विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की 30 वीं वर्षगांठ पर विशेष : प्रेस की आजादी की लड़ाई हम सबकी लड़ाई..!!


लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव- शंखनाद साहित्यिक मंडली  
कलम का सिपाही कहे या फिर कलम की धार से सत्ता को हिलाने का दम रखने वाला योद्धा या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का रक्षक। जिसे सीधे शब्दों में कहा जाए तो पत्रकार। दुनिया के किसी भी देश के उदय और उसकी प्रगति में पत्रकारों की अहम भूमिका रही है। भारत की आजादी के वक्त भी पत्रकारों ने महत्वपूर्ण किरदार अदा किया है, जिसे आज भी भुलाया नहीं जा सकता। साथ ही समाज में जाति-धर्म और संप्रदाय की गहरी खाई को भी कई बार पत्रकारों ने भरने का काम किया है। हालांकि समाज में पत्रकारों की स्वतंत्रता को कैद करने वालों की भी कमी नहीं है। जिस कारण प्रेस की स्वतंत्रता की मांग उठी और प्रत्येक वर्ष 3 मई को अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाने लगा। भारत में अक्सर प्रेस की आजादी की बात हमेशा होती रहती है लेकिन इसका सशक्त दौर कहीं ना कहीं खो गया है। 3 मई के दिन विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस इसी के लिए मनाया जाता है जिससे पत्रकार को लिखने और बोलने की पूरी आज़ादी हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने आज से 30 साल पहले प्रेस स्वतंत्रता के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस की घोषणा की थी, और इसका जश्न मनाने के लिए, यूनेस्को ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एक विशेष वर्षगांठ कार्यक्रम का आयोजन किया। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ संस्करण में 2 मई को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में कार्यक्रमों का एक पूरा दिन शामिल था। यूनेस्को के आम सम्मेलन ने प्रेस स्वतंत्रता के मौलिक सिद्धांतों का जश्न मनाने और बढ़ावा देने के लिए 1991 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के विचार का प्रस्ताव रखा। 1993 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने आधिकारिक तौर पर 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के रूप में घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के उद्देश्य और कारण   

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस को मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन करना, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाह्य तत्वों के हमले से बचाव करना एवं प्रेस की स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए संवाददाओं की यादों को सहेजना है। इस दिवस का मूल उद्देश्य प्रेस यानी मीडिया की आजादी के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना है। साथ ही यह दिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने और उसका सम्मान करने की प्रतिबद्धता की बात भी करता है। यह दिन बताता है कि लोकतंत्र के मूल्यों की सुरक्षा और उसे बहाल करने में मीडिया अहम भूमिका निभाता है। इसलिए दुनियाभर की सरकारों को पत्रकारिता से जुड़े लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी चाहिए। यह दिन प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को बनाए रखने के लिए सरकारों को उनकी जिम्मेदारी की याद दिलाने के लिए प्रतिवर्ष मनाया जाता है। यह उन पत्रकारों को सम्मानित करने का अवसर भी प्रदान करता है जिन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपनी जान गंवा दी है और उन पत्रकारों की सुरक्षा और स्वतंत्रता की वकालत करने का अवसर प्रदान करता है जो जनता को जानकारी प्रसारित करने के लिए काम करते हैं। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए पत्रकारों को श्रद्धांजलि देने का दिन है। 

2023 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की थीम

हर साल यह दिन किसी न किसी थीम यानी विषय पर आधारित होता है और इस साल की विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का विषय है- "शेपिंग ए फ्यूचर ऑफ राइट्स: फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन ऑफ द ड्राइवर फॉर अदर ऑल ह्यूमन राइट्स", यानी "अधिकारों के लिए भविष्य को आकार देना” : “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अन्य सभी मानवाधिकारों के चालक के रूप में" जो अन्य सभी मानवाधिकारों का आनंद लेने और उनकी रक्षा करने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दर्शाता है। यह सूचना से जनकल्याण, जो जनहित कार्यों में सूचना के महत्व को दर्शाता है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने इस दिवस पर दुनियाभर की सरकारों से ये आग्रह किया है कि वे स्वतंत्र, निष्पक्ष और विविध मीडिया को समर्थन देने का हर संभव प्रयास करें। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कई देशों में पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को अपना दायित्व निभाते हुए प्रतिबंधों, उत्पीड़न, नजरबंदी और यहां तक की मौत के खतरे का भी सामना करना पड़ता है।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का इतिहास

