महात्मा गांधी की 76 वीं पुण्यतिथि पर विशेष..!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव साहित्यिक मंडली शंखनाद

महात्मा गाँधी ने अपनी गंभीर परिस्थितियों में विश्वास, समानता और न्याय के प्रतीक थे और उन्होंने सिद्ध किया कि महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर स्वामी और गुरु नानक देव के सिद्धांत भारतीय संस्कृति और विरासत के मुख्य आधार थे और आज भी उनके सिद्धांत अहिंसा, भाईचारा, समानता, न्याय और सम्मान मानवता के लिए प्रासंगिक है। महात्मा गाँधी को पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किया था। 4 जून 1944 को सिंगापुर रेडियो के एक संदेश को प्रसारित करते हुए 'राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी' कहा गया।
अहिंसा की नीति के ज़रिए विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने के महात्मा गांधी के योगदान को सराहने के लिए इस दिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का फ़ैसला किया गया था। गांधीजी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति के प्रतीक माने जाते है। गांधीजी के जन्मदिन पर ही अहिंसा दिवस भी मनाया जाता है। सादा जीवन या सरलता, समर्पण के साथ जीवन कैसे जीना है ये हमें गांधीजी के जीवन से सीखना चाहिए।
गांधीजी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ। जिनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। गांधीजी के दादाजी उत्तमचंद गांधी गुजरात के महाराजा के यहां दीवान थे। मोहनदास करमचंद गांधीजी का विवाह मई 1983 में कस्तूरबा गांधी से हुआ। उनके दो बेटियां रानी और मनु, तथा चार पुत्र थे जिनका नाम हरिलाल गांधी, मणिलाल गांधी, रामदास गांधी और देवदास गांधी था।
महात्मा गाँधी अहिंसा की नीति के ज़रिए विश्व भर में शांति के संदेश को बढ़ावा देने के लिए ही इस दिन को 'अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस' के रूप में मनाने का फ़ैसला किया गया। इस सिलसिले में 'संयुक्त राष्ट्र महासभा' में भारत द्वारा रखे गए प्रस्ताव का भरपूर समर्थन किया गया था।
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जन्मदिवस को संयुक्त राष्ट्र ने हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा के कुल 191 सदस्य देशों में से 140 से भी ज़्यादा देशों ने इस प्रस्ताव को सहमती से पारित किया। इनमें मुख्य रूप से अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान जैसे भारत के पड़ोसी देशों के अलावा अफ्रीका और अमेरिका महाद्वीप के कई देश भी शामिल थे।

अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस क्यों मनाया जाता है : 

अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस इसलिए मनाया जाता है कि इसी दिन भारत के राष्ट्रपिता, अहिंसा के पुजारी, पूरे विश्व को सत्य और अहिंसा की नीति से प्रभावित करने वाले महात्मा गांधी जी का जन्मदिन है। महात्मा गांधी जी के स्मृति में विश्व अहिंसा दिवस मनाया जात है। अहिंसा और सद्भाव को सारे विश्व में फैलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने गांधीजी के जन्मदिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया।

विश्व अहिंसा दिवस का इतिहास : 

15 जून, 2007 के संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा प्रस्ताव के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाए जाने का प्रस्ताव रखा। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा प्रस्ताव से पूरे विश्व में विश्व अहिंसा दिवस मनाया जाने लगा। महासभा द्वारा 15 जून, 2007 प्रताव में कहा गया कि- “शिक्षा के माध्यम से जनता के बीच अहिंसा का व्यापक प्रसार किया जाएगा।” संकल्प में यह भी कहा गया कि “अहिंसा के सिद्धांत की सार्वभौमिक प्रासंगिकता एवं शांति, सहिष्णुता तथा संस्कृति को अहिंसा द्वारा सुरक्षित रखा जाए।” इस दिवस का उद्देश्य यह है कि सारी दुनिया शांति और अहिंसा का आचरण करें।

अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस का महत्त्व :

विश्वभर में अहिंसा का संदेश देने के लिए विश्व अहिंसा दिवस मनाया जात जाता है। इस दिन राष्ट्रपिता, अहिंसा के पुजारी, पूरे विश्व को सत्य और अहिंसा की नीति से प्रभावित करने वाले महात्मा गांधी जी का जन्मदिन है। इसलिए हर साल 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस मनाने का फैसला संयुक्त राष्ट्र संघ ने लिया।

महात्मा गांधीजी की विचारधारा : 

