विश्व पर्यावरण दिवस की 52 वाँ स्थापना वर्ष पर विशेष ...!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली  
किसी भी समस्या का समाधान निकालने से पूर्व हमारा पूर्ण दायित्व बन जाता है कि हम उस समस्या के विषय को गंभीरता से जाने, ताकि समस्या का समाधान अतिशीघ्र व सटीक सिद्ध हो जाये। पर्यावरण शब्द, हिंदी शब्द के परि+आवरण शब्दों के युग्म से बना है। जहां परि का अर्थ चारों ओर, आवरण शब्द का अर्थ घेरा। अर्थात हम दूसरे शब्दों में यदि पर्यावरण की व्याख्या- जो कि समस्त विश्व को अपने आगोश में लिये हुये हो अथवा किसी वस्तु सजीव अथवा निर्जीव वस्तु के चारों ओर कि वह स्थिति जिसमें हवा, जल, मिट्टी, जीव जंतु, सूक्ष्म जीव, पेड़-पौधे, मानव द्वारा निर्मित संसाधन की उपस्थिति मौजूद हो, उसे हम पर्यावरण के नाम से परिभाषित कर सकते हैं। पर्यावरण एक ऐसा शब्द है जिसकी कल्पना बिना, जैविक घटक, अजैविक घटक, अप घटक के अभाव में पूर्ण: संभव नहीं है। आज विश्व पटल पर,पर्यावरण की शुद्धता के ऊपर जो संकट गहराया है। वह सब मानव के ही क्रिया कलापों का परिणाम है। जिसने अन्य जीवों के जीवन को भी खतरे की कगार पर खड़ा कर दिया है। यदि समय रहते, पर्यावरण संरक्षण हेतु कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये तो, भविष्य में पर्यावरण की शुद्धता पर खतरा और अधिक बढ़ सकता है। जिस दिन प्रकृति का कानून बिगड़ गया उस दिन सभी कानून एक और रखे रह जायेंगे, जो कि परमाणु अटैक के परिणामों से भी कहीं गुणा भयानक होंगे। पर्यावरण के बिगड़ते हालातों के चलते ही विश्व में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या दिन प्रतिदिन अपने चरम को छूने के लिए बेकरार है। वर्तमान में अंधा धुंध वाहनों के प्रयोग व तेजी से बढ़ते औद्योगिकी करण के प्रयास, वनों अथवा पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने ओजोन परत, जो कि सूर्य की पराबैंगनी किरणों से समस्त जीव जंतुओं, पेड़-पौधों की रक्षा करती है, को भी संकट में डाल दिया है। इस बात से आप स्वयं ही  अंदाजा लगा सकते है, कि प्रकृति का चक्र बाधित होने में अब कोई भी कोर कसर बाकी नहीं है। ओजोन परत जो धरती की सतह से 20-30 किमी की ऊंचाई पर है स्थिति है, दिन प्रतिदिन, कुछ ऐसे घातक रसायनो की बढ़ोतरी के चलते, क्षारण की कगार पर पहुंच चुकी है। 
 विश्व पर्यावरण दिवस विश्वभर में पर्यावरण के नकारात्मक प्रभावों को रोकने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता है। इसका वार्षिक कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र के द्वारा घोषित की गई विशेष थीम या विषय पर आधारित होता है। यह एक अभियान है जिसकी शुरुआत करने का मकसत वातावरण की स्थितियों पर ध्यान केंद्रित करने और हमारे पृथ्वी के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव का सहभागी बनने के लिए लोगों को प्रेरित करना है।
विश्व पर्यावरण दिवस इतिहास के पन्नों में   
 
