भारत में वायु प्रदूषण का प्रभाव खतरनाक रूप ले रहा है


●जहरीली हवा से दिल-दिमाग पर बुरा असर  
●बच्चे वायु प्रदूषण की चपेट में सबसे ज्यादा आ रहे हैं
●वायु प्रदूषण का प्रभाव बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
हवा जीवन के लिए अत्यन्त जरूरी है। भोजन के बिना मनुष्य कई दिनों तक जीवित रह सकता है, पानी के बिना भी कई-कई दिनों तक जीवित रह सकता है, लेकिन हवा के बिना कोई कुछ मिनटों से अधिक जीवित नहीं रह सकता। वायु केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं वरन् सभी जीवित प्राणियों के लिए आवश्यक है। अगर हवा ही जहरीली हो गई तो जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। भारत की लगभग शत्-प्रतिशत् आबादी वायु प्रदूषण से प्रभावित है। इस समय देश में सर्दी का मौसम है और हवा अत्यधिक प्रदूषित हो गई है। वायु प्रदूषण दुनिया की एक प्रमुख चिंता व समस्या है। वायु प्रदूषण से न सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है, बल्कि इससे पशु-पक्षी, वन्य जीव भी परेशान हैं। यही नहीं, पेड़-पौधों पर भी कुप्रभाव पड़ रहा है। बुजुर्गों, स्कूल जाने वाले बच्चों और गर्भवती महिलाओं में सिरदर्द, चिंता, चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं काफी बढ़ गई है।
प्रदूषण अब एक ऐसी वैश्विक समस्या बन चुका है, जिससे कई प्रकार की खतरनाक बीमारियां जन्म ले रही हैं और लाखों लोग असमय ही काल के ग्रास बन रहे हैं। भारत में भी वायु प्रदूषण का प्रभाव खतरनाक रूप से पड़ रहा है। वायु प्रदूषण का खतरा सबसे ज्यादा छोटे बच्चों के स्वास्थ्य पर बना है क्योंकि वे बहुत संवेदनशील होते हैं और जहरीली हवा की चपेट में जल्दी आते हैं। दरअसल, व्यस्कों की तुलना में छोटे बच्चे ज्यादा तेज गति से सांस लेते हैं, जिससे उनके शरीर में प्रदूषण के कण तेजी से तथा ज्यादा मात्रा में चले जाते हैं, इसी कारण वायु प्रदूषण छोटे बच्चों को बहुत जल्दी अपनी चपेट में लेता है और उनमें अस्थमा से लेकर फेफड़ों के संक्रमण तक कई बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। देश की राजधानी दिल्ली हो या देश के अन्य प्रदूषित इलाके, छोटे-छोटे बच्चे वायु प्रदूषण की चपेट में सबसे ज्यादा आ रहे हैं। हवा में बढ़ती नाइट्रोजन, ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें और प्रदूषक कण बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। प्रदूषित हवा में जो जहरीले नैनोपार्टिकल होते हैं, वे छोटे बच्चों के फेफड़ों की गहराई तक पहुंचकर उन्हें बीमार बना रहे हैं। बच्चों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को लेकर दुनियाभर में समय-समय पर परेशान करने वाली रिपोर्ट सामने आती रही हैं। किसी नवजात का स्वास्थ्य किसी भी समाज के भविष्य के लिए महत्त्वपूर्ण होता है, लेकिन बेहद चिंताजनक स्थिति है कि कई अध्ययनों में बताया जा चुका है कि गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी वायु प्रदूषण का घातक असर पड़ता है। एम्स द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है। अधिक प्रदूषित क्षेत्रों में रह रही माताओं के नवजात शिशु के फेफड़े सिकुड़ने का भी खतरा होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण बच्चों के दिमाग को भी कमजोर कर रहा है। यूनीसेफ की 'डेंजर इन एयर' रिपोर्ट के अनुसार भी बढ़ता प्रदूषण दिमाग को खराब कर सकता है, जिससे बच्चों के दिमागी विकास पर असर पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषित कण फेफड़ों के जरिये शरीर के कई दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचाते हैं और कुछ मामलों में ये बच्चों की दिमाग की कार्यप्रणाली पर भी असर डाल सकते हैं। हालांकि प्रदूषण का सीधा संबंध दिमाग की कार्यप्रणाली से नहीं है, लेकिन लंबे समय तक प्रदूषण रहने पर यह गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। बढ़ते प्रदूषण के कारण हवा में नाइट्रोजन, सल्फर जैसी विषाक्त गैसों का स्तर बहुत ज्यादा हो गया है और जब बच्चे सांस के जरिये इसी प्रदूषित हवा को अपने शरीर में लेते हैं तो इसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य और विकास पर पड़ता है। नॉर्थ कैरोलिना के ड्यूक विश्वविद्यालय के शोधकताओं ने दो हजार से भी ज्यादा लोगों पर एक व्यापक अध्ययन किया और अध्ययन के दौरान बच्चों की मानसिक सेहत पर वायु प्रदूषण के प्रभावों का आकलन किया गया। कई दशकों के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर अध्ययनकताओं ने पाया कि शहरों में प्रदूषित वायु और वायु प्रदूषण के बीच पलने-बढ़ने वाले बच्चों में वयस्क होने तक मानसिक सेहत संबंधी विकार होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। यूनीसेफ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि भारत में लगभग सभी स्थानों पर वायु प्रदूषण निर्धारित सीमा से अधिक है, जिससे बच्चे सांस, दमा तथा फेफड़ों से संबंधित बीमारियों और अल्प विकसित मस्तिष्क के शिकार हो रहे हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में से दस फीसद से अधिक की मौत वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न होने वाली सांस संबंधी बीमारियों के कारण होती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अधिकांश बच्चों के मस्तिष्क की कार्यप्रणाली वायु प्रदूषण के कारण प्रभावित हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण बच्चे मंदबुद्धि हो रहे हैं, कम वजन के बच्चे पैदा हो रहे हैं। गर्भ में भी बच्चे वायु प्रदूषण के प्रभाव से अछूते नहीं हैं, उनका तंत्रिका तंत्र भी प्रभावित हो रहा है। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि दुनियाभर में पांच वर्ष से कम आयु के करीब छह लाख बच्चों की मृत्यु प्रतिवर्ष वायु प्रदूषण के कारण हो जाती है। जिनमें से एक लाख से भी ज्यादा बच्चे भारत के ही होते हैं। वायु प्रदूषण के कारण नवजात शिशुओं की सर्वाधिक मौतें अमेरिका तथा एशिया में
होती हैं। यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्वभर में करीब दो अरब बच्चे खतरनाक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमें से 62 करोड़ दक्षिण एशियाई देशों में हैं। अमेरिका के एक गैर सरकारी संगठन 'हैल्थ इफैक्ट्स इंस्टीट्यूट' (एचईआई) द्वारा वायु प्रदूषण के दुनिया पर प्रभाव को लेकर एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि भारत में स्वास्थ्य पर सबसे बड़ा खतरा वायु प्रदूषण है। 
युवा पीढ़ी में हार्ट अटैक का खतरा बढ़ गया है और फेफड़ों की बीमारियों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हाल ही में हार्ट अटैक के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। कई अध्ययनों के अनुसार वायु प्रदूषण इसका एक मुख्य कारण है। शोधकर्ताओं के मुताबिक वायु प्रदूषण धमनियों और शिराओं (आर्टरीज़ एवं वेन्स) को ब्लॉक करता है। जिससे रक्त का प्रवाह कम होता है और व्यक्ति हाइपरटेंशन का शिकार हो जाता है। बहुत अधिक मात्रा में प्रदूषकों में सांस लेने से ब्लड क्लॉट भी बन जाते हैं।
बहरहाल, बच्चों पर वायु प्रदूषण के पड़ते दुष्प्रभावों और हर साल इसके कारण हो रही लाखों बच्चों की मौतों को लेकर पूरी दुनिया को अब बहुत संजीदगी से इस पर विचार मंथन करने और ऐसे उपाय किए जाने की आवश्यकता है, जिससे मासूम बचपन प्रदूषण का इस कदर शिकार न बने।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ककड़िया विद्यालय में हर्षोल्लास से मनाया जनजातीय गौरव दिवस, बिरसा मुंडा के बलिदान को किया याद...!!

61 वर्षीय दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन का निधन, मानववाद की पैरोकार थी ...!!

ककड़िया मध्य विद्यालय की ओर से होली मिलन समारोह का आयोजन...!!