शिक्षक दिवस पर विशेष : भारतीय संस्कृति के आदर्श सर्वपल्ली राधाकृष्णन ....!!
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव साहित्यिक मंडली शंखनाद
ज्ञान ही इंसान को जीने योग्य जीवन की सीख देता है। जिस प्रकार एक शिल्पकार पत्थर को आकार देता है और कच्ची मिट्टी को तपाकर उसके विकारों को दूर करता है। ठीक उसी प्रकार एक शिक्षक भी छात्रों के अवगुणों को दूर कर काबिल बनाता है। शिक्षक ज्ञान का वह अविरल स्रोत है, जो लाखों छात्रों के भाग्य का निर्माण करता है। वह ज्ञान का एक ऐसा भंडार है, जो दूसरों को बनाने में स्वयं मिट जाता है। कहा जाता है कि, एक बच्चे के जन्म के बाद उसकी मां पहली गुरू होती है, जो अक्षरों का बोध कराती हैं। वहीं दूसरे स्थान पर शिक्षक होते हैं, जो हमें काबिल बनाते हैं और सांसारिक बोध कराते हैं। जिंदगी के इम्तिहान में शिक्षकों के सिखाए गए सबक हमें सफलता की बुलंदियों पर ले जाते हैं। प्राचीन काल से ही गुरुओं का हमारे जीवन में विशेष योगदान रहा।
*डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म और शिक्षक दिवस*
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को हुआ था और 1909 में चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्यापन पेशे में प्रवेश करने के द्वारा दर्शनशास्त्र शिक्षक के रुप में अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने देश में बनारस, चेन्नई, कोलकाता, मैसूर जैसे कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों तथा विदेशों में लंदन के ऑक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र पढ़ाया है। अपने महान कार्यों से देश की लंबे समय तक सेवा करने के बाद 17 अप्रैल 1975 को इनका निधन हो गया। शिक्षक विद्यार्थियो के जीवन के वास्तविक कुम्हार होते हैं जो न सिर्फ हमारे जीवन को आकार देते हैं बल्कि हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम पूरी दुनिया में अंधकार होने के बाद भी प्रकाश की तरह जलते रहें। इस वजह से हमारा राष्ट्र ढ़ेर सारे प्रकाश के साथ प्रबुद्ध हो सकता है। इसलिये, देश में सभी शिक्षकों को सम्मान दिया जाता है। अपने शिक्षकों के महान कार्यों के बराबर हम उन्हें कुछ भी नहीं लौटा सकते हालाँकि, हम उन्हें सम्मान और धन्यावाद दे सकते हैं। हमें पूरे दिल से ये प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि हम अपने शिक्षक का सम्मान करेंगे क्योंकि बिना शिक्षक के इस दुनिया में हम सभी अधूरे हैं।
राधाकृष्णन जी भारतीय संस्कृति के उन्नायक, आदर्श तथा विज्ञानी हिन्दू विचारक थे। वे 40 वर्षों तक एक आदर्श शिक्षक के रूप में व्यतित किये तथा वे अपने आप को जीवन भर शिक्षक ही मानते रहे। वे समाज के आदर्श पुरुष, एक कुशल राजनेता, तत्ववेता, महान दार्शनिक, धर्मशास्त्री, युगद्रष्टा तथा बहुआयामी प्रतिभा के धनी होने के साथ-साथ ही देश कि संस्कृती को प्यार करने वाले व्यक्ति थे। इनकी ख्याति भारत के राष्ट्रपति के रूप में कम और एक कर्मठ विद्वान शिक्षक के रूपमें ज्यादा जानी जाती हैं। वे समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। इनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से देश में शिक्षा दी जाय तो समाज कि अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है।
