समाजवादी नेता लालू प्रसाद यादव का 76 वां जन्मदिन पर विशेष ...!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
लालू प्रसाद यादव जी का जीवन एक खुली किताब है। पिछड़ा वर्ग हो या समाज का कोई भी कमजोर वर्ग, किसी भी क्षेत्र से जब भी अन्याय और शोषण के विरूद्ध कोई लड़ाई लड़ी गई है, तब सदा ही लालू जी अगली पंक्ति में देखे गये हैं।
समतामूलक समाज और व्यवस्था के सूत्रपात लालू 

जैसे महात्मा गांधी अपने वक्त की उपज कहे जाते हैं, वैसे ही लालू प्रसाद यादव अपने समय की तमाम विडंबनाओं के बीच बिहार की राजनीति के मानचित्र पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। भारतीय समाज आरंभ से असमानताओं से भरा रहा है जहां कुछ के पास सबकुछ है और कुछ के पास कुछ भी नहीं।
लालू प्रसाद यादव, जैसा व्यक्तित्व सदियों में कोई एक पैदा होता है। लालू प्रसाद को व्यक्ति नहीं समष्टि कहना सर्वाधिक उचित होगा। भारत, जो जातिए समूहों का देश है, जिसमें आदमी की पहचान व्यक्तित्व से न होकर जाति से होती है। वहाँ अगर कोई एक व्यक्ति समूह को एक सूत्र में पिरोकर, समतामूलक समाज और व्यवस्था का सूत्रपात करता है, तो उसे ही समष्टि कहा जाता है। लालू प्रसाद ने उन तमाम दबे-कुचले दलित आदिवासी तथा बहुजन समाज के लोगों को सिर उठाकर चलने का हौसला दिया, जिन्हें आजाद भारत में भी अछूत और गुलाम समझा जाता था। यद्यपि बिहार एवं उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज का ध्रुवीकरण स्वतंत्रता पूर्व में हो चुका था, जिसका नाम त्रिवेणी संघ था। इसमें खेती और पशुपालन से जुड़ी मजबूत तीन जातियाँ यादव, कोईरी और कुर्मी शामिल थी। जो उपनिवेशी भारत में भी अपनी राजनैतिक पहचान बना चुकी थी। लेकिन उन तमाम लोगों से अधिक सक्षम और दबंग राजनेता के रूप में लालू प्रसाद यादव का नाम बिहार की राजनीति में शुमार है।
लालू प्रसाद का जन्म, शिक्षा एवं पारिवारिक जवान 

बिहार की राजनीति में त्रिवेणी संघ के उपज, बहुसंख्यकों के मसीहा लालू प्रसाद यादव भारतीय राजनीति में एक बहुत बड़ा नाम हैं। श्री लालू प्रसाद का जन्म बिहार में गोपालगंज जिले के फुलवरिया में 11 जून 1948 को हुआ था।
श्री लालू प्रसाद श्री कुंदन राय और श्रीमती मरछिया देवी के छह पुत्रों में मझले (दुसरे नंबर) पुत्र हैं। लालू प्रसाद ने 1 जून 1973 को गोपालगंज निवासी श्री शिव प्रसाद चौधरी और माता जगमातो देवी की बड़ी पुत्री राबड़ी देवी से शादी की थी। उनकी सात बेटियां हैं : रोहिणी, मिशा भारती, हेमा, चंदा, धन्नु, अनुष्का और राजलक्ष्मी और दो बेटे तेजप्रताप और तेजस्वी यादव। यहां एक बात गौरतलब है कि लालू प्रसाद के नाम के आगे यादव शब्द का इस्तेमाल भी एक कुचक्र था, जो मिडिया की देन है।
लालू प्रसाद ने अपनी प्राथमिक शिक्षा हथुआ (गोपालगंज) से प्राप्त की तथा कॉलेज की पढ़ाई के लिए वे पटना चले आए। पटना के बीएन कॉलेज से इन्होंने लॉ में स्नातक तथा राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। लालू प्रसाद ने कॉलेज से ही अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र नेता के रूप में की। 
लालू प्रसाद का राजनीतिक जीवन में प्रवेश 

