भारत के चौथे प्रधानमंत्री भारत रत्न गुलजारीलाल नंदा की 126 वीं जयंती पर विशेष ....!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली

गुलजारी लाल नंदा एक महान राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद एवं प्रकांड अर्थशास्त्री थे। जिन्होंने भारत की राजनीती को करीब से देखा था, साथ ही इन्होने देश के बुरे दौर में देश की कमान अपने हाथों में लेकर देश को बिखरने नहीं दिया था। गुलजारीलाल नन्दा भारत के चौथे प्रधानमंत्री थे, परन्तु जवाहरलाल नेहरूजी के बाद इनका स्थान दूसरा था (क्यूंकि जवाहरलाल नेहरु 1947 से आजादी के बाद लगातार 3 बार प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान रहे)। गुलजारी लाल जी कांग्रेस पार्टी के प्रति अत्याधिक समर्पित थे।
गुलजारी लाल नंदा जी का जन्म, शिक्षा व पारिवारिक जीवन

 नंदाजी के रूप में विख्यात गुलज़ारी लाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 को ब्रिटिश भारत के पंजाब के सियालकोट में हुआ था, और यह सेन नाई परिवार से थे जो अब पश्चिमी पाकिस्तान का हिस्सा है। इनके पिता का नाम बुलाकी राम नंदा तथा माता का नाम श्रीमती ईश्वर देवी नंदा था। नंदा की प्राथमिक शिक्षा सियालकोट में ही सम्पन्न हुई। इसके बाद उन्होंने लाहौर के 'फ़ोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज' तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। गुलज़ारी लाल नंदा ने कला संकाय में स्नातकोत्तर एवं क़ानून की स्नातक उपाधि प्राप्त की। इनका विवाह 1916 में 18 वर्ष की उम्र में ही लक्ष्मी देवी के साथ सम्पन्न हो गया था। इनके परिवार में दो पुत्र और एक पुत्री हुए। 

गुलजारीलाल नंदा का राजनीतिक जीवन

गुलज़ारी लाल नंदा एक राष्ट्रभक्त व्यक्ति थे। इस कारण भारत के स्वाधीनता संग्राम में इनका काफ़ी योगदान रहा। नंदाजी का जीवन आरम्भ से ही राष्ट्र के प्रति समर्पित था। 1921 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। नंदाजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने मुम्बई के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। अहमदाबाद की टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री में यह लेबर एसोसिएशन के सचिव भी रहे और 1922 से 1946 तक का लम्बा समय इन्होंने इस पद पर गुज़ारा। यह श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सदैव जागरूक रहे और उनका निदान करने का प्रयास करते रहे। 1932 में सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान और 1942-1944 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय इन्हें जेल भी जाना पड़ा। नंदाजी मुम्बई की विधानसभा में 1937 से 1939 तक और 1947 से 1950 तक विधायक रहे। इस दौरान उन्होंने श्रम एवं आवास मंत्रालय का कार्यभार मुम्बई सरकार में रहते हुए देखा। 1947 में 'इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस' की स्थापना हुई और इसका श्रेय नंदाजी को जाता है। मुम्बई सरकार में रहने के दौरान गुलज़ारी लाल नंदा की प्रतिभा को रेखांकित करने के बाद इन्हें कांग्रेस आलाक़मान ने दिल्ली बुला लिया। यह 1950-1951, 1952-1953 और 1960-1963 में भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर रहे। ऐसे में भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में इनका काफ़ी सहयोग पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्राप्त हुआ। इस दौरान उन्होंने निम्नवत् प्रकार से केन्द्रीय सरकार को सहयोग प्रदान किया-
गुलज़ारी लाल नंदा केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में कैबिनेट मंत्री रहे और स्वतंत्र मंत्रालयों का कार्यभार सम्भाला। नंदाजी ने योजना मंत्रालय का कार्यभार सितम्बर 1951 से मई 1952 तक निष्ठापूर्वक सम्भाला। नंदाजी ने योजना आयोग एवं नदी घाटी परियोजनाओं का कार्य मई 1952 से जून 1955 तक देखा। नंदाजी ने योजना, सिंचाई एवं ऊर्जा के मंत्रालयिक कार्यों को अप्रैल 1957 से 1967 तक देखा। नंदाजी ने श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय का कार्य मार्च 1963 से जनवरी 1964 तक सफलतापूर्वक देखा।
कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में गुलजारी लाल 

