अमावां स्टेट की महारानी भुवनेश्वरी कुंवर ने अयोध्या में अमावां राम मंदिर बनवाया..!!


लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
अयोध्या का रसिक निवास मंदिर रामजन्म भूमि मंदिर से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर बना हुआ है। इस मंदिर को टिकारी राज नौ आना के महाराजा राम कृषण सिंह ने बनवाया जो बाद में अमावां स्टेट का हो गया। यह मंदिर चार मंजिला है और इसकी बनावट उत्कृष्ट कला का नमूना है। 

मंदिर और महल की बनावट-
इस मंदिर का क्षेत्रफल 5 बीघा में था। मंदिर की बनावट महल जैसा है। मंदिर लखौरी ईंट से निर्मित है। इसमें करीब 50 कमरा है। मंदिर का एक गर्भ गृह है उसमें मूर्ति विराजमान है, उसके बाद एक बहुत बड़ा आगन है। आँगन के बाद एक बहुत बड़ा बैठका  है, बैठका के चारों ओर कमरा बना हुआ है, उस मंदिर में महल जैसा नक्काशी, कीमती लकड़ी का दरवाज़ा और खिड़की लगे हुए है।
मंदिर में जागृत मूर्ति विराजमान 

मंदिर में राम सीता और हनुमान जी की अष्ट धातु की काफी वजनी मूर्ति विराजमान है। लोगों का मानना है कि मूर्ति जागृत अवस्था में है। लोग ने भगवान के साक्षात् प्रत्यक्ष दर्शन भी किये है।
मंदिर के पास 12 बीघा खेती योग्य ज़मीन

इस मंदिर के अलावा 12 बीघा का खेतिहर ज़मीन झाँसी जिला के तहरौली तहसील में है। आज के समय यह ज़मीन करोड़ों रूपया का है।   
अयोध्या में महारानी विद्यावती एवं राजा गोपाल शरण सिंह ने मंदिर बनवाया 

महारानी विद्यावती देवी पत्नी महाराजा गोपाल शरण सिंह, टिकारी राज, टिकारी गया, अमावां राज करीब पांच वर्ष यहाँ ठहरी थी। वर्तमान में इस मंदिर का कानूनी अधिकार विद्यावती कुंवर के वंसज का है, श्री अनंत विधेश्वरम मंदिर, टिकारी राज सह अमावां राज, लक्ष्मण झूला, ऋषिकेश, उत्तराखण्ड इस मंदिर के बनने से पहले, महारानी रसिक निवास, मंदिर और महल, राम घाट, अयोध्या में करीब पांच वर्ष अपना जीवन गुज़ारा, यही रह कर श्री अनंत विधेश्वरम मंदिर की नीव रखी और पूर्ण रूप से भव्य मंदिर बनवाया और श्री अनंत विधेश्वरम मंदिर के बनने के बाद, वे अपने रसिक निवास, राम घाट, अयोध्या को छोड़ कर श्री अनंत विधेश्वरम मंदिर में स्थायी रूप निवास करने लगी थी। अपने प्रवास के दौरान महारानी विद्यावती इस रसिक निवास मंदिर का जीर्णोदार करा कर इसे भव्य मंदिर बना दी थी।
टिकारी महाराजा ने अपने देख-रेख में मंदिर निर्माण की -

