किसान नेता दीनबंधु छोटू राम चौधरी की 78 वीं पुण्यतिथि पर विशेष ...!
भारत एक ऐसा देश है जो युगों तक विकसित होता रहा है और जिसने एक सुदीर्घ सांस्कृतिक निरंतरता बनाए रखी। इसके इतिहास के हर युग ने आज तक अपनी विरासत छोड़ी है।
उन्नीसवीं सदी की दुनिया में नवजागरण से प्रभावित होकर बुद्धिजीवियों का एक वर्ग पनपने लगा था। यह वर्ग सामाजिक सुधारों के प्रति आस्थावान था। नवजागरण काल के दौरान एक और देशभक्ति और राष्ट्रीय भावना प्रबल हो रही थी तो दूसरी ओर देश के विभिन्न तबकों में सामाजिक सुधार की चेतना उत्पन्न हो रही थी। सामाजिक सुधारों की अपेक्षा से दलित-पिछड़े और गैर दलित वर्ग में जो चेतना निर्मित हुई थी उससे जातीय सभाएं और जातिगत आंदोलनों का विकास भी हुआ। अंग्रेजों के समय भारत में दलित और गैर-दलित जातियों के कई संगठन कार्य कर रहे थे। इन्हीं दिनों देश के कई प्रान्तों में सामाजिक मुक्ति आंदोलन की शुरूआत हुई थी। विशेषतः राष्ट्रीय आंदोलन किसानों के साथ-साथ दलित, शुद्र और अस्पृश्य समाजों की सामाजिक बंधनों से मुक्ति के लिए संघर्ष किया जा रहा था। भारत में कई सुधारक पिछड़े एवं दलितों के जीवन में सुधार और उनमें जागृति लाने के लिए सक्रीय हुए थे। पंजाब प्रांत में सामाजिक सुधार का कार्य करने वाले छोटूराम अग्रणी नेता व समाजसुधारक रहे हैं। वे जाति व्यवस्था के क्रूर शोषण से मुक्ति के लिए सकारात्मक कार्य किए पिछड़े, दलितों एवं किसी भी समाज के गरीबों पर हो रहे अन्याय-अत्याचारों का यथार्थ प्रस्तुत करके परिवर्तन के स्वर मुखर किए।
छोटूराम बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के रास्ते पर चलकर महापुरुष जन्म लेते हैं। उनका आविर्भाव ही देशहित में समाज के हितार्थ हुआ था। वह समाज की रूढ़िवादी परम्परा का अनुसरण कभी नहीं किया। अपितु समाज को बदलने के लिए संघर्ष किया।
भारत के इतिहास में ऐसे कई नायक व महानायक हुए हैं जिनका जिक्र इतिहास की पुस्तकों या समाज में गंभीरता से नहीं किया गया। दरअसल, इतिहास लिखना भी एक राजनीति है। कुछ लोगों का मानना है कि इतिहास यथार्थ की अभिव्यक्ति होती है, लेकिन एक इतिहासकार व साहित्यकार जिस यथार्थ को अपनी अभिव्यक्ति के लिए चुनता है उसके पीछे उसकी विचारधारा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारत में जाति एक बहुत बड़ी विचारधारा के रूप में भी काम करती रही है इसलिए हमारे यहां इतिहास लेखन भी जातिगत विचारधारा से प्रेरित रहा है। यही कारण है कि भारत के इतिहास की पुस्तकों में जाति के क्रम जो बहुजन या निम्न जाति के महापुरुष हैं उनके बारे में कम लिखा गया है या कुछ भी नहीं लिखा गया हैं।
अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “इतिहास क्या है” में प्रसिद्ध विद्वान ई. एच. कार ने इतिहास की निर्मिति पर विस्तार से बात की है। उन्होंने लिखा है कि इतिहास बनाये भी जाते हैं। कभी-कभी समाज का प्रभुत्वशाली तबका समाज में कुछ कहानियां फैलाता है फिर उन कहानियों को लिख देता है। धीरे-धीरे यह कहानी इतिहास में दर्ज हो जाती है और बाद के वर्षों में उसे सच्चा इतिहास मान लिया जाता है। इस तरह से कई बहुजन समाजसेवियों व महापुरुषों को इतिहास के पन्नों से मिटा दिया है। इनमें पंजाब के बाबू दीनबंधु छोटू राम जैसे लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
