आधुनिक हिंदी साहित्य के महापंडित राहुल सांकृत्यायन की 131 वीं जयंती पर विशेष ..!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
कहा गया है कि साहित्य में जो शक्ति होती है, वह तोप, तलवार एवं बम के गोलों में भी नहीं पायी जाती है। महावीर प्रसाद द्विवेदीजी ने तो यहां तक कहा है कि अन्धकार है वह देश जहां आदित्य नहीं मुर्दा है वह देश, जहां साहित्य नहीं। साहित्य का किसी देश से ही नहीं, उसके व्यक्ति, समाज सभी से घनिष्ठ सम्बंध होता है। इस प्रकार साहित्य देश के समाज से सम्बन्धित होता है। इस रूप में साहित्य और समाज एक दूसरे के पूरक होते हैं, उनका आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। समाज साहित्य का दर्पण होता है और साहित्य समाज का दर्पण होता है। कर्मयोगी योद्धा राहुल सांकृत्यायन का नाम हिंदी के घुमक्कड़ शास्त्र के प्रणेता के रूप में अपनी पहचान रखता है। यात्रा-वृत्तान्त पर आधारित उनकी पुस्तकें राहुलजी के बहुआयामी ज्ञान और विद्वता का परिचय देती हैं। मानव के सभी धर्मों के प्रति उनकी आस्था काफी गहरी है। सरल, सहज, आडम्बरमुक्त जीवन, जिसका आधार कर्म हो, वह राहुलजी का जीवन हो सकता था। कट्टर सनातनी ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी उन्हें सनातनी रूढ़िवाद रास नहीं आया। वे हर धर्म को तर्क की कसौटी पर कसकर उसे ग्रहण करते थे। विभिन्न धर्मों एवं शास्त्रों के मूल तत्व अपनाकर उनके बाह्य ढांचे छोड़ देते थे। वे किसी धर्म या विचारधारा के दायरे में नहीं बंधे। 


 राहुल सांकृत्यायन का जन्म, शिक्षा और पारिवारिक जीवन  
 
आधुनिक हिंदी साहित्य के महापंडित, इतिहासविद, पुरातत्ववेत्ता, त्रिपिटकाचार्य, एशियाई नवजागरण के प्रवर्तक-नायक राहुल सांकृत्यायन एक महान पंडित के साथ हिंदी यात्रा साहित्य के जनक भी थे। इनका जन्म 9 अप्रैल सन 1893 ई० को रविवार के दिन अपने ननिहाल पंडित रामशरण पाठक के यहाँ  पंदहा  नामक ग्राम में हुआ था,जो आजमगढ़ जिले के अंतर्गत आता है। इनका पैतृक गांव कनैला था। राहुल सांस्कृतायन की माता का नाम कुलवन्ती देवी और पिता गोवर्धन पाण्डेय था। दोनों की असामयिक मृत्यु के चलते वह ननिहाल में पले-बढ़े। इनका बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। वैष्णव धर्म की दीक्षा लेने के बाद उनका नाम राम उदारदास हो गया। इनका “सांकृत्या” गोत्र होने के कारण ही ये सांकृत्यायन कहलाये। राहुल जी के चार भाई और एक बहन थी जिसमे राहुल जी सबसे बड़े थे। राहुल जी की बौद्ध धर्म में गहरी आस्था थी, इसलिए इन्होंने अपना नाम केदारनाथ से बदल कर भगवान गौतम बुद्ध के पुत्र के नाम पर राहुल रख लिया था। वे प्रारंभ में साम्यवादि विचारधारा से जुड़े थे बाद में बौद्ध धर्म की और उनका झुकाव हो चला था। इनके नाना पंडित रामशरण पाठक सेना में सिपाही थे, जिसके चलते इनके नाना दक्षिण भारत की बहुत यात्राएं किये थे। जिनके नाना अपने बीते वर्षो की कहानी बालक केदारनाथ को सुनाते थे। और इसी के चलते इनके मन में यात्रा के प्रति काफी उत्सुकता भर गयी। 
त्रिपिटकाचार्य, पद्मभूषण, महापंडित राहुल सांकृत्यायन की शिक्षा :

