साहित्यिक मंडली शंखनाद परिवार द्वारा हुआ पुस्तक लोकार्पण..!!
बिहारशरीफ 13 मार्च 2023 : 12 मार्च दिन रविवार की देर शाम को हिरण्य पर्वत बिहारशरीफ पर शंखनाद द्वारा आयोजित साहित्यिक विरासत यात्रा उत्सव के अवसर पर "हिंदी भाषा और साहित्य का दार्शनिक इतिहास" पुस्तक का विमोचन किया गया।शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, महासचिव राकेश बिहारी शर्मा एवं डॉ जयचन्द द्वारा रचित इस हिन्दी भाषा की पुस्तक का सृजन साहित्यिक मंडली शंखनाद परिवार द्वारा किया गया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता देश के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार एवं बिहार सरकार में उपसचिव सुबोध कुमार सिंह ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार व कथाकार अनंत जी, विशिष्ट अतिथि जनवादी लेखक अरुण नारायण एवं वरिष्ठ साहित्यकार चितरंजन भारती भी मंचासीन रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने किया।
साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने सभी आगत अतिथियों का भावपूर्ण शब्दों से स्वागत किया। और लोकार्पित पुस्तक ‘हिन्दी भाषा और साहित्य का दार्शनिक इतिहास’ के लेखन पर प्रकाश डालते हुए पौराणिक काल से आधुनिक युग तक के हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालते हुए पुस्तक के सृजन की पृष्ठभूमि के बारे में बताया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बिहार सरकार के उपसचिव साहित्यकार सुबोध कुमार सिंह ने फणीश्वर नाथ रेणु की साहित्यिक साधना पर विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य की विलक्षण लेखक के रूप रेणु को रेखांकित किया। “हिन्दी भाषा और साहित्य का दार्शनिक इतिहास” पुस्तक के बारे में बताया कि यह दार्शनिक इतिहास, अद्भुत अंदाज में लिखा गया साहित्य है, इसमें हिन्दी भाषा का इतिहास, एवं मातृभाषा की अद्वितीय खोज की अभिव्यक्ति है। उन्होंने साहित्यिक मंडली शंखनाद समूह की ओर से प्रकाशित एवं लोकार्पित इस पुस्तक को वर्तमान समय की हिंदी एवं आगत पीढी के लिए प्रेरणा का आधार बताया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि जनवादी लेखक अरुण नारायण ने कहा- साहित्य समाज का दर्पण है लेकिन यह दर्पण सामान्य दर्पण की तरह मात्र बाह्य संसार की दृश्यमान चीजों को ही प्रतिबिम्बित नहीं करता वरन् यह ऐसा विलक्षण दर्पण है जो समाज के प्रति समर्पण को प्रतिबिंबित करता है। सकारात्मक समर्पण की प्रेरणास्पद छवियों को सामाजिकों के समक्ष अभिव्यक्त कर अपनी संवेदना एवं संचेतना के बल पर करणीय एवं अकरणीय कार्यों की सम्यक पहचान कराने का काम साहित्य करता है, ऐसे साहित्यिक सृजनकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, डॉ.जयचन्द एवं राकेश बिहारी शर्मा के द्वारा लिखे गये सारगर्भित पुस्तक “हिन्दी भाषा और साहित्य का दार्शनिक इतिहास” पर मुझे अपार खुशी है। इससे मुझे भरोसा है कि हिन्दी साहित्य सृजन की सरस सलिला सतत प्रवाहित होती रहेगी।
शंखनाद के उपाध्यक्ष बेनाम गिलानी ने कहा- शंखनाद परिवार द्वारा लिखे गये “हिन्दी भाषा और साहित्य का दार्शनिक इतिहास” नामक यह पुस्तक हिन्दी साहित्य में अमृतत्त्व प्रदायिनी शक्ति है। व्यक्ति को मरने के बाद अमर बनाने की ताकत केवल और केवल साहित्य में है। साहित्य सृजन से अधिक स्थायी, वरदायी एवं फलदायी पूंजी कोई और नहीं हो सकती।
कार्यक्रम के प्रारंभ में साहित्यिक मंडली शंखनाद के प्रखर कलमकार एवं राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने शंखनाद के कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा शंखनाद परिवार देश भक्ति की भावना को बढावा देने, सांप्रदायिक सौहार्द के भाव को प्रोत्साहित करने, जाति-पांति और धर्म की संकीर्ण दीवारों को तोड़ने के सकारात्मक प्रयास करने तथा नवीनतम संस्कार निर्माण हेतु सुभट सीख देने का सतत कार्य करता है। उन्होंने कहा कि इस परिवार में साहित्यकार, कवि, समाजसेवी, शिक्षक, शिक्षार्थी, शोधार्थी, शिक्षा एवं साहित्य प्रेमी, स्वास्थ्य, न्याय, प्रशासन, कृषि, व्यापार एवं समाज के हर तबके के सकारात्मक सोच वाले लगभग 85 लोग हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में दक्ष होने के साथ ही अपने सामाजिक एवं सार्वजनिक दायित्वों के प्रति सजग हैं।
राजीव रंजन पाण्डेय ने पुस्तक समीक्षा करते हुए कहा साहित्यिक मंडली शंखनाद के सभी लेखक वैचारिक और साहित्यिक रूप से बहुत समृद्ध लेखक हैं। उनका लेखन अन्वेषण युक्त होता है।