लालू प्रसाद यादव 1970 में पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के महासचिव व 1973 में अध्यक्ष चुने गए। इसी दौरान वे 1975 में जयप्रकाश नारायण द्वारा चलाए जा रहे सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन का हिस्सा बन गए और जयप्रकाश नारायण, कर्पुरी ठाकुर, राजनारायण तथा सत्येन्द्र नारायण सिन्हा जैसे राजनेताओं से मिलकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की।
लालू प्रसाद 1977 में जनता दल के टिकट पर छपरा से चुनाव लड़ा और उस समय सबसे कम उम्र 29 वर्ष में सांसद चुने गए थे। 1980 व 1985 में बिहार विधानसभा के लिए चुने गए और 1989 में गरीबों के मसीहा श्री कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद वो विधानसभा के नेता बन गए और 1989 में ही लोकसभा के लिए चुने गए थे। 1989 के बाद से लालू का दौर बिहार में शुरू होता है। 1989 में दो घटनाएं घटती है और उन पर कड़ा रुख अपनाने के कारण लालू प्रसाद देशभर में एक मजबूत व अपने स्टैंड पर कायम रहते हुए पिछड़ो, अतिपिछड़ों, दलितों व अल्पसंख्यकों के नेता के रूप में उभरे।
वर्ष 1989 में बिहार के भागलपुर में साम्प्रदायिक दंगा हुआ और कांग्रेस पार्टी इसको रोकने में असफल हो गई। लालू प्रसाद यादव ने मुसलमानों को विश्वास दिलाया कि आप कांग्रेस छोड़कर मेरे साथ आओ में आपके अधिकारों की रक्षा करूँगा! इस प्रकार एम व वाई का समीकरण बना और लालू यादव की ताकत बढ़ी। 1989 में ही वीपी सिंह सरकार पर दबाव बनाकर मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करवा दिया जिससे बाकी पिछड़े वर्ग के लोग भी लालू प्रसाद के साथ जुड़ते गए और 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए।
लालू ने बंचित लोगों को मुख्यधारा में लाने का कार्य किया

लालू प्रसाद यादव को सिर्फ राजनैतिक या प्रशासनिक पदों के अनुरूप देखना उनके साथ न्यायसंगत नहीं होगा। लालू के दौर में पहाड़ों में पत्थर तोड़ने वाली दलित भगवती देवी रातों रात संसद की दहलीज पर पहुंच जाती है। वहीं घास-फूस की टाट में जीवन काटने वाले एक मोची का बेटा शिवचंद्र राम बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री बन जाता है व धोबी घाट पर जिंदगी गुजारने वाले श्याम रजक को लाल बत्ती की गाड़ी मिल जाती है। अब वर्तमान समय में कपड़ा धोने वाली गरीब लाचार धोबी महिला मुन्नी देवी को एमएलसी बना कर लालू ने सदियों से गरीबी व कुंठित तथा बंचित लोगों को मुख्यधारा में लाने का कार्य किया और देखते ही देखते बिहार की बहुसंख्यक जनता खुद को एक अव्वल नागरिक होने व अपना राज होने के लम्हों से अभिभूत हो गई।
मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू प्रसाद यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी कि जो लोग मुख्यधारा में नहीं हैं, उनको सबसे पहले इस धारा से जोड़ा जाये।  लालू प्रसाद की बात जनप्रतिनिधि से लेकर प्रशासनिक अधिकारीयों तक संज्ञान में लिया जाये। समाज में व्याप्त विषमता को खत्म किया जाये। दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को उसका अपना अधिकार मिले। सबको सामान शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार मिले। सबको एक समान जीने का अधिकार मिले। यही लालू प्रसाद का सपना है।
लालू ने शिक्षा में उतरोत्तर विकास किया

लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में शिक्षा का विकास में उतरोत्तर वृधि हुई। बिहार में 1981 से 1991 के बीच शिक्षा दर में वृद्धि मात्र 5 प्रतिशत से भी कम थी। 1991-2001 के बीच शिक्षा दर में वृद्धि लगभग 10 प्रतिशत तक पहुँची। इस 10 साल में संयुक्त बिहार में करीब 6 विश्वविद्यालय खोले गए, जिनमें जयप्रकाश नारायण यूनिवर्सिटी (छपरा), भूपेंद्र नारायण मंडल यूनिवर्सिटी (मधेपुरा), वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी (आरा), दुमका, हजारीबाग आदि प्रमुख है।इसके अलावा विश्वविद्यालय और प्राथमिक विद्यालयों में बड़े पैमाने पर नियुक्ति की गई। जो अपने आप में एक क्रांतिकारी कदम माना जाता है। जो शिक्षा के क्षेत्र में प्रचलित भाई भतीजावाद पर व्यापक प्रहार था।लेकिन यह भी सच है कि नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद की परंपरा को आगे बढ़ाया और 2001 से 2011 के बीच बिहार की शिक्षा में 16 % वृद्धि हुई। लेकिन इसमें भी 5 साल का कार्यकाल लालू प्रसाद का भी है। चिकित्सा के क्षेत्र में जननायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज (मधेपुरा) खोले गए। बिहार में सर्वशिक्षा अभियान 2001 में ही शुरू किया गया था।
बिहार में बिहार शिक्षा परियोजना परिषद का गठन

बिहार में बिहार शिक्षा परियोजना परिषद का गठन भी लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में हुआ था। सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के अंतर्गत 1991 में बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की स्थापना हुई और इस योजना के लिए वित्तीय सहायता 3:2:1 के अनुपात में यूनिसेफ, केंद्र और राज्य सरकार उपलब्ध कराती थी। इसी परियोजना के तहत सीतामढ़ी मॉडल जिला योजना 1992 में लागू की गयी थी। इस योजना का मुख्य लक्ष्य प्राथमिक शिक्षा का सर्वव्यापीकरण करना था। इसके अंतर्गत ग्राम शिक्षा समितियों की गठन किया गया। ग्रामीण स्तरीय कई ग्रामों में विद्यालय विकास कोष की स्थापना की गयी थी। इसके अलावा प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन योजना 15 अगस्त 1995 को शुरुआत की गई।  
बिहार में मध्यान्ह भोजन योजना के तहत 1995-2004 तक प्रति छात्र 3 किलोग्राम खाद्यान्न दिया जाता था। 01 जनवरी 2005 से बिहार के सभी विद्यालयों में पकाया हुआ भोजन दिया जाने लगा।
लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में केंद्र सरकार ने भी बिहार को बहुत ज्यादा आर्थिक मदद नहीं की। बची-खुची कसर बिहार से झारखण्ड विभाजन ने पूरी कर दी। अब सारे उद्योग झारखण्ड में चले गए। बिहार का विभाजन, सामंतों का अत्याचार, शासन पर अभिजात्य वर्ग का कब्जा और केंद्र सरकार का बिहार के प्रति दोहरा मापदंड- ऐसी कई चीजें झेलकर शासन करना एक पिछड़े तबसे से आने वाले मुख्यमंत्री के लिए आसान काम नहीं था।
मंडल के खिलाफ कमंडल और लालकृष्ण आडवाणी गिरफ्तार 

