दीपावली अपने आगे पीछे कई त्योहारों को लेकर आती है...!
भारत देश में अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते है लेकिन उन सभी त्योहारों में सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली या दिवाली का त्यौहार है। यह कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। दीवाली अपने आगे पीछे कई त्योहारों को लेकर आती है। यह त्यौहार प्रत्येक वर्ष बड़ी धूमधाम से भारत में मनाया जाता है। दीपावली का अर्थ होता है ”दीप” और ”आवली” अर्थात यह दो शब्दों से मिलकर बना है। दीपावली के यह दोनों शब्द संस्कृत भाषा के शब्द है, जिसका मतलब होता है दीपों की श्रृंखला, दीपों की पंक्ति। दीपावली भारत देश के सभी सनातनी नागरिकों का खुशियों का त्यौहार है, दीपावली के शुभ अवसर पर प्रत्येक सनातनी घरों में भगवान गणेश और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। भारत देश के निवासी दिवाली के त्यौहार को किसी अन्य देश में रहने पर भी बड़े धूमधाम से मनाते है। दिवाली को भारत में दो दिन मनाया जाता है।
दीपावली में किसकी पूजा की जाती है ?
दीपावली के शुभ अवसर में सनातनी कैलेंडर के अनुसार सूर्यास्त होने के पश्चात भगवान् गणेश और माता लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। यह पूजा धन की प्राप्ति और स्वस्थ जीवन के लिए की जाती है लक्ष्मी जी के आवागमन के लिए उस दिन घरों में रंगोली भी बनाई जाती है और लक्ष्मी जी की पूजा के लिए लक्ष्मी आरती की जाती है भगवान गणेश की पूजा करने के लिए गणेश आरती की जाती है। दीपावली त्यौहार देश में बच्चे और बड़े सभी लोगो का पसंदीदा त्यौहार है। दीपावली के बाद और उससे पहले अन्य प्रकार के त्यौहार भी भारत में मनाये जाते है। दीपावली अपने आगे पीछे कई त्योहारों को लेकर आती है।
दीपावली या लक्ष्मी पूजा :
दीपावली में लक्ष्मी के साथ गणेशजी के पूजन का विधान इसलिए किया गया, क्योंकि केवल लक्ष्मी का आगमन मनुष्य को कुमार्ग पर भी ले जा सकता है। गणेशजी बुद्धि के देवता हैं। धन को बुद्धिपूर्वक उपयोग करने की प्रेरणा गणेशजी ही देते हैं। अतः दोनों को साथ-साथ पूजा जाता है। गणेशजी पार्वती माँ के पुत्र हैं तथा रामायण के अनुसार लक्ष्मीजी विष्णु पत्नी भगवान् श्रीराम का लंका विजय के पश्चात् अयोध्या में आगमन भी इसी दिन हुआ था। दीपावली के लिए तो साज-सज्जा पहले ही थी। भगवान् राम के स्वागत में तोपों की सलामी की तरह पटाखे चलाने की रीति और जुड़ गई। इस प्रकार दीपमाला सजाने तथा पटाखे छोड़कर स्वागत करने की परंपरा चलती आ रही है। इसी दिन महावीर स्वामी (जैन मत) तथा स्वामी दयानंदजी का निर्वाण दिवस भी मनाया जाता है। गुरुनानकजी का मुक्ति दिवस भी इसी दिन है। अतः समस्त सनातनी या हिंदू समाज इस पर्व को आनंदपूर्वक मनाता है।
गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) :
दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व होता है। कभी यह इंद्रपूजा के रूप में था। श्री कृष्णजी ने ब्रजवासियों से गोवर्धन पर्वत पुजवाया तथा स्वयं प्रत्यक्ष होकर सब प्रकार के व्यंजनों का भोग ग्रहण किया। तब से इंद्र पूजा की जगह गोवर्धन पूजा होने लगी। इस दिन घरों में गोबर से मानव आकृति बनाकर उसकी पूजा तथा परिक्रमा श्रीकृष्ण मानकर करते हैं। मंदिरों में कढ़ी, चावल, पूरी, सब्जी (सब मिलाकर) मिष्ठान आदि छप्पन प्रकार के व्यंजन मिलाकर प्रसाद वितरण किया जाता है। इसे अन्नकूट भी कहा जाता है।
