किसान नेता चौधरी चरण सिंह की 36 वीं पूण्यतिथि पर विशेष...!!
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह को किसानों से बिछड़े हुए 36 साल बीत गए। किसान और मजदूर हितों के लिए किए गए कार्य आज भी लोगों के दिल में हैं। इस समय देश में काफी समय से किसान आंदोलन चल रहा है। इस बात पर अभी तक बहस चल रही है कि कोरोना काल में भी इसके जारी रहने का क्या औचित्य है। जब भी देश में किसानों को लेकर कोई आवाज उठती है तो उसके आंदोलन का रूप लेने से पहले ही चौधरी चरण सिंह का नाम आता है और आता रहता है।
चौधरी चरण सिंह का जन्म और स्वतंत्रता आंदोलन, राजनीति में सहभागिता
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 में उत्तर प्रदेश मेरठ ज़िले के नूरपुर ग्राम में मध्य वर्गीय कृषक ‘जाट’ परिवार में पिता चौधरी मीर सिंह और माता नेत्रकौर के घर में हुआ था। वे कुछ समय के बाद माता-पिता के साथ मेरठ के भूपगढ़ी गांव आकर रहने लगे। वही वर्ष 1929 में मेरठ जिला पंचायत सदस्य व 1937 में प्रांतीय धारा सभा में चुने गए। 03 अप्रैल 1967 में मुख्यमंत्री, 1977 में सांसद तथा गृहमंत्री, 24 जनवरी 1979 में उप प्रधानमंत्री, चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। महात्मा गांधी ने जब 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया तो चौधरी चरण सिंह ने हिंडन नदी पर नमक बनाकर आंदोलन में भाग लिया और इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा। वैसे तो अपनी आजीविका की शुरुआत उन्होंने वकालत से की लेकिन गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन में ही भाग लेते हुए वे राजनीति में प्रवेश कर गए थे। वे आजादी से पहले देश के लिए दो बार जेल भी गए।
स्वर्गीय चरण सिंह कहते थे कि ‘देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों और खलिहानों से होकर गुजरता है। उनका कहना था कि भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है। जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वो देश कभी तरक्की नहीं कर सकता।’ इसीलिये देश के लोगों का आज भी मानना है कि चौधरी चरण सिंह एक व्यक्ति नहीं विचारधारा थे। चौधरी चरण सिंह ने हमेशा यह साबित करने की कोशिश की थी कि किसानों को खुशहाल किए बिना देश का विकास नहीं हो सकता। उनकी नीति किसानों व गरीबों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने की थी। उन्होंने किसानों की खुशहाली के लिए खेती पर बल दिया था। किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिल सके इसके लिए भी वो बहुत गंभीर रहते थे। उनका कहना था कि भारत का सम्पूर्ण विकास तभी होगा जब किसान, मजदूर, गरीब सभी खुशहाल होंगे।
चौधरी चरण सिंह जाति तोड़ो सिद्धांत के हिमायती थे
समाजवादी सत्ता की नींव में जहां डॉ. राममनोहर लोहिया का खाद-पानी स्मरणीय है वहीं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जाति तोड़ो सिद्धांत व उनकी स्वीकार्यता भी अहम बिन्दु है। चौधरी चरण सिंह ने अजगर शक्ति अहीर, जाट, गुज्जर और राजपूत का शंखनाद किया। उनका कहना था कि अजगर समूह किसान तबका है। उन्होंने अजगर जातियों से रोटी-बेटी का रिश्ता जोड़ने का भी आह्वान किया तथा अपनी एक बेटी को छोड़ सारी बेटियों की शादी अंतरजातीय की। आज भले ही उनके शिष्यों पर परिवाद और पूंजीवाद के आरोप लग रहे हों, पर चौधरी चरण सिंह पूंजीवाद और परिवारवाद के घोर विरोधी थे तथा गांव गरीब तथा किसान उनकी नीति में सर्वोपरि थे। हां अजित सिंह को विदेश से बुलाकर पार्टी की बागडोर सौंपने पर उन पर पुत्रमोह का आरोप जरूर लगा। तबके कम्युनिस्ट नेता चौधरी चरण सिंह को कुलक नेता जमीदार कहते थे जबकि सच्चाई यह भी है चौधरी चरण सिंह के पास भदौरा (गाजियाबाद) गांव में मात्र 27 बीघा जमीन थी जो जरूरत पडने पर उन्होंने बेच दी थी। यह उनकी ईमानदारी का प्रमाण है कि जब उनकी मृत्यु हुई तो उनके नाम कोई जमीन और मकान नहीं था।
चौधरी चरण सिंह आर्य समाज के कट्टर अनुयायी
आर्य समाज के कट्टर अनुयायी रहे चरण सिंह पर महर्षि दयानंद का अमिट प्रभाव था। चौधरी चरण सिंह मूर्ति पूजा, पाखंड और आडम्बर में कतई विश्वास नहीं करते थे। यहां तक कि उन्होंने जीवन में न किसी मजार पर जाकर चादर चढ़ाई और न ही मूर्ति पूजा की।