गुलजारी लाल का प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यकाल 2 बार 13-13 दिनों का रहा था। भारत के सविधान के अनुसार देश के प्रधानमंत्री के पद को कभी रिक्त नहीं रखा जा सकता, किसी कारणवश अगर प्रधानमंत्री अपना पद छोड़ दें या पद में रहते हुए उनकी म्रत्यु हो जाये, तो तुरंत नए प्रधानमंत्री का चुनाव होता है। अगर ये तुरंत संभव नहीं होता है तो कार्यवाहक या अंतरिम प्रधानमंत्री को नियुक्त किया जाता है। कार्यवाहक तब तक उस पद पर कार्यरत रहता है जब तक विधि वत रूप से नए प्रधानमंत्री का चुनाव न हो जाये। 1964 में नेहरु जी की म्रत्यु के पश्चात गुलजारी लाल ही वरिश्ठ नेता था, यही वजह है की उन्हें कार्यवाहक  प्रधानमंत्री बनाये गया। गुलजारी लाल जवाहरलाल के चहिते थे, दोनों साथ में लम्बे समय से काम कर रहे थे, गुलजारी लाल जी नेहरु जी के काम को अच्छे से समझते थे। 1962 में चीन से युद्ध समाप्त हुआ था, नेहरु जी की मौत के समय प्रधानमंत्री पद के उपर बहुत अधिक दबाब था, इसके बावजूद नंदा जी दे इस पद को बखूबी संभाला था। 1966 में लाल बहाद्दुर शास्त्री की मृत्यु के पश्चात पुन: कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाये गये। 1965 में पाकिस्तान के युद्ध की समाप्ति हुई थी, जिस वजह से देश एक बार फिर कठिन दौर से गुजर रहा था। लाल बहादुर शाष्त्री जी की आकस्मिक मौत के बाद गुलजारी लाल जी ने देश की गरिमा को बनाये रखा। दोनों समय अपने कार्यकाल के दौरान नंदा जी ने कोई भी बड़े निर्णय नहीं लिए थे, इस दौरान उन्होंने बहुत ही शांति व संवेदनशील होकर कार्य किया था। गुलजारी जी को संकटमोचन कहना गलत नहीं होगा।

गुलजारीलाल नन्दा जी का व्यक्तित्व :

गुलजारीलाल नन्दा जी एक कुशल लेखक के रूप में भी जाने जाते है, इन्होने कई अनमोल रचनाओ को जन्म दिया, उनमे से कुछ इस प्रकार हैं ‘सम आस्पेक्ट्स ऑफ़ खादी’, ‘अप्रोच टू द सेकंड फ़ाइव इयर प्लान’, ‘गुरु तेगबहादुर’, ‘संत एंड सेवियर’, ‘हिस्ट्री ऑफ़ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाल्स’,‘फॉर ए मौरल रिवोल्युशन’ एवं ‘सम बेसिक कंसीड्रेशन’ आदि। गुलजारी जी कभी अपने पद का दुरुपयोग नहीं करते थे, उनके नाम पर कोई भी निजी संपत्ति नहीं थी। वे अपने परिवार के साथ किराये के घर में रहते थे। इन्हें पैसों से कभी भी मोह नहो रहा। सादा जीवन उच्च विचारक नंदा जी का सिद्धांत था। अपने अंतिम समय में उनके पास जीवन निर्वाह करने के लिए भी पैसे नहीं हुआ करते थे, तब भी उन्होंने अपने बेटों के सामने हाथ नहीं फैलाया।
मकान मालिक ने गुलजारीलाल नंदा को मकान से निकाला   

