विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर विशेष ...!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
12 जून को प्रत्येक वर्ष बाल श्रम के खिलाफ विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे का उद्देश्य बाल श्रम में लगे बच्चों के शोषण के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाना है। जो बच्चें कम उम्र में पैसा कमाने के लिए श्रमिक बन जाते है उन्हें बाल श्रमिक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जब वे या तो काम करने के लिए बहुत छोटे होते हैं, या उन्हें खतरनाक गतिविधियों में भाग लेने के लिए मजबूर किया जाता है जो उनके शारीरिक, सामाजिक, मानसिक या शैक्षिक विकास पर प्रभाव डाल सकते हैं। यह दिन इस बात पर भी ध्यान केंद्रित करता है कि इस प्रथा को खत्म कैसे किया जाय और इसके लिए क्या करने की जरूरत है इस दिन को लेकर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि “बाल श्रम पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी को मजबूत करता है। 
बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है। किसी भी देश के बच्चे अगर शिक्षित और स्वस्थ्य होंगे तो वह देश उन्नति औऱ प्रगति करेगा। और देश में खुशहाली आयेगी। लेकिन अगर बच्चे बचपन से ही किताबों को छोड़कर कल-कारखनों में काम करने लगेंगे तो देश व समाज का भविष्य उज्ज्वल नहीं होगा। बड़े-बड़े शहरों में कान्वेंट स्कूलों में रंग-बिरंगे यूनिफॉर्म पहन कर हंसते-खिलखिलाते हुए बच्चों को देखकर कौन खुश नहीं होगा। लेकिन ये देश के बच्चों की सही तस्वीर नहीं है। ऐसे बच्चों की संख्या बहुत ही कम है। देश में आज भी करोड़ों बच्चे स्कूलों की बजाए कल-कारखानों, ढाबों और खतरनाक कहे जाने वाले उद्योगों में कार्य कर रहे हैं। जहां भोजन की शर्त पर उनका बचपन और भविष्य तबाह हो रहा है। इस कार्य में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में बच्चे पढ़ाई-लिखाई छोड़कर काम करने को मजबूर हैं।
भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में बाल श्रमिकों की स्थिति भयावह  

हम भारत की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2 करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार तो लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं। इन बालश्रमिकों में से 19 प्रतिशत के लगभग घरेलू नौकर हैं, ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में तथा कृषि क्षेत्र से लगभग 80 प्रतिशत जुड़े हुए हैं। शेष अन्य क्षेत्रों में, बच्चों के अभिभावक ही बहुत थोड़े पैसों में उनको ऐसे ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैं जो अपनी व्यवस्था के अनुसार उनको होटलों, कोठियों तथा अन्य कल-कारखानों आदि में काम पर लगा देते हैं। उनके नियोक्ता बच्चों को थोड़ा सा खाना देकर मनमाना काम कराते हैं। 18 घंटे या उससे भी अधिक काम करना, आधे पेट भोजन और मनमाफ़िक काम न होने पर पिटाई यही उनका जीवन बन जाता है। 
केवल घर का काम नहीं इन बालश्रमिकों को पटाखे बनाना, कालीन बुनना, वेल्डिंग करना, ताले बनाना, पीतल उद्योग में काम करना, कांच उद्योग, हीरा उद्योग, माचिस, बीड़ी बनाना, खेतों में काम करना, कोयले की खानों में, पत्थर खदानों में, सीमेंट उद्योग, दवा उद्योग में तथा होटलों व ढाबों में झूठे बर्तन धोना आदि सभी काम मालिक की मर्ज़ी के अनुसार करने होते हैं। इन समस्त कार्यों के अतिरिक्त कूड़ा बीनना, पोलीथिन की गंदी थैलियां चुनना, आदि अनेक कार्य हैं जहां ये बच्चे अपने बचपन को नहीं जीते, नरक भुगतते हैं परिवार का पेट पालते हैं।
बाल श्रमिकों की अन्य समस्या

ऐसे बाल श्रमिकों से सम्बंधित एक अन्य समस्या है, बहुत बार इन बच्चों को तस्करी आदि कार्यों में भी लगा दिया जाता है। मादक द्रव्यों की तस्करी में व अन्य ऐसे ही कार्यों में इनको संलिप्त कर इनकी विवशता का लाभ उठाया जाता है। बच्चों को दुसरे देशों में बेच देने की घटनाएं भी बराबर होती रहती है। बाल श्रम की सबसे बड़ी वजह है गरीबी। गरीबी से मजबूर होकर बच्चों को मजदूरी करना पड़ता है। बचपन जीवन का सबसे अनमोल समय होता है। लेकिन, उसी बचपन में पढ़ाई लिखाई के बजाय अगर बच्चे बाल मजदूरी करने लगे तो उनका बचपन नष्ट हो जाता है। प्रत्येक साल करोड़ों बच्चे पढ़ाई लिखाई छोड़कर बाल मजदूरी में लग जाते हैं। ऐसे में बच्चों के बचपन को बचाने और लोगों के बीच इसके लिए जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 12 जून को विश्व बालश्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। दुनियाभर में करीब हर 10 बच्चों से एक बच्चा बाल मजदूरी का शिकार है। लेकिन, वर्तमान समय में बाल मजदूरी करने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के आंकड़ों के अनुसार अब भी दुनियाभर में करीब 152 मिलियन बच्चे बाल मजदूरी करते हैं जिसमें 72 मिलियन बच्चे बेहद खतरनाक स्थिति में काम करते हैं।
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का इतिहास

यह दिवस दुनियाभर के देशों में मनाया जाता है। विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाने का प्रस्ताव पहली बार इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन द्वारा दिया गया था। जिसके बाद साल 2002 में सर्वसम्मति से एक ऐसा कानून पारित हुआ जिसके तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी करवाना अपराध माना गया। अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ के लगभग 187 देश इसके सदस्य हैं। विश्व में श्रम की स्थितियों में सुधार के लिए कई सम्मेलनों को पारित किया है।  
1973 में, अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ के सम्मेलन संख्या 138 को अपनाकर रोजगार के लिए न्यूनतम आयु पर लोगों का ध्यान केंद्रित किया गया था। जिसका मकसद सदस्य राज्यों को रोजगार की न्यूनतम आयु बढ़ाने और बाल मजदूरी को समाप्त करना था।

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का महत्व

गरीबी सबसे बड़ी है बाल श्रम की, जिसकी वजह से बच्चे शिक्षा का विकल्प छोड़कर मजबूरी वश मजदूरी करना चुनते हैं। इसके अलावा, कई सारे बच्चों को संगठित अपराध रैकेट द्वारा भी बाल श्रम के लिए मजबूर किया जाता है। तो इस दिन को विश्व स्तर पर मनाए जाने का उद्देश्य इन्हीं चीज़ों के ऊपर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है, जिससे बच्चों को बाल श्रम से रोका जा सके। 
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस 2023 की थीम है

इस वर्ष विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की थीम है "सभी के लिए सामाजिक न्याय, बाल श्रम का खात्मा!" इस थीम का मतलब ही है कि बाल मजदूरी को रोकने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। सभी मिलकर प्रयास करेंगे तभी बच्चों के बचपन को बचाया जा सकता है।
आज हम लोग ’विश्व बाल श्रम निषेध दिवस’ पर संकल्प लें कि बच्चों के शिक्षा के अधिकार का संरक्षण करते हुए उन्हें ’बाल श्रम’ से मुक्त रखेंगे। इसके प्रति स्वयं के साथ-साथ समाज को भी जागरूक करें।

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