भैया दूज पूजा :
कार्तिक शुक्ला द्वितीया तिथि को भैया-दूज का त्योहार मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। भाई-बहनों के घर जाकर टीका करवाते हैं। भाई यथाशक्ति दक्षिणा भेंट करते हैं। यम और यमुना (नदी) दोनों सूर्य के पुत्र पुत्री हैं। यम को बहन यमुना के घर आने की कभी फुरसत नहीं मिलती थी। एक बार यम इसी द्वितीया को यमुना के पास आए। यमुना ने भाई का जोरदार स्वागत किया। तिलक लगाकर नारियल भेंट किया। अपने हाथ से तरह-तरह के व्यंजन बनाकर खिलाए। प्रसन्न यमराज ने बहन से वरदान माँगने को कहा। यमुना ने यह वरदान माँगा कि भैया-दूज को प्रतिवर्ष आप अवश्य मेरे घर आएँ तथा मेरा आतिथ्य स्वीकार करें। जो भी बहने अपने भाइयों को टीका करें, वे सभी बहन-भाई यम यातना से संतृप्त न हों। मथुरा में यम घाट पर इस दिन साथ-साथ स्नान करने पर भाई-बहन पुनर्जन्म में भी भाई-बहन ही बनें। यमराज ने बहन को वरदान दे दिया। यमराज से यह वरदान पाकर यमुना ने सभी बहन-भाइयों का उपकार किया।
दीपावली का प्रतीकात्मक महत्त्व :
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा भी जाता रहा है कि लक्ष्मी देवी इस दिन भ्रमण करते हुए जिस भी स्थान को स्वच्छ, सुन्दर व आकर्षक देखती हैं, वहीं निवास करती हैं। गन्दे मलिन स्थानों की ओर वह ताकती भी नहीं। यह सत्य है कि समृद्धि और सम्पन्नता का वास स्वच्छ स्थानों पर होता है। प्रतीकात्मक रूप से हमारे देश में समाज में व्याप्त दरिद्रता का कारण बाहरी वातावरण में व्याप्त वह गन्दगी है, जो घुस आयी है हमारे शरीर में मानस में विकृतियों के रूप में, असत्य कपटाचरण. भ्रष्टाचार की वह गन्दगी, जो हमें श्रीहीन अकर्मण्य बना रही है। यदि हमारा शरीर स्वच्छ नहीं, तो स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ेगा ही, रोग उत्पन्न होंगे, शरीर आलस्य व प्रमाद से भरा होगा, क्रियाशीलता का अभाव होगा, कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होंगे। दीपावली में की जाने वाली स्वच्छता का महत्त्व आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार से है। नरकासुर के मारे जाने का अर्थ गन्दगी के असुर के मारे जाने से है।
दीपावली सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और आर्थिक महत्व का पर्व :
इसी दौरान धनवंतरी की पूजा यानि औषधि का आह्वान बैल-हल की पूजा यानि खेती-किसानी की तैयारी पौष्टिक भोजन यानि शरीर को मेहनत के लिए तैयार करना-कुल मिला कर दीपावली का पर्व एक सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और आर्थिक महत्व का पर्व है। यह जान लें कि दीपावली पर परंपराओं के नाम पर कुछ घंटे जलाई गई बारूद कई-कई साल तक आपकी ही जेब में छेद करेगी, जिसमें दवाइयों व डॉक्टर पर होने वाला व्यय प्रमुख है। इसकी मूल आत्मा सभी के कल्याण की है और आतिशबाजी का प्रयोग समाज, प्रकृति और परिवेश को नुकसान पहुंचाने वाला है।
