जॉर्ज फर्नांडिस गरीबों के मसीहा, एक अनथक विद्रोही..!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, 
महासचिव साहित्यिक मंडली शंखनाद 
जॉर्ज फर्नांडिज का सम्पूर्ण जीवन प्रत्येक मनुष्य को इसी बात की महान् प्रेरणा देता है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में ही प्रतिभा से प्रसून प्रस्फुटित होते हैं। यदि दृढ़ संकल्प हो, अदम्य इच्छाशक्ति हो, कर्तव्य कर्म में ईमानदारी व निष्ठा हो, सच्ची लगन हो और महत्त्वाकांक्षा ऊंची हो, किन्तु सुविधा और आवश्यकताओं का अभाव लक्ष्य पूर्ति के मार्ग में उपस्थित हो, तो भी अपने लक्ष्य को जीवन में पाया जा सकता है। असफलताओं को सफलता में परिवर्तित करना, रास्ते के कांटों को बनाना, यह तो स्वयं मनुष्य के हाथ में है।

जॉर्ज फर्नांडीस का व्यक्तिगत जीवन –
जॉर्ज फर्नांडिज ने का जन्म  भले ही कर्नाटक में हुआ हो लेकिन उनकी कर्मभूमि महाराष्ट्रा और बिहार रही। जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म 3 जून 1930 को मैंगलोर, मद्रास प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत में मैंगलोरियन कैथोलिक परिवार में हुआ था। वे अपने 6 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे उनके भाई-बहनों के नाम लॉरेंस, माइकल, पॉल, अलॉयसियस और रिचर्ड हैं और परिवार के लोग इन्हें गौरी कहकर बुलाते थे। जॉर्ज फर्नाडिस के पिता का नाम जोसेफ फर्नांडिस तथा इनकी माता का नाम एलिस मार्था फर्नाडिस था। इनकी माता किंग जॉर्ज पंचम की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। उन्होंने अपना सेकंडरी स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट मैंगलोर के एलॉयसिस से पूरा किया। स्कूल की पढ़ाई के बाद परिवार की रूढ़िवादी परंपरा के चलते हुए उन्हें धर्म की शिक्षा के लिए बैंगलोर में सेंट पीटर सेमिनेरी भेज दिया गया। उन्हें 16 साल की आयु में सन 1946-48 तक रोमन कैथोलिक पादरी (धर्मगुरु) का अभ्यास किया और 19 साल की आयु में उन्होंने निराश होकर धार्मिक विद्यालय छोड दिया, क्योंकि स्कूल में फादर्स उंची टेबलों पर बैठकर भोजन किया करते थे, जबकि प्रशिक्षणार्थियों को ऐसी सुविधा नहीं मिलती थी। उन्होंने इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। इन्होंने 22 जुलाई 1971 को लीला कबीर से विवाह किया था जो कि केंद्रीय मंत्री हुमायूँ कबीर की बेटी थी। इस विवाह से इन्हें एक बेटा हुआ था। हालांकि साल 1980 में ये दोनों अलग हो गए थे। उनका पूरा जीवन विवादों से भरा रहा।

जॉर्ज फर्नांडीस का जुझारू राजनीति करियर

जॉर्ज फर्नांडिस जी सन 1949 में नौकरी की तलाश में मुंबई चले गए और मुंबई में उन्होंने एक अखबार में प्रूफ रीडर में नौकरी की। कुछ समय बाद उनकी मुलाकात अनुभवी यूनियन नेता प्लासिड डी मेलो और भारत में समाजवाद के जनक समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया से हुई। बाद में वे समाजवादी व्यापार संघ आंदोलन से जुड़ गए और व्यापार संघ के प्रमुख नेता के तौर पर सामने आए। उन्होंने छोटे पैमाने के उद्योगों जैसे-होटल और रेस्टोरेंट में काम करने वाले मजदूरों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। सन 1961 से लेकर 1968 तक मुंबई सिविक का चुनाव जीतकर वे मुंबई महानगर पालिका के सदस्य रहे। इसके साथ ही वे निचले स्तर के मजदूरों एवं कर्मचारियों के लिए आवाज उठाते रहे और राज्य में सही ढंग से काम करते रहे। इस प्रकार के लगातार आंदोलनों की वजह से वे राजनेताओं की निगाहों में आ गए। जॉर्ज फर्नाडिस को सन 1967 लोकसभा चुनाव में संयुक्त सोसियालिस्ट पार्टी की तरफ मुंबई दक्षिण की सीट से टिकट दिया गया और चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा में पहुंचे। कांग्रेस पार्टी के एस के पाटिल को हार दिया था।