राम कृषण सिंह टिकारी राज के महाराजा बनने के बाद उन्होंने अयोध्या के राम घाट पास एक बहुत बड़ा भूखंड को ख़रीदा। उन्होंने अयोध्या जा कर सन 1865 से चैत्र राम नवमी के दिन मंदिर की नीव रखी। टिकारी आ कर उन्होंने जनक पुर, गया के महंत श्री जनक कुमार शरण जी को टिकारी राज बुला कर उनके हाथ में सात हजार रूपया दे कर कर प्रार्थना पूर्वक कहा की आप इन रूपया को अयोध्या ले कर जाईये और वहां मंदिर बनवाना शुरू कीजिये और मै यहाँ से और रूपया भेजता रहूँगा और बड़े सम्मान के साथ महंत जी को अपने यहाँ से अयोध्या के लिए विदा किया। सन 1868 में मंदिर के पूर्ण निर्माण होने पर, महाराजा पुनः अयोध्या जा कर बड़े उत्साह और धूम धाम से सीता राम जी मूर्ति की स्थापना की उस समय मंदिर निर्माण और उत्सव के इस कार्य में लगभग 02 लाख रूपया का खर्च हुआ था। मंदिर में मूर्ति स्थापना के समय इसके वार्षिक पूजा-सामग्री एवं रख रखाव के लिए सालाना तीन हजार छह सौ रूपया देने का वचन दिया और तत्काल इसका प्रबंध भी कर दिया था। इसके अलावा महाराजा रामकृष्ण सिंह ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ धर्म संस्थाओं को भी जन कल्याणकारी कार्य के लिए बहुत कुछ दान दिया था। महाराजा बनने से पूर्व महाराजा राम कृषण सिंह अयोध्या में रंग महल में करीब पांच वर्ष रह चुके थे, उन्हें अयोध्या के मिट्टी और संस्कृति से काफी लगाव था।
महाराजा राम कृषण सिंह का जन्म और पारिवारिक जीवन 

महाराजा राम कृषण सिंह का जन्म सारण जिला के रुसी गाँव में हुआ था। यह एकसरिया भूमिहार थे। इनका पिता का नाम बाबु कैलाश पति सिंह था और वह वहां के बड़े ज़मीनदार थे। इनकी ज़मीनदारी कई पीढ़ी से चली आ रही थी। महाराजा राम कृषण सिंह के परदादा बाबु विश्वनाथ सिंह अपने इलाके के काफी धनवान और नामी व्यक्ति थे। कैलाश पति सिंह की बहन इन्द्रजीत कुंवर की विवाह टिकारी राज नौ आना के महाराजा हित नारायण सिंह के साथ हुई थी। राम कृषण सिंह ने अपने पुरोहित श्रीकांत पंडित से दीक्षा ले कर बहुत बड़े-बड़े महात्माओं के साथ सत्संग किया और वहां से काशी अपने मामा और काशी महाराज ईश्वरी प्रसाद सिंह के यहाँ चले गए। काशी महाराज ईश्वरी प्रसाद सिंह की चचेरी बहन अश्वमेघ कुंवर की शादी टिकारी राज सात आना के महाराजा मोद नारायण सिंह के साथ हुआ था। इसलिय महाराजा रिश्ते में इनके मामा लगते थे। राम कृषण सिंह काशी से अयोध्या चले गए। अयोध्या के रंग महल के खान डेरा में रह कर राम नाम मन्त्र का साधना करने लगे और वहां धार्मिक कार्य में पूरा समय देने लगे। वे प्रतिदिन प्रातःकाल में नित्यक्रिया से निवृत हो कर राम नाम जप ध्यान लगाने के लिए बैठते तो शाम के चार बजे उठते थे। वहां से उठने के बाद वे चावल के तसमई बना कर खाते थे। इसी प्रकार राम मन्त्र जाप लगातार बारह दिन तक इसी प्रकार करते थे। बारह दिन के बाद इसे फिर से दोहराते थे। डेरा में खाली समय में वे श्री राघव दास महाराज के साथ प्रश्नोत्तर करके अपने मन के जिज्ञासा को शांत करते थे। एकदिन इन्होने अपने गुरु राघव महाराज से अपने घर द्वार त्यागने की इच्छा प्रकट की। राघव महाराज ने इन्हें काफी समझाया और कहा की आप उदास क्यों होते है। आप को राज योग्य है और आप राज मिलेगा पर ये नहीं माने। इसी समय इनके पिताजी कैलाश पति सिंह का एक पत्र राघव दास महाराज के पास आया की आप तुरंत राम कृषण सिंह को घर रुसी स्टेट सारण भेज दीजिये। अगर मेरा बेटा को आने में विलम्ब होगा तो हमलोग आपके पास आ जायेगें। पत्र को पढ़ कर राघव दास ने राम कृषण सिंह को समझा कर उनके घर रुसी राज, सारण भेज दिया। कुछ दिन घर पर रहने के बाद इनकी बुआ महारानी इन्द्रजीत कुंवर ने अपने आदमी को इनके पास भेज कर इन्हें टिकारी राज बुला लिया। उस समय महाराजा हित नारायण सिंह अपने विदेशी पत्नी के साथ पटना के छज्जू बाग में रहते थे। इधर महारानी इन्द्रजीत कुंवर टिकारी राज के राजपाट अकेले चलाती थी। राज परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं था। 
महारानी इन्द्रजीत कुंवर को कोई संतान नहीं थी, इसलिय बाद में सन 1862 में महारानी ने इनको पुत्र के रूप में लिखित रूप में स्वीकार कर लिया। महाराजा बनने के बाद सन 1865 के राम नवमी के समय उन्होंने अयोध्या में एक मंदिर के नीव रखे। यह मंदिर सन 1868 में बन कर तैयार हुआ था। वे अयोध्या जा कर बड़े उत्साह से राम, लक्ष्मण और जानकी की मूर्ति की प्रतिष्ठापना किये और इस उत्सव में लाख रूपये से अधिक खर्च किये थे।
  