गांधीजी व्यावहारिक आदर्शवाद को जोर देने वाले हैं। गांधीजी विचारधारा को अनेक स्त्रोतों से संग्रह किया था जैसे - भगवद्गीता, बाइबिल, जैन धर्म, गोखले और टॉलस्टॉय, जॉन रस्किन से विकसित विचारधार है। गांधीजी हमेशा अहिंसा मार्ग पर चलते थे। अहिंसा परमो धर्म की सीख हमें महात्मा गांधी जी से ही मिलती है। आजीवन सत्य और अहिंसा का पालन करने वाले व्यक्ति के रूप में बापू जी जाने जाते हैं। देश को आजाद कराने में गांधीजी का योगदान अविस्मरणीय है।  

महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये राष्ट्रवादी आंदोलन :

अहिंसा के चलते बापू ने अनेक आंदोलन कर अंग्रेजी सरकार से शांति और अहिंसा से स्वतंत्रता प्राप्त किया। गांधीजी भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया है। गांधीजी को चर्चिल ने ‘अधनंगा फकीर’ कह कर संबोधित किया उस फ़क़ीर का भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा। सन् 1920 तक भारतीय नेता संवैधानिक तरीकों से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील थे। महात्मा गांधी ने अपने जीवन काल में कई राष्ट्रवादी आंदोलन कर चुके हैं जिसमें प्रमुख 6 प्रमुख आंदोलन है 1. बिहार में चंपारण आंदोलन (1917), 2. खेड़ा आंदोलन (1918), 3. खिलाफत आंदोलन (1919), 4. असहयोग आंदोलन (1920), 5. भारत छोड़ो आंदोलन (1942), 6. सविनय अवज्ञा आंदोलन : दांडी मार्च और गांधी - इरविन समझौता इस तरह गांधीजी के नेतृत्व में ये प्रमुख आंदोलन हो चुके है। महात्मा गांधी का पहला आंदोलन चंपारण आंदोलन था और ये भारत का पहला नागरिक अवज्ञा आंदोलन था। महात्मा गांधी की अगुवाई में बिहार के चंपारण जिले में 1917 को शुरू हुआ था। गांधी को राष्ट्रपिता कहते हैं क्योंकि उन्होंने ही अंग्रजों से लगातार आजादी की लड़ाई लड़ी और उनके नेतृत्व में ही हमें आजादी मिली थी। महिलाओं के अधिकारों का विस्तार करने, धार्मिक और जातीय सद्भाव बनाने और जाति व्यवस्था के अन्याय को खत्म करने, बुनियादी मानवाधिकारों और गरीबी को कम करने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाए इस तरह गांधी ने दुनिया को भी बदला। रवींद्रनाथ टैगोर ने 6 मार्च 1915 को गांधी के लिए महात्मा उपाधि का इस्तेमाल किया था ऐसा कुछ लेखकों का कहना है।

महात्मा गांधी का अहिंसा दर्शन :

गांधी ने सर्वप्रथम सत्य, अहिंसा और शत्रु के प्रति प्रेम के आध्यात्मिक और नैतिक सिद्धांतों का राजनीति के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रयोग किया और सफलता प्राप्त की। उन्होंने जहाँ एक ओर भारत को अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्ति दिलाई, वहीं दूसरी ओर संसार को अहिंसा का ऐसा मार्ग दिखाया, जिस पर यकीन करना कठिन तो नहीं पर अविश्वसनीय ज़रूर था। गांधी ने राजनीति, समाज, अर्थ एवं धर्म के क्षेत्र में नए आदर्श स्थापित किये व उसी के अनुरूप लक्ष्य प्राप्ति के लिये स्वयं को समर्पित ही नहीं किया, बल्कि देश की जनता को भी प्रेरित किया और आशानुरूप परिणाम भी प्राप्त किये। उनकी जीवन-दृष्टि भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। आज गांधी हमारे बीच नहीं हैं किंतु एक प्रेरणा और प्रकाश के रूप में लगभग उन सभी मुद्दों पर उनके विचार और सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं, जिनका सामना किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र को करना पड़ता है। इस 21वीं सदी में गांधी की सार्थकता प्रत्येक क्षेत्र में है। गाँधीजी का दर्शन और उनकी विचारधारा सत्य और अहिंसा भगवद गीता और हिन्दू मान्याताओं, जैन धर्म, ईसाई धर्म की शांतिवादी शिक्षाओं से प्रभावित हैं।

महात्मा गांधी का स्वच्छता संदेश :