चौधरी चरण सिंह की नस-नस में सादगी और सरलता थी तथा वह किसानों की पीड़ा से द्रवित हो उठते थे। उन्होंने कांग्रेस के गढ़ को ध्वस्त करने का जो संकल्प लिया, उसे पूरा भी किया। शून्य से शिखर पर पहुंचकर भी उन्होंने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। चरण सिंह ने कहा था कि भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे, चाहे कोई भी लीडर आ जाये, चाहे कितना ही अच्छा कार्यक्रम चलाओ, वह देश तरक्की नहीं कर सकता।
चौधरी चरण सिंह की लिखित प्रमुख पुस्तकें
चरण सिंह एक कुशल लेखक की आत्मा भी रखते थे। उनका अंग्रेजी भाषा पर अच्छा अधिकार था। उन्होंने ‘आबॉलिशन ऑफ जमींदारी, लिजेंड प्रोपराटरशिप और इंडियास पॉवर्टी एंड सोल्यूशंस नामक पुस्तकों का लेखन भी किया। जनवरी 1980 में इंदिरा गांधी का पुरागमन चरण सिंह की राजनीतिक विदाई का महत्वपूर्ण कारण बना।
चौधरी चरण सिंह को फिजूलखर्ची कतई बर्दाश्त नहीं थी
घर में अगर कोई फालतू बल्ब भी जला हो तो चौधरी चरण सिंह जी उसे तुरंत बंद करा देते थे। एक बार बागपत से कुछ किसान उनसे अपनी मांगों के लिए मिलने आए तो उनको ये बात जरा भी पसंद नहीं आई, क्योंकि उन्हें लगा कि जिस काम के लिए वो पैसा और समय खर्च करके दिल्ली आए हैं, वो काम तो वो एक पोस्टकार्ड लिखकर भी कर सकते थे। ये बात उन्होंने किसानों से कही भी कि क्यों इतना पैसा खर्च करके यहां आए। बस एक पोस्टकार्ड पर लिख देते, आपका काम अपने आप हो जाता।
ऐसे में लाजिमी है कि वो किसानों की बड़ी रैलियों और धरने को किस नजर से देखते, कहना मुश्किल है। लेकिन शायद उन्हें ये पसंद नहीं आता लेकिन वो ये भी कभी नहीं चाहते कि किसानों का हक कहीं से भी मारा जाए। किसानों के हक के लिए वो सबसे आगे खड़े मिलते। वे किसानों कि समस्याएं सुन कर बहुत द्रवित हो जाया करते थे और कानून के ज्ञान का उपयोग वे किसानों की भलाई के करते दिखाई देते रहे थे।
गरीबों से जुड़े थे चौधरी चरणसिंह
चौधरी चरण सिंह की व्यक्तिगत छवि एक ऐसे देहाती पुरुष की थी जो सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास रखता था। इनका पहनावा एक किसान की सादगी को दर्शाता था। चौधरी चरण सिंह ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीयता और ग्रामीण परिवेश की बिताया। चौधरी साहब देश के दलितों,पिछड़ों,गरीबों और किसानों की बेहतरी के लिए संघर्ष किया, उन्हें राजनीति में हिस्सेदार बनाया। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री होने के साथ ही साथ चौधरी चरण सिंह कृषि अर्थव्यवस्था की गहरी समझ रखने वाले उच्च कोटि के विद्धान, लेखक एवं अर्थशास्त्री थे। चौधरी साहब किसान आंदोलन के शिखर पर लगभग पांच दशक तक छाए रहे। उन्होंने सरकारी नौकरियों में कृषकों और कृषि मजदूरों के बच्चों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग की थी।
भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का निधन
लम्बीं बीमारी के बाद चौधरी चरण सिंह दिल्ली के वेलिंगटन हास्पिटल जिसे अब राम मनोहर लोहिया अस्पताल कहा जाता है, 84 साल की उम्र में यानि 29 मई 1987 को निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार थे। उन्हें किंग ऑफ जाट कहा जाता था। हालांकि मरने के दो साल पहले से वह व्हीलचेयर पर आ चुके थे लेकिन वह पहले ऐसे नेता थे, जिन्हें किसान और किसानी की सबसे ज्यादा फिक्र रहती थी। चौधरी चरण सिंह जीवन पर्यन्त गांधी टोपी धारण कर महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी बने रहे। ईमानदारी उनकी पहचान रही। यही वजह है कि जिस दिन उनका निधन हुआ तब उनके खाते में सिर्फ 470 रुपये थे। चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे।
चौधरी चरण सिंह शराब और शराबीयों से नफरत करते थे
चौधरी चरण सिंह ने अपने जीवन में कई दल बनाए और तोड़े। वो सादगी पसंद थे। उन्हें कई बातें सख्त नापंसद थीं। जिसमें एक ये थी कि वह शराब पीने वालों को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। वो फिजूलखर्ची जरा भी बर्दाश्त नहीं करते थे। क्रिकेट और फिल्मों से सख्त नफरत थी। शराब से तो दूर रहते ही थे। अगर उन्हें मालूम भी हो जाए कि अमुक शख्स शराब का सेवन करता है, वो उससे कभी बात करना भी पसंद नहीं करते थे। वह इसे बहुत खराब और जीवन को बर्बाद करने वाली चीज मानते थे। उनका जीवन सादगी वाला था। जीवन भर घर का और पत्नी का बना सादा खाना ही खाया। पैसे की फिजूलखर्ची कतई बर्दाश्त नहीं कर पाते थे।
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