प्रेमचंद की कहानियों में संवेदनशीलता एवं अलौकिकता है...!!
सोहसराय-नालंदा : बिहारशरीफ,नालंदा : 31 जुलाई 2022 दिन रविवार को देरशाम स्थानीय सोहसराय के करुणाबाग मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में श्री हिंदी पुस्तकालय सोहसराय-करुणाबाग स्थित सभागार में हिंदी-उर्दू और फारसी के उद्भट विद्वान, क्रांतिकारी लेखक, हिन्दी के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की 142 वीं जयंती समारोह मनाई गई।
साहित्यिक गोष्ठी में “उपन्यास लेखन के क्षेत्र में बिहार की उपलब्धि और प्रेमचंद” पर परिचर्चा की गई। गोष्ठी की अध्यक्षता ख्यातिप्राप्त ऐतिहासिक उपन्यासकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने की। जबकि मुख्य अतिथि के रूप में साहित्य सेवी उपन्यासकार नारायण प्रसाद, तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्यकार डॉ. हरिश्चंद्र प्रियदर्शी एवं समाजसेवी डॉ. आशुतोष कुमार मानव ने शिरकत की। कार्यक्रम संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने किया।
समारोह के प्रारंभ में मुख्य रूप से मौजूद अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, डॉ. हरिश्चंद्र प्रियदर्शी, साहित्यकार नारायण प्रसाद, समाजसेवी डॉ. आशुतोष कुमार मानव ने मुंशी प्रेमचंद के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया और परिचर्चा का विधिवत शुरुआत की।
मौके पर परिचर्चा में विषय प्रवेश कराते हुए शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि हिंदी उपन्यास व कथा साहित्य के विकास में बिहार का ऐतिहासिक योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि हिंदी उपन्यास को जमीन और जनमानस से जोड़ने वाले लेखक प्रेमचंद के नक्शेकदम पर चलने वाले बिहार के लेखकों में फणीश्वरनाथ रेणु, एक विशिष्ट हस्ताक्षर हैं। वर्तमान में नालंदा जिला के नामचीन ऐतिहासिक उपन्यासकार साहित्यसेवी डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह एवं नारायण प्रसाद उसी कोटि के रचनाकार हैं। नारायण प्रसाद की रचनाशीलता ने पूरे देश में हिंदी व मगही का मान बढ़ाया। हिंदी की ऐतिहासिक उपन्यास परंपरा के अग्रणी हस्ताक्षरों में किसान कॉलेज सोहसराय के भूतपूर्व प्रोफेसर डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद, राजा राधिकारमरण प्रसाद सिंह, आचार्य शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी आदि का नाम महत्वपूर्ण है।.... उन्होंने बताया कि जनार्दन झा ‘द्विज’, रामधारी सिंह दिनकर, जानकी वल्लभ शास्त्री, नलिन विलोचन शर्मा जैसे कवि, लेखक, आलोचक भी बिहार से थे जिनके योगदान को हिंदी साहित्य में स्वर्णक्षरों में अंकित किया जाता है। फंतासी कथा के दुनिया के बादशाह बाबू देवकीनन्दन खत्री (मुजफ्फरपुर), मधुबनी के नागार्जुन, कटिहार जिला के समेली गाँव में जन्मे अनूपलाल मंडल, पटना में जन्मे निकिता सिंह सहित कई लेखकों ने "उपन्यास लेखन के क्षेत्र में बिहार की धरती को समृद्ध किया है। हिंदी साहित्य में लोकप्रियता की दृष्टि से गोस्वामी तुलसीदास के बाद मुंशी प्रेमचंद का अपना विशिष्ट स्थान है। उन्होंने कहा- कथा साहित्य को ग्रामीण पृष्ठभूमि से जोड़ने के क्षेत्र में, प्रेमचंद के अलावे बिहार के उपन्यासकारों का योगदान अतुलनीय है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उपन्यासकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि नवाब राय से प्रेमचंद बनने की एक अपनी अलग कहानी है। नवाबों की दुनिया फंतासी कहानी से लबरेज होती है। वहां भूख-प्यास, शोषण-उत्पीड़न, दुख-दर्द की छाया भी नहीं होती है। लेकिन प्रेमचंद की दुनिया में गांव हैं, वहां के नंगे-भूखे लोग हैं। जमींदारों का शोषण, जाति-सम्प्रदाय के झमेला, ऊंच-नीच, छुआछूत के भेदभाव हैं, तंत्र-मंत्र, ओझा-गुणी के टोटके आदि भी कथानक के पात्र हैं। और यही यहाँ की वास्तविक जीवन-संसार है, जो भारत कहलाता है। प्रेमचंद, जितना ऊंचे कथाओं में दीखते हैं, वे उतनी ही नीचे जमीन के अंदर फैले हैं। उन्हीं जड़ों से कथावृक्ष की सृष्टि हुई है। यही कारण है कि प्रेमचंद की कथाओं में एक विशिष्ट मर्म है, जो पाठकों अपने अंदर समेट लेता है। हर व्यक्ति अपने आप को कथावृक्ष के रूप में पाता है और यही प्रेमचंद की कहानियों की संवेदनशीलता एवं अलौकिकता है।
