एकता और संतुलन की सीख देता भगवान शंकर का पूरा परिवार...!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
 
भगवान शंकर सामाजिक समरसता,सहचर्य के प्रतीक तो हैं ही साथ ही बिना किसी भेदभाव के सभी जीवों के हैं। सभी भारतीय मूलनिवासी आपस में सहोदर भाई हैं, कोई भी पराया नहीं है। भगवान शंकर भारतीय मूलनिवासी हैं।  

भगवान शंकर के परिवार में रहन-सहन और खानपान में काफी विषमताओं के बावजूद भी सभी प्रेम, एकता और भाईचारे की भावना से रहते हैं और इन सभी की परस्पर आपस में शत्रुता है लेकिन फिर भी इनके बीच में कभी कोई लड़ाई नहीं हुआ। भगवान शंकर प्रकृति के साथ जीवीय साहचर्य और सामाजिक समरसता का उदाहरण हैं।

भगवान शंकर के विचारों से हमें जीवन में एकता और सन्तुलन की सीख मिलती है। हमें उनके परिवार में यह देखने को मिलता है कि परिवार में जितने वाहन हैं जैसे शंकर गले में सर्प धारण हैं। उनके पुत्र गणेश का वाहन चूहा है। सर्प और चूहा एक दूसरे के शत्रु होते हुए भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर है, जो कि सर्प का भक्षण करता है, लेकिन दोनों आपस में प्रेम से रहते हैं। भगवान शिव का वाहन बैल है, जबकि माता पार्वती का वाहन शेर है। दोनों एक दूसरे के दुश्मन होते हुए आपस में मिलजुलकर रहते हैं।

सामाजिक तौर पर देखें तो परिवारों में भी यह जरूरी है अलग-अलग विचारों, अभिरूचियों, स्वभावों के बावजूद हम लोग हिलमिल कर रहें अपनी सोच दूसरों पर न थोपी जाय और सबसे खास बात यह कि मुखिया और अन्य बड़े सदस्यों के गले में कटुता,द्वेष का गरल थामें रखने का धीरज और सबको साथ लेकर चलने की आदत हो तभी संयुक्त परिवार चल सकते हैं। यह बात हमारे परिवार तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए वरन् हमारे देश में विभिन्न धर्मो, जाति और विविधताओं के बीच एकता व संतुलन  भगवान शंकर के परिवार की तरह जरूरी है। 

सर्वमान्य और सर्वोचित निर्णय ठण्डे दिमाग से ही लिए जा सकते हैं। शंकर के मस्तक पर चन्द्रमा और गंगा का होना इस बात का संकेत है कि मस्तिष्क को सदा शीतल रखना चाहिए। चन्द्रमा और गंगाजल दोनों में असीम शीतलता है। 
मानव मात्र को भगवान शंकर यह संदेश देते हैं कि भले ही हमारा स्वाभाव और प्रकृति भिन्न हों पर हमें परस्पर मिल कर रहना चाहिए।
वर्तमान में एकल परिवार और एकला चालों रे की प्रवृत्ति के चलते हमारे सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का लगातार पतन हो रहा है।

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