साहित्यकार व गीतकार मुनेश्वर शमन के निधन पर श्रद्धांजलि सभा ....!!
बिहारशरीफ 20 मई 2024 : स्थानीय बिहारशरीफ-छोटी पहाड़ी स्थित गायक एवं गीतकार साहित्यसेवी रामसागर राम जी के आवास पर 19 मई दिन रविवार को देरशाम शंखनाद साहित्यिक मंडली के तत्वावधान में हिन्दी, मगही एवं भोजपुरी के प्रख्यात गीतकार एवं साहित्यकार मुनेश्वर शमन की असामयिक निधन पर शंखनाद के वरीय सदस्य एवं शमन जी के परम् मित्र बख्तियारपुर निवासी साहित्यकार व ख्यातिप्राप्त कवि डॉ. रामाश्रय झा की अध्यक्षता एवं चर्चित् शायर नवनीत कृष्ण के संचालन में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।
मौके पर श्रद्धांजलि सभा में शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि मुनेश्वर शमन का जन्म 6 जुलाई, 1946 ई. को लक्खीसराय जिले के छोटे से गाँव नन्दनामा में पिता स्व. पूना रजक एवं माता स्व. मन्नका देवी के घर में हुआ था। इनका बचपन का नाम मुनेश्वर रजक था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा नन्दनामा ग्राम में ही हुई थी। इन्होने 1968 में स्नातक कला टी० एन० बी० महाविद्यालय भागलपुर से की।पहली बार मार्च 1970 में राँची के महालेखागार कार्यालय में अंकेक्षक के पद पर सेवारत हुए थे। पढ़ाई जारी रखते हुए उन्होंने नबम्बर 1975 में बिहार राज्य प्रशासनिक सेवा के सदस्य बने।
अक्टूबर 1991 में उपसमाहर्ता बन कर नालन्दा आये थे। 1993-94 में राजगीर के अनुमंडल पदाधिकारी बनाये गए, तथा दिसम्बर 1999 तक नालन्दा के वरीय उपसमाहर्ता रहे थे। जनवरी 1999 में दुमका के परिवहन आयुक्त बने और वही से 2004 में सेवा निवृत्त होकर बिहारशरीफ में अपना घर बना कर रहने लगे। ये जब साहित्य की सेवा करने लगे तो अपना साहित्यिक नाम मुनेश्वर शमन रख लिया। ये बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। इनका जन्म कहीं हुआ हो लेकिन नालंदा के बिहारशरीफ में अपना घर बनाकर वो नालंदा का होकर रह गये। मुनेश्वर शमन जी का निधन अपने आवास बिहारशरीफ में 15 मई 2024 दिन बुधवार को संध्या 3:30 बजे अचानक हृदयगति रूक जाने से हो गई। शमन जी के मौत से शंखनाद से जुड़े लोग मर्माहत हैं। ये साहित्यकार के साथ-साथ उच्च कोटि के गीतकार एवं कवि थे। अपनी रचना से वे समाज को जागृत करते रहते थे। शमन जी शंखनाद साहित्यिक मंडली से जुड़े एक अलग व्यक्तित्व रखनेवाले धनी पुरुष थे, जो किसी को कहते थे तो मुँह पर किसी के पीछे शिकायत नहीं करते थे। अपनी कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं करते। जीवन शैली इनकी ऐसी होती है कि लोग देख उन्हें दाँतो तले ऊँगली दबाते हैं। इनको गुमान नहीं, कोई अहम् नहीं यदि कुछ है तो अति मिलनसार, सरल स्वभाव, मृदुल वचन लच्छेदार शब्द बहुभाषित, बहुपठित एवं मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत थे। वर्तमान समय में उनकी रचनाओं और कवि सम्मेलनों तथा काव्य गोष्ठियों को भुलाया नही जा सकता है। इनका जुड़ाव कई साहित्यिक मंचों से रहा। इन्होने दर्जनों पुस्तकों की रचना की है। उनमें मुख्य से रूप से कई गीत-संग्रह प्रकाशित हुए हैं। एक 'चाहा कितनी बार', 'धरती और चाँद', 'धरती के गीत', 'चाहा कितनी बार', एवं कहाँ आ गये हम’ कविता-संग्रह इनकी प्रमुख रचनायें है। इनकी कई रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुईं तथा आकाशवाणी पटना से इनके गीतों का प्रसारण भी सदैव होता रहा। ये मर्मस्पर्शी गेय कवि एवं प्रख्यात साहित्यकार थे।
अध्यक्षता करते हुए हिंदी के प्रकांड विद्वान साहित्यकार डॉ. रामाश्रय झा ने कहा है कि मुनेश्वर शमन जी शृंगारिक और मर्मस्पर्शी गेय कवि थे, इनका कंठ गीला था। ये निर्भीक प्रशासनिक पदाधिकारी के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने विभिन्न विधाओं में रचनाएं की थी। उनकी रचनाओं में गरीबों और मजलूमों की आवाज है। उनके निधन से वर्तमान साहित्य को अपूरणीय क्षति हुई है। जिसकी भरपाई निकट समय में संभव नहीं है।
मौके पर शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार व इतिहासज्ञ डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि कविवर मुनेश्वर शमन जी की कई पुस्तकें प्रकाशित हुई है, जो समाज का आईना है। प्रशासनिक सेवा से अवकाश प्राप्ति के बाद कवि शमन जी का कविधर्म जग उठा था और अपनी लेखनी से वह सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ आवाज उठाने और व्यंग्य किया करते थे। उनका निधन साहित्य के क्षेत्र के लिए अपूरणीय क्षति है। वे कविता और साहित्य के माध्यम से समाज को संदेश देने का काम किया है।
हिंदी के प्रकांड विद्वान डॉ. शक़ील अहमद ने कहा कि मुनेश्वर शमन जी हिंदी-मगही साहित्य का प्रतिनिधित्व करने वाले गीतकार व साहित्यकार थे। इनके आकस्मिक निधन से जो जगह खाली हुई है उसे भर पाना संभव नही हैं।
साहित्यकार व नामचीन शायर बेनाम गिलानी ने कहा कि हमें गर्व है, मुनेश्वर शमन जी हमारे नालंदा के रहने वाले थे। मगही और हिंदी भाषा उनके रग-रग में समाहित था। उनका लेखकीय अवदान हिंदी-मगही साहित्य में हमेशा आदर के साथ लिया जाएगा।
साहित्यकार डॉ. गोपाल शरण सिंह नालन्द ने कहा कि कविवर शमन जी सिर्फ कविता का निर्माण नहीं किया बल्कि क्रांतिकारी आलोचना भी किया है।
कवि महेंद्र कुमार विकल ने कहा कि शमन जी एक सफल गायक एवं गीतकार ही नहीं थे बल्कि एक सफल शृंगारिक कवि भी थे।
शायर तंग अय्यूवी ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि प्रदेश या नालन्दा में जब भी मगही-हिंदी और उर्दू साहित्य की बात होगी, गीतकार व साहित्यकार मुनेश्वर शमन जी का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।
इस अवसर पर शंखनाद के कोषाध्यक्ष साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह, साहित्यसेवी शिक्षाविद् रामसागर राम, धीरज कुमार, नारायण कुमार, काविस परवाज़ आदि ने उन्हें श्रद्धा सुमन समर्पित किया और अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की। श्रद्धांजलि सभा में दो मिनट का मौन रखकर साहित्यकारों एवं कवियों ने प्रख्यात साहित्यकार व गीतकार मुनेश्वर शमन जी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
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