पहला विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1974 को मनाया गया था, जो एक वार्षिक परंपरा की शुरुआत का प्रतीक था जो पर्यावरण वकालत के लिए सबसे बड़े वैश्विक प्लेटफार्मों में से एक बन गया है। 
विश्व पर्यावरण दिवस का इतिहास यह बताता है की, इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए शुरुआत की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण सुरक्षा को लेकर काफी गंभीर रहा है। पर्यावरण के बिगड़ते चक्र पर चिंता जाहिर करते हुये, संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन 1972 स्टॉकहोम (स्वीडन) में, विश्व के समस्त देशों की बैठक बुलाई, जो कि पर्यावरण संरक्षण को समर्पित थी। जिसमें 119 देशों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। उक्त सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा की थी। ताकि  हम एक जिम्मेवार नागरिक बन कर, पर्यावरण की समस्या को कुछ हद तक समाप्त कर सके। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा उठाया गया यह कदम बड़ा ही सराहनीय था।  पर्यावरण सुरक्षा हेतु, दिनांक 19 नवंबर 1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया। प्रत्येक देश में विडम्बना तो, तब बन जाती है, जब मनुष्य अथवा संबंधित सरकारें वर्ष में घोषित दिवस को ही (पर्यावरण) ज्यादा सजग व जागरूक दिखाई पड़ती है। बाकी वर्ष के 364 दिन वे पुन: कुम्भकरणी नींद में सो जाते हैं। ना तो उसे या उन्हें किसी पर्यावरण कि चिंता रहती है और ना ही किसी प्राकृतिक चक्र के बिगडऩे की। यह स्थिति तो प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय दिवस या राष्ट्रीय दिवस पर आम सी बात हो चुकी है। जो कि हमारे लिए बड़े ही दुर्भाग्य व शर्म की बात है। 

विश्व पर्यावरण दिवस 2024 की थीम

हर साल, वायु प्रदूषण, प्लास्टिक कचरे से लेकर ऊर्जा संरक्षण और टिकाऊ खपत तक किसी विशेष पर्यावरणीय चिंता पर प्रकाश डालने के लिए एक विशिष्ट विषय चुना जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस 2024 की थीम “भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखा लचीलापन” है।
 
विश्व पर्यावरण दिवस क्यों मनाया जाता है 

हमारे वातावरण की सुरक्षा करने के लिए विश्वभर में लोगों को कुछ सकारात्मक गतिविधियाँ के लिए प्रोत्साहित और जागरुक करने के लिए यह दिवस यानी विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। पृथ्वी की सुंदरता को बनाये रखने के लिए हर व्यक्ति का योगदान के बारे में जागरूक करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है।
पर्यावरण की शुद्धता में ये कई घातक कारक है 

वायु प्रदूषण- वायु प्रदूषण, शुद्ध पर्यावरण जैसे-अभेद लक्ष्य को हासिल करने में एक जटिल बाधा है। यदि किसी भी प्रयास के द्वारा इस पर काबू पा लिया जाता है तो समस्त जीव जंतुओं पेड़ पौधों में पनपने वाले रोगों को काफी हद तक, बिना दवाइयों अथवा कीटनाशक प्रयोग के ही, कुछ हद तक समाप्त किया जा सकता है। विश्व में मानव समाज में चलने वाली, बिना सिर पैर की प्रतिस्पर्धा ने पर्यावरण की, स्थिति इतनी नाजुक बना दी है कि भविष्य में जीवों को, श्वास लेना भी दुर्लभ हो जायेगा। विश्व में आधुनिक वाद के संसाधनों ने मनुष्य के इर्द-गिर्द की हवा को इतना जहरीला बना दिया है कि शायद विश्व मं  भावी पीढिय़ों को, शुद्ध वायु नसीब हो। वायु प्रदूषण जनित रोगों के चलते न जाने कितनी मौतें प्रतिदिन होती होगी, जिसमें श्वास रोग, दमा, फेफड़ों की बीमारियां मुख्य है। 
जल प्रदूषण- 

विश्व में जल प्रदूषण की समस्या ने तो पर्यावरण को इतने बड़े खतरे का शिकार बना दिया है कि पवित्र नदियां भी वर्तमान में अपने प्राचीन अस्तित्व को पूर्ण: खो चुकी है और सरकार की ऐसी योजनाओं का पल पल इंतजार करती है ताकि उनका उद्धार संभव हो सके। हालांकि तत्कालीन सरकारों या मौजूदा सरकारों ने नदियों के उद्धार के लिए तरह तरह की योजनाएं समय समय पर चलाई। किंतु इसे दुर्भाग्य कहे या फिर सिस्टम की कमजोरी कोई भी योजना सफल नहीं सकी। वर्तमान समय में जल प्रदूषण की समस्या ने इतना विकराल रूप ले है कि सामान्य नल का जल स्तर दिन प्रतिदिन गिरने के साथ साथ दूषित भी हो चुका है। जो कि गंभीर बीमारियों के लिए खुला निमंत्रण है।