शिक्षक ही वह इंसान है जो दुनिया को सन्मार्ग दिखता है। इसलिए हमें अपने गुरु को मान-सम्मान देना चाहिए। अगर हम इस दुनिया को रौशन करने के काबिल हुए है तो वह गुरु की कृपा से ही हुए है। इसीलिए तो गुरु को साक्षात ईश्वर माना गया है। आज राधाकृष्णन जी हमारे बीच आज नहीं हैं पर उनकी कीर्ति अक्षय है। मुक्ति और शांति की जो मशाल उनहोंने जलाई थी, वह भारत में ही नहीं विश्व के अनेक देशों में आज भी उजाला कर रही है। अब वक्त बदल गया है, यह देश के हित में है कि हम अपने बच्चों को विद्यालयों में महापुरुषों, समाजसेवियों के योगदान और उनके संघर्ष की दास्तान बताएं जिससे उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम की सच्ची कहानी का ज्ञान हो सके।
*शिक्षक दिवस मतलब*
शिक्षक दिवस मतलब शिक्षकों का दिन, यही वह दिन है जब हर जगह विध्यार्थी अपने गुरु के प्रति आदर प्रकट करता है उसे वह सम्मान देता है जिसका वह हकदार है। वैसे देखा जाए तो शिक्षक आदर सम्मान प्राप्त करने के लिए किसी दिन का मोहताज नहीं है, परंतु एक विशेष दिन होने से वह उस दिन कुछ विशेष सम्मान पाता है और विद्यार्थीयों को भी अपने गुरु की महिमा का पता चलता है।
शिक्षक का उत्तरदायित्व एवं महत्त्वपूर्ण कार्य
बढ़ती जनसंख्या तथा बदलते समय के अनुसार अब नगर-नगर गाँव-गाँव शिक्षण संस्थाओं द्वारा विद्यालय खोलने पर भी सबको रोजगारपरक शिक्षा नहीं मिल पा रही है। शिक्षा के लिए विद्यालय, विद्यार्थी, भवन तथा शिक्षकों का प्रबंध करना प्रशासन के कर्तव्य तथा उत्तरदायित्व हैं, परंतु सबसे प्रमुख और महत्त्वपूर्ण कार्य शिक्षक का है। शिक्षक आदर्श चरित्र, लोभरहित और परोपकार की भावना से प्रेरित होते हैं तभी वे अपने विद्यार्थियों को सही रूप में मानवता का पाठ पढ़ा सकते हैं। प्राचीनकाल में तो सभी गुरुजन ऐसे ही स्वभाव के होते थे, परंतु आजकल अर्थ प्रधान युग है। अतः शिक्षक को भी उचित वेतन एवं उचित सम्मान की अपेक्षा है। समाज को इस तथ्य से अवगत कराने के लिए शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा प्रारंभ की गई। भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्मदिन ही शिक्षक दिवस है। डॉ. राधाकृष्णन के पूज्य पिताजी भी एक शिक्षक थे। इन्होंने भी शिक्षक के नाते ही अपना जीवन प्रारंभ किया था। इनका व्यक्तिगत जीवन, इनकी शिक्षा साधना, अनेक विषयों का गहन अध्ययन तथा शिक्षण की कुशलता सभी प्रकार से आदर्श शिक्षक का सच्चा स्वरूप है। इन्होंने अपने जन्मदिवस पर देश के योग्यतम शिक्षकों को सम्मानित करना प्रारंभ किया। बाद में इस परंपरा को सभी राष्ट्रपतियों ने निभाया और 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाकर चुने हुए योग्य शिक्षको को सम्मानित करते रहे। इतना ही नहीं प्रत्येक राज्य ने भी शिक्षक दिवस मनाकर राज्य के चुने हुए शिक्षकों का सम्मान करना प्रारंभ कर दिया है।
*विद्यालयों में शिक्षक दिवस*
शिक्षक दिवस विद्यालयों में भी मनाया जाता है। सांस्कृतिक समारोह आयोजित किए जाते हैं। कभी-कभी कोई आंदोलनात्मक कार्यक्रम भी तय किए जाते हैं। प्रायः इस दिन विद्यालय के योग्य बच्चों को चुनकर उन्हें शिक्षक बनाया जाता है। वे ही कक्षाओं में जाकर पढ़ाते हैं तथा अन्य गतिविधियाँ संचालित करते हैं। इन्हीं में से कोई प्रधानाचार्य बनता है तो कोई शारीरिक शिक्षक कोई भाषा का शिक्षक बनता है तो कोई गणित शिक्षक विद्यार्थी भी बड़ी तैयारी और उत्साह से इसमें भाग लेते हैं। शिक्षक दिवस पर केवल शाल, माला या प्रमाण पत्र देकर सम्मानित करने से शिक्षक का सम्मान नहीं बढ़ेगा। शिक्षक को जीवनयापन हेतु अनेक प्रकार की सुविधाएँ भी दी जानी चाहिए।