हेनरी फिप्स ने भारतीय किसानों के लिए अनुसंधान केंद्र की स्थापना की ...!!

बिहारशरीफ,नालंदा : 28 सितम्बर 2023 : 27 सितम्बर दिन बुधवार की देरशाम को स्थानीय बिहारशरीफ के भैसासुर मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में शंखनाद कार्यालय स्थित सभागार में परोपकारी समाजसेवी हेनरी फिप्स जूनियर की 184 वीं जयंती समारोह मनाई गई। समारोह की अध्यक्षता साहित्यिक मंडली शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने तथा संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने हेनरी फिप्स जूनियर के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की। 
मौके पर कार्यक्रम के संयोजक शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने परोपकारी समाजसेवी हेनरी फिप्स जूनियर के जीवन और भारतीय कृषि व्यवस्था पर चर्चा की। उन्होंने कहा- डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पहले, एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट नाम था जो भारत के पहले कृषि अनुसंधान संस्थान के रूप में स्थापित किया गया था।
हेनरी फिप्स जूनियर एक अमेरिकी उद्यमी थे। बिहार में पूसा भारतीय कृषि शिक्षा और अनुसंधान का नाम श्रद्धा के साथ लिया जाता है। वर्ष 1905 में समस्तीपुर जिले में पहली बार कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान की शुरूआत की गई थी। इसके निर्माण के लिए हेनरी फिप्स ने अपना तीस हजार ब्रिटिश पाउंड दान में दिया था, जिससे यहां एक भव्य एवं विशाल भवन बनाया गया था। हेनरी फिप्स के यहां आने से पहले पूसा का प्राचीन नाम हरपुर पूषा था।  पूर्व में यहां मवेशियों के लिए एक चारागाह था। पूसा आज भी जनकल्याणकारी कार्य कर रहा है। कृषि के क्षेत्र में इस  ऐतिहासिक अनुसंधान केंद्र को 15 जनवरी 1934 के भूकंप के बाद दिल्ली में स्थानांतरित किया गया तो उसका नाम भी पूसा ही रखा गया। आज भी नई दिल्ली स्थित पूसा में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अवस्थित है। आज भी भारतीय किसान अमेरिकी उद्यमी हेनरी फिप्स जूनियर को श्रद्धा से याद करते हैं।  
 
