मोगलकुआँ में श्रीगुरु अर्जुन देव जी का 418 वां शहीदी गुरु पर्व श्रद्धापूर्वक मनाया..!!
बिहारशरीफ-मोगलकुआँ, 10 जून 2024 : शहर के मोगलकुआँ स्थित श्री गुरुनानक देव शाही संगत गुरुद्वारा में सिखों के पांचवें गुरु श्रीगुरु अर्जुन देव जी महाराज का 418 वां शहीदी गुरु पर्व श्रद्धा एवं सौहार्द के साथ मनाया गया। गुरुद्वारा में प्रातःकाल 5 बजे श्रीगुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश किया गया। साथ ही साथ पंज वाणी का पाठ किया एवं श्री सुखमनी साहिब के पाठों के भोग के बाद निशान साहेब का नया चोला चढ़ाया गया। धार्मिक दीवान सजाए गए। जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुई।
मौके पर शंखनाद साहित्यिक मंडली के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि सिखों के पांचवें गुरु के रूप में गुरु अर्जन देव जी ने देश और धर्म के नाम पर बलिदान होने की ऐसी मिसाल पेश की है, जो इतिहास के सुनहरे पन्नों और लोगों के दिलों में अंकित है। मानवता की रक्षा और मानवीय मूल्यों की रक्षा के सिलसिले में दी गई पहली शहादत है। इसी कारण श्री गुरु अर्जुन देव जी को शहीदों का सरताज कहा जाता है। गुरु अर्जन देव जी को भयंकर यातनाएं दी गई लेकिन गुरु जी ने देश और धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। इसी कारण इस पर्व को शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने उपस्थित लोगों को गुरु अर्जुन देव जी के जीवन के बारे में बताया कि शांति के पुंज शहीदों के सरताज पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव की शहादत अतुलनीय है। मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी श्री गुरु अर्जुन देव अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे।
मौके पर भाई रवि सिंह ग्रंथी ने भजन- "अमृतसर विच जोत जगावे", तथा कई गुरुबाणी के शब्दों का सुंदर कीर्तन कर लोगों को भक्तिरस में डूबो कर कार्यक्रम प्रारम्भ किया। उन्होंने उपस्थित लोगों के बीच सम्बोधित करते हुए कहा कि गुरु महराज के त्याग और बलिदान को सिक्ख समाज कभी नहीं भुला सकता। उन्होंने बतायाकि श्री गुरु अर्जुन देव जी ने गुरुग्रंथ साहिब का संपादन किया, जो मानव जाति की सबसे बड़ी देन है। संपूर्ण मानवता में धार्मिक सौहार्द पैदा करने के लिए अपने पूर्ववर्ती गुरुओं की वाणी को जगह-जगह से एकत्र कर उसे धार्मिक ग्रंथ में बांटकर परिष्कृत किया। गुरुजी ने स्वयं की उच्चारित 30 रागों में 2,218 शबदों को भी श्री गुरुग्रंथ साहिब में दर्ज किया है। अपने जीवन काल में गुरुजी ने धर्म के नाम पर आडंबरों और अंधविश्वास पर कड़ा प्रहार किया। श्री अर्जुन देव जी ने अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव स्वयं नक्शा बनवाकर रखा था। जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है।
कार्यक्रम में भाई रवि जी ने श्रीगुरु अर्जुन देव जी महराज के शहीदी दिवस पर इस भीषण गर्मी में लोगों को राहत देने के लिए शीतल मीठा जल (सरवत), छबील प्रसाद (चना प्रसाद), कड़ा प्रसाद का भोग लगाकर वितरण किया।
मौके पर शंखनाद के सक्रीय सदस्य समाजसेवी सरदार वीर सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि श्री गुरु अर्जुन देव जी धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे सेवक थे और उनके मन में सभी धर्मों के लिए सम्मान था। मुगल बादशाह जहांगीर ने उनकी जघन्य तरीके से यातना देकर हत्या करवा दी थी। इसी कारण हर साल आज ही के दिन उनका शहीदी दिवस मनाया जाता है।
सरदार दीप सिंह ने कहा- शहीदों के सिरताज श्री गुरू अर्जुन देव जी एक महान विभूति संत सतगुरू, कवि थे। जिन्होंने सच्ची गुरबाणी की रचना कर व ऊँची कुर्बानी से सुनहरे, अविस्मरीणय व अदभुत इतिहास का सृजन किया।
साहित्यिक मंडली शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने कहा कि गुरु जी ने जात-पात, रंगभेद, नस्ल का अंतर समाप्त करते हुए एकता का संदेश दिया। अर्जुन देव जी को साहित्य से भी अगाध स्नेह था। ये संस्कृत और स्थानीय भाषाओं के प्रकांड पंडित थे। इन्होंने कई गुरुवाणी की रचनाएं कीं, जो आदिग्रन्थ में संकलित हैं। इनकी रचनाओं को आज भी लोग गुनगुनाते हैं और गुरुद्वारे में कीर्तन किया जाता है।
भाई सतनाम सिंह ने कहा कि हमारे गुरु का कहना है कि मानव सेवा ही प्रभु की सेवा है हम हर व्यक्ति में अपने भगवान को देखते हैं और उसी भावना से सेवा करते हैं।
भाई विनोद कुमार सिंह ने कहा- सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी दया और करुणा के सागर थे। समाज के हर समुदाय और वर्ग को समान भाव से देखते थे।
भाई रघुवंश सिंह ने कहा- श्री गुरू अर्जुन देव जी की बहुआयामी शख्सियत अवर्णनीय है। वे महान गुरू हैं जिन्होंने सामाजिक भलाई व परमार्थ द्वारा मानवता की सेवा कर विश्व को नई रौशनी प्रदान की।
इस अवसर पर सरदार महेंद्र सिंह, युवराज सिंह, एकामनी कौर, जसप्रीत कौर, सोनू कुमार, पुनीत हरे, राधिका कुमारी, निशांत कुमार सहित कई लोग मौजूद थे।
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