शोषितों व वंचितों के मसीहा थे स्टुअर्ट कॉल्विन बेले ..!!

बिहारशरीफ : 03 जून 2023 दिन शनिवार को साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद’ के तत्वावधान में बिहारशरीफ के बेले सराय(बेलीसराय) एवं बिहारशरीफ सबडिविजन के निर्माता, ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक, बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर, पटना के पहला भूतपूर्व कमीशनर सर स्टुअर्ट कॉल्विन बेले की 98 वीं पुण्यतिथि का आयोजन स्थानीय बिहारशरीफ के भैसासुर मोहल्ले में इतिहासकार, प्रोफेसर, डॉ० लक्ष्मीकांत सिंह के आवास पर स्थित ‘शंखनाद’ कार्यालय सभागार में मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता इतिहासज्ञ प्रो. (डॉ.) लक्ष्मीकांत सिंह ने की। समारोह में उपस्थित लोगों ने सर स्टुअर्ट कॉल्विन बेले के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।
कार्यक्रम में विषय प्रवेश कराते हुए "शंखनाद" साहित्यिक मंडली के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि आज भी सर स्टुअर्ट कॉल्विन बेले पर यह आरोप लगाया जाता है कि वह साम्राज्यवादी विचारधारा का पोषक थे। लेकिन सर स्टुअर्ट बेले एक दार्शनिक के साथ-साथ उदारवादी विचारधारा के पोषक थे। उनके दिल में सामाजिक उत्थान और सभ्य समाज के निर्माण की अप्रतिम उत्कंठा थी। प्रखर बुद्धि एवं विलक्षण प्रतिभा के धनी सर स्टुअर्ट कॉल्विन बेले भारतीयों के विकास और उनके जीवन स्तर में सुधार के पक्षधर थे। उन्होंने आधुनिकता के पितामाह लार्ड मैकाले के कानून को सभी जातियों और धर्मों के लोगों के बीच पहुंचाकर समरस समाज का निर्माण किया। भारत में उद्योग और व्यापार का जाल बिछाने में बेले की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
                                                                               अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ० लक्ष्मीकांत ने कहा कि सर स्टुअर्ट कॉल्विन बेले का जन्म 26 नवम्बर 1836 को इंग्लैण्ड में हुआ था। बेले, ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिष्ठित सिविल सेवक विलियम बटरवर्थ बेले के सबसे छोटे बेटे थे। इनके पिता 6 नवंबर 1799 को भारत आये थे और 13 मार्च से 4 जुलाई 1828 तक बंगाल के गवर्नर-जनरल के रूप में कार्य किये, तथा दिसंबर 1830 में भारत छोड़ कर इंग्लैण्ड चले गये थे। ईटन और हैली-बेरी में शिक्षित स्टुअर्ट बेले  4 मार्च 1856 को भारत पहुंचे। भारत में इनकी पहली पोस्टिंग बतौर एडिशनल कलेक्टर 24-परगना जिले में हुई थी। 1858-59 में तत्कालीन बंगाल सरकार के कनिष्ठ सचिव बनाया गया। स्टुअर्ट बेले पटना, मुंगेर के कलक्टर और शाहाबाद एवं तिरहुत में न्यायिक मजिस्ट्रेट भी रहे थे। उन्होंने 1873 में पटना डिवीजन के आयुक्त का पद संभाला तथा लंबे समय तक पटना में विकास कार्यों को संचालित करते रहे। उन्हें 1878 में नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया (केसीएसआई) नियुक्त किया गया था। उन्होंने 1878 में असम के मुख्य आयुक्त का पद संभाला था। उन्हें 1881 में हैदराबाद में रेजिडेंट कार्यालय का अधिकारी बनाया गया तथा 1882 में गवर्नर-जनरल की परिषद के सदस्य का पद सौंपा गया।  बेले ने 1887 और 1890 के बीच बंगाल के लेफ्टिनेंट-गवर्नर का पद संभाला था।  वे 1890 में इंग्लैंड लौट गए तथा 1891 में राजनीतिक और गुप्त विभाग, भारत कार्यालय के सचिव नियुक्त किए गए थे। 
 बेले की शादी 21 नवंबर 1860 को पटना में बंगाल सिविल सेवा के अधिकारी रॉबर्ट नेशम फारक्शर्सन की बेटी, एना फारक्शर्सन से हुई थी। बेले का संबंध बिहारशरीफ से जुड़ा हुआ था तथा इस शहर के विकास में उनकी अहम भूमिका रही है।