 मौके पर अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि हेनरी फिप्स जूनियर को आज याद करना, वर्तमान मानव समाज को एक संदेश देना है। उन्नीसवीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी  के अर्द्ध  काल में जो कारपोरेट थे,उनकी सोच और आज के कारपोरेट लोगों की सोच में काफी फर्क देखा जाता है। फिप्स ने जो परोपकारी कार्य किया था, वैसा आज का कारपोरेट नहीं कर रहा है। आज का कारपोरेट समाज सिर्फ़ शोषणपरक व्यवस्था स्थापित करना चाहता है। जबकि फिप्स जैसा अमेरिकी कारपोरेट ने मानव हित के लिए काम किया। फिप्स के सौजन्य से पूसा कृषि अनुसंधान संस्थान की स्थापना 1905 में पूसा, बिहार में एक अमेरिकी परोपकारी व्यवसायी "हेनरी फिप्स जूनियर" की वित्तीय सहायता से की गई थी। हेनरी फिप्स, लेडी कर्जन की पारिवारिक मित्र थे, जो एक अमेरिकी करोड़पति की बेटी और भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन की पत्नी थीं।  फिप्स अपनी भारत यात्रा के दौरान कर्ज़न के अतिथि के रूप में रहे और £30,000 का दान छोड़ गए, जिसका उपयोग संस्थान की स्थापना के लिए किया गया था।  बताया जाता है कि 1903 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन भारत में कृषि अनुसंधान संस्थान बनाने की योजना बनाई। लेकिन पैसे का अभाव था। इसी बीच हेनरी फिप्स जूनियर भारत दौरे पर आए। वे एक महान परोपकारी व्यक्ति थे। उनके द्वारा अमेरिका में कई मेडिकल कॉलेज और अस्पताल बनवाया गया था। उन्होंने भारत और यहाँ के किसानों की खातिर एक विश्वस्तरीय कृषि अनुसंधान केंद्र की स्थापना के लिए तीस हजार डॉलर दान दिया। उनके इस दान राशि से वहां एक अनुसंधान प्रयोगशाला बना,जिसका नाम फिप्स लैबोरेट्री रखा गया। समस्तीपुर के लोग उसे नौलखा लैबोरेट्री कहा करते थे। सम्भवतः उसे बनाने में नौ लाख रुपये खर्च हुए थे। लॉर्ड कर्जन ने फिप्स के उदारता और मित्रता का सम्मान करते हुए, उस अनुसंधान संस्थान का नामकरण "फिप्स यूनिवर्सिटी ऑफ साईंस ऑफ एग्रीकल्चर (PUSA)" रखा। कुछ लोग इसे फिप्स ऑफ यूएसए अर्थात अमेरिका भी कहते हैं। जबकि लॉर्ड कर्जन फिप्स के अभूतपूर्व योगदान को यादगार बनाने के लिए पूसा (PUSA) नाम रखा था। बाद में उस स्थान का नाम पूसा हो गया। जबकि जहाँ वह संस्थान बना है उस गांव का नाम हरपुर है।  कर्जन ने 1903 में  इस लैबोरेट्री का निर्माण शुरू कराया तथा 1अप्रैल 1905 को कृषि अनुसंधान संस्थान और कॉलेज की  आधारभूत संरचना कार्य करने लगी। यह आनुसंधान केंद्र ना केवल भारत का बल्कि एशिया का प्रथम कृषि अनुसंधान विश्वविद्यालय था।  जो एक लम्बे समय तक दुनिया में अपनी सर्वोच्च स्थान कायम रखा।यह संस्थान को मूल रूप से कृषि अनुसंधान संस्थान (एआरआई) कहा जाता था। लॉर्ड कर्जन 1906 में भारत से वापिस इंग्लैंड चले गए। तब कुछ लोगों ने ईर्ष्यावश इसका नाम बदल दिया। फिप्स के नाम को हटाकर, 1911 में इसका नाम बदलकर इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च और 1919 में इंपीरियल एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट कर दिया गया।  इसे उत्तरी बिहार के पूसा में स्थापित करने का विकल्प नील की खेतों और विशेष प्रकार के वनों की निकटता थी, जिन्हें 1899 में एनिलिन के जर्मन संश्लेषण के बाद पुनरुद्धार की आवश्यकता थी। संस्थान में प्रतिनियुक्त होने वाले पहले वैज्ञानिकों में से एक अंग्रेजी रसायनज्ञ जॉन वाल्टर लेदर थे।  जिन्होंने 1892 से भारत में कृषि विभाग के साथ काम किया था।  वह 1906 में संस्थान में चले गये।
मौके पर जल एवं कृषि वैज्ञानिक डॉ. आनंद वर्द्धन ने कहा कि प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद कृषि विकास के लिए चिंतित रहते हुए पूसा जैसे अनेकों कृषि विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय की स्थापना करवाये लेकिन दुःख की बात है कि दुर्व्यस्था के चलते देश को लाभ नहीं मिल सका और स्थिति यहां तक है कि किसान अपना खेत का जमाबन्दी नई सर्वेक्षण में कराने हेतु दर-दर भटक रहे और अमीन बिना लिए दिए खाता खसरा चढाता नहीं जो सबके लिए समस्या है।
इस दौरान समारोह में हिंदी साहित्य के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर शकील अहमद अंसारी, सक्रिय किसान राम रत्न कुमार सिंह, शायर समर वारिस, शोधार्थी( रिसर्च स्कॉलर) आकास कुमार, समाजसेवी धीरज कुमार सहित दर्जनों लोग मौजूद थे।

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