दुनियाभर में दीपावली भारतीयता का पर्व है, न कि किसी जाति-धर्म का। देश की अस्मिता यहां के लोक, पर्यावरण और आस्था में निमित्त है। जरूरत है कि आम लोग दीपावली की मूल भावाना को समझें और आडंबर रहित, सर्वकल्याणक और अपनी आय में समाज के अंतिम छोर में खड़े व्यक्ति की हिस्सेदारी की मूल परंपराओं की तरफ लौटें।
दीपावली का सन्देश और पनपते गलत परम्परा :
उत्तर वैदिक काल में शुरू हुई आकाश दीप की परंपरा को कलयुग में दीवाली के रूप में मनाया जाता है। श्राद्ध पक्ष में भारत में अपने पुरखों को याद करने के बाद जब वे वापस अपने लोकों को लौटते थे, तो उनके मार्ग को आलोकित करने के लिए लंबे-लंबे बांसों पर कंदील जलाने की परंपरा बेहद प्रचीन रही है। फिर द्वापर युग में राजा राम लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने अपने-अपने घर के दरवाजों पर दीप जला कर उनका स्वागत किया। हो सकता है कि किसी सैनिक परिवार ने कुछ आग्नेय अस्त्र-शस्त्र चलाए हों, लेकिन दीपावली पर आतिशबाजी चलाने की परंपरा के बहुत पुराना होने के कोई प्रमाण मिलते नहीं हैं। हालांकि अब तो उच्चतम न्यायालय ने इस साल भी कड़ा संदेश दे दिया कि दूसरों के जीवन की कीमत पर आतिशबाजी दागने की छूट नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हम जश्न मनाने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम दूसरों के जीवन की कीमत पर जश्न नहीं मना सकते हैं। पटाखे फोड़कर, शोर और प्रदूशण करके उत्सव मनाया जाए? हम बिना शोर-शराबे के भी जश्न मना सकते हैं। जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने सांसद मनोज तिवारी की याचिका पर स्पष्ट कर दिया कि अकेले दीवाली ही नहीं, छट, गुरूपर्व और नए साल पर भी आतिशबाजी पर पूरी पाबंदी रहेगी, यहां तक कि ग्रीन आतिशबाजी भी नहीं।
विदित हो अदालत के जरिये आतिशबाजी पर रोक की कोशिशें कई साल से चल रही हैं, अदालतें कड़े आदेश भी देती हैं, कुछ लोग खुद ब खुद इससे प्रभावित हो कर पटाखों को तिलांजलि भी दे रहे हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो कुतर्क और अवैज्ञानिक तरीके से अदालत की अवहेलना करते हैं। यह कड़वा सच है कि पुलिस या प्रशासन के पास इतनी मशीनरी है नहीं कि हर एक घर पर निगाह रख सके। असल में हमारा प्रशासन ही नही चाहता कि अदालत के आदेशों से वायुमंडल शुद्ध रखने की कोशिश सफल हो।
विभिन्न धार्मिक ग्रंथों से यह स्पष्ट हो चुका है कि बारूद के पटाखे चलाना कभी भी इस धर्म या आस्था की परंपरा का हिस्सा रहा नहीं है। लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि समाज व संस्कृति का संचालन कानून या अदालतों से नहीं, बल्कि लोक कल्याण की व्यापक भावना से होता रहा है और यही इसके सतत पालन व अक्षुण्ण रहे का कारक भी है। दीपावली की असल भावना को ले कर कई मान्यताएं हैं और कई धार्मिक आख्यान भी। यदि सभी का अध्ययन करें तो उनकी मूल भावना भारतीय समाज का पर्व-प्रेम, उल्लास और सहअस्तित्व की अनिवार्यता है। विडंबना है कि आज की दीपावली दिखावे, परपीड़न, परंपराओं की मूल भावनाओं के हनन और भविष्य के लिए खतरा खड़ा करने की संवेदनशील औजार बन गई है।
दीपावली हमारे लिए जागरूकता का संदेश लाती है :
