लैवेंडर के बंदर ...!!

  

                         (डॉ. लक्ष्मीकान्त सिंह)
  दशकों पुरानी बात है। एक महाद्वीप में एक सैंट लैवेंडर हुआ करते थे। वो एक नयी तरकीब की खोज में सफल हुए थे। सो अपनी सफलता की सुरमई वातावरण में आनंद का रसास्वादन कर रहे थे। उनकी सिकुड़ी हुई छाती भी गर्व से गुब्बारे की तरह फुल गई थी। उन्होंने न कोई अविष्कार किया था और न निर्वाण या ज्ञान प्राप्त किया था, बल्कि अपने धंधे को स्थापित करने में सफलता हासिल की थी। ऐसे वे पेशेवर पेशकार थे, जिसे आम भाषा में वकील या दलाल कहा जाता है। इस सफलता से उन्हें महान आत्मा का दर्जा प्राप्त हो गया था और लोग-बाग,जिनमें उनके चम्मचे सर्वाधिक थे, अब महात्मा पुकारने लगे थे। महात्मा शब्द का लब्बोलुआब ये है कि नक्कारे को भी पूजनीय बना देता है। आशिर्वाद के भूखे स्वार्थी लोग भी उसके दरबारी बने मिलते हैं। आम आदमी की बात अलग है, यहाँ तो पढ़े लिखे संस्कारी लोभी अधिकारी, मंत्री, संतरियों की लम्बी कतारें लगी रहती हैं। इस मुल्क के अवाम में चमत्कार के प्रति बड़ी आकर्षण व्याप्त है। धार्मिक गुलामी की कोख से उत्पन्न लोगों में स्वार्थपरता और लोभ की अनन्तहीन ऊँचाइयाँ, चमत्कार के आसरा को ढूंढती रहती हैं। शायद कोई अवतारी बंदा मिल जाए तो जीवन की सारी दुख-दर्द का अंत हो जाए।
     जैसा की हर देश की समाज में होता है। सफलता को नमस्कार करनेवाले लोगों की बाढ आ जाती है।यहाँ भी सुदूर क्षेत्रों से लोग आकर उनकी दर्शन लाभ प्राप्त कर रहे थे। कुछ बड़े बुजुर्ग लोग उन्हें बधाइयां दे रहे थे। अनेक मुल्क के शासनाध्यक्षों के साथ कुछ कारपोरेटी लोग भी उत्साहित होकर मिलने पहुंच रहे थे। यह भी एक प्रायोजित कार्यक्रम ही था,जिसे उस महात्मा के बेलचों ने आयोजित किया था। मूर्खों के मुल्क में ऐसा करने से प्रतिष्ठा बढ़ती है और मूढ़ों का सीना भी गर्व से सिकुड़ते-फैलते रहता है। उनके ऊपर हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है। जनता की अच्छी सेहत और स्वास्थ्य के लिए ऐसे प्रायोजित कार्यक्रम चलाना, शातिरों की दिनचर्या रही है।
    इस सैंट लैवेंडर की अप्रत्याशित सफलता की चर्चा सैंट विंस्टन ने सुना। सो एक दिन  सैंट लैवेंडर से मिलने पहुंच गए। उनकी सफलता पर ढ़ेर सारी बधाइयां और शुभकामनाएं दीं। आधुनिक विश्व की अनेक समस्याओं पर दोनों में काफी चर्चा और विमर्श हुए। विज्ञान की बढ़ती रफ्तार और जनसमस्याओं के निदान के क्षेत्र में इसकी उपयोगिता पर भी बातचीत हुई। 
  इस चर्चा के क्रम में सैंट विंस्टन ने बताया कि आज वैज्ञानिक शोध और अविष्कारों के बढ़ते प्रभाव ने मनुष्य के अंदर भौतिक सुखों की चाहत के साथ शासक बनने की इच्छा को बलवती बना दिया है। युद्ध के क्षेत्र में नयी तकनीकी विकास के कारण पारम्परिक तकनीक अप्रभावी हो रहे हैं। सैनिकों की जगह मशीनों का इस्तेमाल ज्यादा कारगर साबित हो रहे हैं। अब भारी मात्रा में सैन्य जवानों की तुलना में तकनीकी और मशीनरी का उपयोग हर क्षेत्र में हो रहा है। हर विकसित देश अपने यहाँ वैज्ञानिक शोध और तकनीकी विकास को बढ़ावा देने लगे हैं। जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार को रोक, तकनीकी विस्तार के द्वारा अपने देश को विकसित और खुशहाल बनाने की ओर तेजी से काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं कृषि और उद्योगों के क्षेत्र में भी तकनीकी और मशीनी उपकरणों के प्रयोग से विकास को नयी गति मिली है। इससे भूखमरी और रोग-व्याधियों पर मानव का नियंत्रण बढ़ा है।
  कुछ समय चुप रहने के पश्चात सैंट विंस्टन ने सैंट लैवेंडर से पूछा–इस संदर्भ में आपकी क्या राय है? आप अपने विजेता अनुयायियों को किस रास्ते पर चलने का आदेश देना पसंद करेंगे? आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ या पुरानी परंपरागत ढ़र्रे पर?