हिंदी साहित्य के युग परिवर्तनकार साहित्यकार माने जाने वाले महापंडित राहुल सांकृत्यायन की प्राथमिक शिक्षा इनके पैतृक गांव से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर रानी की सराय की पाठशाला में हुआ था। जहाँ पर इन्होंने कक्षा तीसरी की किताब (मौलवी इस्माइल की उर्दू की चौथी किताब) को पढ़ी थी। जिसमे एक शेर इस प्रकार लिखा था- “सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ ? जिंदगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ ?” इस शेर के संदेश ने इनके मन बहुत ही गहरा प्रभाव डाला। और इनके अंदर देश-विदेश घूमने की इच्छा जगी। रानी की सराय में शिक्षा पूरा होने के बाद ये निजामाबाद अपनी शिक्षा के लिए गए जहाँ पर इन्होंने सन 1907 ई० में उर्दू से मिडिल पास किया। इसके बाद इन्होंने संस्कृत की उच्च शिक्षा वाराणसी से प्राप्त किया। इसके बाद इन्होंने अपनी पढाई रोक दी, पर इनके पिता की इच्छा थी की ये आगे भी पढ़े। राहुलजी का विवाह बचपन में कमला जी से क्र दिया गया था। यह विवाह उनके जीवन की एक बहुत बड़ी घटना थी जिसकी वजह से उन्होंने किशोरावस्था में ही घर छोड़ दिया था। घर से भाग कर ये एक मठ में साधु हो गए। लेकिन अपनी यायावरी स्वभाव के कारण ये वहां भी टिक नहीं पाए। चौदह वर्ष की अवस्था में ये कलकत्ता भाग आए। इनके मन में ज्ञान प्राप्त करने के लिए गहरा असंतोष था इसीलिए वह भारत में कहीं एक जगह नहीं टिकते थे। इनको पढाई और घर का बंधन अच्छा न लगा। ये देश-विदेश घूमना चाहते थे। वाराणसी में उन्होंने संस्कृत और दर्शनशास्त्र का गहन अध्ययन किया और वेदान्त के अध्ययन के लिए अयोध्या पहुंच गए। अरबी की पढ़ाई के लिए वह आगरा गए तो फारसी की पढ़ाई के लिए लाहौर की यात्रा की। राहुलजी को ऊर्दू, हिन्दी, संस्कृत, अरबी, अंग्रेजी, फारसी, पाली, तमिल, कन्नड़, रूसी, फ्रांसीसी, जापानी, तिब्बती सहित लगभग 36 भाषाओं का ज्ञान था। लेकिन उन्हें हिन्दी से ज्यादा प्यार था। राहुल सांकृत्यायन को उनके जीवन के अनुभवों ने पंडित से महापंडित बनाया। उनके इन्हीं अनुभवों से आज भी अनेकों लोग सीखते हैं। राहुल जी की विद्यवता के कारण ही सोवियत संघ और श्रीलंका में पढ़ाने के लिए उन्हें बुलाया गया। 


 
राहुल सांकृत्यायन साहित्यिक परिचय:

त्रिपिटकाचार्य, पद्मभूषण,  महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन ने अपने सामाजिक और साहित्यिक कर्म को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते थे। उन्हें भारतीय संस्कृति और भारतीय जनता से अगाध प्रेम था। वे जनता के रचनाकार थे। महापंडित राहुल सांकृत्यायन हिंदी साहित्य की अद्वितीय विभूति हैं। संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान होते हुए भी ये जनसाधारण की भाषा लिखने के पक्षपाती रहे। ये बहुभाषी होने के कारण अनेक भाषाओ में पुस्तकें लिखकर साहित्य की सेवा की। उन्होंने 20 साल की उम्र में लेखन के क्षेत्र में हाथ आजमाना शुरू कर दिया था। उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रंथ ‘मज्झिम निकाय’ का प्राकृत से हिंदी अनुवाद किया। हिंदी में उनकी एक प्रसिद्ध किताब ‘वोल्गा से गंगा’ (वोल्गा से गंगा तक की यात्रा) है- जिसमे इन्होंने ऐतिहासिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए वोल्गा नदी और गंगा नदी तक के इतिहास का वर्णन किया है। राहुल जी घूमने-फिरने के बहुत ही शौक़ीन थे। इनका विदेश यात्रा का सिलसिला 1923 से ही शुरू हो गया था। इन्होंने कई बार तिब्बत, श्रीलंका तथा सोवियत संघ की यात्रा की। इन्होंने अपना 6 महीना यूरोप में ही ब्यतीत किया था। इसके आलावा इन्होंने कोरिया, ईरान, अफगानिस्तान, जापान, नेपाल, मंचुरिया जैसे देशो की भी यात्राएँ की थी। और भारत में इन्होंने लगभग हर जगह की यात्राएं की थी। इनका अध्यन जितना विशाल था, उतना ही विशाल इनका साहित्य-सृजन था।
बहुभाषाविद राहुल जी ने हिंदी साहित्य के अतिरिक्त धर्म-दर्शन, लोक-साहित्य, यात्रा-साहित्य, जीवनी, राजनीति, इतिहास, संस्कृत ग्रंथों की टीका और अनुवाद, तिब्बती भाषा एवं बालपोथी संपादन आदि पर साधिकार लिखा। राहुल जी ने हिंदी भाषा साहित्य में ‘अपभ्रंश काव्य साहित्य’, ‘दक्खिनी हिंदी साहित्य’ और ‘आदि हिंदी की कहानियां’ प्रस्तुत करके लुप्तप्राय निधि का उद्धार किया। सर्वथा नया दृष्टिकोण उनकी मौलिक कहानियों और उपन्यासों की विशेषता था। उनकी रचनाओं का विशिष्ट पक्ष था, अन्य किसी के ध्यान में नहीं आने वाले प्राचीन इतिहास या वर्तमान के अछूते भागों का अन्वेषण करना। 

