त कार्यों के अतिरिक्त कूड़ा बीनना, पोलीथिन की गंदी थैलियां चुनना, आदि अनेक कार्य हैं जहां ये बच्चे अपने बचपन को नहीं जीते, नरक भुगतते हैं परिवार का पेट पालते हैं। 
ऐसे बाल श्रमिकों से सम्बंधित एक अन्य समस्या है, बहुत बार इन बच्चों को तस्करी आदि कार्यों में भी लगा दिया जाता है। मादक द्रव्यों की तस्करी में व अन्य ऐसे ही कार्यों में इनको संलिप्त कर इनकी विवशता का लाभ उठाया जाता है। बच्चों को मुस्लिम देशों में बेच देने की घटनाएं भी होती हैं।  

 बच्चों की मदद के लिए कई आंदोलन चलाए जाते हैं

बच्चों की मदद के लिए कई आंदोलन भी चलाए जाते हैं। कई बच्चे ऐसे हैं जो बहुत छोटी उम्र में अपना बचपन खो देते हैं। विश्व बाल श्रम निषेध दिवस से पहले बचपन बचाओ आंदोलन और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन (केएससीएफ) ने बाल मजदूरों को मुक्त कराने और उनके पुनर्वास के लिए विशेष नीति बनाने का आह्वान किया है। साथ ही विशेष नीति के तहत ऐसे बाल मजदूरों के लिए आवासीय स्कूल स्थापित करने और बाल कल्याण योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन को बढ़ाने की भी मांग की गई।

 भारत के संविधान में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम हैं 

भारत में बालश्रम की समस्या दशकों से प्रचलित है। भारत सरकार ने बालश्रम की समस्या को समाप्त क़दम उठाए हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। भारत की केंद्र सरकार ने 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित कर दिया। इस अधिनियम के अनुसार बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई। इस समिति की सिफारिश के अनुसार, खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है। 1987 में, राष्ट्रीय बालश्रम नीति बनाई गई थी।

 हर साल रखी जाती है अलग-अलग थीम, इस वर्ष 2024 का थीम है

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने बाल श्रम की वैश्विक सीमा और इसे खत्म करने के लिए आवश्यक कार्रवाई और प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 2002 में बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस की शुरूआत की थी। विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर हर साल नई थीम रखी जाती है। इस वर्ष विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 2024 का थीम है "आइये अपनी प्रतिबद्धताओं पर कार्य करें: बाल श्रम को समाप्त करें" यह वर्ष 2024 के विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का विषय है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि सभी बच्चों, विशेषकर बाल श्रम के जोखिम वाले बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ कार्य स्थितियां प्राप्त हों। वे ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों का विकास और क्रियान्वयन कर रहे हैं जो बच्चों के लिए सुरक्षित और स्वस्थ काम की ओर संक्रमण का समर्थन करेंगे। वे सरकारों, नियोक्ताओं, नागरिक समाज और अन्य भागीदारों के साथ सहयोग करके ऐसा कर रहे हैं।  

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का उद्देश्य

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का उद्देश्य बाल श्रम के खिलाफ बढ़ते वैश्विक आंदोलन को गति देना है। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि अगर लोग और सरकारें प्राथमिक कारण पर ध्यान केंद्रित करें और सामाजिक न्याय और बाल श्रम के बीच संबंध को पहचानें तो बाल श्रम को खत्म किया जा सकता है। बच्चों को ऐसे माहौल में बचपन बिताना चाहिए जहाँ उनकी भलाई और विकास को प्राथमिकता दी जाए और उनका ख्याल रखा जाए। उन्हें जीविका चलाने के लिए शारीरिक श्रम करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे शारीरिक और भावनात्मक शोषण के शिकार होते हैं। दुख की बात है कि अधिकांश गरीब देश बाल श्रम और दुर्व्यवहार से ग्रस्त हैं। बच्चों को ऐसी परिस्थितियों में बड़ा होना चाहिए जो उनके स्वास्थ्य और विकास में सहायक हों। उन्हें जीविकोपार्जन के लिए शारीरिक श्रम करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे शारीरिक और भावनात्मक शोषण के प्रति संवेदनशील हैं। बाल श्रम सही मायनों में, मानवता पर कलंक समान है।

 • “आइये हम अपना आज बलिदान कर दें ताकि हमारे बच्चों का कल बेहतर हो सके।”

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