   इस प्रश्न पर लैवेंडर काफी देर चुप रहे। फिर बोले– मैंने अभी इसके बारे में कुछ नहीं सोचा है। अभी तो हमारे योद्धा जश्न-ए-दीवाली की खुशियाँ मना रहे हैं। हमारे अनुयायी मस्ती का आनंद ले रहे हैं। जनता जीत और जश्न की खुमारी में दशकों डूबी रहेगी। अभी जनसमस्याओं पर सोचने का समय नहीं आया है। जब वैसी स्थिति उत्पन्न होगी तो देखा जाएगा।
   सैंट लैवेंडर की बातों से सैंट विंस्टन आश्चर्यचकित रह गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा बोलने के पीछे का रहस्य क्या है?
आखिरकार विंस्टन ने पूछ लिया–" अगर परम्परागत जीवन शैली को ही अंगीकार करना था तो फिर इस लम्बी संघर्ष और जदोजहद की जरूरत क्या थी?"
सैंट लैवेंडर–आप इस बात को नहीं समझेंगे। हमारी प्राथमिकता कतई वह नहीं है, जो आप समझ रहे हैं। संघर्ष का संबंध अवाम के बेहतरी के लिए था, ये आप समझ रहे हैं और ऐसा ही अन्य लोगों की नज़र में है,जबकि हमारा उद्देश्य सत्ता प्राप्ति तक सीमित है।
इस बात को सुनकर, सैंट विंस्टन का चेहरा फक्क पड़ गया। ऐसा एक महात्मा बोल रहा है तो फिर यहाँ के आम आदमी की मानसिकता क्या होगी?
   फिर, काफी देर तक वहाँ खामोशी पसरा रहा।
कुछ समय पश्चात सैंट विंस्टन ने कहा- ठीक है, आप अपने यहाँ परम्परागत शैली को ही तरजीह दें। लेकिन, जनसंख्या के घनत्व को घटाने के क्षेत्र में पहल करें। चूँकि यहाँ जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार तेज है और आने वाले दिनों में कृषि उत्पाद कम पड़ जाएंगे। फिर इस संघर्ष का कोई फायदा आम लोगों को नहीं मिलेगा। गरीबी और भूखमरी, आदमी को गुलाम बनाने की सबसे बड़ी वजह होती है।
  इतना सुनते ही लैवेंडर आपे से बाहर हो गए। गुस्से में बोले– मैंने आप से कोई सलाह माँगी थी? आप अपना काम देखिए। मुझे क्या करना है, इस पर आप से बेहतर हम समझते हैं। इस उपमहाद्वीप के बारे में मुझसे ज्यादा आप को मालूम नहीं है। यहाँ की अवाम किस रास्ते पर चलना चाहती है, मैं अच्छी तरह से जानता हूँ। सूक्कर अपने बाड़े में ही आनंदित रहता है, गलीचे पर नहीं।
  लैवेंडर की बातों ने विंस्टन की बोलती बंद कर दी। सैंट विंस्टन का चेहरा शर्म से झुक गया। क्या सोच कर आया था और यहाँ क्या सुनने को मिल रहा है?
