ककड़िया विद्यालय में चक्रवर्ती सम्राट अशोक की 2328 वीं जयंती मनाई गई...!!

ककड़िया- नूरसराय, 16 अप्रैल 2024, विक्रम संवत 2081 चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी : स्थानीय मध्य विद्यालय ककड़िया के प्रांगण में विद्यालय के चेतना सत्र में चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान की 2328 वीं जयंती समारोह श्रद्धा पूर्वक मनाया गया। जिसकी अध्यक्षता विद्यालय के प्रधानाध्यापक शिक्षाविद् दिलीप कुमार ने जबकि संचालन विद्वान शिक्षक जितेन्द्र कुमार मेहता ने किया। 
प्रधानाध्यापक दिलीप कुमार के नेतृत्व में शिक्षकों के साथ छात्र-छात्राओं ने सम्राट अशोक के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धा निवेदित किया एवं उनके बताए मार्गों पर चलने का संकल्प दोहराया। उन्होंने कहा कि चक्रवर्ती सम्राट अशोक भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। इनका कार्यकाल ईसा पूर्व 269 से 232 ईसवी तक रहा। सम्राट अशोक ने उत्तर में हिदू कुश तक्षशिला की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी सुवर्ण गिरी पहाड़ी के दक्षिण में मैसूर तक तथा पूरब में बांग्लादेश पाटलिपुत्र से पश्चिम में अफगानिस्तान ईरान बलूचिस्तान तक अपनी सत्ता कायम की थी। उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक के आदर्श अपनाने की आवश्यकता है।
मौके पर विद्यालय के वरीय शिक्षक शिक्षाविद् राकेश बिहारी शर्मा ने अपने सम्बोधन में सम्राट अशोक के जीवन चरित्र पर चर्चा करते हुए कहा कि वे एक शक्तिशाली एवं प्रतापी राजा थे। उन्हें चक्रवती सम्राट अशोक भी कहा जाता है। जिसका अर्थ है सम्राटों में सम्राट और यह स्थान केवल सम्राट अशोक को मिला है। चक्रवर्ती सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म प्रचारक के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने संपूर्ण एशिया में बौद्ध धर्म का खूब प्रचार-प्रसार किया। सम्राट अशोक न्यायप्रिय राजा थे। बौद्ध धर्म के महान प्रचारक सम्राट अशोक ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र में बसाया था। जिसका कुछ अवशेष आज भी देखने लायक है। महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था। जिसके स्मृति में सम्राट अशोक वहां एक स्तंभ स्थापित किया था। इस स्तंभ को भारत सरकार अपना राष्ट्रीय चिह्न के रूप में संवैधानिक स्तर पर स्वीकृति मिली। अशोक स्तंभ के नीचे सत्यमेव जयते अंकित है। चार दिशाओं में सिंह खड़े, पैरों के नीचे भूमि पर हाथी, घोड़ा, भैंसा अंकित है। सिंह के पैरों के नीचे बीच में बने चक्र को अशोक चक्र के रूप में देश ने विरासत के रूप में शामिल किया है। सिंह को भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक मान लिया गया है। सत्यमेव जयते को भी अपनाया गया है। इतना ही नहीं भारत में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्राट अशोक के नाम पर अशोक चक्र प्रदान करने की परंपरा रही है।
 शिक्षक सच्चिदानंद प्रसाद ने कहा कि भारत के महान सम्राट अशोक का साम्राज्य जितना विशाल था उतना ही ज्यादा उनका हृदय भी विशाल था जिसमें न सिर्फ मानवमात्र के प्रति सेवा और करुणा का भाव भरा हुआ था बल्कि उनमें समस्त जीव-जगत के प्रति प्रेम और दया का भाव निहित था। यही कारण है कि उन्होंने न सिर्फ अपने राज्य में सड़कें और सराय बनवाई बल्कि उन सड़कों के किनारे वृक्ष भी लगवाए तथा तालाब और नहरें भी खुदवाई। 
शिक्षक सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि शुरुआत में सम्राट अशोक भी प्राचीन काल के अन्य सामान्य राजाओं के समान ही थे जब वे अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए अन्य राजाओं के खिलाफ युद्ध में उलझे रहते थे। लेकिन जब उन्होंने कलिंग युद्ध में भारी रक्तपात देखा तो उनका हृदय परिवर्तित हो गया तथा उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। इसके बाद से उन्होंने अपना समस्त जीवन मनुष्यों समेत तमाम जीवों की भलाई में समर्पित कर दिया जिसके कारण बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार समस्त भारत वर्ष के अलावा चीन, जापान, श्रीलंका, बर्मा, श्याम, कंबोडिया, इत्यादि देशों में संभव हो सका।
विद्यालय के शिक्षक अरविंद कुमार शुक्ला ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आज भारत का राजकीय चिन्ह- ‘अशोक-स्तंभ’ हमें यह बताता है कि लोगों पर राज करने वाले राजे-महाराजे एवं उनका साम्राज्य तो मिट जाता है लेकिन मानवता की भलाई के लिए किसी भी व्यक्ति के द्वारा किया गया कार्य कभी नहीं मिटता। आज सम्राट अशोक के जीवन से हमें यही शिक्षा मिलती है।

शिक्षक जितेंद्र कुमार मेहता ने बच्चों के बीच बोधकथा सुनाते हुए कहा कि सम्राट अशोक का नाम संसार के महानतम व्यक्तियों में गिना जाता है।
 शिक्षक मनुशेखर कुमार ने उन्हें भारत को एक सूत्र में बांधने वाला बताया। उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक के समय वर्मा (म्यांमार) से लेकर अफगानिस्तान तक भारत एक था।
इस दौरान समारोह में शिक्षक अनुज कुमार, सुरेश कुमार, सतीश कुमार, विश्वरंजन कुमार, रणजीत कुमार सिन्हा, मो.रिज़वान आफ़ताब, मुकेश कुमार, पूजा कुमारी, रामजी चौधरी एवं छात्र-छात्रा मोहित कुमार, वीरमणि कुमार, रजनीश कुमार, नीतू कुमारी,रागनी कुमारी, सोनाली कुमारी,रेखा कुमारी सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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