विशिष्ट अतिथि साहित्यकार चितरंजन भारती ने कहा- भाषा एक लोक संचार का माध्यम है, जबकि साहित्य एक लिपिबद्ध रचना को कहा जाता है। ये मान्यताएं भाषा वैज्ञानिक और शिक्षाविदों द्वारा स्थापित की गई हैं। ‘हिन्दी भाषा और साहित्य का दार्शनिक इतिहास’ अपने आप में बिल्कुल नवीनतम ऐतिहासिक अनुसंधान और दर्शन पर आधारित रचना है। इसके कई अध्याय हैं, जिनमें हिन्दी भाषा और साहित्य के विभिन्न आयामों को परिभाषित और विश्लेषित किया गया है।
साहित्यसेवी महेंद्र कुमार विकल ने कहा कि जब तक आपका लेखन जनता के सामने नहीं आता वह घट-दीपक होता है। पुस्तक लोकार्पण के पश्चात उस घटदीपक को वृहत आकाश मिलता है। समाज को नवीनतम ज्ञान का प्रकाश मिलता है। लेखक की दिलचस्पी चूँकि हिन्दी भाषा और साहित्य की उत्पत्ति और विकास में है, इसीलिए हिन्दी साहित्य के आदिकाल और भक्तिकाल की ही विशद विवेचना की गयी है। आधुनिक काल लेखक की विवेचना में ज़्यादा जगह नहीं पा सका है। इसके बावजूद पुस्तक हिन्दी भाषा और साहित्य के सन्दर्भ में एक मौलिक दृष्टि दे पाने में सफल है। पुस्तक के लेखक शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि ऐसे साहित्यिक आयोजनों से ही भारतीय समाज को चिंतनशील बनाया जा सकता है। गाँव-गिरान में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन होना चाहिए।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ
● हम रहे ना रहे ये टेशू तो खिलेंगे हम दोनों आकर फिर यही तो मिलेंगे : उदय भारती
हिरण्य पर्वत पर कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन में श्रोताओं ने काव्य रचनाओं का भरपूर आनंद लिया। इसमें कवियों ने अपनी रचनाओं से लोगों का मन मोह लिया और सम्मेलन में श्रंगार व हास्य व्यंग की रचनाओं से सभी का मनोरंजन किया।
कवि सम्मेलन का शुभारम्भ नामचीन कवि कुमार राकेश ऋतुराज के नालंदा गान से हुआ। मौके पर कवयित्री कल्पना आनंद ने ‘सुनो चलोगे जीवन पथ पर थाम के मेरा हाथ, कहो क्या दोगे मेरा साथ। शाम सुनहरी बन जाएगी जब अंधियारी रात...सुनाकर खूब तालियां बटोरीं।बेनाम गिलानी अपनी गजल ‘तुमको नजरों में छुपा लूं तो चले जाओगे, दिल की नगरी में बसा लूं तो चले जाओगे’... सुनाया।
किसान नेता व चर्चित् कवि चन्द्र उदय कुमार मुन्ना ने ‘मैं पका नहीं हूं पकाया गया हूं। मैं समय से पहले जबरदस्ती बनाया गया हूं। मुझे मत खा नहीं तो तू भी समय से पहले पक जाएगा...। प्रस्तुत करते हुए श्रोताओं में उत्साह पैदा कर दिया।
नवादा के चर्चित् कवि उदय कुमार भारती ने अपनी व्यंग्य कविता ‘अजी देख तो लो जरा सुन तो लो। मैंने पेड़ लगाया धरती को सजाया गुलमोहर लगाया देखो पलास उगाया हम रहे ना रहे ये टेशू तो खिलेंगे हम दोनों आकर फिर यही तो मिलेंगे यादों के फूल खिल खिलाते रहेंगे तेरे मेरे प्रेम गीत के गाते रहेंगे। तेरे मेरे प्रेम गीत गाते रहेंगे...।। प्रकृति से ओत-प्रोत कविता सुनाया जिसे सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये।
कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने ‘अगरचे ये सच है के कम देखते हैं, मुहब्बत से तुझको जो हम देखते हैं। बहुत रुसवा है धर्मों मज़हब-ए-नवनीत, तभी खाली दैरो हरम देखते हैं...।
गया के नामचीन शायर कुमार आर्यन गयावी ने ‘पाँव पूजेगा जो राजा के, पद का अधिकारी वही होगा’। कवि सरदार वीर सिह ने मगही कविता सुनाते हुए कहा- ‘हाय रे आम के चटनी स्वाद लेबौ कखनी। लठिया से तोङ लेवौ छुरिया छिल देवौ।। अ पटिया पर धरके रगङ दैवौ जखनी, हाय रे आम...। सुनाकर माहौल में चार चांद लगा दिया। इनके अलावा कई अन्य कवियों ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। शायर तंग अय्यूबी ने अपनी हास्य रचनाओं से लोगों को खूब मनोरंजन कराया।
अंत में शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने सभी आगत अतिथियों का आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम में सर्वश्री प्रोफेसर सूर्य कुमार सरल, छंदकार सुभाष चंद्र पासवान , नाटककार व संगीतकार रामसागर राम,कवि राजहंस कुमार, आनंद कुमार, कवयित्री रेखा, मुस्कान चांदनी, कामेश्वर प्रसाद, विजय कुमार पासवान, पवन कुमार, राजदेव पासवान, जयंत कुमार अमृत, धीरज कुमार, अभिमन्यु प्रजापति, सुरेन्द्र प्रसाद शर्मा एवं प्रदेश और जिले से पधारे साहित्यकारों व कवियों की उपस्थिति रही।
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