   बहुत देर की चुप्पी के बाद सैंट लैवेंडर ने सैंट विंस्टन से कहा-- अवाम को जागरूक और समझदार बनाने वाले शासक हमेशा परेशान रहते हैं। जिन शासकों ने आम आदमी को शिक्षित और सम्पन्न बनाने का प्रयास किया, उसे जनता ने गद्दी से उतार फेका। इतिहास में उसी राजा का वध हुआ, जो न्यायप्रिय और जनता का हितैषी रहा है। हमारा उपमहाद्वीप तो शाश्वत मूर्खों का द्वीप है। यहाँ जिसने भी इन्हें समझदार बनाने की कोशिशें की, उसके विनाश की गाथा यहाँ की जनता ने लिख दी। आप अपनी ही स्थिति को देख लीजिए। जिन्हें आपने चलना, बोलना सिखाया, उन्हीं लोगों ने आप सबों की हत्याएं की। ये अवाम किसी के नहीं होते हैं।
  सैंट विंस्टन, लैवेंडर की बातों को बड़े गौर से सुन रहे थे।
सैंट लैवेंडर बोलते जा रहे थे– एक समय की बात है। एक हारा हुआ राजा भागा-भागा एक महात्मा की कुटिया में गया। महात्मा से राजा ने अपने प्राण बचाने की गुहार लगाई।
  महात्मा, राजा से परिचित थे। राजा बहुत सहृदय और परोपकारी थे। जनता की सेवा श्रद्धा पूर्वक करते थे। जनता को कोई कष्ट नहीं हो, उसका भरपूर खयाल रखा जाता था। उनकी अवाम बहुत सुखी जीवन जी रही थी। फिर, अचानक ऐसा होने का कोई कारण महात्मा को समझ नहीं आया। 
   अंततः महात्मा ने राजा से कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उनकी प्रजा में ही कुछ सम्पन्न लोगों ने पड़ोसी राजा से मिलकर उनके खिलाफ विद्रोह खड़ा कर दिया। इसी बीच पड़ोसी राज्य की सेना उनके देश में घुस गई। हमारी जनता उनके साथ चली गई और हमारे महल पर उनका कब्जा हो गया।
  महात्मा को बात समझते देर नहीं लगी। उन्होंने राजा को आश्वस्त किया और अपने साथ  अपनी दूसरी कुटिया में ले गये। वहाँ केवल तीन बंदर बैठे थे। उसमें से एक अपनी मुँह को अपने हाथों से ढ़के हुए था। दूसरा अपनी आँखों को हाथों में बंद करके बैठा था और तीसरा अपनी दोनों कान हाथों से बंद किये हुए था।
  राजा ने पूछा गुरु जी यहाँ क्यों लाए हैं?
महात्मा ने कहा– इन्हें गौर से देखो,राजन। ये तीनों इसी प्रकार दिनों भर बैठे रहते हैं। इनको दो केले रोज दिया जाता है। ये दो केले की चाहत में सब कुछ भूल कर मेरी आज्ञा का पालन करते रहते हैं। अपनी प्रजा को ऐसे ही रखना चाहिए। अगर तुम अपने प्रजा को इसी प्रकार रखते तो आज तेरी ये हालत नहीं होती। पहली प्राथमिकता है प्रजा को भूखा रखो। मुँह पर ताले लगा दो। इसके लिए जनसंख्या वृद्धि जरूरी है। भोजन के लिए आपस में ही लड़ते-मरते रहेंगे। कभी उसके आगे सोचने का मौका ही नहीं मिलेगा। राजा सदैव सुरक्षित शासन करता रहेगा। दूसरा, आम अवाम को धर्म की ओर मोड़ दो। उन्हें शिक्षित होने नहीं दो,अन्यथा वह बोलने लगेगी। जुबान बंद रखने के लिए उसे अशिक्षित बना कर रखो। उसके कानों में झूठ का धार्मिक प्रवचन उड़ेलने का पुख्ता इंतजाम कर दो। ताकि उसके दिमाग को कुंद किया जा सके। फिर उनकी आँखों के ऊपर धर्म का ऐसा चश्मा डाल दो, ताकि वह तुम्हारी नज़र से वे दुनिया को देखें। उन्हें सदैव राजा में भगवान का चेहरा ही नज़र आए।
ओह.....! समझ गया। सैंट विंस्टन के मुँह से अकस्मात निकल पड़ा।
  सैंट लैवेंडर ने कहा- मैंने अपने अनुयायियों को तीन बंदरों की कथा पहले ही सुना कर समझा दिया है। जनता बंदर है। उसे इस डाल से उस डाली पर नाचने की आदत है। उनकी जनसंख्या वृद्धि, उनको शक्तिशाली होने नहीं देगी, क्योंकि भोजन की मात्रा सीमित है। भूखा जीव गुलाम जल्दी बनता है। उसके मुँह, आँख और कान को बंद करना, शासक के लंबी जीवन के लिए आवश्यक शर्त है। उसे धार्मिक कथा-कहानी और अनुष्ठानों में डालकर छोड़ दो। वे स्वतः तीनों बंदरों के रूप को ग्रहण कर लेंगे।
  थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद लैवेंडर ने कहा- अब आप समझ गए होंगे कि मैंने क्यों परम्परागत तरीकों पर बल दिया।
सैंट विंस्टन ने कहा– बिल्कुल महाराज, समझ गया। मैं अपनी नालायकियत के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
वहाँ उठते हुए सैंट विंस्टन बुदबुदाया–काश! आपके के इस गूढतम रहस्यमयी भाव का अवलोकन पहले कर लिया होता।
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