किसान नेता चौधरी चरणसिंह की 120 वीं जयंती पर विशेष ...!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव साहित्यिक मंडली शंखनाद
दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग-अलग वक्त पर किसान दिवस मनाया जाता है। भारत में 23 दिसंबर को राष्ट्रीाय किसान दिवस मनाया जाता है। इसी दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जन्मदिवस भी है। भारत के किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए चरण सिंह ने काफी काम किए थे और यही कारण है कि उनके जन्मदिवस को राष्ट्री य किसान दिवस के लिए चुना गया। भारत के सातवें प्रधानमन्त्री धरती पुत्र किसान नेता चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को उत्तर प्रदेश मेरठ ज़िले के नूरपुर ग्राम में मध्य वर्गीय कृषक ‘जाट’ परिवार में पिता चौधरी मीर सिंह और माता नेत्रकौर के घर में हुआ था। वे कुछ समय के बाद माता-पिता के साथ मेरठ के भूपगढ़ी गांव आकर रहने लगे थे।
 
चौधरी चरण सिंह का राजनैतिक सफर 

चौधरी चरण सिंह जी वर्ष 1929 में मेरठ जिला पंचायत सदस्य व 1937 में प्रांतीय धारा सभा में चुने गए। 03 अप्रैल 1967 में मुख्यमंत्री, 1977 में सांसद तथा गृहमंत्री, 24 जनवरी 1979 में उप प्रधानमंत्री, 28 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री बने थे। चरण सिंह कहते थे कि ‘देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों और खलिहानों से होकर गुजरता है। उनका कहना था कि भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है। जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वो देश कभी तरक्की नहीं कर सकता।’ इसीलिये देश के लोगों का आज भी मानना है कि चौधरी चरण सिंह एक व्यक्ति नहीं विचारधारा थे। चौधरी चरण सिंह जीवन पर्यन्त गांधी टोपी धारण कर महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी बने रहे। ईमानदारी उनकी पहचान रही। यही वजह है कि जिस दिन उनका निधन हुआ तब उनके खाते में सिर्फ 470 रुपये थे।

भारतीय किसान त्याग और तपस्या की सजीव मूर्ति

भारत गांवों का देश है। भारत की अधिकतर जनसंख्या गांवों में ही निवास करती है। उनमें से सबसे अधिक किसान हैं। भारतीय किसान का जीवन अत्यंत कठिन होता है। वह त्याग और तपस्या की सजीव मूर्ति होता है। इनका मुख्य व्यवसाय कृषि ही होता है। वह दिनभर खेतों में कार्य करते हैं। यह दिन ही नहीं अपितु जीवन भर मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है। भारतीय अर्थव्यवस्था एक कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था है इसलिए हमारे देश में किसान का बहुत महत्व है। मानव सभ्यता के विकास में कृषि की अमूल्य भूमिका रही है। 
भारत किसानों का देश

एक कहावत है कि भारत की आत्मा किसान है जो गांवों में निवास करते हैं। किसान हमें खाद्यान्न देने के अलावा भारतीय संस्कृति और सभ्यता को भी सहेज कर रखे हुए हैं। यही कारण है कि शहरों की अपेक्षा गांवों में भारतीय संस्कृति और सभ्यता अधिक देखने को मिलती है। किसान की कृषि ही शक्ति है और यही उसकी भक्ति है।

किसान हमारे पालनहार आधुनिक विष्णु

वर्तमान संदर्भ में हमारे देश में किसान आधुनिक विष्णु है। वह देशभर को अन्न, फल, साग, सब्जी आदि दे रहा है लेकिन बदले में उसे उसका पारिश्रमिक तक नहीं मिल पा रहा है। प्राचीन काल से लेकर अब तक किसान का जीवन अभावों में ही गुजरा है। किसान मेहनती होने के साथ-साथ सादा जीवन व्यतीत करने वाला होता है। किसान भारतीय जवान के मेरुदंड है।

भारतीय किसानों की गम्भीर समस्या

भारतीयों कृषकों की दिनावस्था के एक नहीं, अनेक कारण हैं। पहला कारण है- उनकी बेहद गरीबी। इस गरीबी के कारण ही वे खेती के आधुनिक और विकसित उपकरण खरीद नहीं पाते। वे न सिंचाई का प्रबंध कर पाते हैं, न खेतों में उर्वरक डाल पाते हैं, न उत्तम बीज खरीद पाते हैं तो आप ही बताइए कि उनका फसल अच्छा कैसे होगा? आज देश में खेती का योगदान कुल अर्थव्यवस्था में 15 प्रतिशत के लगभग होने पर भी इससे गरीब 60 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिल रहा। लेकिन भारत में अभी तक खेती और किसान को अर्थनीति में जितना महत्व मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पाया है।
भारत में स्वतंत्रता पूर्व किसान आंदोलन