 बेले भारत के सर्वांगीन विकास के लिए तथा खासकर निम्न वर्गों के विकास के लिए किसी फरिस्ते से कम नहीं थे। वे हजारों साल से शिक्षा के अधिकार से वंचित अभिवंचित समाज के लिए मुक्ति दूत बनकर भारत आये। उन्होंने शिक्षा पर उच्च वर्ग के एकाधिकार को समाप्त कर सभी को समान रूप से शिक्षा पाने का अधिकार प्रदान किया तथा पिछड़ों, अस्पृश्यों व आदिवासियों की किस्मत के दरवाजे खोल दिए। बेले ने वर्णव्यवस्था के साम्राज्यवाद को ध्वस्त किया तथा गैर बराबरी वाले उंच-नीच जातिवादी साम्राज्य की काली दीवार को उखाड़ फेंका।   
उन्होंने कहा- बेले के नवम्बर 1873 में पटना के कमीश्नर नियुक्त होने के पूर्व पटना के कलक्टर रहते समय बिहार (बिहारशरीफ) सबडिवीजन बन गया था और एलेक्जेंडर मायरिक ब्रॉडले को 1870 में यहाँ का पहला सबडिविजनल मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया था। उस समय यहां पर प्रशासनिक अधिकारियों के रहने की कोई अच्छी व्यवस्था नहीं थी। कोई भी बाहरी मेहमान या अधिकारी आता था तो तो उसे पुराने खंडहरनुमा मकान में शरण लेना पड़ता था। खुद ब्रॉडले कच्चे मकान में रहता था।  इसकी पुष्टि मार्च 1875 में बिहार भ्रमण पर आये रूसी बौद्ध भिक्षु प्रोफेसर मिनायेव ने अपनी यात्रा वृतांत में किया है।इस अव्यवस्था को दूर करने के लिए स्टुअर्ट बेले द्वारा एक खूबसूरत सराय (सर्किट हाउस) बनाने का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा गया, जिसकी स्वीकृत 1873में मिली थी। उसी वर्ष उसका निर्माण कार्य का शुभारंभ बेले द्वारा किया गया। अक्टूबर 1876 में इसका उद्घाटन स्टुअर्ट बेले द्वारा किया गया। इस का नामाकरण स्टुअर्ट बेले के नाम पर रखा गया, "बेले इन"। इसे स्थानीय लोग बेले सराय पुकारते थे। जब बनाया गया था तब वहां आबादी नगण्य थी।लेकिन बाद में उसके आसपास आबादी बस गई और वह मुहल्ला बन गया, तब उसका नाम बेली सराय हो गया। बेले सराय का खंडहरनुमा भवन आज भी बिहारशरीफ में विद्यमान है। उसमें कभी सरकारी अस्पताल चलता था। बाद में जब नया सधर अस्पताल बन गया तो वहां बीड़ी मजदूरों का अस्पताल चलता था।
स्टुअर्ट बेले पटना के कमीश्नर के साथ-साथ नये पटना शहर के निर्माणकर्ता भी रहे हैं। पटना का मशहूर बेलीरोड, उसका प्रमाण है। उस क्षेत्र का विकास का नक्शा उन्होंने बनाया था। इसलिए उनके नाम पर बेलीरोड का नामाकरण कर,उनके अवदान को चिरस्मरणीय बनाया गया।मानवता के मसीहा सर स्टुअर्ट कॉल्विन बेले का निधन 89 वर्ष की उम्र में 3 जून 1925 को इंग्लैंड में हो गया। हम सर बेले के एहसानमन्द हैं।
शिक्षाशास्त्री मो. जाहिद अंसारी ने कहा कि बहुजन शिक्षा एवं न्याय के पुरोधा थे सर स्टुअर्ट कॉल्विन बेले। नई शिक्षा नीति के हिमायती बहुजनों की उन्नति एवं मुक्ति का द्वार खोलने वाले बेले भले ही किसी और काम के लिए आलोचना के पात्र हो किंतु बहूजनों के लिए मसीहा से कम नहीं हैं।
शंखनाद के कोषाध्यक्ष सरदार वीर सिंह ने कहा कि 1870 तक नस्ल या पंथ की अक्षमताओं को दूर करने के बावजूद, भारत के प्रशासनिक व्यवस्था में मूलनिवासियों की संख्या नगण्य थी। स्टुअर्ट के लेफ्टिनेंट गवर्नर बनने के बाद एक प्रस्ताव पारित किया गया था (33 वि. सी. 3), जिसके तहत सिद्ध योग्यता और क्षमता वाले भारत के मूल निवासी भारत सरकार के अधिनियम के द्वारा विशेष अवसर प्रदान किए गए। प्रशासन में भारत के मूल निवासियों के प्रवेश के संबंध में, यह 1833 में 3 और 4 विल के तहत अधिनियमित किया गया था।
इस अवसर पर लेखिका प्रियारत्नम, शिक्षाविद राजहंस, धीरज कुमार, अरुण बिहारी शरण, संजय कुमार शर्मा, संतोष कुमार, विजय कुमार पासवान सहित दर्जनों लोगों ने भाग लिया।

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