शंखनाद साहित्यिक मंडली ने कबीर दास की 647 वीं जयंती मनाई...!!
बिहारशरीफ 22 जून 2024: (विक्रम संवत् 2081-जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा) : स्थानीय बिहारशरीफ-छोटी पहाड़ी स्थित साहित्यसेवी बाबू रामसागर राम जी के आवास पर स्थित सभागार में शहर की लोकप्रिय व बहुचर्चित प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था शंखनाद साहित्यिक मंडली ने अपने साहित्यकारों एवं कवियों के माध्यम से सामाजिक क्रांति के योद्धा, रहस्यवादी एवं क्रांतिकारी कवि, संत शिरोमणि कबीर दास की 647 वीं जयंती समारोह शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासज्ञ डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में कबीर दास के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर मनाई। जयंती समारोह का संचालन राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने किया।
सर्वप्रथम जयंती समारोह में शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कबीर दास के व्यक्तित्व व कृतित्व को स्मरण करते हुए कहा कि कबीरदास भक्ति काल की काव्य परंपरा में अद्भुत व्यक्तित्व लेकर जन्मे प्रथम समाज सुधारक थे। वे धार्मिक अंधविश्वास, और पाखंड के घोर विरोधी थे। हिंदू मुस्लिम के बीच कोई विभेद नहीं मानते थे, इसलिए उन्होंने अपने धर्म को संकीर्ण नहीं राजमार्ग के समान विस्तृत रुप प्रदान किया था। उन्होंने कबीर के संतत्व एवं व्यक्तित्व पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कबीर केवल एक समय के नहीं हर काल के कवि हैं, जनकवि है, संत पुरुष हैं, युग बदलने वाले कबीर के जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान था, गुरु को वे सहज ज्ञान, मुक्ति, मोक्ष और अज्ञानता के अंधकार को दूर करने का साधन मानते थे।
नालंदा के नामचीन छंदकार सुभाषचंद्र पासवान ने बताया कबीर सधुक्कडी प्रवृत्ति के संत थे। जहां-तहां भ्रमण करते हुए उन्होंने अपने विचारों का प्रचार किया, जो सहज है, प्राप्य है, तुम्हारे मन में रहने वाला राम ही परम ब्रह्म है, इस मत को उन्होंने समाज में हिंदू मुस्लिम एकता का सुखद संदेश भी दिया था। कबीर दास निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। वे एक ही ईश्वर को मानते थे। वे अंध विश्वास, धर्म व पूजा के नाम पर होने वाले आडंबरों के विरोधी थे।
हिंदी के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर(डॉ.) जनाब शकील अहमद अंसारी ने कबीर के अद्वैत दर्शन और अनपढ़ होते हुए भी सहज ज्ञान की प्राप्ति की ओर संकेत करते हुए कहा कि स्याही कागज नहीं छूने वाले तथा अपने हाथ में कलम नहीं पकड़ने वाले इतने प्रभावशाली मार्मिक काव्य की रचना की है कि साहित्य का इतिहास कबीर को उनकी देन के लिए सदैव स्मरण रखेगा।
कबीर विषयक परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ साहित्यकार अभियंता नारायण प्रसाद ने अपने विचार रखे कि यद्यपि कबीर ने पुस्तक ज्ञान प्राप्त नहीं किया था, लेकिन वे प्रेम के ढाई आखर को पढ़कर पंडित हुए थे। समाज सुधारक, उन्नायक और धार्मिक वितंडावाद से समाज को मुक्त रखने का संकल्प लेने वाले संत कबीर का जीवन हमेशा पथ प्रदर्शक रहा है।
वैज्ञानिक व साहित्यकार आनंद वर्द्धन ने कबीर की ही पंक्तियों कबीरा जब हम पैदा हुए जग हंसे हम रोए के माध्यम से उन्हें स्मरण किया। उन्होंने कहा- कबीर दास जी हिंदी साहित्य के ऐसे कवि थे, जिन्होंने समाज में फैले आडंबरों को अपनी लेखनी के जरिए उस पर कुठाराघात किया था।
शिक्षा शास्त्री मो. ज़ाहिद हुसैन ने कहा- विभिन्न संप्रदायों के बीच संघर्ष को कम करने के लिए भक्ति काल में कबीर दास जैसा महान कवि एवं संत शिरोमणि की वाणी की नितांत आवश्यकता थी। विश्व में जितनी भी सामाजिक क्रांतियां हुई हैं, उसके अग्रदूत थे कबीर दास; क्योंकि रूसो, दांते, टॉलेस्टॉय और शैली से भी पहले के वैचारिक एवं सामाजिक क्रांति के उत्प्रेरक कबीर थे। उनकी लेखनी हमेशा के लिए प्रासंगिक है। वे संतो, कवियों, लेखकों, प्रेरकों और समाज सुधारकों के लिए एक प्रकाश कुंज हैं।
शिक्षाविद् राज हंस ने कबीरदास के किये कार्यों पर विस्तृत चर्चा में अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्हें भक्ति काल के अमूल्य रत्नों में से एक बताया।
जिले के चर्चित् शायर जनाब तंग अय्यूवी ने उनकी कई साखियां उद्धृत कर भावांजलि प्रस्तुत की। उन्होंने कहा- कबीरदास जी न सिर्फ एक संत थे, बल्कि वे एक विचारक और समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपने पूरे जीवन में समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए कई दोहे और कविताओं की रचना की।
अंत में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए आयोजन के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा आज अपने देश में चारों तरफ लोग धर्म के नाम पर विवादों में घिरते चले जा रहे हैं यहां तक कि फल भी हिंदू और मुसलमान हो गए। शब्द भी हिंदू और मुसलमान हो गए। कहां गई वो गंगा जमुनी सभ्यता। कहां गई वो तहज़ीब जो गंगा-जमुना की संस्कृति में थी। कबीर ने बहुत सही कहा था मोको कहां ढूंढो रे बंदे मै तो तेरे पास, न मैं काबा न मैं काशी ना काबे कैलाश में... कबीर कहते हैं मैं तो तुम्हारे अंदर हूं और अंतिम सांस तक तुम्हारे अंदर ही रहूंगा तो फिर किस बात का झगड़ा। चांद और सूरज दोनों हमारे अंदर हैं, नदी जो बहती है वो तुम्हारे साथ तुम्हारे अंदर भी बहती है और मेरे साथ भी बहती है, अपने अंदर उस ध्वनि को अपनी अंतरात्मा की आवाज को पहचानो, यही सच्चा धर्म है।
धन्यवाद ज्ञापन शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने किया, जबकि गोष्ठी में गीतकार एवं नाट्य निर्देशक राम सागर राम, शोधार्थी आकाश कुमार ,साहित्यसेवी अर्जुन राम, पुनीत हरे, श्रीमती राधिका कुमारी आदि उपस्थित श्रोता के रूप में उपस्थित थे।
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