पर्यावरण के 'गांधी' पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा की 96वीं जयंती पर विशेष ...!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
भारतीय संस्कृति में प्रकृति के प्रति जागरुकता आदि काल से ही रही है। पंच तत्वों (भूमि, जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु) की उपासना हमारे ऋषि-मुनि सदियों से करते रहे हैं। वेद-पुराण, श्रीमद्भावगत, रामायण, महाभारत आदि में प्रकृति की पूजा के प्रमाण मिलते हैं। लेकिन आधुनिक युग में पृथ्वी पर जनंसख्या वृद्धि के कारण तीव्र गति से मनुष्य की आवश्यकताएं भी बढ़ रही हैं। यहीं से शुरू होती है प्रकृति के साथ सहयोग की जगह संघर्ष की दास्तां। चिपको आंदोलन वनों के संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम है। योग वशिष्ठ में भगवान श्रीराम को गुरु वशिष्ठ उनके द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं, ‘‘जो व्यक्ति अपनी प्रवृत्ति को प्रकृति के साथ तालमेल कर लेता है, उसी का जीवन सफल होता है।’’
देश के पर्यावरण को संरक्षित करने में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले विश्व विख्यात पर्यावरणविद्, पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा की आज 95वीं जयंती है। सुंदर लाल बहुगुणा ने अपने जीवनकाल में सदियों पुरानी प्रकृति के साथ रहने की रीति को जिंदा रखा। उनकी सादगी और दया भाव भुलाए नहीं जा सकते हैं। यही कारण है कि उन्हें पर्यावरण का 'गांधी' भी कहा जाता है।
सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म और सामाजिक-राजनीतिक जीवन

पद्म विभूषण 'हिमालय के रक्षक' सुंदर लाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को टिहरी गढ़वाल के मरोड़ा गांव में हुआ था। मात्र 13 साल की उम्र में उनके राजनीतिक करियर शुरुआत हुई। राजनीति में आने के लिए उनके परम् मित्र श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था। सुमनजी महात्मा गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे। आंदोलन के क्रम में ही सुमनजी की 84 दिनों की भूख हड़ताल के बाद 1944 में मौत हुई थी तब टिहरी कांग्रेस के ज़िला सचिव के तौर पर सुंदर लाल बहुगुणा चर्चा में आने लगे थे। सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग से समस्याओं का समाधान करना है। 18 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए लाहौर गए। 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला नौटियाल के साथ हुआ था। साल 1956 में उनकी शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया। उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में प्रकृति के बीच एक आश्रम खोला।
विमला नौटियाल ने शादी से पहले बहुगुणा से समाजसेवा का शर्त रखी

विमला नौटियाल उस वक़्त महात्मा गांधी जी की सहयोगी सरला बहन के साथ काम करती थीं, उन्होंने शादी से पहले ही शर्त रख दी थी कि, "मेरे साथी को राजनीतिक वर्कर के तौर पर काम छोड़कर ख़ुद को पूरी तरह से सामाजिक क्षेत्र के काम में जुटना होगा।" सुंदर लाल बहुगुणा ने वही किया जो विमला चाहती थीं। दोनों ने मिलकर टिहरी के भिलंगना ब्लॉक में पर्वतीय नवजीवन मंडल से एक आश्रम की स्थापना की। वर्ष 1956 में उन्होंने इस टिहरी शहर में ठक्कर बप्पा हॉस्टल भी बनाया जिसमें युवाओं के पढ़ने की सुविधाएं जुटाई गयीं थी। इस आश्रम से महिलाओं के उत्थान, शिक्षा, दलितों के अधिकार, शराबबंदी के अलावा कई तरह के सर्वोदयी आंदोलन सुंदर लाल बहुगुणा और विमला चलाते रहे थे। इसी क्रम में वर्ष 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया था।

13 वर्ष की उम्र से सुंदरलाल बहुगुणा ने शुरू किया राजनीतिक सफर

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुयायी बहुगुणा ने 13 वर्ष की उम्र में ही राजनीतिक सफर की शुरुआत कर ली थी। वर्ष 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा से बहुगुणा की मुलाकात हुई। यहीं से उनका आंदोलन का सफर शुरू हुआ। मंदिरों में दलितों को प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए प्रदर्शन करना शुरू किया। समाज के लोगों के लिए काम करने हेतु बहुगुणा ने 1956 में शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने का निर्णय लिया और अपनी पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से बहुगुणा ने पर्वतीय नवजीवन मण्डल की स्थापना की।
बहुगुणा का टिहरी बांध के खिलाफ जन आंदोलन

सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने आंदोलनों के क्रम में कई बार भूख हड़ताल भी की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी। सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया। उनका कहना है कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल में बर्बाद हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि भले ही बांध भूकंप का सामना कर लेगा, लेकिन यह पहाड़ियां नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा था कि पहले से ही पहाड़ियों में दरारें पड़ गई हैं। अगर बांध टूटा तो 12 घंटे के अंदर बुलंदशहर तक का इलाका उसमें डूब जाएगा।

सुंदरलाल बहुगुणा का 1970 में चिपको आंदोलन  
 
पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का मानना था कि पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना हमारे जीवन के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए उन्होंने 1970 में गढ़वाल हिमालय में पेड़ों को काटने के विरोध में आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का नारा था- “क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार” तय किया गया था। वर्ष 1971 में शराब दुकान खोलने के विरोध में सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन  भी किया था।
चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था। गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे। 26 मार्च, 1974 को चमोली जिला की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं, जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए। यह विरोध और प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गया। वर्ष 1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5000 किलोमीटर की यात्रा की थी। उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच जाकर पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया।  

इंदिरा गांधी ने 15 साल तक लगा पेड़ो को काटने पर रोक लगाया 

सुंदरलाल बहुगुणा का यह विरोध-प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया। 26 मार्च 1974 में चमोली जिला में जब ठेकेदार पेड़ो को काटने के लिए पधारे तब ग्रामीण महिलाएं पेड़ो से चिप्पकर खड़ी हो गईं। परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 साल के लिए पेड़ो को काटने पर रोक लगा दिया। चिपको आंदोलन की वजह से बहुगुणा विश्व में वृक्षमित्र के नाम प्रसिद्ध हो गए।

पर्यावरण के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया  

पर्यावरण के क्षेत्र में बहुमूल्य काम करने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा को वर्ष 1981 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा था। किंतु उन्होंने यह पुरस्कार लेने से मना कर दिया। उनका कहना था कि जब तक पेड़ कटते रहेंगे, तब तक मैं इस पुरस्कार को स्वीकार नहीं कर सकता।

सुंदरलाल बहुगुणा का निधन 

 पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा का तबीयत खराब होने की वजह से एम्स ऋषिकेश में इलाज चल रहा था। 21 मई 2021 को 94 वर्ष की आयु में कोरोना संक्रमण के कारण उनका निधन हो गया था। सुंदर लाल बहुगुणा अपने पीछे सामाजिक संघर्षों की विस्तृत सिलसिला छोड़कर गए हैं।

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