दीपावली हमारे लिए कर्मठता और जागरूकता का सन्देश भी लाती है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति लक्ष्मीजी का पूजन नहीं करता, आलस्य व प्रमाद में रमा रहता है, उसके घर लक्ष्मी नहीं आतीं। लक्ष्मी के वास के लिए जहां आन्तरिक, बाह्य शुद्धता का महत्त्व है, वहीं लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए न्याय एवं श्रमपूर्वक उसकी उपासना भी करनी होती है। पूजा-पाठ की स्वच्छता के साथ नित्यापयोगी वस्तुओं की शुद्धता का ध्यान रखना, मन को छल-कपट, द्वेष-दम्भ, मिथ्या एवं घृणित प्रवृत्तियों से दूर रखना, यह सब आवश्यक है। जब समुद्र मन्थन से लक्ष्मीजी प्रकट हुई थीं, तब उनके साथ कुछ बुराइयों का समावेश भी था। जैसे-चन्द्रमा के साथ टेढ़ापन, उच्चैश्रवा: घोड़े के साथ चंचलता, कालकूट के साथ मोहनी शक्ति मदिरा से मद और कौस्तुभ मणि के साथ निष्ठुरता थी। अतः लक्ष्मी के आगमन के साथ-साथ मानव चित्त में यह बुराइयां समाविष्ट हो सकती हैं, अतः ऋषियों ने लक्ष्मीजी के साथ शुद्धता का दृष्टिकोण रखा। हमें अपने घर के साथ-साथ गली, गुहल्ले और सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता पर भी ध्यान देना चाहिए, जो समाज व राष्ट्र के लिए भी उपयोगी होगी; क्योंकि समृद्धि और सम्पन्नता शुचिपूर्ण, स्निग्ध वातावरण में ही फैलती है। हमारे देश में दीनता, दरिद्रता का जो वास है, उसका कारण पूर्णरूपेण आन्तरिक एवं बाह्य अस्वच्छता से है, गन्दगी से है। जनमानस में फैली हुई अनैतिकता व धूल-कचरे को हटाना होगा। दीपावली का त्योहार आर्थिक उत्थान का सामूहिक प्रयत्न भी है। इस दिन सभी व्यापारी साल भर में होने वाले लाभ-हानि का विचार करते हैं। लाभकारी योजनाएं बनाते हैं। धन समाज व राष्ट्र का मेरुदण्ड है। इस प्रकार दीपावली पर्व ही नहीं पर्व पुंज है। लगातार त्योहार सारे समाज को उत्साहित करते हैं और खुशी की लहर दौड़ाते हैं। कुछ लोग इस त्योहार पर जुआ खेलकर इसकी पवित्रता को नष्ट करते हैं। जुआ और शराब जैसी बुरी आदत कभी भी कल्याणकारी नहीं होती। हमें ऐसी बुरी आदतों से सदा दूर रहना चाहिए। अपने परिवार और मित्रों को भी इस सामाजिक पाप से बचाना चाहिए।
दिवाली का त्यौहार कई धर्मों में मनाया जाता है :
दिवाली का त्यौहार हिंदू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों में भी मनाया जाता है जैसे कि जैन, बौद्ध व सिख धर्मी इन सभी धर्मों में उदा दिन कुछ न कुछ शुभ हुआ था। यह दिवाली कई धर्मों में लोकप्रिय है। जिस कारण दिवाली का महत्व और बढ़ जाता है। बौद्ध धर्म में इसके महत्त्व का कारण निम्नवत है।
गौतम बुद्ध का कपिल वस्तु आना :
ऐसी मान्यता है कि बौद्ध धर्म के भगवान गौतम बुद्ध इसी दिन अपनी जन्मभूमि कपिलवस्तु में 18 वर्षों के पश्चात वापस लौटे थे। उनके वापस आने की खुशी में वहां के लोगो ने लाखो दीप प्रज्जवलित कर उनका भव्य स्वागत किया था। उसी समय गोतम बुद्ध ने "अप्पो दीपो भवः" का उपदेश अपने शिष्यों को दिया था। तब से उनकी याद में दिवाली का त्योहार बोद्ध धर्म में मनाया जाता है।
सम्राट अशोक का वौद्ध धर्म अपनाना :