मंडल के खिलाफ राममंदिर के बहाने सोमनाथ से लालकृष्ण आडवाणी कमंडल का रथ लेकर निकले और देश मे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण होने लगा। अब लालू प्रसाद यादव की असली परीक्षा होनी थी। जैसे ही लालकृष्ण आडवाणी का रथ 23 दिसंबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर में घुसा, लालू प्रसाद ने लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करके कोलकाता ले जाकर छोड़ दिया। इससे अल्पसंख्यको का विश्वास लालूप्रसाद में बढ़ा और आज भी वो डटकर लालूजी के साथ खड़े है।
मगर देश की ब्राह्मणवादी सत्ता, मीडिया व न्यायपालिका को यह स्वीकार्य नहीं था कि कोई पिछड़े का बेटा उन पर राज करे और षड्यंत्रों का दौर शुरु हो गया। 15 साल के उनके कार्यकाल को जंगलराज बताया गया था और दुष्प्रचार शुरू कर दिया मगर लालू अपने इरादों से टस से मस नहीं हुए। अपने समर्थकों के साथ ब्राह्मणवादी ताकतों को जवाब देते रहे मगर अपनी साथी के धोखे के कारण वो जेल में रहे।
सामाजिक बदलाव के क्षेत्र में लालू प्रसाद का दबदबा

सामाजिक न्याय के मसीहा लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल का यह सिर्फ एक हिस्सा है। इसके अलावा लालू यादव के कार्यकाल में अनेक काम हुए, जिसे दर्ज ही नहीं किया गया। पूरे 15 साल के शासनकाल को सिर्फ 'जंगलराज' कहना तो वैसा है, जैसे इससे पहले और बाद के बिहार में सब ‘मंगल’ ही ‘मंगल’ है। जबकि सच है सवर्णों का एकक्षत्र अधिपत्य 1937 से लेकर 1990 तक बना रहा। बाभनवाद, ब्राह्मणवाद का खूब विकास हुआ। लेकिन मिडिया को यह जंगल राज नहीं दिखा। जहां चपरासी से अधिकारी एक जाति के लोग बनाए जाते रहे। हर जगह सवर्णो को बिठाया गया। लेकिन लालू प्रसाद के जमाने में बहुजनों का विकास, सभी को जंगल राज लगने लगा था।
लालू प्रसाद यादव और त्रिवेणी संघ

ज्योतिबा फुले और दक्षिण के आंदोलनों से प्रेरित होकर बिहार और उत्तर प्रदेश में 1933 में त्रिवेणी संघ का गठन हुआ था। पिछड़े वर्गों का यह आंदोलन  देखते ही देखते सभी शोषित व दलित वर्गों को अपने साथ ले लिया। इसका प्रभाव बिहार की राजनीति में आज भी विद्यमान है। त्रिवेणी संघ के जन्मदाता कहे जाने वाले सरदार जगदेव सिंह यादव, जिनके मन मे सर्वप्रथम इस संगठन का विचार आया, वे यादव महासभा में तो सक्रिय थे ही, डॉ. शिवपूजन सिंह के साथ कुर्मी सभा के अधिवेशनों में भी जाते थे।
दरअसल, त्रिवेणी संघ का गठन उस दौर में हुआ जब बहुसंख्यक समाज के मसलों और मुद्दों को लेकर कोई पहल नहीं हो रही थी। सवर्णों का हर क्षेत्र में एकाधिकार था। पिछड़ी जातियों को अछूत की श्रेणी में रखा गया था।इस सामाजिक लड़ाई में इसका असर भी दिखा। बिहार में इस आंदोलन ने एक झटके में पिछड़ों को नींद से जगा दिया और उन्हें यह अहसास कराया कि उनके हितों की रक्षा कोई दूसरा नहीं कर सकता।
लालू प्रसाद ने अपने राजनीतिक कार्यकाल में तमाम जातियों को राजनैतिक प्रतिनिधित्व दिया। यादव, कुर्मी कोईरी के अतिरिक्त मूसहर,नोनिया, तांती, लोहार, कहार, नाई, बढ़ई आदि समूहों को सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित किया गया। लालू प्रसाद के दौर में 1995 में कोईरी जाति दो दर्जन से अधिक विधायक चुन कर आए, जो एक रिकॉर्ड है। लेकिन यही से सवर्ण खेमे में खलबली मच गई। सदियों से सवर्णों के क्षेत्राधिकार में रहने वाले बिहार में पिछड़ों का अभिउदय सामंतों की आँखों की किरकिरी बन गई।

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