शंखनाद मंडली ने दशरथ मांझी की 90 वीं जयंती मनाई..!!

बिहारशरीफ-बबुरबन्ना : 14 जनवरी 2024 दिन रविवार को बिहारशरीफ के साहित्यिक भूमि बबुरबन्ना मोहल्ले में शंखनाद साहित्यिक मंडली के तत्वावधान में सविता बिहारी निवास स्थित सभागार में प्रेम दीवाने, प्रेम उपासक, महान कर्मयोगी, पर्वत पुरुष दशरथ मांझी की 90 वीं जयंती समारोह मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासज्ञ डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने तथा संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने किया।
जयंती समारोह का उद्घाटन नालंदा महिला कॉलेज बिहारशरीफ के पूर्व प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार गुप्ता व शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने पर्वत पुरुष दशरथ मांझी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित एवं दीप प्रज्वलित कर शुभारम्भ किया।
आयोजित समारोह में मौके पर शंखनाद के सदस्य समाजसेविका-साहित्यसेवी सविता बिहारी ने प्रेम पुजारी पद्मश्री दशरथ मांझी के स्मृति में जरूरतमंद लोगों को गर्म कंबल देकर सम्मानित किया।

मंच संचालन करते हुए शंखनाद के सचिव शिक्षाविद् राकेश बिहारी शर्मा ने कर्मयोगी पर्वत पुरुष पद्मश्री दशरथ मांझी के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि यह धरती वीरों से भरी पड़ी है। जिन्होंने अपनी इच्छाशक्ति, संकल्प तथा जिद से असंभव कार्य को संभव कर दिखाया। गरीबों का शाहजहां पद्मश्री दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1934 को गहलौर में हुआ था। उनका परिवार बहुत गरीब था। प्यार का परिश्रम ने पहाड़ को गिरा दिया, व्याख्या करना असंभव है। एक मामूली मजदूर दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी के लिए पूरी जिंदगी सिर्फ सपनों में ही गुजार दी और अकेले ही पहाड़ का सीना चीर कर असंभव को संभव में बदल डाला। उन्होंने कहा- पद्मश्री दशरथ मांझी जी दुनिया से चले गए लेकिन यादों से नहीं गये। गरीबों का शाहजहां ने 2007 में जब 73 बरस की उम्र में वो जब दुनिया छोड़ गए, तो पीछे रह गई पहाड़ पर लिखी उनकी वो कहानी, जो आने वाली कई पीढ़ियों को सबक सिखाती रहेगी। मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने प्यार की खातिर ताजमहल बना डाला था। इसी तरह दशरथ मांझी जी ने अपनी पत्नी फगुनी की खातिर पहाड़ का सीना चीर डाला और जीवन के 22 साल पहाड़ को काटकर निशानी के तौर पर बिहार का असली ताज महल दशरथ मांझी पथ बनाने में लगा दी।
अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष ख्यातिप्राप्त इतिहासज्ञ डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि पत्नी के चले जाने के गम से टूटे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और पहाड़ के सीने पर वार करने का फैसला किया। लेकिन यह काम आसान नहीं था। शुरुआत में उन्हें पागल तक कहा गया। मामूली से मजदूर दशरथ मांझी ने अपने हाथों से उस पहाड़ का सीना चीर कर रख दिया जो उसकी मोहब्बत की राह में आ खड़ा हुआ था और जिसकी वजह से उनकी प्रियतमा की मौत हो गई थी। उसी दिन उन्होंने संकल्प लिया कि इस कठोर पहाड़ को काटकर इसके बीच आने-जाने का रास्ता बना देंगे कि फिर भविष्य में किसी प्यार करने वाले को एक-दूसरे से बिछड़ना ना पड़े।