किसानों के मार्गदर्शक, पराक्रमी योद्धा सर दीनबंधु छोटू राम ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के एक प्रमुख राजनेता थे, जो कि स्वतंत्र भारत में किसानों के लिए समावेशी भागीदारी के एक वैचारिक और वे वास्तविक किसानों, भारत के वंचित और उत्पीड़ित समुदायों का चैंपियन और कर्मयोगी नेता थे, ब्रिटिश सरकार ने 1937 में महामना छोटू राम चौधरी को नाइट की उपाधि से सम्मानित किया और 1937 से उन्हें देश भर में सर दीनबंधु छोटू राम चौधरी के नाम से जाना जाता था। इस उपलब्धि के लिए, राजनीतिक मोर्चे पर वह नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी के सह-संस्थापक थे जिसने संयुक्त पंजाब प्रांत पर शासन किया था। हम इस महान आत्मा को उनकी 78 वीं पुण्यतिथि पर महान आत्मा माननीय स्वर्गीय दीनबंधु छोटू राम चौधरी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
छोटू राम चौधरी का जन्म, शिक्षा और पारिवारिक जीवन
मुसलमानों के रहबर-ए-आज़म और हिन्दुओं के दीनबंधु सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर 1881 में झज्जर के छोटे से गाँव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण किसान परिवार में हुआ (झज्जर तब रोहतक जिले का ही अंग था)। उस समय रोहतक पंजाब का भाग था। उनका असली नाम राम रिछपाल था। अपने भाइयों में से सबसे छोटे थे इसलिए सारे परिवार के लोग इन्हें छोटू कहकर पुकारते थे। स्कूल रजिस्टर में भी इनका नाम छोटू राम ही लिखा दिया गया और बाद में, ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादा जी रामरत्नज के पास कुछ बंजर जमीन थी, जिसपर उनके पिता, श्री सुखीराम किसानी करते पर कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे। करते भी क्या, उनके परिवार को किसानी के अलावा और किसी चीज़ का सहारा नहीं था। छोटू राम की प्रारम्भिक शिक्षा तो गाँव के पास के स्कूल से हो गयी। पर वे आगे भी पढ़ना चाहते थे। इसलिए उनके पिता उनकी आगे की पढ़ाई के लिए साहूकार से कर्जा मांगने गये। पर वहां साहूकार ने उनका बहुत अपमान किया। अपने पिता के इस अपमान ने बालक छोटू राम के कोमल मन में विद्रोह के बीज बो दिए थे। उनकी शादी 11 साल की उम्र में पियानो देवी से हुई थी। उन्होंने 1903 में दिल्ली के क्रिश्चियन मिशन स्कूल से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसी वर्ष उन्होंने सेंट स्टीफन कॉलेज में दाखिला लिया, 1905 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने अपने एक विषय के रूप में संस्कृत को चुना। साल 1911 में इन्होंने वकालत की डिग्री प्राप्त कर ली और 1912 से चौधरी लालचंद के साथ वकालत करने लगे। वकालत में भी उन्होंने नए आयाम जोड़े। उन्होंने झूठे मुकदमे न लेना, बेईमानी से दूर रहना, गरीबों को निःशुल्क कानूनी सलाह देना, मुव्वकिलों के साथ सद्व्यंवहार करना आदि सिद्धांतों को अपने वकालती जीवन का आदर्श बनाया। इन्हीं सिद्धान्तों का पालन करके केवल पेशे में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में चौधरी साहब बहुत ऊंचे उठ गये थे। सर छोटूराम देश में किसानों की दुर्दशा से भली-भांति परिचित थे। इसलिए उन्होंने साल 1915 में ‘जाट-गजट’ नामक अख़बार शुरू किया। इसके माध्यम से उन्होंने ग्रामीण जनजीवन का उत्थान और साहूकारों द्वारा गरीब किसानों के शोषण पर क्रांतिकारी लेख लिखे। उन्होंने राष्ट्र के स्वाधीनता संग्राम में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया। वे अंग्रेजी अफसरों के अत्याचारों के खिलाफ़ न तो बोलने से डरते थे और न ही लिखने से। पूरे देश में उनकी शख़्सियत के चर्चे होने लगे।
छोटू राम ने भाखड़ा बांध के निर्माण की कल्पना की थी
दीनबंधु सर छोटूराम चौधरी ने अपना सारा जीवन किसानों और गरीबों के हित में समर्पित किया। वे किसान व मजदूर की सबसे बड़ी जरूरत पानी को लेकर गंभीरता दिखाई और भाखड़ा बांध बनवाने में अहम योगदान देकर हर खेत को पानी पहुंचाया। यह हमारा दुर्भाग्य है कि जानकारी के अभाव के कारण, एक प्रतिशत से भी कम भारतीयों को ज्ञान है कि यह छोटू राम थे, जिन्होंने भाखड़ा बांध के निर्माण की कल्पना की थी। उसने पंजाब सरकार के साथ बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे,जिसका अधिकार सतलज नदी के पानी पर था। मरने से कुछ महीने पहले समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए थे।
