प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सूत्रधार थे शहीद मातादीन भंगी
बिहारशरीफ, 30 नवम्बर 2023 : 29 नवम्बर दिन बुधवार की देरशाम स्थानीय बिहारशरीफ के साहित्यिक भूमि बबुरबन्ना मोहल्ले में शंखनाद साहित्यिक मंडली के तत्वावधान में वीर स्वतंत्रता सेनानी महान क्रांतिकारी मातादीन भंगी की 198वीं जयंती समारोह श्रद्धापूर्वक मनाया गया। समारोह की अध्यक्षता नालंदा महिला कॉलेज बिहारशरीफ के पूर्व प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार गुप्ता ने किया।
जयंती समारोह का विधिवत् उद्घाटन मुख्य अतिथि आधुनिक नालन्दा के प्रणेता, मगध के मालवीय एवं नालन्दा के कर्मयोगी टैगोर डॉ. गोपाल शरण सिंह, नालंदा महिला कॉलेज बिहारशरीफ के पूर्व प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार गुप्ता व शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने मातादीन भंगी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित एवं दीप प्रज्वलित कर शुभारम्भ किया।
समारोह में विषय प्रवेश कराते हुए शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि शहीद मातादीन के पिता का नाम जयनारायण भंगी था, जो बड़े देशभक्त थे। इस तरह उन्हें देशभक्ति विरासत में मिली थी। जब देश के आजादी आंदोलन की बात छिड़ती है, तो कमजोर वर्ग उसमें कहीं नहीं दिखते। जो लोग अंग्रेजों के साथ रहे, वो राय साहब, रायबहादुर की उपाधियों से सुसज्जित होते रहे, उन्हें देशभक्तों की श्रेणी में ला दिया गया। जबकि उनके ऊपर ना जाने कितने क्रांतिकारियों के खून का कर्ज चढ़ा है। महापुरुषों का जीवन हमें निरंतर अच्छा बनाकर श्रेष्ठता की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि महापुरुषों की जयंती मनाने का उद्देश्य यही है कि हम उनके बारे में जानें, उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयास करें जिससे निश्चित तौर पर समाज हमें भी याद रखेगा और यही महापुरुषों के लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
अध्यक्षता करते हुए पूर्व प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार गुप्ता ने अमर शहीद मातादीन भंगी की जीवनगाथा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का शोला मंगल पांडेय थे तो शोले में आग पैदा करने की प्रथम चिंगारी मातादीन भंगी ने ही दी थी। उन्होंने अंग्रेजों के रखे हथियारों, गोला-बारूद, रसद तथा ठिकानों का पता विद्रोही सिपाहियों को बता दिया और और 1857 की क्रांति में बड़े सहयोगी बन गए। आज हम कम से कम हम शहीद मातादीन जैसी शख्सियत को याद करके उन्हें श्रद्धांजली तो दे ही सकते हैं। उनकी जयंती मनाने का उद्देश्य उनकी वीरगाथा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की छोटी सी कोशिश है। मातादीन भंगी अपने मातृभूमि के लिए 8 अप्रैल 1857 को शहीद हो गए। पहली फांसी मातादीन भंगी को दी गई थी।
मौके पर मगध के मालवीय एवं नालन्दा के टैगोर डॉ. गोपाल शरण सिंह ने कहा कि शहीद मातादीन भंगी 1857 की क्रांति के जनक थे, जिनकी शहादत को इतिहास के पन्नों में कहीं दबा दिया गया। उन्होंने कहा कि उनकी जयंती मनाने का उद्देश्य उनकी वीरगाथा को नई पीढ़ी तक पहुंचाना है, ताकि आने वाली पीढि़यां ये जान सके कि हमारी आजादी के लिए बहुत से लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दी है।
समारोह में शिक्षाविद् राजहंस कुमार ने कहा कि मातादीन भंगी नहीं होते तो सन 1857 का महान गदर इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं होता और न ही मंगल पांडेय सिपाही विद्रोह के नायक बनते। इतिहासकारों ने मातादीन के साथ अन्याय किया। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सूत्रधार को इतिहासकारों ने भुला दिया। मातादीन के पूर्वज मेरठ के रहने वाले थे। मगर वे नौकरी के सिलसिले में अंग्रेजों की तत्कालीन राजधानी कोलकाता में बस गए थे। वहां मातादीन बैरकपुर कारतूस फैक्ट्री में एक कर्मी थे।
मौके पर नगर निगम के सफाई कर्मी दीपक मलिक ने कहा कि शंखनाद के लोग धन्यवाद के पात्र हैं। इतिहास के पन्नों से गायब हुए स्वतंत्रता सेनानियों को सामने ला रहे हैं जो सराहनीय है।
मौके पर शंखनाद के कोषाध्यक्ष सरदार वीर सिंह, समाजसेवी धीरज कुमार, अरुण बिहारी शरण, राम प्रसाद चौधरी, अरुण रविदास, भोसु रविदास, सन्नी कुमार मल्लिक, शुभम कुमार शर्मा, सुमित बिहारी, सुजल बिहारी सहित कई लोग मौजूद थे।
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