अमावां के राजमहल में महाराजा के वंशज ने पुरानी परंपरा याद कर 62 देश के 70 उद्योगपतियों के साथ खेली फूलों की होली ..
अमावां लाल किला में होली गीत गायन की परंपरा पुरानी –
मथुरा वृंदावन और बरसाने के कलाकारों तथा स्थानीय लोगों द्वारा अमावां लाल किला में होली गीत गायन की परंपरा भुत पुरानी है। अमावां लाल किला में राजपरिवार के साथ स्थानीय लोग भी होली पर्व बहुत उत्साह के साथ मनाते थे, इस अवसर पर राजमहल में आम लोगों के लिए भांग पीसकर और दूध में मेवा मिष्ठान डाल कर उसे अच्छी तरह से मिलाकर विशेष पेय ठंडई बनाकर पीते थे।
होली गायन में मुख्यतः वीर रस का प्रयोग होता था। इसमें तीनों सप्तक स्वर में गया जाता है। जिसमें ढोलक, झाल, मंजीरा और करताल का प्रयोग होता है। इसकी शुरुआत गणेश वंदना से किया जाता था।
राजमहल और आस-पास में पुरवी होली का गायन ज्यादातर गाया जाता था। यह होली गीत लोक गायन शैली की है। इसमें करुण रस और विरह रस का प्रयोग होता है। इसमें श्रृंगारिक शब्द का ज्यादा रचना होती है। इसे दादरा और कहरवा के ताल में बांध कर गया जाता है। इसमें राधा-कृष्ण छेड़ छाड़ का गीत, देवी देवता सम्बंधित, इसमें श्रृंगारिक शब्द और राग का काफी प्रयोग होता है। इसमें ढोलक, झाल, मंजीरा और करताल का प्रयोग होता है। अमावां राजमहल और स्टेट के क्षेत्र में पांच दिवसीय होली पर्व रंगभरी एकादशी के दिन से शुरू होती थी जो लगातार पूर्णिमा तक चलती थी।
राज परिवार पारंपरिक पोशाक में स्टेट के विभिन्न गांवों से आये गायकों का मंडली के सभी सदस्यों का भव्य स्वागत करते थे। वहां निर्धारित स्थानों पर गायको के द्वारा गोल बनाकर भक्ति रस, वीर रस, श्रृंगार रस व अवधि-पूरवी गीत में पारंपरिक होली का गायन करते थे। राजमहल के कुल देवी मंदिर के समक्ष बने प्रसिद्ध संगी दालान में लोगों का मंडली होली गायन के लिए पहुचते थे।
इसमें राज परिवार के लोग सम्मिलित हुआ करते थे व रंग-गुलाल के साथ होली धमाल करने की परंपरा को बनाये रखते थे।
टिकारी सात आना की राजकुमारी और अमावां स्टेट की मालकिन राजकुमारी भुनेश्वरी कुंवर के समय रानी गंज और तिताई गंज के लोग एक अलग ही उत्साह से पुरवी होली गीत का गायन करते थे, जो पुरे क्षेत्र में चर्चा का विषय होता था। अमावां के ऐतिहासिक विशाल मैदान में चारों ओर रखे मिट्टी के बने नाद में भरे रंग और बगल में रखे गुलाल से आगंतुक मेहमान के साथ पारंपरिक रूप से होली खेली जाती थी। रंगो और गुलालों से जबरदस्त होली खेली जाती थी और पुरा किला परिसर रंग और अबीर गुलाल से रंगमय हो जाता था। अमावां में पांच दिनों तक रंग-गुलाल, होली गीत गायन और हास्य व्यंग चलता रहता था। यह परंपरा अमावां राज के अंतिम महाराजा राजा हरिहर प्रसाद नारायण सिंह के काल के कुछ बाद तक चली और इसके बाद परंपरा धीरे-धीरे समाप्त व अब पूरी तरह विलुप्त हो गई।