प्लास्टिक से उत्पन्न प्रदूषण- 

पर्यावरण की सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा प्लास्टिक पदार्थों से है। प्लास्टिक को जलाना बहुत हानिकारक सिद्ध हो रहा है। क्योंकि इसके कारण कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और डाइऑक्सिन जैसी जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है। एक किलो प्लास्टिक कचरे जलाने पर तीन किलो कार्बन डाइऑक्साइड गैस उत्पन्न होती है। जो ग्लोबल वार्मिंग का अहम कारण बना हुआ है। 
दूसरी ओर यदि प्लास्टिक (प्लास्टिक की थैलियां) को नहीं जलाया जाता तो, यह मिट्टी में मिलकर वहां की धरती को पूर्ण: बंजर बनाने में अपना अहम योगदान देती है। ना तो यह पूर्ण: मिट्टी में मिल सकती, ना ही इसका खाद बनाया जा सकता है, जो कि कृषि उपजाऊ भूमि के लिए अभिशाप सिद्ध हो रहा है।  
 
मिट्टी जनित प्रदूषण-

मिट्टी जनित प्रदूषण- खनन से उत्सर्जित मलबे को यदि पास के ही, किसी जगह में डाल दिया जाये तो  मलबे का विशाल गर्त बन जाता हैं। इमारती पत्थर, लौह, अयस्क, अभ्रक, ताँबा, आदि खनिजों के उत्खनन से निकलने वाले मलबा मृदा की उर्वरा शक्ति को पूर्ण: नष्ट कर देता है तथा वर्षा के समय जल के साथ प्रवाहित होकर, यह मलबे को दूर तक ले जाता है। जहां तक भी जाता है वहां तक मृदा को काफी प्रदूषित करता हैं।
ऐसे ही उद्योगों में रासायनिक या अन्य कचरा जिन्हें आसपास या दूर किसी स्थान पर डाल दिया जाता है। उसके उतने ही हिस्से में मृदा प्रदूषित हो जाता है और उक्त भाग में पेड़-पौधे भी नहीं उग पाते। यदि किसी कारणवश उक्त स्थान पर कोई घास अथवा पेड़ पौधे उग जाये, अचानक यदि कोई पशु, जमी घास को खा ले तो पशु का बीमार होना निश्चित है अर्थात कहने का तात्पर्य है कि आस पास का जीवन चक्र काफी प्रभावित हो जाता है। लेकिन मृदा प्रदूषण के कारण उक्त स्थान पर कृषि नहीं की जा सकती, यदि कि गई तो मनुष्य के स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव अवश्य पड़ेगा।
पर्यावरण शुद्धता के उपाय – 

