विश्व में क्षमा और करुणा के सच्चे उदाहरण हैं ईसा मसीह ...!!
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
यीशू एक समाज सुधारक थे। उन्होंने दुनिया को प्रेम की एक नई दिशा दी, और अपने दुश्मनों को भी प्रेम की परिभाषा बतलाई। लोग उस समय (आज भी) इस शिक्षा से इतना वाकिफ नहीं थे क्योंकि यह शिक्षा न्याय की बातों से भी परे है। उन्होंने न केवल अपने शत्रुओं को क्षमा देने की अनोखी शिक्षा दी, बल्कि उसका उत्तम उदाहरण क्रूस पर अपनी ही मृत्यु के समय पेश किया। अपने हत्यारों को क्षमा करते हुए उन्होंने अपनी ही शिक्षा स्वयं के जीवन में सौ प्रतिशत अंगीकार कर ली। क्रूस से उनकी प्रार्थना- 'हे ईश्वर इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। सच बात तो यह है कि यही क्षमा का संदेश ईसाई धर्म का मूल सार है।' यीशू की इस क्षमा का संदेश पर खरे उतरे लोगों की संख्या भी कम नहीं है। इस कड़ी का सबसे ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल की वह 71 साल की नन जिसने अपने ऊपर जुल्म करने वाले उन दरिंदों को माफ कर दिया। यीशू की शिक्षा मानव जीवन के लिए सदा चुनौती बनी रहेगी। हमारे राष्ट्रपिता ने भी अहिंसा की अमूल्य सीख को यीशू की शिक्षा से प्रेरणा लेकर ही तो अपनाया था। शायद आज दुनिया को उनकी 'क्षमा' की उस अनोखी शिक्षा से प्रेरणा पाने की सख्त जरूरत है।
ईसा मसीह की करुणा को दर्शाता हुआ बाइबल में निहित यह संदेश गौर करने लायक है- बीमारों को चंगा करो, कुष्ठ-रोगियों के घावों को साफ करो, मुर्दों को उठाओ, विकारों को खत्म करो, खुले हाथ से तुम्हें मिला है, खुले हाथ से दान करो। मेरे विनम्र मत में ईसा मसीह की शख्सियत क्षमता की शब्दावली में करुणा का काव्य है। तात्पर्य यह है कि ईसा क्षमा और करुणा के पर्याय हैं। वह कांटों का ताज पहनकर सलीब ढोते हुए और फिर सलीब पर चढ़े हुए कीलों के नुकीलेपन से लहूलुहान होने के बावजूद कहते हैं, ‘हे ईश्वर, इन्हें क्षमा करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं! आखिर क्षमा क्या है? इस प्रश्न का काव्यात्मक भाषा में उत्तर यह है कि क्षमा, नैतिकता का नूर है। दिलेरी का दस्तूर है। पवित्रता का प्रयोजन है। सौहार्द का संयोजन है। नेकी का निवेश है। प्रेम का परिवेश है। सद्भाव का सेतु है। अभयदान का हेतु है। अविश्वास का अंत है। विश्वास का बसंत है। सद्भाव का सृजन है। बैर का विसर्जन है। अफसोस, आज लोग क्षमा मांगना और करना भूलने लगे हैं। क्षमा मांगने से दंभ छंटता है और क्षमा करने से क्रोध हटता है। गौरतलब है कि ईसा मसीह को रूहुल्लाह कहा जाता है। रूहुल्लाह दो शब्दों से मिलकर बना है- रूह और अल्लाह। रूह का आशय है आत्मा, और अल्लाह का तात्पर्य है खुदा यानी ईश्वर। हजरत ईसा अल्लाह के पैगंबर थे और उन्हें अल्लाह की तरफ से मुर्दों को जिंदा करने की चमत्कारिक शक्ति प्रदान की गई थी। उन्होंने अपने आप को स्वयंभू नहीं घोषित किया था। उन्होंने तो खुद को अल्लाह का बंदा कहा, जिसको मानव-जाति के लिए कल्याणकारी किताब इंजील, जिसे आजकल बाइबल (न्यूटेस्टामेंट) कहा जाता है, के साथ संदेशवाहक के तौर पर भेजा गया था।