जॉर्ज की ज़िंदगी में नेत्री जया जेटली का आना

साल 1977 में जॉर्ज फ़र्नांडिस की मुलाक़ात पहली बार जया जेटली से हुई। उस समय वो जनता पार्टी सरकार में उद्योग मंत्री थे और जया के पति अशोक जेटली उनके स्पेशल असिस्टेंट हुआ करते थे। जया ने जॉर्ज के साथ काम करना शुरू कर दिया और 1984 आते-आते ये दोनों लोग अपने निजी दांपत्य जीवन की बातें भी शेयर करने लगे थे। जॉर्ज फ़र्नांडिस की पत्नी अक्सर बीमार रहती थीं और लंबे समय के लिए अमरीका और ब्रिटेन चली जाती थीं, जॉर्ज जब बाहर जाते थे तो अपने बेटे शॉन को जया के घर पर ही छोड़ जाते थे।
जॉर्ज फ़र्नांडिस से अपनी दोस्ती के बारे में एक निजी वेबसाइट को दी गई जानकारी में वो बताती है कि "कई किस्म के दोस्त हुआ करते हैं और दोस्ती के भी कई स्तर होते हैं, महिलाओं को एक किस्म के बौद्धिक सम्मान की बहुत ज़रूरत होती है, हमारे पुरुष प्रधान समाज के अधिकतर लोग सोचते हैं कि महिलाएं कमज़ोर दिमाग़ और कमज़ोर शरीर की होती हैं, जॉर्ज वही शख़्स थे जिन्होंने विश्वास दिलाया कि महिलाओं की भी राजनीतिक सोच हो सकती है। दूसरे उनकी सोच बहुत मानवतावादी थी। एक किस्सा सुनाते हुए वो कहती हैं कि एक बार जॉर्ज जेल में थे। पंखे के ऊपर बनाए गए चिड़िया के घोंसले से उसके दो-तीन बच्चे नीचे गिर गए, वो उड़ नहीं सकते थे। तब उन्होंने अपनी ऊनी टोपी से उनके लिए एक घोंसला बनाया और उन्हें पाला। वो कहीं भी जाते थे, अपनी जेब में दो टॉफ़ी रखते थे। इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट में वो टॉफ़ियाँ मुफ़्त मिलती थीं, वो बच्चों को देखते ही उन्हें टाफी खाने के लिए देते थे। ये ही सब चीज़े थीं जिसकी वजह से जया से उनकी अच्छी बातचीत थी। 

जॉर्ज पर था राजद्रोह का आरोप

दरअसल, इसके तहत विरोध में उठे नेताओं पर क्रिमिनल केस लगाए जा रहे थे। इसमें विपक्ष के कई नेता शामिल थे। इसमें जॉर्ज फर्नांडिस के साथ 24 दूसरे नेता भी शामिल थे। इसके तहत उनके ऊपर आरोप लगाया था कि आपातकाल के खिलाफ उन्होंेने सरकारी संस्थापनों और रेल ट्रैक को उड़ाने के लिए डायनामाइट की तस्क री की थी। उनके खिलाफ सरकार को उखाड़ फेंकने को लेकर विद्रोह करने का आरोप लगाया गया 1976 में उन्हेंे गिरफ्तार कर दिल्ली। की तिहाड़ जेल में बंद किया गया था।
फर्नाडिस ने बतौर एक ट्रेड यूनियन नेता के तौर पर अपने करियर को शुरू किया था। सन 1977 में, आपातकाल हटा दिए जाने के बाद, जॉर्ज फर्नान्डिस ने बिहार में मुजफ्फरपुर सीट से चुनाव जीते और उन्हें इंडस्ट्रीज का केंद्रीय मंत्री चुना गया। केंद्रीय मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने निवेश के उल्लंघन के कारण अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कोकाकोला को देश छोड़ने का आदेश दिया।
जॉर्ज फर्नाडिस ने सन 1994 में समता पार्टी की स्थापना की। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में वह एकमात्र ईसाई थे और संचार, उद्योग, रेलवे तथा रक्षा विभागों के मंत्री रहे। मार्च 2001 में तहलका रक्षा घोटाला सामने आने के बाद जॉर्ज फर्नांडिस ने इस गड़बड़ी की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रक्षा मंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया। हालांकि 8 महीने से भी कम समय में गलती स्पष्ट होने पर उन्हें उसी पद पर दोबारा नियुक्त कर दिया गया।। जॉर्ज फर्नाडिस 1989 से 1990 तक रेल मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कोंकण रेलवे परियोजना के प्रेरणा स्त्रोत थे। कारगिल युद्ध (भारत और पाकिस्तान) के समय वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एनडीए सरकार (1998-2004) में रक्षा मंत्री थे। जॉर्ज फर्नान्डिस ने 1967 से 2004 तक 9 बार लोकसभा चुनाव जीते थे।

