नालंदा ने शेरशाह सूरी को पहुंचाया फर्श से अर्श तक..!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव साहित्यिक मंडली शंखनाद
आज बिहार के लोकप्रिय व लोक कल्याणकारी बादशाह शेरशाह सूरी की 477 वीं पुण्यतिथि है। शेरशाह सूरी के जन्म तिथि और जन्म स्थान के विषय में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों ने इसका जन्म सन् 1485-86, हिसार, फ़िरोजा हरियाणा में और कुछ सन् 1472, सासाराम बिहार में बतलाया है। इब्राहिम ख़ाँ के पौत्र और हसन के प्रथम पुत्र फ़रीद (शेरशाह) के जन्म की तिथि अंग्रेज़ इतिहासकार ने सन् 1485-1486 बताई है।
शेरशाह का ताल्लुक अफगानों की सूर जाति से था। उसके दादा इब्राहिम सूर 1542 में भारत आए थे जिनके बेटे और शेर शाह के पिता हसन सूर ने बिहार के सासाराम में अपने कड़ी मेहनत से एक छोटी सी जागीरदारी हासिल कर ली थी। वहीं फरीद खान उर्फ़ शेरशाह सूरी का जन्म हुआ था। शेरशाह का असली नाम फरीद खान था इसके पिता हसन खान की चार बीवियां थी पहली बीवी से ही फरीद खान उर्फ शेरशाह सूरी का जन्म हुआ था। शेरशाह सूरी सासाराम से बिहार के गवर्नर बहार खान लोहानी उर्फ़ मोहम्मद शाह लोहानी उर्फ़ बहादुर खान लोहानी के यहाँ 1522 में बिहारशरीफ में बहार खान लोहानी के पुत्र को पढ़ाने के लिए आए थे। बहार खान लोहानी का भग्नावशेष महल आज भी बिहारशरीफ में मौजूद है।
नालंदा के जाना की धरती ने ही शेरशाह सूरी को पहुंचाया फर्श से अर्श तक पहुंचाया था। सम्राट अकबर के बेटे दानियाल की पत्नी, बैरम खां की लड़की और अब्दुल रहीम खानाखाना की बहन ‘जाना’ के नाम बसा है अस्थावां प्रखंड का एक गांव। यहां बहुत ही पुरानी मस्जिद है। मस्जिद की प्रसिद्धी इस बात से समझी जा सकती है कि यहां शेरशाह सूरी ने भी मुअज्जिन (अज़ान पढ़ने वाले) का काम किया था। सम्राट बनने के बाद उन्होंने वर्ष 1539-40 में इसका जीर्णोद्धार कराया। मस्जिद की दीवार पर लगा शिलापट्ट आज भी इसकी गवाही दे रहा है। 
फरीद खान से शेर खान नाम भी इसी धरती ने दिया। पूरे विश्व को शिक्षा देने वाली नालंदा की धरती ने उन्हें सिर्फ पनाह ही नहीं दी, बल्कि प्रशासनिक गुर भी सिखाये। इसकी बदौलत ही भारतवर्ष के गिने-चुने प्रसिद्ध शासकों में उनका नाम शुमार किया जाता है। उस वक्त बिहार (वर्तमान बिहारशरीफ) राजाओं की राजधानी हुआ करता था। जाना की मस्जिद के दर्शन करने विश्वभर के लोग आज भी आते हैं। बाहर से आने वाले जायरीन भी मामूली शख्स फरीद को शेरशाह बनाने वाली धरती की चर्चा करना नहीं भूलते हैं।
करीब वर्ष 1521 में फरीद खान अपने उस्ताद पीर हजरत बरहन रहमतुल्लाह के पास आये थे। उनकी सिफारिश के बाद ही जाना में मुअज्जिन बने। उस वक्त वे तीन दिनों से भूखा थे। लेकिन, बिना काम किये खाना उन्हें पसंद नहीं था। वे हर हाल में हक व हलाल की बात करते थे। सासाराम में हक न मिलने के कारण ही उन्होंने बगावती तेवर अपनाया था। बाद में उस्ताद की ही सिफारिश पर बिहार (बिहारशरीफ) के स्वतंत्र गवर्नर बहार खान के बेटे जलाल खान के बतौर शिक्षक नियुक्त हुए। राजगीर के जंगलों में शिकार के दौरान बहार खान को शेर से बचाने के बाद नाम शेर खान पड़ा। बहार खान की मौत के बाद उनकी बेगम दादू बीवी ने उन्हें जलाल खान का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया। 
