शंखनाद के साहित्यिक यात्रा में मगही उपन्यास "पितिरबुर्ग से मास्को के यात्रा" का हुआ लोकार्पण ..!!
बिहारशरीफ, 5 मई 2024 : साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में स्थानीय बिहारशरीफ के भैसासुर मोहल्ले में साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह के आवास स्थित सभागार में शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता तथा शायर नवनीत कृष्ण के संचालन में शंखनाद, नालंदा की साहित्यिक यात्रा में आज नारायण प्रसाद की सातवीं मगही रचना "पितिरबुर्ग से मास्को के यात्रा" का लोकार्पण बिहार के नामचीन लेखक एवं साहित्यकारों द्वारा किया गया।
पुस्तक लोकार्पण के मौके पर विषय प्रवेश कराते हुए शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने लोकार्पित पुस्तक के बारे में कहा कि मगही भाषा के विकास के लिए अनवरत काम करने वाले नारायण प्रसाद की सातवीं मगही रचना "पितिरबुर्ग से मास्को के यात्रा" का विमोचन किया गया है। उन्होंने कहा कि मगही भाषा दुनिया की सबसे सरल एवं मधुर भाषा है। यह भाषा कभी मौर्य साम्राज्य की राजभाषा हुआ करती थी। बोल चाल एवं काम काज की यही प्रमुख भाषा था। परन्तु आजकल मगही भाषा भाषी लोग ही इसे उपेक्षा कर रहे हैं। इसे पुनः गौरवशाली जगह दिलाने हेतु मगध के लोगों को ही आगे आना होगा। इस पुस्तक को अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक रेडशाईन इंडिया, गुजरात ने प्रकाशित किया है। लेखक नारायण प्रसाद जी पेशे से इंजीनियर होने के बावजूद अपनी मातृभाषा मगही को समृद्ध करने के लिए लगातार साहित्य सृजन कर रहे हैं। मगही भाषा में सबसे अधिक किताबें लिखने वाले लेखकों में इनका स्थान प्रथम है। पिछले दिनों इनकी हालिया प्रकाशित मगही रचना "अपमानित आउ तिरस्कृत" का विमोचन हुआ, जिसे रेडशाईन ने प्रकाशित किया है।
अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासज्ञ डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि "पितिरबुर्ग से मास्को के यात्रा" एक प्रसिद्ध रूसी लेखक अलिक्सान्द्र रादिषेव की क्रांतिकारी उपन्यास का मगही अनुवाद है, जो मई 1790 में प्रकाशित हुई थी। रादिषेव ने अपनी रचना में तत्कालीन रूस के सामाजिक व्यवस्था के बारे विस्तृत जानकारी के साथ-साथ वहाँ की ज़ारशाही की अमानवीय व्यवहार और क्रूरता को उजागर की है। उन्होंने कहा कि नारायण प्रसाद ने कई रूसी उपन्यासकारों की रचनाओं का मगही में अनुवाद किया है। मगही भाषा का इतिहास गौरवशाली रहा है। परन्तु वर्तमान में इसके लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
मौके पर मगही भाषा के नामचीन हस्ताक्षर साहित्यकार, अनुवादक नारायण प्रसाद ने लोकार्पित पुस्तक के बारे में बताते हुए कहा कि "पितिरबुर्ग से मास्को के यात्रा" उपन्यास की रचना में वर्णित अनेक घटनाएं, कुरीतियों, शोषण आदि जो तत्कालीन रूस में प्रचलित थीं, उजागर किया गया है। इससे रूसी साम्राज्य की क्रूरता और सामाजिक कुव्यवस्था, किसान-मजदूरों का शोषण-उत्पीड़न आदि समस्या का विस्तृत विवरण है। जिसके कारण ही इसे ज़ारशाही ने प्रतिबंधित किया था। इसके लेखक रादिषेव को रूसी क्राँति का जनक माना जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक एवं उसकी लेखन प्रक्रिया में होने वाले अनुभवों को भी साझा किया।
मौके पर हिंदी के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर (डॉ.)शकील अहमद अंसारी ने कहा कि किसी भी जिला राज्य अथवा देश की पहचान उसकी अपनी भाषा होती है। मगध की पहचान मगही भाषा से होती है। हम अपने लोक संस्कृति और रीति-रिवाजों को भूलाते जा रहे हैं। आज मगध में ही मगही भाषा उपेक्षित होती जा रही है। उन्होंने कहा- मातृभाषा का उत्थान और संवर्धन का अर्थ अपनी लोक संस्कृति और अपनी अस्मिता का संवर्धन होता है।
मौके पर बहुभाषाविद् बेनाम गिलानी ने लेखक नारायण प्रसाद की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए लेखन के क्षेत्र में यशस्वी होने की कामना की। इसके साथ ही साथ उन्होंने मगही भाषा के विकास के लिए बिहार के सभी बुद्धिजीवियों को प्रतिबद्ध होने हेतु आह्वाहन किया। किसी भी जिला राज्य अथवा देश की पहचान उसकी अपनी मातृभाषा होती है। मगध की पहचान मगही भाषा से होती है। हम अपने लोक संस्कृति और रीति-रिवाजों को भूलाते जा रहे हैं।
शंखनाद के कोषाध्यक्ष सरदार वीर सिंह ने कहा कि मगही भाषा रहेगी तब ही मगध का इतिहास एवं गरिमा बचेगी। मगही भाषा को संविधान की आठवीं सूची में दर्ज करने की मांग उठाई।
शंखनाद के मीडिया प्रभारी शायर नवनीत कृष्ण ने कहा कि बिहार में अपनी मातृभाषा को भुलाकर दूसरे भाषा को बढ़ावा दिया जा रहा है। मगध की वजूद बचाने के लिए यहां के लोगों को अपना स्वाभिमान और गौरव को याद कर संघर्ष करना होगा।
इस अवसर पर हास्य शायर तंग अय्यूवी, मो.जाहिद हुसैन, लेखिका प्रिया रत्नम, साहित्यसेवी धीरज कुमार, अरुण बिहारी शरण सहित कई गणमान्य लोग मौजूद थे।
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