एक समय की घटना है कि 94 साल के बूढ़े गुलजारीलाल नंदा को मकान मालिक ने किराया न दे पाने पर किराए के मकान से निकाल दिया था। बूढ़े गुलजारीलाल के पास एक पुराना बिस्तर, कुछ एल्युमीनियम के बर्तन, एक प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि के अलावा शायद ही कोई सामान था। बूढ़े ने मालिक से किराया देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया। पड़ोसियों को भी उन पर दया आयी, और उन्होंने मकान मालिक को किराए का भुगतान करने के लिए कुछ समय देने के लिए मना लिया। मकान मालिक ने अनिच्छा से ही उसे किराया देने के लिए कुछ समय दिया। तो नंदा जी ने अपना सामान अंदर ले गये। रास्ते से गुजर रहे एक पत्रकार ने रुक कर यह सारा नजारा देखा। उसने सोचा कि यह मामला उसके समाचार पत्र में प्रकाशित करने के लिए उपयोगी होगा। उसने एक शीर्षक भी सोच लिया, ‘क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।’ फिर उसने किराएदार बूढ़े की और किराए के घर की कुछ तस्वीरें भी ले लीं। पत्रकार ने जाकर अपने प्रेस मालिक को इस घटना के बारे में बताया। प्रेस के मालिक ने तस्वीरों को देखा और हैरान रह गए। उन्होंने पत्रकार से पूछा, कि क्या वह उस बूढ़े आदमी को जानता है? पत्रकार ने कहा, नहीं। अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी। शीर्षक था, ‘भारत के पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं’। खबर में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पा रहे थे और कैसे उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया था। टिप्पणी की थी कि आजकल फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं। जबकि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधान मंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना ख़ुद का घर भी नहीं? दरअसल गुलजारीलाल नंदा को वह स्वतंत्रता सेनानी होने के कारण रु. 500/- प्रति माह भत्ता मिलता था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस पैसे को अस्वीकार किया था, कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई नहीं लड़ी। बाद में दोस्तों ने उसे यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया यह कहते हुए कि उनके पास जीवन यापन का अन्य कोई स्रोत नहीं है। इसी पैसों से वह अपना किराया देकर गुजारा करते थे। अगले दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा। इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया। तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार, श्री गुलजारीलाल नंदा, भारत के पूर्व प्रधान मंत्री थे। मकान मालिक अपने दुर्व्यवहार के लिए तुरंत गुलजारीलाल नंदा के चरणों में झुक गया। अधिकारियों और वीआईपीयों ने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं को स्वीकार करने का अनुरोध किया। श्री गुलजारीलाल नंदा ने इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। अंतिम श्वास तक गुलजारीलाल नंदा जी एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी बन कर ही रहे। जरा उनके जीवन की तुलना वर्तमानकाल के किसी मंत्री तो क्या, किसी पार्षद परिवार, मुखिया से ही कर लें !! 
 
सादा जीवन उच्च विचार के हिमायती 

सादा जीवन उच्च विचार की राह अब हमारे देश के नेताओं में शायद ही किसी को सुहाती हो। नवस्वतंत्र देश में स्वतंत्रता संघर्ष की आंच से तपकर निकले अनेक ऐसे नेता थे, जो निजी सुखों और वैभवों से सायास परहेज बरतकर इस राह पर चलते थे। इनमें महात्मा गांधी के बाद की पीढ़ी के दो नामचीन नेताओं लालबहादुर शास्त्री और गुलजारीलाल नन्दा थे। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्हें स्वीकृत 500 रुपये की सरकारी पेंशन लेने से भी यह कहकर मना कर दिया था कि उन्होंने आजादी की लड़ाई पेंशन के लिए थोड़े ही लड़ी थी।
खुद्दार तो वे इतने थे कि उन्हें अपनी संतानों, परिजनों व शुभचिंतकों से किसी भी रूप में आर्थिक सहायता लेना गंवारा नहीं था। सरकार द्वारा घर देने के प्रस्ताव को भी उन्होंने ठुकरा दिया था और जब उनके पास अपना घर तक नहीं था तो कार या कोई और वाहन होने का सवाल ही नहीं था। इसलिए राजधानी दिल्ली में वे प्राय: बसों से आते-जाते दिखाई देते थे। बाद में उनकी अहमदाबादवासी बेटी से उनकी दुर्दशा नहीं देखी गई तो वह उन्हें किसी तरह समझा-बुझाकर अपने साथ ले गई।
वे खुद को महात्मा गांधी जैसा सर्वधर्मसमभाव का आकांक्षी हिंदू बताते थे और गोरक्षा के प्रबल समर्थक थे। 07 नवम्बर, 1966 को गोरक्षा महाअभियान समिति के बैनर पर गोहत्या के विरोध में साधुओं के संसद घेराव के वक्त पुलिस फायरिंग से आठ जानें चली गर्इं, तो संभवत: इसी के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्थिति से ठीक से न निपटने को लेकर उन्हें गृहमंत्री पद से बर्खास्त करा दिया था।
भारत रत्न गुलजारी लाल नंदा का निधन 
 
निधन से कोई साल भर पहले 1997 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया, जबकि ‘पद्मविभूषण’ से पहले से विभूषित किया जा चुका था। गुलजारी लाल जी का निधन 15 जनवरी 1998 को दिल्ली में उनके निज निवास में हुआ। इन्हें 100 वर्षो की दीर्घ आयु प्राप्त हुई। सरल एवं शांत  स्वभाव के इस शक्स ने सदा के लिए सबके दिलो में जगह बनाई। गुलजारीलाल नंदा जी का समाधि स्थल अहमदाबाद के नारायण घाट पर स्थित है।

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