लेकिन, उनके अंदर छुपी क्षमता और बहुमुखी प्रतिभा इतने से संतुष्ट नहीं थी। बाबर की सेना में शामिल हो गये। लेकिन, प्यादा बनकर रहना उन्हें गंवारा न लगा। सो, बड़ी चाह ने उन्हें फिर से बिहार खींच लाया। फिर से जलाल खान के संरक्षक बने। और, शुरू किया अपनी चाहत को परवान चढ़ाना। पहले आसपास के प्रांतों को खुद में मिलाया। पलटपुरा के पास का मियां फरीद का मैदान आज भी उनकी जंग-ए-एलान की याद दिलाता है। केपी जायसवाल रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित अनंत लाल ठाकुर रचित पुस्तक अरैबिक पर्सियन इंस्क्रिप्शन ऑफ बिहार में शेरशाह सूरी द्वारा बनायी गयी जाना मस्जिद के साथ नालंदा में उनके बिताये क्षण का संक्षिप्त विवरण मिलता है। फरीद खान की पहली बीवी बिहारशरीफ के बसार बिगहा की ही थीं। भारत में शेरशाह सूरी ने भू-राजस्व सुधार के लिए अच्छी व्यवस्था का निर्माण किया और कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किये। शेरशाह के भू-राजस्व सुधार में टोडरमल ने विशेष योगदान दिया था। शेरशाह सूरी ने भूमि को दुबारा नपवाया और राजस्व के प्रबंधन में जमींदरों और बिचौलियों को जगह नहीं दी। साथ ही किसानों को मालिकाना हक देने के लिए पट्टा बांटा जाता था, जिसे ‘इकरारनामा' या ‘कबूलियत' कहा जाता था। यह भूमि राजस्व सुधार इतने उत्कृष्ट थे की अगले मुग़ल सम्राट अकबर ने भी इनका उपयोग अपने शासन काल में किया। शेरशाह की कुछ मुख्य उपलब्धियाँ अथवा सुधार इस प्रकार है ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण जो उस समय सड़क-ए-आज़म या सड़क बादशाही के नाम से जानी जाती थी। उसने डाक प्रणाली का विकास जिसका इस्तेमाल व्यापारी वर्ग भी कर सकते थे। यह व्यापार और व्यवसाय के संचार के लिए यानी गैर राज्य प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया है। बिहार के सासाराम में स्थित सासाराम का मकबरा काफी प्रसिद्ध है। यह मकबरा हिंदू ईरान वास्तु कला का अद्भुत नमूना है। इसे तालाब के बीच ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है। शेरशाह सूरी ने अपने शासनकाल में पहला रुपया जारी किया भारत की डाक व्यवस्था को पुनर संगठित किया और सम्राट अशोक द्वारा 17 साल पहले बनवाए गए जीटी रोड को विस्तार दिया और उसकी मरम्मत करवाई इसके सिवाय उन्होंने बिना भेदभाव से अपनी प्रजा के लिए कई और काम भी किए। शेरशाह सूरी 1540-1545 के अपने पांच साल के अल्प शासन के दौरान उन्होंने नयी नगरीय और सैन्य प्रशासन की स्थापना की, तथा इसने पहला रुपया जारी किया, भारत की डाक व्यवस्था को पुनः संगठित किया और अफ़गानिस्तान में काबुल से लेकर बांग्लादेश के चटगांव तक ग्रांड ट्रंक रोड को बढ़ाया। शासन सुविधा की दृष्टि से शेरशाह का सम्पूर्ण राज्य 47 भागो में विभक्त था, जिन्हे प्रान्त अथवा इक्ता कहा जा सकता है। प्रत्येक प्रान्त का मुख्य पदाधिकारी सूबेदार होता था। प्रत्येक प्रान्त कई जिलों में विभाजित था।
शेरशाह सूरी एक कुशल सैन्य नेता के साथ-साथ योग्य प्रशासक भी थे। उनके द्वारा जो नागरिक और प्रशासनिक संरचना बनाई गयी वो आगे जाकर मुगल सम्राट अकबर ने भी इस्तेमाल कर विकसित किया।
22 मई 1545 को शेर शाह सूरी की कलिंजर के किले को जीतने के दौरान मौत हो गयी। शेरशाह ने अपने जीवनकाल में ही अपने मक़बरे काम शुरु करवा दिया था। उनका गृहनगर सासाराम स्थित उसका मक़बरा एक कृत्रिम झील से घिरा हुआ है।यह मकबरा हिंदू मुस्लिम स्थापत्य शैली काम बेजोड़ नमूना है। इतिहासकार कानूनगो के अनुसार शेरशाह के मकबरे को देखकर ऐसा लगता है कि वह अन्दर से हिंदू और बाहर से मुस्लिम था।
इस तरह दिल्ली के तख्त पर वह मात्र पांच साल ही रह सका। शेर शाह में महानता के सारे लक्षण मौजूद थे। शेर शाह सूरी ने हिंदुस्तान भर में सड़कें और सराए बनवाई। सडकों के दोनों तरफ आम के पेड़ लगवाए जिससे चलने वालों को छाया रहे। हर दो कोस पर एक सराय बनवाई गयी। इन सरायों में हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग व्यवस्था का इंतज़ाम करवाया गया और दो घोड़े भी रखवाए गये जिन्हें दूत इस्तेमाल करते थे। शेर शाह सूरी ने ऐसी कुल 1700 सरायों का निर्माण करवाया। उसने सड़कों पर सुरक्षा व्यवस्था करवाई। मुद्रा के तौर पर उसने 11.53 ग्राम चांदी के सिक्के को एक रुपये की कीमत दी। 