भारत में किसान आंदोलन का लगभग 200 वर्षों का इतिहास है। 19 वीं शताब्दी में बंगाल का संथाल एंव नील विद्रोह तथा मद्रास, पंजाब एवं बिहार में किसान आंदोलन इसके उदाहरण है। भारतीय किसान आंदोलन की राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही। किसान आंदोलन और राष्ट्रीय आंदोलन का अटूट रिश्ता था। अप्रैल, 1917 में नील कृषकों द्वारा बिहार के चम्पारण जिले में गांधी जी के नेतृत्व में चलाया गया किसान संघर्ष देश का राजनीतिक दृष्टि से पहला संगठित आंदोलन था। हमारे यहां की एक प्रसिद्ध कहावत थी, "उत्तम खेती मध्यम बान, करे चाकरी अधम समान" अर्थात आजीविका श्रेष्ठ साधन कृषि है, व्यापार और नौकरी का स्थान उसके बाद आता है। इसे पुनः चरितार्थ किया जा सकता है।

भारतीय किसान आज भी आत्महत्या करने पर मजबूर

आजादी के बाद और उदारीकरण, औद्योगीकरण एवं अन्य आर्थिक सामाजिक सुधारों के माध्यम से उद्योगों का कायाकल्प हुआ और उद्योगों को घाटे से उबरने के लिए करोड़ों रुपये की सरकारी राहत दी जाती रही है लेकिन जब कृषि क्षेत्र की बात आती है, किसानों के कर्ज की बात आती है तो इतनी कम राशि दी जाती है, उससे किसानों को लाभ तो नहीं होता है, हां उनका मखौल जरूर उड़ाया जाता है। किसानों की बदहाली का अंदाजा उसके कर्ज पर लगाया जा सकता है। किसानों पर वर्तमान में देशभर के किसानों पर 12 लाख 60 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। पिछले लगभग 20 वर्षों से भारत के किसान लगातार आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। किसानों की आत्महत्याओं का पहला कारण ऋण और दूसरा प्राकृतिक आपदाओं से फसल का नुकसान है
किसानों के हित में बेहतर सुझाव  

किसानों की बदहाली को ठीक करने के लिए सरकार को फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार पर रोक लगाना होगा। इस तरह से बचाई गयी धनराशि किसानों के कल्याण पर खर्च किये जा सकते हैं। देश की बदहाली बुलेट ट्रेन और एक्सप्रेस-वे से दूर नहीं होगी। देश की बदहाली कृषि क्षेत्र का विकास ही दूर करेगा। जिसके ऊपर देश की 70 प्रतिशत आबादी निर्भर करती है। सरकार के पास किसानों का कर्ज माफ़ करने के लिए पैसे नहीं हैं वहीं देश में कई सौ करोड़ रूपये खर्च करके बडें-बड़े भवन और मेमोरियल बनाया जा रहा है। समय रहते किसानों ने यदि अपनी उत्पादन प्रणाली नहीं बदली तो स्थिति शायद ही बदले। इसलिए किसानों को समय के साथ फलों की खेती, सब्जी की खेती तथा दुग्ध उत्पादन को बढ़ाना होगा। किसानों की हालात सुधारने के लिए सरकारों को विशेष प्रयास करना होगा। किसानों की कर्जमाफी को लेकर पूरे देश में कदम उठाने का वक्त आ गया है।
75 साल के स्वतंत्र भारत मे विकास तो बहुत हुआ पर किसान वहीं का वहीं रह गया। वर्तमान का किसान बेचैन है, उदास है। अपने अंधकारमय भविष्य के प्रति निराश है। किसान सारी पूंजी लगाकर लगन से खेती करता है पर भरोसा नहीं रहता की खेती होगी या नहीं। किसान की दयनीय दशा को देखने वाला कोई नहीं है। किसान कितना भी गरीब क्यों न हो उसे सरकारी आंकड़े में अमीर ही दिखाया जाता है।
 
चौधरी चरण सिंह ने कई किताबें लिखी

चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें लिखी जिसमें ‘ज़मींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद्’ आदि प्रमुख हैं।
चौधरी चरण सिंह ने किसानों को जीना सिखाया

धरतीपुत्र चौधरी चरण सिंह गरीब घर में जन्म लेकर गांव की मिट्टी में पलते-बढ़ते प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले चौधरी चरण सिंह आज भी किसानों के दिलों पर राज करते हैं। वह ऐसा नेता रहे जिन्होंने आत्मविश्वास पैदा कर गांव-गरीब और किसानों को सम्मान से जीना सिखाया। चौधरी चरण सिंह के ऊपर किसान आंख बंद करके भरोसा करते थे। इस समय देश में काफी समय से किसान आंदोलन चल रहा है। इस बात पर अभी तक बहस चल रही है कि कोरोना काल में भी इसके जारी रहने का क्या औचित्य है। जब भी देश में किसानों को लेकर कोई आवाज उठती है तो उसके आंदोलन का रूप लेने से पहले ही चौधरी चरण सिंह का नाम आता है। उन्होंने कहा कि स्वर्गीय चरण सिंह के पद चिह्नों पर चलने की इस दिन शपथ लेनी चाहिए। वर्तमान में जो किसानों के साथ हो रहा है, वह गलत हो रहा है। यदि चौधरी चरण सिंह होते तो वह सरकार की जड़ों को हिलाकर रख देते। किसान इस देश का मालिक है, परन्तु वर्तमान समय में वह अपनी ताकत को भूल बैठा है।

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