 मौके पर समाजसेविका सविता बिहारी ने कहा- जिस तरह मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने प्यार की खातिर संगमरमर का ताज महल बना डाला था, उसी तरह उस इंसान ने अपनी पत्नी की खातिर पहाड़ का सीना चीर डाला और अपना पूरा जीवन सड़क बनाने के लिए झोंक दिया। उस शख्स ने दिन देखा, न रात देखी, उसका सिर्फ एक ही लक्ष्य था, पहाड़ को काटकर राह बनाना, जिससे उसका जीवन आसान हो सके, जिसे वे प्यार करते थे। खासकर युवाओं एवं महिलाओं को एक दूसरे के प्रति समर्पण और जीवटता की सीख लेनी चाहिए। प्रेम, निष्ठा, समर्पण, जिद्द एवं जज़्बात के प्रतीक बिहार के गौरव युवाओं के आदर्श "पर्वत पुरुष" पद्मश्री दशरथ मांझी जी की जयंती पर शत् शत् नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।
नालंदा महिला कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार गुप्ता ने कहा कि प्यार एक सिर्फ शारीरिक मिलन नहीं, प्यार एक दूसरे के लिए समर्पण है। प्यार वास्तव में क्या चीज होता है मरने से पहले मरने के बाद भी पर्वत पुरुष दशरथ मांझी उसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। उन्होंने पहाड़ को काटकर प्रेम की परिभाषा को जीवंत रूप दिया। उन्होंने बताया कि शंखनाद साहित्यसेवा, संपर्क, सहयोग, संस्कार और समर्पण पर हमेशा कार्य करती है। 
गांधीवादी विचारक समाजसेवी दीपक कुमार ने कहा कि दशरथ मांझी व्यक्ति नहीं विचार थे। ऐसे महापुरूष किसी जाति विशेष के लिए नहीं बल्कि पूरे मानव समुदाय के लिए प्रेरणा के स्रोत होते हैं। इनके विचारों एवं सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारकर नौजवान समाज और राष्ट्रहित में लगायें। उन्होंने विशाल पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना दिया था, उसी प्रकार हमलोगों को भी उनसे प्रेरणा लेकर समाज के सामने पहाड़ क तरह सीना ताने समस्याओं एवं कुरीतियों का नाश करके विकास का मार्ग प्रशस्त्र कर सकते हैं।
शंखनाद के उपाध्यक्ष नामचीन शायर बेनाम गिलानी ने कहा कि दशरथ मांझी यूं तो एक गरीब परिवार और समाज के बिल्कुल निचले पायदान से संबंधित व्यक्ति थे। लेकिन उन्होंने जो कारनामा अंजाम दिया है, उसकी मिसाल पुरी दुनिया में नहीं मिलती है। शाहजहां ने ताजमहल बनवाया तो उसके बहुत चर्चे हैं। जबकि उन्होंने ख़ुद ताजमहल नहीं बनाया बल्की मज़दूरों और कारीगरों के ज़रिए बनावाया। दशरथ मांझी जी ने अपनी पत्नी के प्रेम में ईतने बड़े पहाड़ को ख़ुद अपने हाथों से काट कर बीच से रास्ता निकाला। मै उन्हें शत-शत नमन करता हूं।
मौके पर मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने कहा- पद्मश्री दशरथ मांझी जी ने अपने सामर्थ्य से अपनी इच्छाशक्ति से वो कर दिखाया जो शायद ही कोई करने के बारे में सोचे, उनकी यह उपलब्धि न सिर्फ उनकी प्रियतमा के लिए एक आश्चर्यजनक उपहार था, बल्कि समाज के लिए भी एक बेहतरीन उपहार साबित हुआ। सही मायनों में प्रेम की शक्ति को दशरथ मांझी जी ने ही दुनिया से परिचित कराया, उनकी यह प्रेम की मिसाल जो न केवल उनकी प्रिये के लिए थी बल्कि समाज के प्रति भी अपने प्रेम को दर्शाती है, और इसे सदा-सदा के लिए याद किया जाएगा।
शंखनाद के सक्रिय सदस्य समाजसेवी अभियंता मिथिलेश कुमार चौहान ने कहा कि दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज़्यबे और जुनून की मिसाल है। वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठा, जब तक कि पहाड़ का सीना न चीर दिया। दशरथ मांझी देश के पहले ऐसे शख्स हैं जिन्होंने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया।
इस मौके पर नालन्दा के ख्यातिप्राप्त छंदकार सुभाष चंद्र पासवान, समाजसेवी सरदार वीर सिंह ,कारू चौधरी , नामचीन हास्य व्यंग्य शायर तंग अय्यूवी, शिक्षाविद मो. जाहिद हुसैन, साहित्यप्रेमी धीरज कुमार, शुभम कुमार शर्मा, चंदन कुमार मिश्रा, अनिता देवी, शैला देवी, श्यामा देवी, कौशल्या देवी, गीता देवी, कस्तूरी देवी, सुदामा देवी, सरस्वती देवी, पूनम  देवी, सुमित्रा देवी सहित दर्जनों लोग मौजूद थे।

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