महात्मा गांधी ने कहा था कि राजनीतिक स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी स्वच्छता है। यदि कोई व्यक्ति स्वच्छ नहीं है तो वह स्वस्थ नहीं रह सकता है। बेहतर साफ-सफाई से ही भारत के गांवों को आदर्श बनाया जा सकता है। शौचालय को अपने ड्रॉइंग रूम की तरह साफ रखना जरूरी है।
स्वच्छता एवं अस्पृश्यता गांधी दर्शन के केंद्र में हैं और इन पर उनके विचार स्पष्ट एवं पूर्ण रूप से केंद्रित थे। जनसरोकारों से जुड़े अपने लगभग हर संबोधन में गांधी स्वच्छता के मामले को उठाते थे। उनका मानना था कि नगरपालिका का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य सफाई रखना है। जो कोई भी उनके आश्रम में रहने आता था, तो गांधी जी की पहली शर्त यह होती थी कि उसे आश्रम की सफाई का काम करना होगा, जिसमें शौच का वैज्ञानिक ढंग से निस्तारण करना भी शामिल था। गांधी का मानना था कि स्वच्छता ईश्वर भक्ति के बराबर है, इसलिये वे लोगों से स्वच्छता बनाए रखने को कहते थे। वे चाहते थे कि भारत के सभी नागरिक एक साथ मिलकर देश को स्वच्छ बनाने के लिये कार्य करें।

महात्मा गांधी का देश में अनिवार्य शिक्षा :

गांधी ज्ञान आधारित शिक्षा के स्थान पर आचरण आधारित शिक्षा के समर्थक थे। उनका कहना था कि शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिये जो व्यक्ति को अच्छे-बुरे का ज्ञान प्रदान कर उसे नैतिक रूप से सबल बनाए। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिये उन्होंने वर्धा योजना में प्रथम सात वर्षों की शिक्षा को निःशुल्क एवं अनिवार्य करने की बात कही थी। गांधी का यह भी मानना था कि व्यक्ति अपनी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा को अधिक रुचि तथा सहजता के साथ ग्रहण कर सकता है। अखिल भारतीय स्तर पर भाषायी एकीकरण के लिये वे कक्षा सात तक हिंदी भाषा में ही शिक्षा प्रदान करने के पक्षधर थे।
 
गांधी 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े राजनीतिक और आध्यात्मिक पुरुष :

महात्मा गांधी 20वीं शताब्दी के दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक और आध्यात्मिक नेताओं में से एक माने जाते हैं। वे पूरी दुनिया में शांति, प्रेम, अहिंसा, सत्य, ईमानदारी, मौलिक शुद्धता और करुणा तथा इन उपकरणों के सफल प्रयोगकर्त्ता के रूप में याद किये जाते हैं, जिसके बल पर उन्होंने उपनिवेशवादी सरकार के खिलाफ पूरे देश को एकजुट कर आज़ादी की अलख जगाई। गांधी ने अपने जीवन के समस्त अनुभवों का प्रयोग भारत को आज़ाद कराने में किया। उनका कहना था कि भारत की हर चीज़ मुझे आकर्षित करती है। सर्वोच्च आकांक्षाएँ रखने वाले किसी व्यक्ति को अपने विकास के लिये जो कुछ चाहिये, वह सब उसे भारत में मिल सकता है।
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि गांधी ने लगभग 32 वर्षों तक आज़ादी की लड़ाई लड़ी, लेकिन आज़ाद भारत में वे केवल 168 दिन ही जीवित रह पाए। आज दुनिया के किसी भी देश में जब कोई शांति मार्च निकलता है या अत्याचार व हिंसा का विरोध किया जाता है या हिंसा का जवाब अहिंसा से दिया जाना हो, तो ऐसे सभी अवसरों पर पूरी दुनिया को गांधी याद आते हैं। अत: यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि गांधी के विचार, दर्शन तथा सिद्धांत कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं तथा आने वाले समय में भी रहेंगे। यह दिन इतिहास में सबसे दुखद दिनों में गिना जाता हैं। इस दिन यानी 30 जनवरी 1948 की शाम को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की जान ले ली। बापू को गुज़रे हुये 76 साल बीत चुके हैं और आज सत्याग्रह के 107 साल हो चुके हैं लेकिन गांधी की विचारधारा अब भी नई और पहले से ज्यादा लोकप्रिय होती चली जा रही है। दुनिया भर के लोग आज बापू को एक मिसाल मानते हैं और भारत को कई सदियों तक गुलाम बनाकर रखने वाला देश ब्रिटेन भी आज गाँधी जी से बेहद प्रभावित है।
इससे यह सिद्ध होता है कि गाँधी सिर्फ आजादी के पहले ही नहीं बल्कि आजादी के बाद भी उतने ही सामयिक हैं। सत्य, प्रेम, अहिंसा के दृढ़ सिद्धांत आज भी आतंकवाद से जूझ रही इस दुनिया को नया संदेश दे रहे हैं।

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