इतिहासज्ञ डॉ लक्ष्मीकांत सिंह की चर्चित ऐतिहासिक शोध ग्रंथ “ओदंतपुरी एक ऐतिहासिक खोज” का हुआ लोकार्पण...!!
बिहारशरीफ,16 जुलाई 2023 : शनिवार की देर शाम बिहार के बहुचर्चित इतिहासविद् एवं साहित्यकार, शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की चर्चित ऐतिहासिक शोध ग्रंथ “ओदंतपुरी: एक ऐतिहासिक खोज” का लोकार्पण समारोह साहित्यिक मंडली शंखनाद कार्यालय, भैंसासुर में हुआ। लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि वैज्ञानिक डॉ. आनंद वर्द्धन एवं बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी साहित्यकार सुबोध कुमार सिंह के करकमलों द्वारा सम्पन्न हुआ।
लोकार्पण समारोह का विषय प्रवेश कराते हुए शंखनाद साहित्यिक मंडली के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि शंखनाद के विद्वान अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) लक्ष्मीकांत सिंह, पालि भाषा के शिक्षक के साथ-साथ अनेक ऐतिहासिक शोध ग्रंथों के लेखक हैं। आज बिहारशरीफ के लिए गौरवपूर्ण दिन है कि इस बिहारशरीफ की धरती पर यहाँ के ऐतिहासिक शोध ग्रंथ “ओदंतपुरी: एक ऐतिहासिक खोज” पुस्तक का लोकार्पण हो रहा है। डॉक्टर लक्ष्मीकांत सिंह की यह पुस्तक दुर्लभ ऐतिहासिक खोज है। उन्होंने बताया कि आज नहीं तो कल यह ऐतिहासिक पुस्तक भारत के ऐतिहासिक लेखन के लिए एक प्रमाणित अभिलेख होगी। यह शोधग्रंथ पिछले 50 वर्षों के सर्वेक्षण और क्रमिक अनुसंधान पर आधारित ऐतिहासिक तथ्यों का संकलन है।
इस समारोह के मुख्य अतिथि साहित्यकार सुबोध कुमार सिंह ने कहा- उदंतपुरी की मिट्टी में भारत के प्राचीन राजवंशों का इतिहास छिपा हुआ था, जिसे इतिहासज्ञ डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने खोज निकाला है। यह ओदंतपुरी/उदंतपुरी (बिहारशरीफ) पालवंशीय राजाओं की राजधानी तथा गुप्तवंश की उपराजधानी रही है। उदंतपुरी नगर बहुत सारे अलौकिक कथा और ऐतिहासिक घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। यह एक ऐतिहासिक नगर के साथ शिक्षा केंद्र भी रहा है। इस शोधग्रंथ में डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने उदंतपुरी से संबंधित सभी प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों एवं साक्ष्यों को संग्रहित कर लिखा है। शंखनाद साहित्यिक मंडली के सौजन्य से लोकार्पण के इस कार्यक्रम को देखकर बहुत प्रसन्नता हो रही है। उम्मीद है डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह का अनुगमन कर बिहारशरीफ के युवा लेखक, साहित्य लेखन की परंपरा को उत्साह के साथ सदैव आगे बढ़ाते रहेंगे। एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी का लेखन कार्य में लग जाना सुखद अनुभूति होगा। यह पुस्तक उदंतपुरी के इतिहास और वर्तमान में दिलचस्पी रखने वालों के लिए सर्वश्रेष्ठ उपहार है।
मौके पर इतिहासज्ञ लेखक डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने बताया कि “ओदंतपुरी एक ऐतिहासिक खोज” पुस्तक उदंतपुरी की ईसा पूर्व 9वीं से लेकर वर्तमान बीसवीं शताब्दी की अप्रकाशित तथ्यों एवं ऐतिहासिक सबूतों पर आधारित शोध ग्रंथ है। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक के माध्यम से लोग उदंतपुरी के प्राचीन तथा वर्तमान के बारे में विस्तार से जान सकेंगे। पुस्तक में उदंतपुरी के इतिहास में भगवान बुद्ध, सम्राट अशोक,गुप्तवंश, पाल वंशीय शासकों के साथ बख़्तियार खिलजी, आधुनिक बिहार के गांव और शहरों के नाम और उनसे जुड़ी कथाओं, मगध के ऐतिहासिक स्थलों, उदंतपुरी के सूफी-संत परंपरा का अवलोकन किया जा सकता है।
समारोह के सम्मानित अतिथि एवं वैज्ञानिक डॉक्टर आनंद वर्द्धन ने कहा कि डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की पुस्तक “ओदंतपुरी एक ऐतिहासिक खोज” उदंतपुरी के इतिहास का ईसा पूर्व एवं पालवंशीय राजाओं और वर्तमान काल का ऐतिहासिक संग्रह है। इस पुस्तक में ना केवल बिहार के बल्कि भारत के प्राचीन ऐतिहासिक संदर्भों को चिंहित किया गया है। एलेक्जेंडर कनिंघम और ब्रॉडले जो नहीं खोज पाये,उसको यहां देखा जा सकता है। तश्वीर और नक्शों का संकलन आश्चर्यजनक है। इस पुस्तक में उन कमियों को उजागर किया गया है जिसे पूर्ववर्ती इतिहासकारों ने छोड़ दिया है।
प्रोफेसर (डॉ.) विश्राम प्रसाद ने कहा कि इस पुस्तक को पूरा पढ़ने का मौका नही मिला है लेकिन कुछ पन्नों को पढ़कर लगता है कि लेखक डॉ लक्ष्मीकांत सिंह ने उदंतपुरी के इतिहास को आईने की तरह प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि बिना इतिहास को पढ़े हम अपने प्राचीन अतीत के ऐतिहासिक रूप को पहचान नहीं पायेंगे।
शंखनाद के कोषाध्यक्ष समाजसेवी सरदार वीर सिंह ने कहा कि उदंतपुरी के ऊपर इतिहास लिखना लेखक डॉ लक्ष्मीकांत सिंह की बहुत बड़ी उपलब्धि है, जो आने वाले समय में संदर्भ ग्रंथ के रूप में लिया जाएगा इनकी यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगीं।
मौके पर कार्यक्रम संचालन करते हुए शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने कहा कि यह पुस्तक न केवल मगध के इतिहास से दर्शन कराती है बल्कि तिब्बत के बौद्ध साम्राज्य से भी परिचित कराती है। तिब्बत का प्रथम बौद्ध विहार साम-ये बौद्ध मठ, उदन्तपुरी बौद्ध विहार की प्रतिकृति है। इससे साबित होता है कि उदन्तपुरी महाविहार नालन्दा विश्व विद्यालय से भी ज्यादा लोकप्रिय और चर्चित रहा है।
इस दौरान साहित्यसेवी आर्ष कुमार, प्रणव कुमार, साहित्यकार व अभियंता मिथिलेश कुमार चौहान, समाजसेवी धीरज कुमार, शिक्षाविद् राजहंस कुमार, साहित्यकार प्रिया रत्नम्, जयंत कुमार अमृत, मो.जाहिद हुसैन सहित कई लोग मौजूद थे।
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