पर्यावरण की सुरक्षा हेतु, विश्व के समस्त देशों को, एक जुट होकर, ऐसे कड़े नियम बनाने होंगे जो पर्यावरण शुद्धता को बढ़ावा दे। यदि कोई व्यक्ति उक्त नियमों का पालन ना करे अथवा अवहेलना करता पाया जाये तो कड़े दंड के प्रावधान लागू कर, पर्यावरण शुद्धता को बचाने की पहल अतिशीघ्र करनी होगी। अन्यथा संपूर्ण विश्व के लिए भावी परिणाम काफी भयानक सिद्ध हो सकते हैं।
पर्यावरण की शुद्धता को ध्यान में रखते हुये वाहनों से निकलने वाले धुएं, उद्योग धंधों, चिमनियों से निकलने वाली जहरीली हवा को किसी खास तकनीक या ईंधन के माध्यम से अतिशीघ्र काबू करना होगा। अन्यथा वह दिन दूर नहीं है, जब ओजोन की समस्त परत जीर्ण शीर्ण हो चुकी होगी और समस्त विश्व पटल पर त्राहिमाम-त्राहिमाम के अलावा कोई और शब्द सुनने को नहीं मिलेगा। पर्यावरण सुरक्षा के लिए प्रत्येक नागरिक को 5 पेड़ लगाना व उनकी देखभाल करना सुनिश्चित करे। पर्यावरण की शुद्धता को ध्यान में रखते हुये लकड़ी माफियाओं पर, नकेल कसनी होगी और ऐसे नियमों को लागू करना होगा जो कि पेड़ काटने पर, अन्य व्यक्ति भी सौ बार सोचे।  
पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये सरकारों को चाहिए कि अपने यहां पर प्लास्टिक निर्मित पन्नियों पर पूर्ण: प्रति बंद लगा दे और उनके स्थान पर कागज के थैले व कपड़े के थैलों का प्रयोग अनिवार्य करे। 
पर्यावरण की सुरक्षा हेतु सभी सरकारों को चाहिए कि,  वे प्रत्येक ऐसे स्थानों को चिह्नित करे, जहां पर नाले या अपशिष्ट नदियों में गिरता हो, वहां पर ऐसे संयंत्रों को स्थापित कराये, जो कूड़े को नदियों में ना गिरने दे। ताकि नदियों को उनका पूर्व अस्तित्व पुन: प्राप्त हो सके।
पर्यावरण की सुरक्षा हेतु हमें प्लास्टिक का पुन: चक्रण सिद्धांत लागू करना होगा ताकि प्लास्टिक जनित प्रदूषण को पूर्ण: समाप्त किया जा सके। जिसका ज्वलंत उदाहरण नई दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला द्वारा प्लास्टिक कचरे के निपटारे हेतु, विकसित की गई तकनीक है। इस तकनीक के उपयोग से कचरे वाली प्लास्टिक से सस्ती और टिकाऊ टाइलें बनायी जा सकती है। जिनका उपयोग सस्ते शौचालय बनाने में हो सकता है। ये सब वातावरण में शुद्धता बनाये रखने का महत्वपूर्ण कार्य करते है।
अत: अंत में हम ऐसी मुहिम का आगाज करे, जो पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित और वह एक जन आंदोलन का रूप लेकर,  विश्व पर्यावरण सुरक्षा आंदोलन में तब्दील हो जाये। प्रत्येक व्यक्ति इतना जागरूक हो जाये कि उसे ज्ञात हो, कि यदि वह कोई कार्य करेगा तो हमारे इस कृत्य से पर्यावरण की सुरक्षा को कोई तनिक सा भी खतरा पैदा नहीं होगा फिर हम कुछ हद तक चरमराई पर्यावरण की समस्या को, सुधारने में कामयाब हो सकते है। अभी जो कोविड-19 का भयावह दौर हम सभी झेल रहे हैं, उसके मूल में भी विकास की उपभोक्तावादी सोच ही प्रमुख है। विश्वव्यापी महामारी के इस दौर में हमें विकास के साथ पर्यावरण अनुकूल नीतियों के आलोक में प्रकृति संरक्षण की हमारी सनातन भारतीय दृष्टि पर फिर से विचार करने की जरूरत है। 
भारतीय सनातन दृष्टि प्रकृति पूजक है

भारतीय सनातन दृष्टि प्रकृति पूजक रही है। इसके पीछे बड़ा वैज्ञानिक तथ्य भी यही है कि पारिस्थितिकी संतुलन बना रहे। तुलसीदास ने रामचरितमानस में बहुत पहले ही कह दिया था, “क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।” पर हमने अंधाधुंध विकास और भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति की लिप्सा में मनुष्य के अस्तित्व से जुड़़े इन पंचभूत तत्वों की ही उपेक्षा करनी प्रारंभ कर दी। पर्यावरण का यह जो विश्वव्यापी संकट पैदा हुआ है, मुझे लगता है उसका कारण प्रकृति से अपने आपको दूर कर पंचभूत तत्वों की उपेक्षा करना ही है। कोविड का यह जो संक्रमण तेजी से फैल रहा है, उसका कारण भी पर्यावरण असंतुलन ही है।
विश्व पर्यावरण दिवस ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, भूमि क्षरण और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक वैश्विक मंच के रूप में कार्य करता है। यह पर्यावरण और भावी पीढ़ियों के लिए सकारात्मक बदलाव लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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