जॉर्ज फर्नांडिस का देश के प्रति योगदान

जॉर्ज फर्नांडिस का राजनीति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा। संसद के सदस्यों द्वारा उन्हें हमेशा प्यार और सम्मान मिलता रहा। उनके प्रमुख योगदान में राज्यसभा में किए गए उनके कार्य तथा भारत के समाजवादी आंदोलन में दी गई सेवाएं हैं। जनता दल के संस्थापक सदस्य, लोकसभा के सदस्य, रेलवे व रक्षा मंत्री और एनडीए के संयोजक के तौर पर जॉर्ज फर्नांडिस भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण व्यक्ति रहे हैं। उन्होंने कई किताबें लिखकर लोगों तक अपने विचार भी पहुंचाए।
साल 1975 में लगे आपातकाल का इन्होंने विरोध किया था, जिसके चलते फर्नांडिस को कई समय तक भूमिगत रहने पड़ा था। हालांकि साल 1976 में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और कुख्यात बड़ौदा डायनामाइट मामले में इनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया था।

जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल से ही लड़ा चुनाव

फर्नांडिस ने जेल में रहते हुए साल 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में भाग लिया था और इन्होंने ये चुनाव मुज़फ़्फ़रपुर सीट लड़ा था और भारी वोटों के साथ इसे जीता भी था। इतना ही नहीं इन्हें जनता पार्टी की और से केंद्रीय उद्योग मंत्री भी बनाया गया था। वहीं अपने चुनाव क्षेत्र मुजफ्फरपुर में रोजगार पैदा करने के लिए इन्होंने दूरदर्शन केंद्र, कांटी थर्मल पावर स्टेशन और लिज्जत पापड़ के कारखाने की स्थापना भी की थी। इन्होंने मुजफ्फरपुर क्षेत्र से साल 1980,1989 और 1991 में फिर से चुनाव लड़ा था और इन्हें जीता भी था, ये बाद में जनता दल में शामिल हो गए थे। वहीं ये रेल मंत्री वी.पी. सिंह की सरकार में साल 1989 से 1990 तक रेल मंत्री भी रहे थे। जनता दल पार्टी में कुछ सालों तक रहने के बाद इन्होंने साल 1994 में समता पार्टी का गठन किया था और साल 1996 में भाजपा ने समता पार्टी और अन्य पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।

जॉर्ज फर्नांडिस रक्षा मंत्री के तौर पर दी थी सेवा

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सत्ता में आने के बाद इन्हें रक्षा मंत्रालय सौंपा गया था और रक्षा मंत्री के पद पर इन्होंने साल 1998-2004 तक अपनी सेवाएं दी थी। इनके कार्यकाल के दौरान कारगिल युद्ध और पोखरण में पाँच परमाणु परीक्षण किए गए थे।

