लोक आस्था के महापर्व छठ पर आज व्रतियों ने उगते सूर्य को दिया अर्घ्य, चार दिवसीय पूजा हुई संपन्न..!!
बिहारशरीफ, 20 नवम्बर 2023 : लोक गीतों और उगते हुए सूर्य की रौशनी के बीच सोमवार की सुबह उदीयमान भगवान भाष्कर भगवान सूर्य को दूसरा अर्घ्य देने के साथ आस्था और विश्वास का महापर्व छठ वर्त संपन्न हो गया। महापर्व छठ मुख्य रूप से सूर्य के प्रत्यक्ष उपासना का पर्व है।
शंखनाद साहित्यिक मंडली के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, कोषाध्यक्ष सरदार वीर सिंह एवं विजय कुमार पासवान ने अपने सदस्यों के साथ भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया तथा जिले एवं राज्यवासियों की सुख, शांति एवं समृद्धि के लिये ईश्वर से प्रार्थना की। छठ पूजा बिहार का सबसे बड़ा पर्व है जो दिवाली के छह दिन बाद मनाया जाता है।
जिले के चार दिवसीय पर्व छठ पूजा का आज सामापन हो गया। आज पंचाने नदी के तट पर स्थित सूर्यमंदिर सोहसराय और मोरातालाब के घाटों पर छठ की अद्भुत छठा बिखरी हुई नजर आई। लोकआस्था के इस महापर्व पर आस्था का जनसैलाब उमड़ा नजर आया। व्रतियों ने उदयगामी (उगते हुए) सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर अर्घ्य दिया।
छठ घाटों पर सुबह से ही लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरु हो गया था। जैसे ही भगवान भास्कर ने दर्शन दिए व्रतियों ने अर्घ्य के साथ भगवान से सुख शांति और समृद्धि का आशीर्वाद लिया। जिले में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक छठ का अद्भुत रंग नजर आया। जिले में गांव से लेकर शहर तक के नदियों, तालाबो, आहर, पोखर और पइन के किनारे बने छठ घाटों पर छठ पर्व को लेकर उमड़ने वाली भारी भीड़ देखी गई।
शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ था छठ पर्व
छठ की शुरुआत शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ हुई थी। शनिवार को खरना हुआ। पर्व के तीसरे दिन रविवार व्रतियों ने डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया था और चौथे दिन यानी सोमवार उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया गया, जिसके बाद प्रसाद वितरण भी हुआ। इन सबके बाद ही व्रती महिलाएं व्रत का पारण करती हैं।
हर धर्म में भगवान सूर्य का है अलग-अलग महत्व
हर धर्म में भगवान सूर्य को पूजा जाता है। भले ही लोगों का भगवान सूर्य को मानने का तरीका अलग अलग हो लेकिन हर धर्म में भगवान भास्कर का जिक्र है। बौद्ध धर्म में सूर्य को प्राकृतिक शक्ति माना जाता है। बौद्ध धर्म में बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक हैं सूर्य। हालांकि, बौद्ध धर्म में सूर्य की पूजा करने का कोई विधि-विधान नहीं है। लेकिन, हम मानते हैं कि सूर्य अपने प्रकाश से मानव जीवन में नयी शक्ति प्रदान करता है। सूर्य को बौद्ध कलाकृति में एक शाछात जीवंत देवता के रूप में माना जाता है। सम्राट अशोक द्वारा बनवायी गयी प्राचीन कलाकृतियां इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। बोधगया के महाबोधि मंदिर में भी सूर्य की प्रतिमा है, जिसमें इन्हें चार घोड़ों के रथ पर उषा और प्रत्यूषा के साथ सवार दिखाया गया है। इस तरह की कलाकृति बताती है कि बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में सूर्य एक पूर्व भारतीय परंपरा से बौद्ध धर्म में अपनायी गयी अवधारणा हैं।
जैन धर्म में सूर्य का प्रमुख स्थान है। आज संसार में आपको जीतने भी सूर्य के महत्व बताये जा रहे हैं, जैन धर्म में उससे भी बढ़ कर है। जो महत्व गंगा नदी के नीचे बीचोंबीच विराजमान सबसे जिनवर जिनेंद्र की प्रतिमा का है, जो अतिशय क्षेत्र में विराजमान जिनालय व चैत्यालय का है, वहीं महत्व सूर्य का है। जैनागम के अनुसार आदिपुराण में सूर्य का वर्णन मिलता है। जैन धर्म में सूर्य की पूजा की मान्यता है, बल्कि सूर्य के अंदर चैताल्य है, जिनालय को पूजते हैं। जैन धर्म के कला-साहित्य में सूर्य को एक देवता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सूर्यदेव के पास एक चक्र दर्शाया जाता है, जिसे धर्मचक्र माना जाता है। जैन धर्मावलंबी सूर्य चक्र के सम्मुख खड़ा होकर ध्यान लगाते हैं।
सिख धर्म में गुरु नानक देव जी ने हरिद्वार में सूर्य को जल अर्पित किया था। अब सारी दुनिया में छठ पर्व मनाया जाता है। महापर्व छठ ईश्वर की उपासना के साथ रिश्तों को जोड़ने व भाईचारा बढ़ाने का पर्व है। गुरमत में छठ पर्व से जुड़ने का उल्लेख तो नहीं है, लेकिन परमपिता परमात्मा की उपासना का संदेश गुरु महाराज ने दिया है। गुरु महाराज ने गंगा स्नान के महत्व को भी रेखांकित करते हुए गुरु गोविंद परमात्मा का नाम ही गंगाजल है। गुरुनानक देव जी महाराज जब हरिद्वार में उदासी यात्रा के दौरान पहुंचे थे, तब गंगा स्नान के दौरान पश्चिम दिशा में सूर्य देव को जल अर्पित किया था। छठ में भी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ अर्पित करने की परंपरा है। छठ ऐसा पर्व है जो समाज के हर कौम को एक साथ जोड़ने का कार्य करती है।
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