बिहार का कश्मीर ककोलत जलप्रपात, बिहार का स्वर्ग ककोलत ....!!
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव - शंखनाद साहित्यिक मंडली
ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भों से युक्त ककोलत एक बहुत ही खूबसूरत पहाड़ी के निकट एक झरना है। बिहार में कश्मीर के नाम से प्रसिद्ध नवादा जिले के गोविंदपुर प्रखंड में प्राकृतिक पर्यटन स्थल ककोलत जलप्रपात है। यह जलप्रपात (झरना) बिहार राज्य के नवादा जिले से 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोविन्दपुर पुलिस स्टेशन के निकट स्थित है। नवादा से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 20 पर 15 किलोमीटर दक्षिण रजौली की ओर जाने पर फतेहपुर से एक सड़क अलग होती है। इस सड़क को गोविन्दपुर-फतेहपुर रोड़ के नाम से जाना जाता है। यह सड़क सीधे थाली मोड़ को जाती है,जहाँ से तीन किलोमीटर दक्षिण ककोलत जलप्रपात है। थाली मोड़ से जलप्रपात की शीतलता का एहसास होने लगता है। बिहार के प्रमुख जिलों में से एक नवादा जिला है। प्राचीन काल में यहां बृहधृत, मौर्य, कानाह राजवंशों ने यहां शासन किया। इस शहर का इतिहास द्वापरयुग से भी जोड़ा जाता है। यहां सात नदियां सकरी, खुरी, पंचान, नाटी, भूसरी, तिलैया और धनार्जेय बहती है। बिहार में हिमाचल का मजा लेना है तो नवादा का ककोलत झील खास है। रास्ते के दोनो ओर खेत, पेड़-पौधों की हरियाली है। यह जिस पहाड़ी पर बसा है, उस पहाड़ी का नाम ककोलत है। ककोलत क्षेत्र खूबसूरत दृश्यों से भरा हुआ है। इस झरने के नीचे पानी का एक विशाल जलाशय है।
इस जलप्रपात की ऊँचाई 160 फुट है। ठंडे पानी का यह झरना बिहार का एक प्रसिद्ध झरना है। गर्मी के मौसम में देश के विभिन्न भागों से लोग पिकनिक मनाने यहां आते हैं। इस जलप्रपात (झरने) में 150 से 160 फीट की ऊंचाई से पानी गिरता है। इस झरने के चारो तरफ जंगल है। ककोलत क्षेत्र में 64 छोटे-बड़े झरने हैं। यहां का मनोरम दृश्ये अदभुत और आकर्षक है। यह दृश्य आंखो को ठंडक प्रदान करता है। यह भारत में सबसे अच्छे झरनों में से एक है एवं झरने का पानी पूरे वर्ष ठंडा रहता है। ककोलत पहाड़ी पर स्थित इस झील के आसपास खूबसूरत दृश्यों की भरमार है।
बिहार प्रदेश में कई सरकारें आई और गई। लेकिन ककोलत का समुन्नत तरीके से कायाकल्प नहीं हो पाया। ककोलत आज भी किसी तारणहार का इंतजार कर रहा है। बिहार में कई अंग्रेज यात्रियों ने बिहार की यात्रा की। जिसमें कनिघंम, विलियम डेनियल, फ्रांसिस बुकानन, हैमिल्टन का नाम महत्वपूर्ण है। फ्रांसिस बुकानन एक डॉक्टर थे। बंगाल चिकित्सा कोलकाता में उन्होंने चिड़ियाघर की स्थापना अलिपुर चिड़ियाघर के नाम से की थी, जो काफी मशहुर है। बुकानन ने भारत में दो सर्वे किए। पहली बार 1800 ई. में मैसुर का एवं 1807 ई. से 1814 ई. तक बंगाल का। 1811 से 1812 तक बिहार के क्षेत्रों में बैलगाड़ी से भ्रमण किया। जिनका संकलन ‘जर्नल आफ फ्रांसिस बुकानन‘ में है। बुकानन ने अपनी यात्रा के दौरान रास्ते का नक्शा बनाया और सर्वे भी किया। स्थान को खास लैंडमार्क से निश्चित दूरी को दर्शाया गया है।
1811 को, श्री फ्रांसिस बुकानन द्वारा इस झरने की खोज की गई और उन्होंने दावा किया कि जलाशय का घनत्व बहुत कम था। लेकिन बार-बार पत्थरबाजी के बाद यह घनत्व धीरे-धीरे कम होता गया कि अब लोग आसानी से नहा सकते हैं। इसकी खोज के बाद अब यह एक पिकनिक स्पॉट बन गया है और इसके आधार पर पर्यटन विकसित किया गया है।
