सौंदर्य के अप्रतिम महाकवि सुमित्रानंदन पंत की 123 वीं जयंती पर विशेष ...!!
हिंदी साहित्य का भारतीय इतिहास में अमूल्य योगदान है। भारत भूमि पर पंत ऐसे कई लेखक और कवि हुए हैं जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से समाज सुधार के कार्य किए। जैसे जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला आदि। आज हम आपको हिंदी भाषा के एक ऐसे कवि के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बिना हिंदी साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती जिनका नाम है सुमित्रानंदन पंत। सुमित्रानंदन पंत को ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ के रूप में भी जाना जाता है।
साहित्यकार किसी भी देश या समाज का निर्माता होता है। वह समाज और देश को वैचारिक पृष्ठभूमि देता है, जिसके आधार पर नया दर्शन विकसित होता है। वह शब्द शिल्पी ही साहित्यकार कहलाने का गौरव प्राप्त करता है, जिसके शब्द मानवजाति के हृदय को स्पंदित करते रहते हैं। यह बात पंत जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अक्षरतः सत्य साबित होती है। प्रकृति के चित्रकार सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को हम नमन करते हैं।
सुमित्रानंदन पंत का जन्म और पारिवारिक जीवन
सुमित्रानंदन पंत का जन्म अल्मोड़ा जिले (अब बागेश्वर) (तब उत्तर प्रदेश वर्तमान उत्तराखंड) के कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ था। इनके जन्म के कुछ घंटों पश्चात ही इनकी माँ का देहांत हो गया। अतः इनका पालन-पोषण इनकी दादी ने किया। सुमित्रानंदन पंत जी के माता का नाम सरस्वती देवी और पिता का नाम गंगा दत्त पंत था। ये गंगादत्त पंत की आठवीं संतान थे। सुमित्रानंदन पंत का जन्मस्थान कौसानी इतनी खूबसूरत जगह है कि यहाँ प्रकृति से प्रेम होना स्वाभाविक था। इसीलिए इनकी रचनाओं में भी झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भ्रमर गुंजन, उषा किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब सहज रूप से इनके काव्य का उपादान बने। इनकी इन्ही सब काव्यगत विशेषताओं के कारण इनको प्रकृति का सुकुमार कवि भी कहा जाता है।
पंत का जन्मस्थान कौसानी को "कुमाऊं का गहना" कहा जाता है
पंत का जन्मस्थान कौसानी को "कुमाऊं का गहना" कहा जाता है। कौसानी की स्थापना हेनरी रैमजे ने की थी। जिसे आने वाले समय में "भारत का स्विट्जरलैंड" कहा जाएगा। कौसानी का पुराना नाम बलना है। कौन जानता था पहाड़ों के एक छोटे से गांव बलना को विश्व में प्रसिद्धी मिलेगी। बलना प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पिंगनाथ पर्वत चोटी पर बसा हुआ छोटा सा गांव था। कौसानी की सुंदरता का वर्णन सुमित्रानंदन की कविताओं में देखा जा सकता है। कौसानी भौगोलिक दृष्टि से बेहद खूबसूरत पर्यटक स्थल है और पन्त जी का जीवन प्राकृतिक झरनों, नदियों और देवदार के वृक्षों के बीच बीता था जिससे उनके मन में प्रकृति के प्रति विचार उत्पन्न हुए और अपनी कविताओं के द्वारा कौसानी के सुंदर प्रकृति के दृश्यों का वर्णन किया।
सुमित्रानंदन पंत की शिक्षा दीक्षा
इनकी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव में तथा 1910 में शिक्षा प्राप्त करने गवर्नमेंट हाईस्कूल अल्मोड़ा गये। यहीं उन्होंने अपना नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रनंदन पंत रख लिया। 1918 का समय था जब सुमित्रानंदन पंत अपने मँझले भाई के साथ काशी गये और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। वहाँ से हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर म्योर कालेज में पढ़ने के लिए इलाहाबाद चले गए। 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के भारतीयों से अंग्रेजी विद्यालयों, महाविद्यालयों, न्यायालयों एवं अन्य सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने के आहवान पर इन्होने महाविद्यालय छोड़ दिया और घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, बॅगला और अंग्रेजी भाषा-साहित्य का अध्ययन करने लगे। इलाहाबाद में ही इनकी काव्यचेतना का विकास हुआ। पंत जी गोरखपुर विवि में लंबे समय तक छायावादी कविताओं के शिक्षक रहे थे।