पत्रकार तथ्यों को सामने लाने, जनता के सामने सच्चाई प्रकट करने और जागरूकता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। क्योंकि वे शक्तिशाली और लोकतंत्र के दुश्मनों को परेशान करते हैं। पत्रकार अक्सर हमलों का निशाना बनते हैं और कई की हत्या कर दी जाती है। 20वीं सदी के अंत में अफ्रीकी नागरिक युद्धों के दौरान पत्रकारों पर कई हमलों के बाद, उन्होंने कार्रवाई करने का फैसला किया।
1991 में, अफ्रीकी पत्रकारों के एक समूह ने नामीबिया की राजधानी विंडहोक में आयोजित यूनेस्को सम्मेलन में अपील की। उन्होंने "विंडहोक घोषणा," एक ऐसा दस्तावेज बनाया जिसका उद्देश्य एक स्वतंत्र और बहुलतावादी प्रेस की नींव रखना था। 1993 में, यूनेस्को सामान्य सम्मेलन के 26वें सत्र ने विंडहोक घोषणा के हस्ताक्षरकर्ताओं के आह्वान का जवाब दिया और विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की स्थापना की। इस दिन के लिए यूनेस्को द्वारा विकसित केंद्रीय सिद्धांत प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, जो आपसी समझ के आधार पर संचार की अनुमति देता है, जो समकालीन समाजों में स्थायी शांति का निर्माण करने का एकमात्र तरीका है। आज भी, दुनिया भर के दर्जनों देश शक्तिशाली स्थानीय लोगों को नाखुश करने वाले प्रकाशनों को सेंसर, जुर्माना, निलंबित और बंद कर देते हैं। कई प्रेस के सदस्यों को सताते हैं, उन पर हमला करते हैं, और यहां तक कि उनकी हत्या भी कर देते हैं। 

भारत में प्रेस स्वतंत्रता दिवस
 
भारत में पत्रकारों पर हमलों की खबर दी-प्रतिदिन सुनने को मिल रही है। इन्वेस्टीगेट रिपोर्टिंग की जांच के अनुसार भारत में स्थिति ख़राब होती नजर आ रही है। पत्रकारिता के लिए सबसे खराब देश होने के लिए भारत को 136वां स्थान दिया गया है। इसलिए प्रेस नागरिक स्वतंत्रता दिवस को अपने नागरिकों के बीच प्रेस स्वतंत्रता के सार के बारे में जागरूकता बढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। वास्तव में इस वर्ष विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मीडिया संस्थानों अधिनियम और संसद के दोनों सदनों ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक कानून पारित किया है जहाँ वे कार्य कर रहे हैं। भारत में प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर प्रेस इस दिन पेशेवर पत्रकारों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने पत्रकार के अपने फ़र्ज़ को निभाने के लिए अपने जीवन को खतरे में डाल देते है। कई सरकारी अधिकारी, सिविल सेवक और मंत्री विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों, कला प्रदर्शनियों, पुरस्कार समारोहों में दुनिया तक नवीनतम खबर पहुँचाने के लिए अपने जीवन को जोखिम में डालने वाले लोगों को सम्मान देते हैं। प्रेस की आजादी और समाचारों को लोगों तक पहुंचाकर, सशक्त हो रहे मीडियाकर्मियों का व्यापक विकास करना इसका उद्देश्य है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सभी पत्रकार अपना काम निर्भय होकर करने की शपथ लेते हैं।

भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर गम्भीर चर्चा

प्रेस को सदैव लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की संज्ञा दी जाती रही है, क्योंकि लोकतंत्र की मजबूती में इसकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यही कारण है कि स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए प्रेस की स्वतंत्रता को बहुत अहम माना गया है। विडंबना यह है कि विगत कुछ वर्षों से प्रेस स्वतंत्रता के मामले में लगातार कमी देखी जा रही है। कलम की धार को तलवार से भी ज्यादा ताकतवर और प्रभावी इसलिए माना गया है क्योंकि इसी की सजगता के कारण न केवल भारत में बल्कि अनेक देशों में पिछले कुछ दशकों के भीतर बड़े-बड़े घोटालों का पर्दाफाश हो सका। इसके चलते तमाम उद्योगपतियों, नेताओं तथा विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गजों को एक ही झटके में अर्श से फर्श पर आना पड़ा। यही कारण हैं कि समय-समय पर कलम रूपी इस हथियार को भोथरा करने के कुचक्र होते रहे हैं और विभिन्न अवसरों पर न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में सच की कीमत कुछ पत्रकारों को अपनी जान देकर भी चुकानी पड़ी है।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। भारत में अक्सर प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर चर्चा होती रहती है। हर साल 3 मई को मनाए जाने वाले विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारत में भी प्रेस की स्वतंत्रता पर बातचीत होना आवश्यक है। मीडिया किसी भी देश के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आम लोगों को इस बारे में शिक्षित किया जाता है कि समाज में क्या हो रहा है और उन मुद्दों और घटनाओं के बारे में जो उनके जीवन को प्रभावित करते हैं। प्रेस स्वतंत्रता एक बहुत गंभीर मुद्दा है और उन्हें महत्व दिया जाना चाहिए। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस एक ऐसे मंच के रूप में कार्य करता है जो मजबूत पत्रकारों को बनाए रखने का सार याद दिलाता है जब वे चुनौतियों का सामना कर रहे होते हैं। मीडिया के अधिकारों के लिए लोकतंत्र का निर्माण किया गया है जो मूल्यों को फिर से निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दुनिया के किसी भी देश के उदय और उसकी प्रगति में पत्रकारों की अहम भूमिका रही है। भारत की आजादी के वक्त भी पत्रकारों ने महत्वपूर्ण किरदार अदा किया है, जिसे आज भी भुलाया नहीं जा सकता।

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