ककड़िया विद्यालय में मनाई गई वीर कुंवर सिंह की जयंती..!
नूरसराय-ककड़िया, 23 अप्रैल 2024 : स्थानीय मध्य विद्यालय ककड़िया के प्रांगण में स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध नायक वीर कुँवर सिंह की जयंती समारोह श्रद्धा पूर्वक मनाया गया। जिसकी अध्यक्षता विद्यालय के प्रधानाध्यापक शिक्षाविद् दिलीप कुमार ने जबकि संचालन विद्वान शिक्षक राकेश बिहारी शर्मा ने किया।
समारोह की शुरुआत प्रधानाध्यापक दिलीप कुमार, शिक्षक राकेश बिहारी शर्मा एवं उपस्थित शिक्षकों तथा विद्यार्थियों ने बाबू वीर कुंवर सिंह के तस्वीर पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धा से याद किया।
इस अवसर पर समारोह में विषय प्रवेश कराते हुए शिक्षक राकेश बिहारी शर्मा ने उपस्थित छात्रों को आजादी में वीर कुंवर सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका बतायी। छात्रों को एक अच्छा नागरिक बनने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने छात्रों को स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्षों से सीखने और दिन-प्रतिदिन की चुनौतियों का सामना करने में अधिक साहसी बनने के लिए प्रेरित किया। विद्यार्थियों को राष्ट्रीय एकता एवं भाईचारे के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि बाबू वीर कुंवर सिंह एक राजघराने से थे। मातृभूमि की रक्षा के लिए 80 वर्ष की उम्र में आजादी की जंग में कूद पड़े। 25 जुलाई 1857 से लेकर 23 अप्रैल 1858 के बीच उन्होंने 15 बड़ी लड़ाइयां लड़ी थी। 11 महीने की इस लड़ाई में वीर कुंवर सिंह ने अंग्रेजों को अपनी तलवार से गाजर-मूली की तरह काटा था। इस उम्र में अच्छे खासे बिस्तर पकड़ लेते हैं, लेकिन आजादी के इस महानायक ने ऐसा पराक्रम दिखाया कि अंग्रेज भी कांप उठे थे। उन्हें अदम्य साहस, वीरता, त्याग एवं बलिदान की प्रतिमूर्ति बताया। ऐसे वीर बाकूड़े बाबू वीर कुंवर सिंह की जीवनी से आज के युवाओं को उनकी साहस, पराक्रम तथा वीरता से प्रेरणा लेनी चाहिए। अंग्रेजो के खिलाफ यह विजय उन्हें 23 अप्रैल 1857 को मिली थी, इसलिए आज के दिन को विजयोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। उन्होंने बच्चों को कहा कि महान कार्य करके ही कोई व्यक्ति महापुरुष बनता है। महापुरुषों से सभीको सीख लेनी चाहिए।
अध्यक्षता करते हुए प्रधानाध्यापक दिलीप कुमार ने बताया कि बाबू वीर कुंवर सिंह को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक रूप में जाना जाता है, जो 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने का क्षमता रखते थे। अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी बाबू वीर कुंवर सिंह कुशल सेना नायक थे। अपने ढलते उम्र और बिगड़ते सेहत के बावजूद भी उन्होंने कभी भी अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि उनका डटकर मुकाबला किया।
आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शिक्षक सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि आजादी के इस महान योद्धा की गाथा को याद कर देशवासियों को गर्व की अनुभूति होती है। 80 वर्ष की उम्र में भी अंग्रेजी हुकूमत की ईंट से ईंट बजाने वाले वीर सेनानी बाबू वीर कुंवर सिंह हमेशा युवाओं एवं छात्र छात्राओं के लिए प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।
शिक्षक जितेन्द्र कुमार मेहता ने कहा कि बाबू वीर कुंवर सिंह ने अपनी कुशलता एवं योग्यता के बल पर ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला कर रख दी थी। उन्होंने बेहतरीन युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया और लगभग एक साल तक ब्रिटिश सेना को परेशान किया तथा अंत तक अजेय रहे।
शिक्षक सच्चिदानंद प्रसाद ने भारत माता के इस वीर सपूत को याद करते हुए कहा भारत ही नहीं पूरी दुनिया में शायद हीं कोई दूसरा उदाहरण हो कि कोई व्यक्ति 80 वर्ष के उम्र में मातृभूमि के लिये अपनी जान की बाजी लगाया हो। बाबू वीर कुवंर सिंह जी गुरिल्ला युद्ध कला के विशेषज्ञ थे।
शिक्षक अरविन्द कुमार शुक्ला ने कहा- 1857 का आंदोलन भारत का पहला स्वतंत्रता आंदोलन था। इस आंदोलन के समय बाबू वीर कुवंर सिंह यदि युवा होते तो हमें उसी समय आजादी मिल जाती परन्तु 80 के उम्र में भी भारत माता के इस लाल ने जो पराक्रम दिखाया इतिहास में वह अद्वितीय है।
शिक्षक मनुशेखर कुमार गुप्ता ने कहा कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा बाबू वीर कुंवर सिंह ने जिस सामाजिक समरसता के साथ भारतीय को एकजुट कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वह हमारे इतिहास में मिसाल बन गया है।
शिक्षक अनुज कुमार ने कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम योद्धा थे वीर कुँवर सिंह जी। उनकी जयंती हमें स्वाभिमानी होने का बोध कराती है।
शिक्षक रणजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि बाबू वीर कुंवर सिंह देश के सच्चे सपूत थे। जिन्होंने देश की आन-बान-शान के लिए अपने प्राण को न्योछावर किया।
इस समारोह में शिक्षक सतीश कुमार, शिक्षक मुकेश कुमार, शिक्षा सेवक रामजी चौधरी, बाल संसद के प्रधानमंत्री वीरमणि कुमार तथा विद्यालय परिवार के सदस्य समेत कई गणमान्य लोग मौजूद थे।
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