पंत जी का रोचक प्रसंग
पंत जी का वास्तविक नाम गुसाईदत्त था। बाद में उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। गांधी जी की सभा में विद्यार्थी पंत मौजूद थे। गांधी जी ने सभी से अंग्रेजी स्कूल-कॉलेजों, अदालतों आदि के बहिष्कार को कहा। इसके बाद से पंत जी की औपचारिक शिक्षा का अंत हो गया। पंत जी के नाते-रिश्तेदार उच्च शिक्षा प्राप्त थे। सभी सरकारी सेवाओं में थे पर शिक्षा छूटने के साथ ही पंत जी के सुख सुविधापूर्ण जीवन का अंत हो गया। वे आजीवन अनिकेत रहे। एक पुस्तक में नेपोलियन की युवावस्था का चित्र देखकर पंत जी ने अपने बाल भी वैसे ही संवारने शुरू कर दिए। जब सातवीं कक्षा में थे, तभी रवींद्रनाथ टैगोर का चित्र देखा। पंत जी को लगा कि कवि के लिए सुंदर और बड़े केशों का होना आवश्यक है। सुमित्रानंदन पंत छायावाद के चार प्रमुख हस्ताक्षरों में से सिरमौर थे। सौंदर्य के अप्रतीम कवि। प्रकृति उनके विशाल शब्द-संसार की आत्मा है।
पंत जी का असहयोग आंदोलन में सक्रिय योगदान
महात्मा गांधी के प्रभाव में आकर वह पूरी तरह गांधीवादी हो गए थे। पंत जी ने गांधी की अगुवाई में चले असहयोग आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया और इसका खामियाजा भी भुगता। हालात यहां तक आ गए कि उन्हें अल्मोड़ा की अपनी जायदाद बेचनी पड़ी। आर्थिक बदहाली के चलते उनकी शादी नहीं हुई। ताउम्र अविवाहित रहे। नारी उनके समूचे काव्य में विविध रूपों- मां, पत्नी, प्रेमिका और सखी में मौजूद है। नारीत्व उनके वजूद-व्यवहार का स्थायी हिस्सा था। कुछ वर्षों के बाद सुमित्रानंदन पंत को घोर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। कर्ज से जूझते हुए पिताजी का निधन हो गया। कर्ज चुकाने के लिए जमीन और घर भी बेचना पड़ा। इन्हीं परिस्थितियों में वह मार्क्सवाद की ओर उन्मुख हुये।
सुमित्रानंदन जी पंत का साहित्य साधना
सुमित्रानंदन पंत छायावादी युग के कवि थे। सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति से असीम लगाव था और बचपन से ही ये प्रकृति के ऊपर सुन्दर रचनाएँ लिखा करते थे। सात वर्ष की उम्र में, जब वे चौथी कक्षा में ही पढ़ रहे थे, उन्होंने कविता लिखना शुरु कर दिया था। 1918 के आसपास तक ये हिंदी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। इस दौर की इनकी कविताएं वीणा में संकलित हैं। 1926 में इनका प्रसिद्ध काव्य संकलन 'पल्लव' प्रकाशित हुआ। कुछ समय पश्चात ये अपने भाई देवीदत्त के साथ अल्मोड़ा आ गये। इसी दौरान ये मार्क्स व फ्रायड की विचारधारा के प्रभाव में आये। 1938 में इन्होंने 'रूपाभ' नामक प्रगतिशील मासिक पत्र निकाला। शमशेर, रघुपति सहाय आदि के साथ ये प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़े रहे। ये 1950 से 1957 तक आकाशवाणी से भी जुड़े रहे और मुख्य-निर्माता के पद पर कार्य किया। इनकी विचारधारा योगी अरविन्द से प्रभावित भी हुई जो बाद की उनकी रचनाओं स्वर्णकिरण और 'स्वर्णधूलि में देखी जा सकती है। "वीणा" तथा "पल्लव" में संकलित उनके छोटे गीत विराट व्यापक सौंदर्य तथा पवित्रता से साक्षात्कार कराते हैं। "युगांत" की रचनाओं के लेखन तक ये प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े प्रतीत होते हैं। "युगांत" से "ग्राम्या" तक इनकी काव्ययात्रा प्रगतिवाद के निश्चित व प्रखर स्वरों की उद्घोषणा करती है। 1960 में कला और बूढा चांद काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। 1961 में पद्मभूषण' की उपाधि से विभूषित किया गया।
पंत जी ने आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय किया