ईसा चाहते, तो शक्तियों के प्रयोग द्वारा दुष्टों या दुष्ट शासकों से प्रतिशोध ले सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय दुष्टों द्वारा दिए गए मृत्युदंड, यानी सलीब पर चढ़ने की सजा को स्वीकार करते हुए करुणा से ओत-प्रोत अपने हृदय से दुष्टों को क्षमा कर दिया। इसका अभिप्राय यह कि बदला लेने की ताकत होने के बावजूद कोई क्षमा कर देता है, तो यही सच्ची क्षमा है। इस संदर्भ में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की काव्य-कृति कुरुक्षेत्र के तीसरे सर्ग की ये पक्तियां प्रासंगिक प्रतीत होती हैं- क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो, उसका क्या जो दंतहीन, विष-रहित, विनीत, सरल हो।
निस्संदेह, रूहानी ताकत से संपन्न और समर्थ होने के बावजूद ईसा मसीह द्वारा प्रतिशोध न लिया जाना और क्षमा कर देना, क्षमा के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है। क्या आज ईसा प्रासंगिक नहीं रह गए हैं? विडंबना है, ईसा की क्षमा और करुणा की शिक्षाओं को हमने अपने आचरण में स्वीकारने के बजाय नकारने का कार्य शुरू कर दिया है। इसी का प्रमाण है कि एक तरफ रूस-यूक्रेन का युद्ध है, तो दूसरी ओर, इजरायल और अरब देशों में हिंसक संघर्ष। ये तो कुछ मिसालें हैं। सही तो यह है कि दुनिया के सभी देशों में अहं और वहम ने दुश्मनी के दावानल सुलगा दिए हैं।
ईसा मसीह के मन में बीमार लोगों, कुष्ठ-रोगियों, अनाथों, निर्धनों आदि के लिए अगाध करुणा थी। दरअसल, ईसा मसीह का मन प्रेम के जल से भरे हुए करुणा के कलश के रूप में प्रतीत होता है। उन्होंने कुष्ठ-रोगियों की सेवा करके और बीमारों को चंगा करके अपने आचरण से करुणा की महिमा को रेखांकित किया। ईसा मसीह की करुणा को दर्शाता हुआ बाइबल में निहित यह संदेश गौर करने लायक है- बीमारों को चंगा करो, कुष्ठ-रोगियों के घावों को साफ करो, मुर्दों को उठाओ, विकारों को खत्म करो, खुले हाथ से तुम्हें मिला है, खुले हाथ से दान करो।
विश्व में वर्तमान में जब नफरत के नासूर फैल रहे हैं, द्वेष का दलदल बढ़ता ही जा रहा है, भ्रष्टाचार की भट्ठियां भभक रही हैं, कटुता की कालिख क्रूर अट्टाहास कर रही है, संदेह के सांप रिश्तों को डस रहे हैं, अपनत्व का अकाल पड़ रहा है, संवेदनाओं की सरिताएं सूख रही हैं, मोह का मगरमच्छ मानवीय मूल्यों को निगल रहा है, दोस्ती का दर्पण दरक रहा है, तब निस्संदेह ईसा मसीह की शिक्षाओं को आचरण में उतारने की जरूरत है, क्योंकि ईसा मसीह का अर्थ क्षमा युक्त व्यवहार, करुणा, प्रेम, सच्चाई व हर प्राणी से प्यार है।
समूचे विश्व में गुड फ्राईडे ईसा मसीह की क्रूस पर मृत्यु की यादगार में मनाया जाता है। प्रभु यीशू का जन्म बेथलेहम (अभी का इस्राएल ) में हुआ था। उनकी परवरिश और मृत्यु भी यहीं पर हुई थी।
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