हिंदी साहित्य का युग प्रवर्तक कवि सुमित्रानंदन पंत ...!!
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव साहित्यिक मंडली शंखनाद
संपूर्ण भारत वर्ष में अब तक ऐसे अनेकों प्रकार के कवि हुए, जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। परंतु महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी एक ऐसे कवि माने जाते हैं, जिनके बिना हिंदी साहित्य का विकास अधूरा माना जाता है। सुमित्रानंदन पंत जी हिंदी साहित्य के महान कवि थे। पंत जी ने हिंदी साहित्य के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
छायावादी तथा प्रगति वादी अनुभूति के कवि पद्मभूषण सुमित्रानंदन पंत ऐसे कवि रहे हैं, जिन्हें प्रकृति के सुकुमार कवि, प्रकृति के चितेरे कवि, कोमल कल्पना के कवि आदि विशेषणों से विभूषित किया गया है। वस्तु वर्णन, नारी सौन्दर्य, छन्द योजना, अलंकार योजना में कोमलता के साथ-साथ पंतजी ने प्रकृति के कण-कण में चेतना पहचानी है। उनकी प्रकृति कोमलता का आवरण पहनकर आती है, जो कभी आलम्बन रूप में, कहीं उद्दीपन रूप में, कहीं मानवीकरण रूप में दर्शन देती है। पंतजी सामाजिक यथार्थ के कवि रहे हैं। "परिवर्तन" शीर्षक से कविता लिखकर उन्होंने अपने क्रांतिकारी, कठोर तथा ओजस्वी रूप का परिचय कराया।
सुमित्रानंदन पंत जी बहुत ही विशाल हृदय वाले मनुष्य हैं। लोगों के द्वारा ऐसा कहा जाता है कि हिंदी साहित्य की कल्पना महान लेखक सुमित्रानंदन पंत जी के बिना नहीं की जा सकती।
हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक सुमित्रानंदन पंत का जन्म अल्मोड़ा जिले (अब बागेश्वर) (तब उत्तर प्रदेश वर्तमान उत्तराखंड) के कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ था। इनके जन्म के कुछ घंटों पश्चात ही इनकी माँ सरस्वती देवी का देहांत हो गया था। अतः इनका पालन-पोषण इनकी दादी ने किया। सुमित्रानंदन पंत के पिता का नाम गंगा दत्त पंत था। ये गंगा दत्त पंत की आठवीं संतान थे। उस समय गंगा दत्त पंत जी कौसनी के चाय बगीचे के मैनेजर थे। सुमित्रानंदन पंत के पिता पंडित गंगा दत्त पंत धार्मिक ब्राह्मण थे। वे कौसानी राज्य के कोषाध्यक्ष और एक अच्छे जमीदार भी थे। सुमित्रानंदन पंत जी के भाई संस्कृत और अंग्रेजी के अच्छे जानकार थे, जो हिंदी में कुमाऊनी में कविताएं भी लिखा करते थे। सुमित्रानंदन पंत का जन्म स्थान कौसानी इतनी खूबसूरत जगह है कि यहाँ प्रकृति से प्रेम होना स्वाभाविक था। पंत जी जब चौथी कक्षा में पढ़ रहे थे, तभी उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था। सुमित्रानंदन पंत की प्रारंभिक शिक्षा कौसानी के ‘वर्नाक्यूलर स्कूल’ में हुई। इसके बाद में उन्हें वाराणसी चले गए और वहां पर उन्होंने ‘जयनारायण हाई स्कूल’ से शिक्षा प्राप्त की। जय नारायण हाई स्कूल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद में उन्होंने इलाहाबाद के ‘म्योर सेंट्रल कॉलेज’ में दाखिला लिया। वहां पर इंटरमीडिएट की परीक्षा में बैठने से पहले ही वे 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। जब से महा कवि सुमित्रानंदन पंत जी महात्मा गांधी के साथ सत्याग्रह आंदोलन से जुड़ गए, उसके बाद उन्होंने कभी भी अपनी पढ़ाई को आगे नहीं बढ़ाया। परंतु इसके विपरीत उन्होंने घर पर से ही हिंदी, संस्कृत, बंगाली इत्यादि साहित्य का अध्ययन किया।
गोसाई दत्त से कैसे बनें सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत का असली नाम गोसाई दत्त पंत था। सुमित्रानंदन को गोसाई नाम में गोस्वामी तुलसीदास की छवि दिखती थी। गोस्वामी तुलसीदास का जन्म अभाव में हुआ, उन्हें जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ा था। उन्हें उन परिस्थितियों का सामना न करना पड़े उसके लिए अपना नाम गोसाईदत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया था। एक पुस्तक में नेपोलियन की युवावस्था का चित्र देखकर सुमित्रानंदन पंत जी ने अपने बाल भी वैसे ही संवारने शुरू कर दिए। जब सातवीं कक्षा में थे, तभी रवींद्रनाथ टैगोर का चित्र देखा। पंत जी को लगा कि कवि के लिए सुंदर और बड़े केशों का होना आवश्यक है।
सुमित्रानंदन पंत जी को प्राप्त पुरस्कार और उपलब्धियां
सुमित्रानंदन पंत जी ने अनेकों प्रकार की पत्रिकाओं का संपादन किया और उन्होंने अपनी पत्रिकाओं में अनेकों प्रकार की कविताओं को भी लिखा, जिसके लिए उन्हें अनेकों प्रकार के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सुमित्रानंदन पंत जी को 1961 ईस्वी में पद्म विभूषण, 1968 ईस्वी में ज्ञानपीठ इसके अलावा सुमित्रानंदन पंत जी को साहित्य अकादमी तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार इत्यादि जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानित पुरस्कारों के साथ सम्मानित किया गया।