राहुल सांकृत्यायन मार्क्सवाद और बौद्ध मत से प्रभावित थे 

महापंडित राहुल सांकृत्यायन हिंदी यात्रा साहित्य के जनक के पद पर प्रतिष्ठित हैं। पंडित राहुल ने ज्ञानार्जन के लिए तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया था और खच्चरों पर लाद कर दुर्गम पहाड़ों के बीच से 20 हजार से ज्यादा ग्रंथों की पांडुलिपी तिब्बत से लाई थी। इन यात्राओं के बीच उन्होंने ‘सरहपा’ नामक कवि को भी ढूंढ़कर निकाला था। चीन की सरकार ने उन्हें तिब्बत का सांस्कृतिक इतिहास लिखने हेतु आमन्त्रित किया था। इस घुमक्कड़ी स्वभाग के कारण वे आर्य समाज, मार्क्सवाद और बौद्ध मत से प्रभावित हो गए। उन्होंने 1917 में रूस की यात्रा तब कि जबकि वहां रूसी क्रांति हो रही थी। इस पर उन्होंने एक किताब भी लिखी है। इसके अलावा वे श्रीलंका, चीन, जापान और तिब्बत की यात्रा भी की। तिब्बत से जब भारत लौटे तो महत्वपूर्ण ग्रंथों को भारत लेकर आए। इसके अलावा इंग्लैण्ड और यूरोप की यात्रा भी की। दो बार लद्दाख यात्रा दो बार तिब्बत यात्रा, जापान, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत भूमि (1935 ई.), ईरान में पहली बार, तिब्बत में तीसरी बार 1936 ई. में, सोवियत भूमि में दूसरी बार 1937 ई. में तिब्बत में चौथी बार 1938 ई. में यात्रा की। 1921 में वह महात्मा गांधी के साथ जुड़ गए और इस दौरान उन्होंने अपने व्याख्यानों, लेखों और पुस्तकों से पूरी दुनिया को भारत से बाहर बिखरे बौद्ध साहित्य से अवगत कराया। उनकी विद्वता के चलते काशी के बौद्धिक समाज ने उन्हें 'महापंडित' के अलंकार से सम्मानित किया। अपनी यात्राओं के दौरान और बौद्ध धर्म के गहन अध्यन करने के बाद राहुलजी बौद्ध धर्म से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना नाम केदारनाथ से बदलकर राहुल सांस्कृतायन रख लिया। सन् 1930 में श्रीलंका जाकर वे बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए एवं तभी से वे 'रामोदर साधु' से 'राहुल' हो गए। 

