महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ काम कर रही है...!!

लेखक : साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
अपमान मत कर नारियों का, इसके बल पर जग चलता है। 
पुरुष जन्म लेकर भी तो, इन्हीं के गोद में पलता है। 

राष्ट्रीय ही नहीं अतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना लोहा मनवाने में कामयाब है महिलाए हमारे देश में महिलाओं की स्थिति सदैव एक समान नहीं रही है। महिलाओं की स्थिति में युग के अनुरूप परिवर्तन होते आए हैं। उनकी स्थिति में वैदिक युग से लेकर आधुनिक युग तक अनेक उतार-चढ़ाव आते रहे हैं, तथा उनके अधिकारों में तदनरूप बदलाव भी होते रहे हैं। लेकिन अगर वर्तमान परिदृश्य की बात की जाए तो भारत की महिलाए बेटियां, राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना लोहा मनवाने में कामयाब रही है। संगर इतना कुछ होने के भी महिलाएं उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाई हैं, जहा वह बराबरी का दर्जा प्राप्त कर के हालाकि इसके लिए हर परमास किए जा रहे हैं हर क्षेत्र में महिलाओं ने विश्व पटल पर आकाश की बुलंदियों को छुआ है।
कोई भी देश यश के शिखर पर, तब तक नहीं पहुंच सकता, जब तक उसकी महिलाएं, कंधे से कंधा मिलाकर ना चलें। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस '8 मार्च' को विश्वभर में मनाया जाता है। अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर महिला दिवस सबसे पहले यह 28-02-1909 को मनाया गया था। इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव को भुला कर  इस दिन को मनाती हैं। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिलवाना था क्योंकि, उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था। इस समय की महिलाएँ अपनी शक्ति को पहचान लिया है और काफ़ी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे महिला-पुरुष एक-दूसरे की दुश्मन नहीं,बल्कि सहयोगी हैं। उन्होंने छात्राओं से कहा कि वह जितना पढ़ सकती हैं पढ़ें। ज्ञान को कोई नहीं छीन व चुरा सकता। साथ ही आत्म सम्मान व आत्मविश्वास को कायम रखते हुए अपने अंदर के प्रतिभा को सामने लाने का प्रयास करें।  छात्राएं खुद को पहचानें और अपने उज्जवल भविष्य का रास्ता स्वयं तय करें। आज समाज के दोहरे मापदंड नारी को एक तरफ पूज्यनीय बताते है तो दूसरी ओर उसका शोषण करते हैं। यह नारी जाति का अपमान है। औरत समाज से वही सम्मान पाने की अधिकारिणी है जो समाज पुरुषों को उसकी अनेकों ग़लतियों के बाद भी पुन: एक अच्छा आदमी बनने का अधिकार प्रदान करता है । नारी को बिशेष आरक्षण की ज़रूरत है और उचित सुविधाओं की भी आवश्यकता है। भारत में महिलाओं को शिक्षा, वोट देने का अधिकार और मौलिक अधिकार प्राप्त है। धीरे-धीरे परिस्थितियां बदल रही हैं। भारत में आज महिला प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, डीएम, बीडीओ, आर्मी, एयर फोर्स, पुलिस, आईटी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में पुरूषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं। माता-पिता अब बेटे-बेटियों में कोई फर्क नहीं समझते हैं। लेकिन यह सोच समाज के कुछ ही वर्ग तक सीमित है। इस दौरान महिलाओं की सुरक्षा संरक्षण के लिए बनाई गई राज्य सरकार की योजनाओं के बारे में बताया गया। लिंग अनुपात मृत्यु दर को देखते हुए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के बारे में जानकारी दी गई। नारी समाज के विकास की धुरी है, नारी के बिना समाज के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो ऋग्वेद दौर तक देश में महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त थे, परंतु कालांतर में स्थिति बिगड़ने लगी। वहीं उन्होंने समाज में लगातार नारी पर हो रहे अत्याचार को दुखद बताते हुए कहा कि एक तरफ जो समाज नारी को देवी बोलता है, वहीं दूसरी तरफ उसपर बढ़ रहे अत्याचार, पुरुष प्रधान समाज के दोहरे चरित्र को उजागर करता है। उन्होंने कहा कि औरतों को अत्याचार सहने के बजाय डटकर मुकाबला करने की जरूरत है। भारत में नारी को देवी के रूप में देखा गया है। कहा जाता है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। प्राचीन काल से ही यहां महिलाओं को समाज में विशिष्ट आदर एवं सम्मान दिया जाता है। भारत वह देश है जहां महिलाओं की सुरक्षा और इज्जत का खास ख्याल रखा जाता है। अगर हम इक्कीसवीं सदी की बात करें तो यहां की महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला काम कर रही हैं।
प्रत्येक साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की एक विशिष्ट थीम होती है। इस वर्ष 2024 के लिए थीम है 'महिलाओं में निवेश: प्रगति में तेजी लाना' है। हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार है। महिलाएं देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा विकास में भी बराबर की भागीदार हैं। आज के युग में महिला, पुरुषों के साथ ही नहीं बल्कि उनसे दो कदम आगे निकल चुकी है। महिलाओं के बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। भारतीय संविधान के अनुसार महिलाओं को भी पुरुषों के समान जीवन जीने का हक है।
महिला अपराध के आंकड़ों पर एक नजर