सुमित्रानंदन पंत जी के घर को संग्रहालय बनाया
सुमित्रानंदन पंत जी इतने महान कवि थे कि जिस घर में सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म और उनका बचपन बीता था, उस घर को सुमित्रानंदन पंत जी की याद में ‘सुमित्रानंदन पंत वीथिका’ के नाम से एक संग्रहालय बनाया गया। इस संग्रहालय में सुमित्रानंदन पंत जी के व्यक्तित्व प्रयोग की वस्तुएं जैसे कि उनके उपयोग किए गए कपड़े, कविताओं के मूल पांडुलिपि, पुरस्कार, छायाचित्र, पत्र इत्यादि को रखा गया है। सुमित्रानंदन पंत जी के नाम पर एक पुस्तकालय भी है और यह पुस्तकालय इसी संग्रहालय में बनाया गया है। इन पुस्तकालयों में सुमित्रानंदन पंत जी के व्यक्तित्व तथा उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है। इस संग्रहालय में सुमित्रानंदन पंत जी की स्मृति में प्रत्येक वर्ष एक दिवस मनाया जाता है, इसे पंत व्याख्यानमाला के नाम से जाना जाता है। इसी संग्रहालय से सुमित्रानंदन पंत जी की व्यक्तित्व और कृतित्व के नाम पर एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी। इसी पुस्तक के अनुसार इलाहाबाद शहर में स्थित हाथी पार्क को सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान कर दिया गया है।
सुमित्रानंदन पंत जी का साहित्यिक परिचय
सुमित्रानंदन पंत जी बचपन से ही साहित्य को लेकर काफी ज्यादा रुचिकर थे और उन्होंने मात्र 7 वर्ष की अवस्था से ही रचनाएं लिखना शुरू भी कर दिया था। इन्होंने अपने बचपन से ही रचनाओं में अपना नाम बनाना शुरू कर दिया और सुमित्रानंदन पंत जी की इसी विचारधारा को ध्यान में रखते हुए आज बहुत से लोग प्रेरित हो रहे हैं और लेखनी चुन रहे हैं। सुमित्रानंदन पंत जी अपने शुरुआती समय में बहुत से आर्थिक मंदी से भी गुजरे हैं। परंतु उन्होंने कभी भी अपने इस काम को नहीं छोड़ा और हमेशा कार्यरत रहे और आज आप सभी लोग इनकी उपलब्धि खुद देख सकते हैं। सुमित्रानंदन पंत जी पूर्ण साहित्यिक एवं सत्य शिव के आदर्शों से अत्यधिक प्रभावित हुए थे, इसी के साथ सुमित्रानंदन पंत जी का जीवन आचरण सदैव बदलता रहा। यहां से महा कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने अपनी प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति और सौंदर्य के रमणीय चित्र को दर्शाया था, वहीँ इसके विपरीत उन्होंने दूसरे चरण में अपनी कविताओं में छायावाद की सूक्ष्म सूक्ष्म परिकल्पना और बड़ी ही प्रभावशाली भावनाओं को दर्शाया था और उन्होंने अपने अंतिम चरण में समाज सुधार करने वाले प्रगतिवाद और विचार शीलता को भी दर्शाया था। ऐसा उनके किसी एक कविता में नहीं था अभी तो उनके सभी प्रकार के काव्य संग्रह में ऐसा ही चित्रण आपको देखने को मिलेगा।
पंत जी की भाषा शैली
पंत जी की भाषा शैली अत्यंत सरस एवं मधुर है। बांग्ला तथा अंग्रेजी भाषा से प्रभावित होने के कारण इन्होंने गीतात्मक शैली अपनाई। सरलता, मधुरता, चित्रात्मकता, कोमलता और संगीतात्मकता इनकी शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं। हिंदी साहित्य में पंत जी सौंदर्य के बड़े उपासक थे।
सुमित्रानंदन पंत जी की प्रमुख कृतियां
सुमित्रानंदन पंत जी ने अनेक प्रकार की विधा में अपनी रचना को लिखा है, जिसमें से निम्नलिखित है: कविता संग्रह- पल्लव, युगांतर, स्वर्ण धूलि, कला और बूढ़ा चांद, मुक्ति यज्ञ, युगवाणी, सत्य काम, ग्रंथि, ज्योत्सना, शिल्पी, खंडकाव्य- अवंगुठित, मेघनाथ वध, राजशेखर प्रमुख रचना है। पंत जी की रचनाशीलता गति पकड़ती चली गई। सन् 1918 के आसपास वह हिंदी की नवीन धारा के प्रवर्तक के रूप में पहचाने जाने लगे। 1926-27 में उनका पहला काव्य संकलन 'पल्लव' प्रकाशित हुआ था। कुछ समय बाद वह अपने भाई देवीदत्त के साथ अल्मोड़ा आ गए। इसी दौरान वह कार्ल मार्क्स और फ्रायड की विचारधारा के प्रभाव में आए। सन् 1938 में उन्होंने 'रूपाभ' नामक मासिक पत्र निकाली। 'वीणा' और 'पल्लव' में संकलित उनके छोटे गीत उनके अनूठे सौंदर्यबोध की मिसाल हैं। उनके जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, नाटक और निबंध शामिल हैं।
कोमल एवं सुकुमार भावनाओं के कवि सुमित्रानंदन पंत जी की मृत्यु इलाहाबाद में 28 दिसंबर 1977 को हुआ था। उन्हें हिंदी साहित्य का युग प्रवर्तक कवि कहा जाता है।
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