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महाराजा हरिहर प्रसाद नारायण सिंह की पत्नी महारानी भुवनेश्वरी कुंवर ने अमावां राम मंदिर का निर्माण करवाया 

टेकारी राज सात आना के रानी रत्न कुवर उर्फ़ नानको साहिबा और राजेश्वरी प्रसाद सिंह की एकमात्र संतान थी। जो भुवनेश्वरी कुंवर टिकारी राज सात आना के राजकुमारी थी। राजकुमारी भुवनेश्वरी कुंवर का जन्म 2 जुलाई 1884 को टेकारी स्टेट में हुआ था। इनकी माँ रत्न कुंवर की मृत्यु 1896 ईसवीं में हो गई थी। उस समय इनकी उम्र मात्र 13 वर्ष की थी, इनके जगह इनकी दादी रानी रामेश्वरी कुंवर टिकारी राज का शासन चलाती थी। सन 1905 में जब राजकुमारी भुवनेश्वरी कुंवर जी बालिग हुई तो टिकारी राज का शासन अपने हाथ में ले ली थी। उसी समयावधि में इनकी शादी अमावां स्टेट के राजा हरिहर प्रसाद सिंह के साथ हुई। टेकारी महाराजा गोपाल शरण सिंह के लड़की राजकुमारी ऊमेश्वरी कुंवर की शादी अमावां स्टेट की रानी भुवनेश्वरी और राजा हरिहर नारायण सिंह के बड़े लड़के राजकुमार रघुवंश मणि प्रसाद सिंह के साथ 12 मार्च 1933 को कलकत्ता में हुई थी। टिकारी राज नौ आना के महाराजा गोपाल शरण सिंह के हरिहर प्रसाद नारायण सिंह समधी थे। टिकारी राज नौ आना और सात आना अमावां स्टेट एक होने पर रानी भुनेश्वरी कुंवर भोपाल के रानी बेगम के बाद देश के दूसरी सबसे धनिक महिला थी। सन 1930 में महाराजा गोपाल शरण सिंह अपने टिकारी राज सात आना का लगभग सारी सम्पति रानी भुनेश्वरी कुंवर के नाम रजिस्ट्री (Registri) कर दिए थे।
सन 1930 में टिकारी राज नौ आना और टिकारी राज सात आना एक हो जाने के बाद यह टिकारी राज “अमावां स्टेट” कहलाने लगा।