बौद्ध धर्म में, दिवाली उस दिन का जश्न मनाने का एक अवसर है जब ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में शासन करने वाले सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया था। सम्राट अशोक, जो शुरू में एक क्रूर शासक थे, ने युद्ध की तबाही देखने के बाद शांति और आध्यात्मिक विकास का मार्ग चुनते हुए बौद्ध धर्म अपना लिया। श्रद्धापूर्वक दीपक जलाए जाते हैं, जो आत्मज्ञान और करुणा का प्रतीक हैं। आज से हजारो वर्ष पूर्व आचार्य चाणक्य ने भारत के प्रमुख राजा को राजगद्दी तक पहुंचाया था, जो थे चंद्रगुप्त मौर्य उन्ही के पोत्र/ पोते थे सम्राट अशोक जिन्हें युद्ध लड़ना अत्यधिक अच्छा लगता था। कलिंग के भीषण युद्ध के पश्चात उन्होंने दिवाली के दिन ही हिंदू धर्म का त्याग कर चोद्ध धर्म को पूर्णतया अपना लिया था। इसके बाद उन्होंने जीवनभर देश-विदेश में बोद्ध धर्म का प्रचार और बौद्ध स्तूपों व मूर्तियों का निर्माण किया। सम्राट अशोक के द्वारा ही भारत व आसपास के देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया गया जिस कारण यह विश्व का एक बड़ा धर्म उभरकर सामने आया। बोद्ध धर्म के अनुयायी इसी की याद में प्रमुखता से दिवाली का त्योहार मनाते हैं।
जैन धर्म में दिवाली :
जैन धर्म में, दिवाली 24वें तीर्थंकर (आध्यात्मिक शिक्षक) भगवान महावीर द्वारा मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति का जश्न मनाती है। जैन ग्रंथों के अनुसार, महावीर को 527 ईसा पूर्व में दिवाली के दिन ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस प्रकार यह त्योहार जैनियों के लिए अहिंसा, आत्म-अनुशासन और त्याग के मार्ग पर चलने की याद दिलाता है- ये मूल्य महावीर की शिक्षाओं के केंद्र हैं। जैनियों के लिए दिवाली उत्सव के बजाय चिंतन का एक गंभीर समय है, जिसमें अक्सर उपवास, प्रार्थना और जैन धर्मग्रंथों का अध्ययन शामिल होता है। भक्त दीपक जलाते हैं और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति पाने के लिए महावीर की शिक्षाओं को याद करते हैं।
सिख धर्म में दिवाली :
मुगल सम्राट जहांगीर की जेल से छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद सिंह की रिहाई की याद में, सिख दिवाली के लगभग उसी समय बंदी छोड़ दिवस (मुक्ति का दिन) मनाते हैं। सिख पाठ के अनुसार, गुरु हरगोबिंद सिंह ने 52 अन्य कैद राजाओं की भी मुक्ति सुनिश्चित की, जो उनके साथ अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में वापस आए थे। इस प्रकार सिख धर्म में दिवाली न केवल स्वतंत्रता का उत्सव है बल्कि करुणा, बहादुरी और सांप्रदायिक एकजुटता के मूल्यों की याद भी दिलाती है। इस दिन, सिख स्वर्ण मंदिर को रोशन करते हैं और सामूहिक कल्याण की भावना पर जोर देते हुए प्रार्थना करते हैं।
दिवाली उत्सव समुदायों को खुशी और एकता की भावना से एक साथ लाकर खुशियाँ फैलाता है। भारत के कई हिस्सों में, घरों और सड़कों को दीयों (मिट्टी के दीपक) और रंगीन रंगोलियों (रंगीन पाउडर या फूलों से बने कलात्मक डिजाइन) की पंक्तियों से सजाया जाता है, जो प्रकाश और सकारात्मकता का प्रतीक हैं। परिवार अपने घरों को साफ करने और सजाने के लिए इकट्ठा होते हैं, प्यार और सद्भावना व्यक्त करने के लिए उपहारों और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं।
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