19वीं शताब्दी में एक अंग्रेज़ अफसर ने स्नान करनेवालों को जलाशय में एक-एक पत्थर डालने का आदेश दिया था। इससे खतरनाक जलाशय की गहराई कम होती चली गई। अभी पयर्टक निडर और उन्मुक्त होकर देर-देर तक स्नान करने का आनन्द प्राप्त करते हैं।
विश्व-प्रसिद्ध ‘ककोलत' जलप्रपात पर्यटन एवं आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। ग्रीष्म ऋतु में यहाँ की शीतल जलधारा में किया गया स्नान लोगों को अद्भुत सुख प्रदान करता है। भौगोलिक रूप से पहाड़ी नदी ‘लोहबर' हजारीबाग की पर्वत-श्रेणी से निकलती हुई लोहदंड पहाड़ी से लगभग 150 फीट की ऊँचाई से नीचे पहुँचकर जलाशय में परिवर्तित हो जाती है। ऊपर से नीचे की ओर आता हुआ जल वर्षा की फुहारों का अनुभव कराता है। गिरता हुआ जल विस्तृत सफेद रूई का दृश्यावलोकन कराता है। यह दृश्य मनमोहक एवं नयन सुख प्रदान करनेवाला है।
गोविंदपुर प्रखंड के एकतारा जंगल में ककोलत जलप्रपात लोहबर नदी का एक हिस्सा है जो झारखंड में हजारीबाग के पहाड़ी इलाके से बिहार में बहती है। ककोलत को 'नियाग्रा ऑफ बिहार' भी कहा जाता है। यह नवादा जिले में पहाड़ियों से घिरा हुआ है। ककोलत जलप्रपात ‘पातालगंगा' के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसे ‘बिहार का कश्मीर' भी कहा जाता है। पर्यटकों के लिए मार्च से जुलाई तक का समय अनुकूल रहता है। मई-जून का समय अच्छा माना जाता है। बिहार सरकार ने इस क्षेत्र के समग्र विकास के अन्तर्गत सीढ़ियों और रेलिंग का निर्माण करवाया है। वस्त्र बदलने के लिए स्नानागार की भी व्यवस्था है। प्रति वर्ष अप्रैल माह में ककोलतमहोत्सव का आयोजनकर पर्यटकों को आकर्षित किया जाता है। प्रतिवर्ष 14 अप्रैल से पाँच-दिवसीय मेला मेष संक्रान्ति के अवसर पर आयोजित किया जाता है। इसे सतुआनी मेला (सत्तू खाने का पर्व) भी कहा जाता है।
बिहार में ककोलत जलप्रपात का कश्मीर जैसा नजारा है। 150 मीटर ऊंचाई से गिरता है पानी, तेज गर्मी में भी रहती है ठंड
बिहार की राजधानी पटना से 133 किमी की दूरी पर ककोलत जलप्रपात है। इसे लोग बिहार का कश्मीर भी बोलते हैं। इसकी अमेरिका के नियाग्रा जलप्रपात से तुलना की जाती है। ककोलत को 'नियाग्रा ऑफ बिहार' भी कहा जाता है। यह नवादा जिले में पहाड़ियों से घिरा हुआ है। गर्मी की शुरुआत होते ही यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगती है। ऊंचाई से यहां पानी गिरता है, जो इसकी खूबसूरती को और भी बढ़ाता है। ककोलत जल प्रपात पहुंचने के एक किलोमीटर पहले से ही ठंडी हवाएं आपका स्वागत करने लगती है। पानी के श्रोत के बारे में कई बार जानकारी लेने की कोशिश की गई। लेकिन, इसका पता नहीं चल सका। ककोलत जलप्रपात कभी नक्सल प्रभावित इलाके में आता था। यहां आने से पहले लोगों को काफी कुछ सोचना पड़ता था। लेकिन, समय बदला तो व्यवस्थाएं भी बदली। सुरक्षा को लेकर उठ रहे सवाल धीरे-धीरे खत्म होने लगे। बड़ी संख्या में लोग अब यहां पहुंचते हैं। यहीं ककोलत के पानी में ही पर्यटक भोजन भी बनाते हैं। यहां के पानी में भोजन भी बहुत जल्दी पकता है। साथ ही स्वाद भी गजब का होता है। हालांकि, शाम के बाद बहुत कम पर्यटक ककोलत में रुकते हैं। क्योंकि, यहाँ पर रहने की खास व्यवस्था नहीं की गई है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें - शंखनाद