राहुल सांकृत्यायन ने अपने जीवन में तीन शादियां की

राहुल सांकृत्यायन ने अपने जीवन में कुल तीन शादियां की थी। उनकी पहली शादी तो बचपन में ही हो गई थी। पहली पत्नी का नाम संतोषी देवी था, जिनसे वे अपने जीवन काल में एक बार मिले थे। जब वे रूस में 1937-38 में लेनिनग्राद यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लिए गये थे, उस दौरान उनकी मुलाकात लोला येलेना से हुई। दोनों में प्रेम हुआ और शादी हुई। वहीं उनके बड़े बेटे इगोर का जन्म हुआ। जब वो भारत लौटे, तो उनकी पत्नी और बेटा वहीं रह गए। इसके बाद जीवन के आखिरी दौर में राहुल सांकृत्यायन की शादी डॉ. कमला से हुई। इन दोनों की तीन संतान हुईं। एक बेटी और दो बेटे। अपने जीवन काल में कम शिक्षित होने के बाद भी उस मुकाम पर पहुंच गये की वे एक मील का पत्थर बन गए। साल 1961 में उनकी स्मृति खो गई। इसी दशा में ऐसे मानुष का 70 साल की अवस्था में 14 अप्रैल, 1963 को दार्जिलिंग में निधन हो गया  राहुल जी ने अपनी यात्रा के अनुभवों को आत्मसात करते हुए 'घुमक्कड़ शास्त्र' भी रचा। राहुल जी एक कर्मयोगी योद्धा थे, इन्होंने बिहार के किसान आन्दोलन में भी अपनी प्रमुख भूमिका निभाई। जिससे उनको सन 1940 में आंदोलन के कारण एक वर्ष के लिए जेल भी जाना पड़ा। सन 1947 के दौरान अखिल भारतीय सम्मेलन में अध्यक्ष के रूप में  उन्होंने पहले से छपे भाषण को कहने से इंकार कर दिया, जिससे उनको पार्टियों की सदस्यता से हटा दिया गया। फिर उनको 1953-1954 के दौरान उसी पार्टी का सदस्य बनाया गया।
 राहुल सांकृत्यायन की 'कृतियां' :-

राहुल जी की प्रतिभा बहुमुखी थी। विविध विषयों से सम्बन्धित लगभग 150 ग्रन्थों की रचना उन्होंने की जिनमें से प्रमुख निम्नवत् हैं : यात्रा-साहित्य- (1) मेरी लद्दाख यात्रा, (2) मेरी तिब्बत यात्रा, (3) मेरी यूरोप यात्रा, (4) यात्रा के बन्ने, (5) रूस में पच्चीस मास, (6) धुमक्कड़ शास्त्र, (7) एशिया के दुर्लभ भू-खण्डों में आदि। 
कहानी संग्रह- (1) कनैला की कथा, (2) सतमी के बच्चे, (3) बहुरंगी मधुपुरी, (4) वोल्गा से गङ्गा आदि। और ‘आत्मकथा मेरी जीवन यात्रा’ लिखी।
धर्म और दर्शन- (1) बौद्ध दर्शन, (2) दर्शन दिग्दर्शन, (3) धम्मपद (4) बुद्धचर्या (5) मज्झिमनिकाय आदि।
 कोश ग्रंथ - (1) शासन शब्दकोश, (2) राष्ट्रभाषा कोश, (3) तिब्बती-हिन्दी कोशा
जीवनी साहित्य- (1) नये भारत के नये नेता, (2) महात्मा बुद्ध (3) कार्ल माक्स, (4) लेनिन, स्टालिन, (5) सरदार पृथ्वीसिंह, (6) वीर चन्द्रसिंह गढवाली आदि।
 उपन्यास- (1) मधुर स्वप्न, (2) जीने के लिए, (3) विस्मृत यात्री, (4) जय यौधेय, (5) सप्त सिन्धु (6) सिंह सेनापति, (7) दिवोदास आदि।
 साहित्य और इतिहास- (1) मध्य एशिया का इतिहास, (2) इस्लाम धर्म की रूपरेखा, (3) आदि हिन्दी को कहानियां, (4) दक्खिनी हिन्दी काव्य धारा आदि। विज्ञान- (1) विश्व की रूपरेखाएं।
 देश-दर्शन- (1) किन्नर देश, (2) सोवियत भूमि, (3) जौनसार-देहरादुन, (4) हिमालय प्रदेश आदि। 
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने 'भागो नहीं दुनिया को बदलो' के माध्यम से सोये हुए समाज को जगाने का प्रयास किया। उन्होंने अल्पसमय में देश-दुनिया का भ्रमण कर समाज को एक नया संदेश दिया था। बौद्ध साहित्य के सृजन में पंडित राहुल सांकृत्यायन जी का अनन्य साहसिक योगदान रहा है, जिसे युगों-युगों तक याद रखा जाएगा।
राहुल सांकृत्यायन की स्मृति में भारतीय डाक-तार विभाग की ओर से 1993 में उनकी जन्मशती के अवसर पर सौ पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया गया। पटना में राहुल सांकृत्यायन साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन हिंदी साहित्य की अद्वितीय विभूति हैं। नालंदा विश्वविद्यालय में जो मूल ग्रंथ नष्ट हो गए थे, उन्हें ढूंढने के लिए राहुल सांस्कृतायन चार बार तिब्बत गए। राहुल जी ने ठीक वैसा ही प्रशंसनीय काम किये, जैसा सातवीं सदी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किया था। ह्वेनसांग भारतीय ज्ञान को चीन ले गए थे और राहुल जी ने भारत में लुप्त हुए ज्ञान को तिब्बत से वापस ले आए।

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