 संस्कृत के शब्द “नालम् ददाति इति नालन्दा” अर्थात, जो देते हुए नहीं थकता था। इज्जत अथवा शिक्षा की बात हो या धन देने की, यह कभी पीछे नहीं रहा। इसका उदाहरण सर्वविदित है। ऐसा ही एक उदाहरण अयोध्या में रामलला के पास विराजमान मंदिर है। नाम है अमावां राम मंदिर। आठ एकड़ में 12 छोटे-छोटे मंदिरों के अलावा विश्रामालय भी है। यह पूरा क्षेत्र आज भी अयोध्या में नालंदा की अमिट कृति का बखूबी बखान कर रहा है। इसकी स्थापना अमावां राज के महाराजा हरिहर प्रसाद नारायण सिंह व पत्नी धर्मपरायण महिला भुवनेश्वरी कुंवर ने कराया था।
तीन एकड़ में मंदिरों का समूह तो पांच एकड़ में मंदिर के दक्षिण में अयोध्या भ्रमण और तीर्थ यात्रा के समय राज परिवार के ठहरने के लिए सुंदर महल है। उसे भुनेश्वरी भवन कहा जाता था। महाराजा व रानी द्वारा बनायी गयी इमारत का अधिकांश भाग ध्वस्त हो गया। लेकिन, निखिल भारतीय तीर्थ विकास समिति के माध्यम से पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। अमावां की तरह ही यहां महल बनाया गया था। 52 कमरे और आठ आंगन हैं।
मंदिर के गर्भ गृह में श्री राम, भ्राता लक्ष्मण और माता सीता की मूर्तियां विराजमान हैं। राम मंदिर के गर्भ गृह के सामने विशाल आंगन है। आंगन के तीन ओर विशाल बरामदा है।
अमावां के मुखिया सुधीर पाण्डेय, अमावां राज के महल की देख-रेख में लगे 90 वर्ष के लाखन राउत के ने बताया कि सूबे के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के चचेरे भाई थे महाराजा हरिहर प्रसाद नारायण सिंह थे।

अमावां राम मंदिर का पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल ने किया जीर्णोद्धार  

वर्ष 1969 में रानी भुवनेश्वरी देवी की मौत हो गयी। उसके बाद बड़े राजा यहां आये तो अपराधी पसुली से उनकी गर्दन काटने लगे। किसी तरह जान बचायी। उसके बाद उनके परिवार के कोई परिजन यहां नहीं आये। बाद में 11 लाख रुपये देकर इस पावन भूमि को अपराधियों की चंगुल से छुड़ाया गया। अब इसके पूरे परिसर को भव्यता प्रदान करना हमारी प्राथमिकता है। इसी परिसर में रामायण रिसर्च सेन्टर की स्थापना की योजना है।

बुलेटप्रूफ पारदर्शी शीशे से ढका है गर्भगृह

श्री कुणाल ने बताया कि मंदिर के मुख्य द्वार के शिखर पर रामलला का प्रतिष्ठापन किया जाना है। तीन साल पहले ही बाल स्वरूप रामलला की मूर्ति स्थापित की गई है। इस मंदिर में सभी भगवानों की मूर्तियां रखी जाएंगी। मंदिर का गर्भगृह जमीन से 30 फीट ऊंचा है। इसे बुलेटप्रूफ पारदर्शी शीशा से कवर किया गया है। यह मूर्ति चहुंओर से 200 मीटर की दूरी से ही देखी जा सकती है।

अमावां मंदिर के गर्भगृह में विराजमान भगवान श्रीराम, भ्राता लक्ष्मण और माता सीता की मूर्तियां।
 
फोटो :-

अयोध्या में रामलला के पासल का अमावां राम मंदिर।

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अमावां मंदिर में हाल में स्थापित प्रतिमा।

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