आज भी अमावां क्षेत्र के बड़े-बुजुर्ग पुराने दिनों के याद कर रोमांचित हो जाते हैं। अमावां के स्थानीय बड़े-बुजुर्गों के अनुसार, स्टेट में होली के दूसरे दिन अमावां में झुमटा शुरू हो जाता था, जो धीरे-धीरे अमावां स्टेट के आसपास में भी काफी लोकप्रिय हुआ। गायन मंडलियों की टोली झुंड बनाकर सड़कों पर और गलियों में निकलती थी और पानी के बौछार कर समाजिक समरसता का संदेश लोगों के बीच में देती थी।
अमावां के धार्मिक जगहों पर भी होता था होली गायन-
होली गीत गायन प्राचीन मंदिर देवी स्थान में गाँव के लोग भक्ति होली गीत गा कर शुरू करते थे, उसके बाद ठाकुरबाड़ी, महावीर स्थान, दुर्गा स्थान और बुढवा महादेव स्थान समेत अन्य धार्मिक जगहों पर परंपरागत रूप से भक्तिमय होली गीत का गायन होता था।
अंत में होली गीत गायन का समापन- होली के बाद आने वाला पहला मंगलवार जिसे बुढवा मंगल भी कहते है, उस दिन अमावां के प्रसिद्ध बुढवा महादेव मंदिर के प्रांगण में होली गायन मंडली में होली गीत गायन का आपस में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा होता था और अंत में- "सदा आनंद रहे एही द्वारे मोहन खेले होली हो" दोनों मंडली के द्वारा यह गा कर होली गीत गायन का समापन हो जाता था।
1072 साल बाद अमावां राजमहल परिसर में हुई होली मिलन समारोह, और अपनी पुरानी परंपरा को किया याद
अमावां के लाल किला में महाराज स्व. हरिहर प्रसाद नारायण सिंह के पोते, पौत्रवधु, प्रपौत्र और प्रपौत्र वधु ने अपने पुरानीं परंपरा याद कर 62 देश के 70 उद्योगपतियों के साथ खेली फूलों की होली। अमावां लाल किला में होली गीत गायन की परंपरा बहुत पुरानी है। अपने पुरानी परंपरा को दुहराते हुए होली मिलन समारोह मनोरंजनात्मक तरीके से अमावां व टिकारी महाराज स्व. हरिहर प्रसाद नारायण सिंह के पोते देवेन्द्र प्रसाद नारायण सिंह, पौत्रवधु प्रतिभा सिंह, प्रपौत्र हर्षेन्द्र नारायण सिंह, प्रपौत्र वधु रीता शाही, उनके बेटे विहान नारायण सिंह ने अपनी परंपरा निर्वहन करते हुए इसने न सिर्फ अमावां, बल्कि नालंदा और बिहार के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। इस होली मिलन समारोह में 62 देशों के 70 से अधिक यंग सीईओ ने भारतीय गीतों पर जमकर ठुमके लगाये। इतना ही नहीं, वर्ष 1951में महाराज हरिहर प्रसाद सिंह के काल कवलित होने के बाद पहली दफा उनके वंश की तीन पीढ़ियों ने एक साथ रंग-गुलाल लगाये। जबकि, विश्व के गिने-चुने 70 से अधिक धनकुबेरों पर फूलों की बारिश कर होली के रंग को गाढ़ा कर दिया।
विदेशी मेहमानों को भारतीय संस्कृति से रूबरू कराने के उद्देश्य से लगाये गये ग्रामीण मेले का लोगों ने खूब लुत्फ उठाया। मिथिला पेंटिंग्स देखीं तो बैलगाड़ी को आधुनिकतम कारों का पहला संस्करण (फर्स्ट एडिशन) बताया। वहीं स्टॉल पर रखीं भारतीय चूड़ियां पहन विदेशी महिला मेहमान खूब इतराये। कहा-‘इंडिया इज ग्रेट बट इंडियंस आर वेरी इम्प्रेसिव’ (भारत महान है। लेकिन, भारतीय उससे भी अधिक प्रभाव छोड़ने वाले हैं)।