आयोजित समाहरोह के विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्यकार डॉ. हरिश्चंद्र प्रियदर्शी ने प्रेमचंद्र के रचनात्मक संदर्भों को रेखांकित करते हुए उनकी प्रासंगिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद्र ने अपनी रचनाओं में जिन सामाजिक राजनीतिक समस्याओं का चित्रण किया है वह समस्याएं आज और भी विकराल रूप में मौजूद है। आज समाज की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। प्रेमचंद्र ने अपनी रचनाओं में इसका उल्लेख किया है।
परिचर्चा के मुख्य अतिथि उपन्यासकार नारायण प्रसाद ने कहा कि प्रेमचंद का सबसे बड़ा अवदान यह है कि उन्होंने कथा साहित्य में किसानों और मजदूरों की नायकत्व प्रदान किया है। स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, वृद्ध विमर्श हो रहे हैं, पर इन विमर्शों की शुरूआत प्रेमचंद अपनी रचनाओं में बहुत पहले कर चुके हैं। प्रेमचंद की रचनाएं भारतीय नवजागरण और स्वाधीनता आंदोलन की उपलब्धियां हैं। उन्होंने कथा साहित्य को किसानों और मजदूरों की खुरदरी दुनिया में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने किसानों और मजदूरों की त्रासदी की गाथा लिखी है।
शंखनाद के वरीय सदस्य सरदार वीर सिंह ने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने कहानी और उपन्यास के माध्यम से लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम किया, उनके द्वारा लिखे गए उपन्यास और कहानियां आज भी प्रासंगिक हैं। मुंशी प्रेमचंद हिंदी युग के प्रवर्तक रचनाकार हैं।
परिचर्चा में समाजसेवी डॉ. आशुतोष कुमार मानव ने कहा कि प्रेमचंद का समग्र साहित्य आज भी प्रासंगिक है। प्रेमचंद खूद का एक आंदोलन है। प्रेमचंद का जन्म देहात में हुआ था। इसलिए देहाती परिवेश उनके रग-रग में बसा था। उन्होंने मजदूरों, किसानों के दर्द को समझा। उनका कृतित्व और व्यक्तिव महान था और उनका यह व्यक्तिव आज भी जीवित है।
साहित्यसेवी अभियंता आनंद प्रियदर्शी ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य कालजयी है। वे मानवतावाद के प्रबल सर्मथन थे। हिन्दी के प्रति उनका त्याग अनुकरणीय है। प्रेमचंद उन महान रचनाकारों में से एक है जिन्होंने सामाजिक रूप से सजग और सशक्त उपन्यासों और कहानियों की रचनाकर भारतीय कथा साहित्य को एक विस्तृत फलक प्रदान किया है।
डॉ. आनंद वर्द्धन ने प्रेमचंद जी को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए बताया कि नाटक, उपन्यास औऱ कहानी सम्राट देशप्रेमी होकर गांव और शहर को जोड़ने का कार्य किए। इनकी लेखनी मे आदर्शोन्मुख यथार्थ का सचित्र चित्रण मिलता है। अभी भी हालात सुधरा नहीं। आजादी के संग्राम और गांधी जी से जुड़े रहे। आज अगर वे होते तो क्या सोचते आजादी के 75 वर्ष बीतने पर।
शिक्षाविद् राज हंश कुमार ने कहा कि प्रेमचंद हिन्दी के युग प्रवर्तक रचनाकार हैं। उनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। वे पहला उपान्यासकार थे जिन्होंने उपान्यास साहित्य को तिलस्मी और यारी से बाहर निकालकर उसे वास्तविक भूमि पर खड़ा किया। प्रेमचंद नवजागरण का स्वर लेकर आए। इसीलिए उन्होंने सामंती रूढि़यों पर जबरदस्त प्रहार किया।
शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने कहा कि मातृभाषा हिंदी को आगे बढ़ाने में मुंशी प्रेमचंद का विशेष योगदान रहा है जो आने वाली पीढ़ी के लिए सदैव एक मिसाल पेश करता रहेगा।
प्रेमचंद ने हिंदी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया।
शिक्षाशास्त्री मो. जाहिद हुसैन ने कहा कि डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह के अंग्रेजी उपन्यास 'डुकारेल्स पुर्णिया ' की रचना शैली उन्हें बिहार में जन्मे विश्व के महान अंग्रेजी लेखक जॉर्ज ऑरवेल की पंक्ति में ला खड़ा कर दिया है। जॉर्ज ऑरवेल के बाद बिहार प्रांत में कोई अंग्रेजी लेखक दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता। अतः डॉ लक्ष्मीकांत सिंह जॉर्ज ऑरवेल की लेखन शैली के अंतिम कड़ी हैं। जॉर्ज ऑरवेल बिहार के वैसे मशहूर लेखक हैं, जिनकी पुस्तक "एनिमल फॉर्म" और "नाइनटीन एटी सिक्स" ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी जैसे विश्व विद्यालयों में पढ़ाए जाते हैं। डॉ लक्ष्मीकांत सिंह की पुस्तक "डुकारेल्स पूर्णिया" को इंग्लैंड के ग्लूकोशायर अर्काइव में रखा गया है।
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