सेवानिवृत्त के उपरांत प्रोफेसर लक्ष्मीकांत सिंह का विदाई समारोह

बिहारशरीफ 31 दिसम्बर 2023 : अल्लामा इकबाल कॉलेज बिहारशरीफ के पालि भाषा एवं साहित्य के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की सेवानिवृत्ति के अवसर पर कॉलेज के कई विभाग के विद्यार्थियों एवं प्रोफेसरों ने विदाई समारोह आयोजित कर उन्हें विदाई दी एवं पालि भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।
विदाई समारोह को संबोधित करते हुए भूगोल के प्राध्यापक सह  प्रदेश संयोजक विराट हिंदुस्तान संगम (शिक्षा प्रकोष्ठ) बिहार के डॉ. पुरंजय कुमार ने कहा कि पालि भाषा एवं साहित्य विषय के विद्यार्थियों की सफलता के लिए कई डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह द्वारा कई ऐतिहासिक पुस्तकों का सृजन किया गया है, जो पालि भाषा के विकास के लिए साहित्यिक धरोहर है। इस कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने लगभग 39 वर्ष तक अध्यापन कार्य कर कॉलेज के गौरव को ऊंचाइयों पर ले जाने का काम किया है।
मौके पर विदाई समारोह को संबोधित करते हुए शंखनाद साहित्यिक मंडली के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि नालंदा के प्रकांड इतिहासज्ञ प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह के लेखन में सहजता और गंभीरता का अजीब संगम देखने को मिलता है, जो उनके साहित्यिक लेखन को दूसरों से अलग करता है। इन्होने  दर्जनों ऐतिहासिक पुस्तकों की रचना की है। उन्होंने कहा- साहित्य की इस भीड़ में हर शख्स अकेला है, लेकिन भीड़ के शोर में किसी एक की आवाज सुनना नामुमकिन है। बहुत समय तक साहित्यिक गलियारे में भटकने के बाद हमें ऐसा एक लेखक मिला जो भीड़ से अलग छुपे रहस्यमयी विरासतों को लेखनी से उजागर किया। लक्ष्मीकांत जी का नाम नालंदा जिला के साहित्यिक क्षेत्र में बहुत ऊंचे स्थान पर आता है। हालांकि इनका नाम रातों-रात इतना बड़ा नहीं हुआ, इसके पीछे उनके संघर्ष, अनुभव और ऐतिहासिक खोजों का खास योगदान है। डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह से हमने बहुत कुछ सीखा है, आगे भी जहां कहीं भी आवश्यकता होगी, उनका मार्गदर्शन और सहयोग हम लेते रहेंगें। सेवानिवृत्त हो जाने से अब लक्ष्मीकांत जी शंखनाद के साहित्यिक सेवा में निरंतर लगे रहेंगे। इतिहासज्ञ प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह जी ने कई ऐतिहासिक शोध ग्रंथ लिखें हैं।
विदाई समारोह को संबोधित करते हुए महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. विश्राम प्रसाद ने कहा कि प्रो. लक्ष्मीकान्त सिंह जी पालि भाषा एवं साहित्य के विद्वान के अतिरिक्त कई अन्य भाषाओं के भी सम्यक् जानकार हैं। इसके अलावे चिकित्सा संबंधी विभिन्न पद्धतियों में उनकी प्रगाढ़ता है। इसके सेवा निवृत्ति से में व्यक्तिगत रूप से आहत है क्योंकि कार्यावधि में विभिन्न गूढ़ विषयों पर विमर्श कर लाभान्वित होता रहा हूँ। परन्तु मुझे इस बात की खुशी भी है कि इस कॉलेज में ये अपना सकुशल कार्यकाल सामान्य प्रक्रिया सेवा निवृत्ति पूर्ण कर जीवन की सार्थकता को प्राप्त कर रहे हैं। यह सौभाग्य की बात है। 
विदाई समारोह में विचार व्यक्त करते हुए इतिहास के विभागाध्यक्ष डॉ. सच्चिदानन्द प्रसाद वर्मा ने कहा कि प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह कॉलेज से भले ही रिटायर हो रहे हैं लेकिन उन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में आगे भी अपने स्तर से समाज में अपना योगदान देते रहना चाहिए। 
विदाई समारोह को संबोधित करते हुए डॉ. विजय कुमार ने कहा कि डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह से हमेशा यही सीखने को मिला है कि हमें अपने भीतर के विद्यार्थी को कभी मरने नहीं देना चाहिए और जिंदगी में हर पल कुछ न कुछ नया सीखने का जूनून हमारे मन में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह अब भले ही कॉलेज से निवृत्त हो रहे हैं लेकिन वे सामाजिकता और सामाजिक-जीवन के अन्य क्षेत्रों में और अधिक प्रवृत्त होने के रास्ते पर जाएं ऐसी शुभकामना है।
विदाई समारोह को कॉलेज के डॉ. कमलेश कुमार, शंखनाद के कोषाध्यक्ष साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह, प्रो. राजेश कुमार, अखिलेश रमन, पंकज कुमार, अभय कुमार, सुशील कुमार, धीरज कुमार, अभियंता मिथिलेश कुमार चौहान  सहित कई शिक्षाविदों ने भी संबोधित किया।
कार्यक्रम का संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने किया
समारोह में सेवानिवृत्त प्रो. डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि पालि और हिंदी साहित्य से मेरा आत्मिक लगाव रहा है और मेरी आखरी सांस तक रहेगी। मैं कॉलेज की सेवा से सेवानिवृत हुआ हूँ साहित्य से नहीं। मैं साहित्य की सेवा निरंतर करता रहूंगा।
अंत में राजनीति शास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ. शशिभूषण सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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