अमावां के लाल किला परिसर में घंटों लोग होली गीत पर थिरकते रहे। इस दौरान वहां मौजूद सभी वीआईपी रंग-बिरंगे परिधानों में हाथ उठाकर एक-दूसरे की कमर में हाथ डालकर बस थिरकते ही रहे। दो बजकर 35 मिनट में इन धनकुबेरों का काफिला अमावां पहुंचा। पहुंचते ही अमावां व टिकारी महाराज स्व. हरिहर प्रसाद सिंह के पोते देवेन्द्र प्रसाद नारायण सिंह, पौत्रवधु, प्रपौत्र, प्रपौत्र वधु और पूर्व मंत्री वीणा शाही व अन्य ने भारतीय सभ्यता का प्रतीक रंगीन गमछा व फूल-माला से उनका स्वागत किया। इसके बाद काफिला परिसर में आता गया और होली का सुरुर चढ़ता गया। झूमे जो पठान मेरी जान..., रंग बरसे भीगे चुनर वाली... समेत दर्जनों हिन्दी होली गीतों पर विदेशी मेहमान झूमते रहे। उनके आगमन को लेकर पूरे परिसर को सजाया गया था। इस परिसर में मेला भी लगा था। वहां जाकर लोगों ने रिंग फंसाओ पुरस्कार पाओ खेल का भी मजा लिया। इसमें कइयों ने इनाम जीते। यहां आए यंग प्रेसिडेंट ऑर्गनाइजेशन (वाईपीओ) के सदस्यों ने अमावां लाल किला की 52 कोठरी व 53 द्वार का दीदार किया। इसे देख लोगों ने यहां की समृद्ध सभ्यता व संस्कृति की काफी प्रशंसा की। उनके अमावां किला में आते ही यह पल ऐतिहासिक बन गया।
अमावां के लाल किले में आ चुके हैं इंगलैंड के राजा किंग एडवर्ड
अमावां किला लंबे अर्से बाद होली गीतों पर झूमे। अमावां में होली खेलने विदेशी मेहमान बेल्जियम, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, अफ्रिका, मैक्सिको, थाईलैंड समेत 62 देशें के लगभग 70 प्रतिनिध यहां पहुंचे। उनके आगमन से अमावां किला जीवंत हो उठा। विदेशी मेहमान यहां की मेहमान नवाजी देख काफी खुश हुए। वहीं मेला देख भारतीय सभ्यता के कायल भी। राजा हरिहर नारायण प्रसाद सिंह के प्रपौत्र हर्षेन्द्र व पत्नी रीता शाही ने बताया कि इस किला में इंग्लैड की गद्दी पर जब किंग एडवर्ड बैठे थे, उस समय अमावां राज की सल्तनत पूरे सबाब पर थी। तब किंग एडवर्ड इस किले में आए थे। अमावां किला के वंशज हर्षेंद्र नारायण सिंह ने इनकी अगुआई व मेहमान नवाजी की। उन्होंने कहा कि इस किला का वे जीर्णोद्धार करेंगे। यहां आए प्रतिनिध ने गया व नालंदा के दर्शन किये। इसके बाद वे अमावां पहुंचे। जहां राधा-कृष्ण के साथ फूलों की होली खेली। लगभग साढ़े तीन घंटे तक अमावां किला में उत्सवी माहौल रहा। इन विदेशियों की एक झलक देखने को आसपास के सैकड़ों लोग वहां इकट्ठे थे।
टमटम व बैलगाड़ी देख भावुक हुए विदेशी मेहमान
भारतीय सवारी बैलगाड़ी कभी शान की सवारी हुआ करती थी। इससे न सिर्फ लोग व्यावसायिक काम करते थे, बल्कि मेला के दिनों में इसी बैलगाड़ी पर बैठकर लोग कोसों दूर परिवार के साथ वहां जाते थे। उसके बाद टमटम आया। भले ही हम आज चमचमाती कारों में सड़कों पर फर्राटे भरते हुए आसानी से सफर कर रहे हैं। लेकिन, एक समय था जब बैलगाड़ी व टमटम ही हमारे लिए हवाई जहाज होते थे। इसे देख विदेशी मेहमान काफी भावुक हुए। मेला का नजारा देख उन्होंने भारतीय संस्कृती का अभार प्रकट किया। वहीं मेहमान नवाजी से काफी खुश दिखे।
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