आचार्य कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में कहा था कि महिलाओं की सुरक्षा ऐसी होनी चाहिए कि महिलाएं खुद को अकेली सूनसान सड़कों पर भी बिल्कुल सुरक्षित समझें। आखिर क्यों घर के अंदर और बाहर महिलाएं खौफ के साए में जीने को मजबूर हैं? दरअसल, भारत में महिला सुरक्षा को लेकर आज भी स्थितियां गंभीर हैं। मेरा मानना है कि किसी व्यक्ति के लिए सुरक्षा सबसे अहम मुद्दा होती है जबकि दूसरी बुनियादी बातें बाद में। देश-दुनिया में महिलाओं के सम्मान और अधिकार के नाम पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने और महिला सशक्तिकरण की सारी बातें महिलाओं की सुरक्षा के आगे जाकर फेल हो जाती हैं। नवीनतम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक रिपोर्ट में  2022 के दौरान भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 4% की चिंताजनक वृद्धि का खुलासा हुआ है। इसमें पतियों और रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता, अपहरण, हमले और बलात्कार के मामले शामिल हैं। वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 30,864 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2023 में यह संख्या घटकर 28,278 हो गई। यह एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की ओर से जारी किए गए एक सर्वे में भारत को पूरी दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश माना गया है। महिलाओं के प्रति यौन हिंसा, मानव तस्करी और यौन व्यापार में ढकेले जाने के आधार पर भारत को महिलाओं के लिए खतरनाक बताया गया है। इस सर्वे के अनुसार महिलाओं के मुद्दे पर युद्धग्रस्त अफगानिस्तान और सीरिया क्रमशः दूसरे और तीसरे, सोमालिया चौथे और सउदी अरब पांचवें स्थान पर हैं। इस सर्वे में 193 देशों को शामिल किया गया था। इससे यह साबित होता है कि 2012 में दिल्ली में एक चलती बस में हुए सामूहिक बलात्कार के बाद अभी तक महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पर्याप्त काम नहीं किए गए हैं। 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा और उनके खिलाफ होने वाली हिंसा देश के लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया था। अब प्रश्र यह है कि क्या भारत, सच में महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थान नहीं है? पाश्चात्य देशों का भारत के प्रति रुख कभी सकारात्मक नहीं रहा है। आज भारत, जहां एक ओर विकास की लम्बी छलांग लगा रहा है वहीं दूसरी ओर कुछ विदेशी संस्थान दूर बैठ कर भारत के ऊपर नकारात्मक रिपोर्ट बना रहे हैं। कुछ घटनाएं वाकई में शर्मनाक हैं लेकिन कुछ घटनाओं के लिए पूरे देश को जिम्मेदार तो नहीं ठहराया जा सकता है। इस रिपोर्ट में आपराधिक घटनाओं में वृद्धि इसलिए दिखाई दे रही है, क्योंकि रिपोर्ट बनाने से पहले उनके द्वारा इस प्रकार का माहौल बनाया जाता है।

हमेशा महिला सुरक्षा को लेकर भारत सजग रहा है  

जहां तक बात आती है महिलाओं की सुरक्षा की तो पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अभूतपूर्व निर्णयों से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई प्रबंध किए हैं। ऐसे में भारत के प्रति ऐसी नकारात्मक रिपोर्ट भारत में खबर बनाने की विदेशी संस्थाओं की सोची समझी साजिश के अलावा कुछ और प्रतीत नहीं होता। भारत में महिलाएं पहले की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित है। आज जहां महिलाएं नई ऊंचाइयों को छू रहीं हैं वहीं दूसरी ओर सुरक्षा के शीर्ष पदों में भी देश का गौरव बढ़ा रहीं हैं।

भारत में महिला सुरक्षा कानून पर कारगर नहीं 

भारत में महिला सुरक्षा से जुड़े कानून की सूची बहुत लंबी है। इसमें हिंदू विडो रीमैरिज एक्ट 1856, इंडियन पीनल कोड 1860, मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1861, क्रिस्चियन मैरिज एक्ट 1872, मैरिड वीमेन प्रॉपर्टी एक्ट 1874,चाइल्ड मैरिज एक्ट 1929, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954, हिन्दू मैरिज एक्ट 1955, फॉरेन मैरिज एक्ट 1969, इंडियन डाइवोर्स एक्ट 1969, मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन एक्ट 1986, नेशनल कमीशन फॉर वुमन एक्ट 1990, सेक्सुअल हर्रास्मेंट ऑफ वुमन एट वर्किंग प्लेस एक्ट 2013 आदि शामिल हैं। इसके अलावा 7 मई 2015 को लोकसभा ने और 22 दिसम्बर 2015 को राज्यसभा ने जुवेनाइल जस्टिस बिल में भी बदलाव किया है। इसके अन्तर्गत यदि कोई 16 से 18 साल का किशोर जघन्य अपराध में लिप्त पाया जाता है तो उसे भी कठोर सजा का प्रावधान है।
देश में महिलाओं के प्रति खराब होते माहौल और आम आदमी की भूमिका 

देश में महिलाओं के प्रति खराब होते माहौल को बदलने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं अपितु आम आदमी की भी है। हम सभी को आगे आकर महिला सुरक्षा की लड़ाई में महिलाओं का साथ देना होगा तभी देश की मातृ शक्ति सिर उठा कर शान से चल सकेगी। फिर कोई विदेशी संस्था भारत के खिलाफ इस तरह की नकारात्मक रिपोर्ट जारी करने से पहले सौ बार सोचेगी। अब महिलाओं को समझना होगा कि आज समाज में उनकी दयनीय स्थिति समाज में चली आ रही परम्पराओं का परिणाम है। इन परम्पराओं को बदलने का बीड़ा स्वयं महिलाओं को ही उठाना होगा। कभी बेटियों की भागीदारी केवल सांस्कृतिक आयोजनों तक सीमित रहती थी, लेकिन आज भारत की बेटियां जल, थल, नभ और अंतरिक्ष में भी अपनी क्षमता का लोहा मनवा रही हैं, वह वर्तमान का यथार्थ भी है और बदलते भारत की नई तस्वीर भी।

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