छोटू राम ने साहूकारों द्वारा किसानों के शोषण पर अंकुश लगाया
छोटू राम के प्रयास से साहुकार पंजीकरण अधिनियम सितंबर 1938 में विधानसभा में पारित किया गया था। इसने साहूकारों द्वारा किसानों के शोषण पर अंकुश लगाया। नि:शुल्क किराया बंधक भूमि अधिनियम, ऋण माफी अधिनियम सभी राजस्व मंत्री के रूप में उनके सात वर्षों के दौरान पारित किए गए थे। 1937 में उन्हें नाइट की उपाधि दी गई। मुस्लिम जाटों ने उन्हें रहबर-ए-आज़म कहा और रहबर-ए-आज़म की उपाधि से सम्मानित किया जो गरीबों के रक्षक थे। आज हम शोषित, निराश, वंचित, हाशिए पर और किसान समुदाय के लिए नेतृत्व की ओर देख रहे हैं, जो हमें ब्रिटिश शासन के दौरान अपने समय में सर छोटूराम चौधरी के रूप में नेतृत्व कर सकते हैं और वह हमेशा किसानों के मुद्दों पर बिना किसी भेदभाव के किसानों के साथ मजबूती से खड़े रहे। जब हम सर छोटूराम चौधरी साहब का इतिहास पढ़ते हैं, तो वह हमें अपने ईमानदार नेतृत्व के लिए उनके प्रभावी प्रयासों, समर्पण और संवैधानिक लड़ाई और अधिकारों के लिए याद करते हैं।
देश में किसान नेता छोटूराम चौधरी जैसा नेतृत्वकर्ता की जरूरत है
छोटूराम चौधरी साहब एक योग्य शिक्षाविद्, संविधान विशेषज्ञ, रहबर-ए-आज़म, किसान मुद्दों के जानकार व्यक्तित्व और समानता, न्याय के लिए औचित्यपूर्ण नेतृत्व की क्षमता को समझने और संवैधानिक संरक्षण, भागीदारी और लोकतांत्रिक आंदोलनों के लिए जानें जाते थे। उनके नेतृत्व, उत्कृष्ट प्रदर्शन और उल्लेखनीय योगदान ने हमें हमेशा प्रेरित किया और आज भी प्रेरित करते हैं। रहबर-ए-आजम दीनबंधु सर छोटूराम ने मजदूर, किसान व कमेरे वर्ग को स्वाभिमान से जीना सिखाया। हर वर्ग को उचित मान-सम्मान मिले, बचपन से ही उनकी यह सोच थी। ऐसे महान सपूत छोटूराम थे, जिन्होंने गरीब, मजदूर व कमेरे वर्ग को साहूकारों की बेड़ियों से मुक्त करवाकर काले कानूनों को समाप्त करने का कार्य किया। वे ऐसे महापुरुष थे जो जानते थे कि उनका राजनीतिक और सामाजिक धर्म क्या है।
“किसान को लोग अन्नदाता तो कहते हैं, लेकिन यह कोई नहीं देखता कि वह अन्न खाता भी है या नहीं।जो कमाता है वही भूखा रहे यह दुनिया का सबसे बड़ा आश्च र्य है।” किसानों के रहबर, सर छोटू राम के इन चंद शब्दों ने इतिहास के पन्नों में किसानों को न केवल एक महत्वपूर्ण स्थान दिया बल्कि उनकी आवाज़ को बुलंदी भी दी। शायद उनकी इसी बुलंदी की वजह से आज भी सर छोटूराम को किसानों का मसीहा कहा जाता है। एक किसान का बेटा और देश के किसानों के हितों का रखवाला, जिसके लिए गरीब और जरुरतमन्द किसानों की भलाई हर एक राजनीति, धर्म और जात-पात से ऊपर थी; सर छोटू राम बस आम किसानों के थे।
सर छोटूराम की अंतिम यात्रा
साल 1945 में 9 जनवरी को सर छोटूराम ने अपनी आखिरी सांस ली। वे स्वयं तो चले गये पर उनके लेख आज भी देश की अमूल्य विरासत है। किसानों के इस नेता ने जो लिखा वह आज भी देश और समाज की व्यवस्था पर लागू होता है। उन्होंने अपने एक लेख में लिखा था, “मैं राजा-नवाबों और हिन्दुस्तान की सभी प्रकार की सरकारों को कहता हूँ, कि वो किसान को इस कद्र तंग न करें कि वह उठ खड़ा हो…. दूसरे लोग जब सरकार से नाराज़ होते हैं तो कानून तोड़ते हैं, पर किसान जब नाराज़ होगा तो कानून ही नहीं तोड़ेगा, सरकार की पीठ भी तोड़ेगा।”
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