सुमित्रानंदन पंत जी 1931 में कुँबर सुरेश सिंह के साथ कालाकांकर, प्रतापगढ़ चले गये और अनेक वर्षों तक वहीं रहे। 1938 में इन्होने प्रगतिशील मासिक पत्रिका 'रूपाभ का सम्पादन किया। श्री अरविन्द आश्रम की यात्रा से इनमे आध्यात्मिक चेतना का विकास हुआ और इन्होने आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय किया।
सुमित्रानंदन पंत से जुड़े कुछ खास तथ्य
सुमित्रानंदन पंत से जुड़े दो तथ्यों से बहुत कम लोग वाकिफ हैं। एक, भारत में जब टेलीविजन प्रसारण शुरू हुआ तो उसका भारतीय नामकरण दूरदर्शन पंत जी ने किया था। दूसरा, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का नामकरण भी उन्होंने किया था। हरिवंश राय बच्चन उनके सबसे करीबी और अच्छे दोस्तों में शुमार थे। अमिताभ आज भी सुमित्रानंदन पंत को पिता तुल्य मानते हैं। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि पंत की एक-एक काव्य पंक्ति उन्होंने पढ़ी है और कभी-कभी वह उन्हें अपने पिता (बच्चन जी) से बड़े कवि लगते हैं। पंत 1955 से 1962 तक प्रयाग स्थित आकाशवाणी केंद्र के मुख्य कार्यक्रम निर्माता और परामर्शदाता रहे। उनकी कविता ने नारी चेतना और उसके सामाजिक पक्ष के साथ-साथ ग्रामीण जीवन के कष्टों और विसंगतियों को भी बखूबी जाहिर किया है।
सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख कृतियां
सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य कृतियाँ हैं ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि। उनके जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुई, जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं। पंत अपने विस्तृत वाङमय में एक विचारक, दार्शनिक और मानवताबादी के रूप में सामने आते हैं किंतु उनकी सबसे कलात्मक कविताएं पल्लब में संगृहीत हैं, जो 1918 से 1925 तक लिखी गई 32 कविताओं का संग्रह है। इसी संग्रह में उनकी प्रसिद्ध कविता 'परिवर्तन' सम्मिलित है। तारापथ उनकी प्रतिनिधि कविताओं का संकलन है। उन्होंने ज्योत्स्ना नामक एक रूपक की रचना भी की है। उन्होंने मधुज्वाल नाम से उमर खय्याम की रुबाइयों के हिंदी अनुवाद का संग्रह निकाला और डॉ. हरिवंश राय बच्चन के साथ संयुक्त रूप से खादी के फूल नामक कविता संग्रह प्रकाशित करवाया। छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ प्रकृति सुकुमार कवि सुमित्रानंदन ने कभी स्वाभिमान से समझौता नहीं किया लेकिन अभावपूर्ण जीवन से भयभीत रहे। सुखी व संपन्न जीवन पाने के लिए खुद का नाम गोसांई दत्त पंत से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया था। 28 दिसंबर, 1977 को प्रकृति का यह सुकुमार कवि पंचतत्व में विलीन हो गया।
पंत जी का कौसानी में स्मृति संग्रहालय
उत्तराखण्ड में कुमायूँ की पहाड़ियों पर बसे कौसानी गांव में, जहाँ उनका बचपन बीता था, बस स्टैं ड से थोड़ी दूरी पर उन्हीं को समर्पित पंत संग्रहालय स्थित है। वहां का उनका घर आज 'सुमित्रा नंदन पंत साहित्यिक वीथिका' नामक संग्रहालय बन चुका है। इस में उनके कपड़े, चश्मा, कलम आदि व्यक्तिगत वस्तुएं सुरक्षित रखी गई हैं। संग्रहालय में उनको मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्तिपत्र, हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मिला साहित्य वाचस्पति का प्रशस्तिपत्र भी मौजूद है। साथ ही उनकी रचनाएं लोकायतन, आस्था आदि कविता संग्रह की पांडुलिपियां भी सुरक्षित रखी हैं। कालाकांकर के कुंवर सुरेश सिंह और हरिवंश राय बच्चन से किये गये उनके पत्र व्यवहार की प्रतिलिपियां भी यहां मौजूद हैं। संग्रहालय में उनकी स्मृति में प्रत्येक वर्ष पंत व्याख्यान माला का आयोजन होता है। यहाँ से 'सुमित्रानंदन पंत व्यक्तित्व और कृतित्व' नामक पुस्तक भी प्रकाशित की गई है। उनके नाम पर इलाहाबाद शहर में स्थित हाथी पार्क का नाम 'सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान' कर दिया गया है।
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