बिहार के सूबेदार गवर्नर बहार खाँ लोहानी ने शेरशाह सूरी को शेर खाँ की उपाधि से नवाजा था। यह उपाधि सूबेदार गवर्नर बहार खाँ ने शेरशाह सूरी द्वारा राजगीर के धनुआँ-बनुआ के जंगल में शेर को मार गिराने के कारण दी गयी थी। साथ ही बहार खाँ लोहानी ने शेरशाह सूरी को अपने पुत्र जलाल खाँ का शिक्षक और संरक्षक नियुक्त किया। शेरशाह शुरु का पहला शादी बिहारशरीफ के बसार विगहा निवासी आरिफ मोहम्मद खान सूरी की पुत्री फरहत बेगम उर्फ़ रानी शाह से हुआ था। शेर शाह सूरी मानता था कि किसान ही किसी मुल्क का आधार होते हैं। उसने किसानों के लगान को कम किया और उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा सहूलियतें दीं। उन्हें यह भी आज़ादी दी गयी कि वे जो चाहे उगायें और जैसे चाहे लगान दें। लगान की राशि भूमि के अधार पर तय करके पटवारियों को हिदायत दी गई थी कि तयशुदा रकम से ज़्यादा लगान नहीं वसूला जायेगा। किसानों को उससे सीधे मिलकर अपनी तकलीफ सुलझाने का हुक्म था। शेर शाह सूरी किसानों और रियाया का हमदर्द बनकर उभरा शेर शाह सूरी की काबिलियत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अपने पांच साल के शासन में उसने कई ऐसे काम करवाए जिनका अकबर ने भी अनुसरण किया। शेरशाह की न्यायप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने सेना से कह रखा था कि युद्ध के रास्ते में पड़ने वाली फसल को नष्ट न किया जाए। शेरशाह सूरी ने 1540 से 1545 तक पांच साल में अपने साम्राज्य में नई सैन्य शक्ति का निर्माण किया। सोने व चांदी के सिक्कों का चलन शुरू करने के साथ शेरशाह सूरी ने ही भारतीय पोस्टल विभाग को भी अपने शासनकाल में विकसित किया। उसने अपने समय में हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग विद्यालय खोले और शिक्षा का समुचित व्यवस्था किया। शेरशाह सूरी ने बिहारशरीफ पूरब “जाना” गांव में 20 फरवरी 1539-40 को एक भव्य मस्जिद निर्माण करवाया।
एक शानदार रणनीतिकार, शेर शाह ने खुद को सक्षम सेनापति के साथ ही एक प्रतिभाशाली प्रशासक भी साबित किया। अपने समय में शेर शाह सूरी अत्यंत दूरदर्शी और विशिष्ट सूझबूझ का बादशाह था। इसकी विशेषता इसलिए अधिक उल्लेखनीय है कि वह एक साधारण जागीरदार का उपेक्षित बालक था, जोकि अपनी वीरता, अदम्य साहस और परिश्रम के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। शेर शाह सूरी ने अपने जीवन में अनेक महत्वपूर्ण कार्य संपन्न किए और कई प्रकार के निर्माण कार्य भी करवाए। उसके निर्माण कार्यों में सड़कों का निर्माण,सरायों एवम् मस्जिदों का निर्माण आदि शामिल थे। वह पहला मुस्लिम शासक था, जिसने यातायात की उत्तम व्यवस्था की और यात्रियों एवम् व्यापारियों की सुरक्षा का संतोषजनक प्रबंध किया था।
इस तरह निर्विवाद रूप से यह कहा जा सकता है कि शेरशाह अपनी अग्रगामी सोच के कारण युग प्रवर्तक था। पीछे आने वाले मुगलों का वह अग्रगामी था। एक व्यक्ति, एक सेनानायक, सैनिक, शासक, राजनीतज्ञ तथा राष्ट्रनिर्माता के रूप में उसका चरित्र अनुकरणीय था।उसके सुव्यवस्थित शासन प्रबन्ध को मुगलों ने ही नहीं, अपितु अंग्रेजों तक ने अपनाया था। शेरशाह के प्रशासकीय राजस्व सैनिक सुधार तथा जनहित के कार्य उसे मुगल काल का श्रेष्ठ शासक सिद्ध करते हैं। वह अपने समय का महान् साम्राज्य संस्थापक था।

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