जॉर्ज फ़र्नांडिस एक विद्रोही राजनेता के रूप में – 

जॉर्ज फ़र्नांडिस की पहचान एक विद्रोही राजनेता के तौर पर थी, जिनका परंपराओं को मानने में यकीन नहीं था। हैरी पॉटर की किताबों से लेकर महात्मा गाँधी और विंस्टन चर्चिल की जीवनी तक- उन्हें किताबें पढ़ने का बहुत शौक था। उनका किताबों को संग्रह करने का भी मन रहता था, उन्होंने एक लाइब्रेरी भी बनाई हुई थी, वो जिस किताब को पढ़ लेते थे उसको उस लाइब्रेरी में ही रखते थे। जॉर्ज फ़र्नांडिस ने अपनी ज़िंदगी में न तो कभी कंघा खरीदा और न ही इस्तेमाल किया, अपने कपड़े वो ख़ुद साफ करते थे, वो उन कपड़ों को प्रेस ज़रूर कराते थे लेकिन उन्हें सफ़ेद कलफ़ लगे कपड़े पहनना बिल्कुल पसंद नहीं था। बतौर रक्षा मंत्री- जॉर्ज फ़र्नांडिस भारत के अकेले मंत्री थे जिनके निवास स्थान पर कोई गेट या सुरक्षा गार्ड नहीं था और कोई भी उनके घर पर बेरोकटोक जा सकता था।
रक्षा मंत्री बनने के बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी तक ने उनसे सुरक्षाकर्मी रखने के लिए अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने उनकी बात नहीं मानी, आख़िर में उन्होंने गार्ड रखना तब स्वीकार किया जब संसद के ऊपर हमला हो गया। तब उनसे कहा गया कि जॉर्ज फ़र्नांडिस को मारा जाना इतनी बड़ी बात नहीं होगी, लेकिन अगर देश के रक्षा मंत्री को मारा जाता है, तो ये देश के लिए बहुत बड़ा धक्का होगा, तब उन्होंने अनमने मन से अपने घर एक दो गार्ड रखने शुरू किए। 

गरीबों के मसीहा थे जॉर्ज

भारत में जॉर्ज फर्नांडिस को गरीबों का मसीहा कहा जाता था। जॉर्ज फर्नांडिस 10 भाषाओं के जानकार थे। वे हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन भाषाओं के में अपनीं सारगर्भित भाषण दिया करते थे। जॉर्ज बंबई अब मुम्बई में चौपाटी की बेंच पर हमेशा सोया करते थे। और लगातार सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे। फर्नांडिस की शुरुआती छवि एक जबरदस्त विद्रोही की थी उस वक्त मुखर वक्ता राम मनोहर लोहिया, फर्नांडिस की प्रेरणाश्रोत थे 1950 आते-आते वे टैक्सी ड्राइवर यूनियन के बेताज बादशाह बन गए। कुछ लोग तभी से उन्हें अनथक विद्रोही कहने लगे थे। बंबई के सैकड़ों-हजारों गरीबों के लिए वे एक हीरो थे, मसीहा थे। 
नालंदा वासियों के दिलों में आज भी जार्ज साहब हैं  

जॉर्ज फर्नांडिस बिहार के नालंदा लोकसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार सांसद रहे। वर्ष 1996 से लेकर वर्ष 2004 तक हुए तीन लोकसभा चुनावों में उन्होंने नालंदा लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। इसी दौरान वो देश के रक्षा मंत्री रहे। नालंदा के लोग आज भी उनके करिश्माई व्यक्तित्व के कायल हैं। जार्ज साहब ने नालंदा को वर्ष 1999 में केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में रक्षा मंत्री रहते देश के दूसरे सबसे बड़े अत्याधुनिक राजगीर आयुध कारखाना का तोहफा दिया था। तत्पश्चात, जार्ज साहब ने नालंदा वासियों को नालंदा सैनिक स्कूल, झारखंड- बिहार का इकलौता केंद्रीय बीड़ी श्रमिक अस्पताल एवं हरनौत रेल कोच कारखाने का भी तोहफा दिया। इसके अलावा सड़क, पुल पुलिया समेत कई कल्याणकारी योजनाओं से नालंदा वासियों को लाभांवित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इसलिए नालंदा वासियों के मन मष्तिक एवं दिलों में आज भी जार्ज साहब की स्मृतियां बसी हैं।
 
कर्मयोगी जॉर्ज फर्नांडीस का निधन 
 
जॉर्ज फर्नांडीस काफी लंबे वक्त से अल्जाइमर और पार्किंसंस रोग से ग्रस्त थे और इनका निधन 29 जनवरी 2019 में दिल्ली में हुआ है। निधन के समय इनकी आयु 88 साल की थी।

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