यात्राओं में प्राथमिकता, कार्यालयों में सहज सुलभ कार्य कराए जाने की आवश्यकता है। समाज में एक इंजीनियर या अनपढ़ ठेकेदार अधिक मान पाता है, जबकि शिक्षक उनसे अधिक योग्य तथा सेवार्थ समर्पित होता है। अतः समाज को भी शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को सम्मानित किए जाने के सार्वजनिक कार्यक्रम बनाने चाहिए। शिक्षकों का भी दायित्व है कि वे अपने आदर्श चरित्र से का मार्ग दर्शन करें। वे धूम्रपान, नशे की लत तथा अन्य दुर्गुणों से बचकर रहे। अपने विद्यार्थियों को भी दुर्गुणों से बचाने की प्राणपण से चेष्टा करें। ट्यूशन जैसी लोभीवृत्ति से बचें तथा कक्षा मंन ही पूर्ण मनोयोग से पढ़ाएँ। अच्छे शिक्षकों को तो सदैव सम्मान मिलता ही है।
भारत के अलावा विश्व में शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को भी
भारत के अलावा दुनिया में 5 अक्टूबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। 5 अक्टूबर, 1966 में यूएन में पहली बार शिक्षकों की भूमिका पर चर्चा की गई। तब शिक्षकों के अधिकार और कर्तव्यों को निर्धारित किया गया। शिक्षकों की शिक्षा, रोजगार और अन्य चीजों को लेकर एक सकारात्मक प्रतिक्रिया मिला। वर्ष 1994 में यूनेस्को ने शिक्षकों के सम्मान में 5 अक्टूबर को शिक्षक दिवस मनाने का ऐलान किया था। लेकिन कुछ देश ऐसे भी हैं जो 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाते हैं। इन देशों में ऑस्ट्रेलिया, चाइना, जर्मनी, बांग्लादेश, श्रीलंका, यूके, पाकिस्तान, ईरान आदि शामिल हैं। इसके अलावा 11 देश 28 फरवरी को भी शिक्षक दिवस मनाते हैं। इस दिन छात्र अपने सभी शिक्षकों के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करते हैं, देश भर में, स्कूल, कॉलेज, और हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूट में डॉ. राधाकृष्णन को श्रद्धांजलि दी जाती है। इस दिन छात्र अपने शिक्षक को मैसेज, कार्ड और तोहफें देकर उनके समर्पण के प्रति आभार प्रकट करते हैं।
बच्चों पर पड़ता है शिक्षकों का असर
हर बच्चे की मानसिकता पर उसके शिक्षकों का असर पड़ता है और उसके व्यक्तित्व के निर्माण में शिक्षकों की बहुत बड़ी भूमिका रहती है। कोई भी व्यक्ति जल्दी अपने बचपन के शिक्षकों को भुला नहीं पाता है। शिक्षकों की भूमिका बच्चों के विकास में अहम होती है। इसलिए किसी भी स्थिति में न तो शिक्षकों को बच्चों की उपेक्षा करनी चाहिए और अभिभावकों को भी इस बात के लिए कोशिश करनी चाहिए कि उनके बच्चों का शिक्षकों के साथ सीधा संबंध बने।
वर्तमान में शिक्षकों और छात्रों के बीच संवाद जरूरी
आजकल शिक्षकों और छात्रों के बीच व्यक्तिगत स्तर पर सीधा संवाद नहीं हो पाता है। पहले ऐसा नहीं था। छात्र अपने शिक्षकों से तभी बेहतर तरीके से सीख सकते हैं, जब उनके संपर्क में आएं। वहीं, शिक्षक भी अपने छात्रों को सही तरीके से नहीं समझ सकते, जब तक कि व्यक्तिगत तौर पर उनसे संवाद नहीं करें और उनकी मानसिकता को नहीं समझें। परस्पर संवाद से ही शिक्षक और छात्र एक-दूसरे को ठीक से समझ सकते हैं और उनके बीच संबंध मजबूत हो सकते हैं। यह हर लिहाज से बेहतर होता है।
शिक्षक दिवस पर साथियों मैं एक बात कहना चाहता हूँ “जब भी धरा पर जन्म लूं, शिक्षक ही रहना चाहता। गलियों से खेलते वर्तमान से, भविष्य के ख्वाब सजाता हूँ कोरे कागजों पर लिखकर, उन्हें किताब मैंनबनाता हूँ। "अ" अनपढ़ से शुरू कर, "ज्ञ" ज्ञानी तक पहुँचाता हूँ।”
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