धन्वंतरि को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है..!!
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
आयुर्वेद दिवस प्रत्येक वर्ष धन्वंतरी जयंती या धनतेरस के दिन मनाया जाता है। आयुर्वेद दिवस की शुरुआत वर्ष 2016 में हुई थी। इस वर्ष भारत में सातवां आयुर्वेद दिवस मनाया जा रहा है। इस दिवस को मनाने का एक मात्र उद्देश्य आयुर्वेद को बढ़ावा देने के साथ ही इससे जुड़े लोगों और व्यापारियों में इस नए अवसरों के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना है।
प्रतिवर्ष दीवाली से पहले धनतेरस त्योहार मनाया जाता है, जो सनातनी पंचांग के अनुसार प्रायः दीवाली से दो दिन पहले कार्तिक मास की त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। धनत्रयोदशी से शुरू होकर यम द्वितीया तक दीवाली के पंच पर्व है। पांच दिवसीय दीवाली महोत्सव की शुरुआत प्रतिवर्ष स्वास्थ्य चेतना जागृति के पर्व धनतेरस से ही होती है। इन पांच दिनों को शास्त्रों में 'यम पंचक' कहा गया है और इन दिनों में यमराज, वैद्यराज धन्वंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। धन्वंतरि जयंती आरोग्य के देवता धन्वंतरि का अवतरण दिवस है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय इसी दिन धन्वंतरि आयुर्वेद और अमृत लेकर प्रकट हुए थे। धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था और चूंकि भगवान धन्वंतरि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसीलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज के पूजन का भी विधान है और उनके लिए भी एक दीपक जलाया जाता है, जो 'यम दीपक' कहलाता है।
भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस को आयुष मंत्रालय द्वारा धन्वंतरि जयंती यानी धनतेरस के दिन मनाया जाता है। आयुर्वेद को भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में अब बहुत महत्व दिया जाने लगा है। क्योंकि इसके साइड इफेक्ट के चांसेज बहुत ही कम होते हैं। साथ ही इससे शरीर में होने वाला फायदे लंबे समय तक भी बने रहते हैं। जब इंसान को दवाओं की समझ नहीं थी तब रोगों का उपचार आयुर्वेद के माध्यम से ही किया जाता था और इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है इसलिए इसकी काफी महत्वता है।
धन्वंतरि को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे प्रभाव-गुण को प्रकट किया। धन्वंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब केवल धन्वंतरि संहिता ही पाई जाती है, जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था। बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। इतिहासकारों का कहना हैं कि धन्वंतरि लगभग 7 हजार ईसापूर्व हुए थे। वे काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए। दिवोदास के काल में ही दशराज्ञ का युद्ध हुआ था। आयुर्वेद के जनक वैद्य धन्वंतरि को आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने 'शल्य चिकित्सा' का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे। सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन (शल्य चिकित्सक) थे। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का स्वर्ण कलश जुड़ा है। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था।
भारतीय पौराणिक दृष्टि से धनतेरस को स्वास्थ्य के देवता का दिवस माना जाता है।आदि वैद्य धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य हैं। आयुर्वेद के जनक वैद्य धन्वंतरि आयुर्वेद जगत के प्रणेता तथा वैद्यक शास्त्र के देवता माने जाते हैं। आदिकाल में आयुर्वेद की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई ऐसा माना जाता है। आदि काल में रामायण-महाभारत और भी कई दूसरे महत्वपूर्ण पुराणों की रचना हुई है, जिसमें सभी ग्रंथों ने आयुर्वेदावतरण के प्रसंग में धन्वंतरि का उल्लेख किया है।
वर्तमान समय में केंद्र व राज्य सरकार आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को बढावा देने का भरसक प्रयास कर रही है। आयुर्वेद पद्घति स्वच्छ स्वस्थ रहने के लिए बेहद कारगर है।आयुर्वेदिक चिकित्सा स्वस्थ रहना सिखाती है और जो स्वस्थ रहेगा तो वह बीमार ही नहीं होगा। आयुर्वेदिक पद्धति से सभी रोगों का निदान संभव है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में ऋतुचर्या, आहार विहार, अम्यंग मर्दन, प्राणायाम आदि की जानकारी दी जाती है।
वर्तमान समय आयुर्वेद में काफी संभावनाएं हैं। कोविड के दौर में निश्चित रूप से लोगों में आयुर्वेद के प्रति विश्वास बढ़ा है। भले ही डॉक्टर से परामर्श न लिया हो, लेकिन इम्युनिटी बूस्टर के रूप में आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल किया और रिजल्ट भी मिले हैं। वर्तमान में आयुर्वेद पर जनमानस का विश्वास बढ़ा ही नहीं, बल्कि कोविड काल में आयुर्वेदिक औषधियों ने बेहतरीन कार्य भी किया। महासुदर्शन वटी व चूर्ण के बुखार उतारने में बेहतरीन परिणाम मिले। गिलोय का इम्यूनिटी बढ़ाने में महत्व साबित हुआ। भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी आयुर्वेद के जनक धन्वंतरी को लोग पूजते हैं।
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