अमावां स्टेट की महारानी भुवनेश्वरी कुँवर की 140 वीं जयंती पर विशेष .....!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली

भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है, उनमें प्रजावत्सल, धर्मपरायणा रानी भुवनेश्वरी कुंवर का नाम प्रमुख है। टेकारी राज सात आना के रानी रत्न कुवर उर्फ़ नानको साहिबा और राजेश्वरी प्रसाद सिंह की एकमात्र संतान थी। जो भुवनेश्वरी कुंवर टिकारी राज सात आना के राजकुमारी थी।
रानी के जीवन का लक्ष्य राज्यभोग नहीं था। वे प्रजा को अपनी सन्तान समझती थीं। उन्होंने जीवन का प्रत्येक क्षण राज्य और धर्म के उत्थान में लगाया। धर्मप्रेमी होने के कारण रानी ने अपने राज के साथ-साथ देश के अन्य तीर्थों में भी मंदिर, कुएं, धर्मशालाएं आदि बनवाईं।
राजकुमारी भुवनेश्वरी कुंवर का जन्म 2 जुलाई 1884 को टेकारी स्टेट में हुआ था। इनकी माँ रत्न कुंवर की मृत्यु 1896 ईसवीं में हो गई थी। उस समय इनकी उम्र मात्र 13 वर्ष की थी, इनके जगह इनकी दादी रानी रामेश्वरी कुंवर टिकारी राज का शासन चलाती थी। सन 1905 में जब राजकुमारी भुवनेश्वरी कुंवर जी बालिग हुई तो टिकारी राज का शासन अपने हाथ में ले ली थी। उसी समयावधि में इनकी शादी अमावां स्टेट के राजा हरिहर प्रसाद सिंह के साथ हुई।  
टेकारी महाराजा गोपाल शरण सिंह के सुपुत्री राजकुमारी ऊमेश्वरी कुंवर की शादी अमावां स्टेट की रानी भुवनेश्वरी और राजा हरिहर नारायण सिंह के बड़े लड़के राजकुमार रघुवंश मणि प्रसाद सिंह के साथ 12 मार्च 1933 को कलकत्ता में हुई थी। टिकारी राज नौ आना के महाराजा गोपाल शरण सिंह के हरिहर प्रसाद नारायण सिंह समधी थे। टिकारी राज नौ आना और सात आना अमावां स्टेट एक होने पर रानी भुनेश्वरी कुंवर भोपाल के रानी बेगम के बाद देश के दूसरी सबसे धनिक महिला थी। सन 1930 में महाराजा गोपाल शरण सिंह अपने टिकारी राज सात आना का लगभग सारी सम्पति रानी भुनेश्वरी कुंवर के नाम रजिस्ट्री (Registri) कर दिए थे।
सन 1930 में टिकारी राज नौ आना और टिकारी राज सात आना एक हो जाने के बाद यह टिकारी राज “अमावां स्टेट” कहलाने लगा।

अमावां स्टेट के राजा हरिहर प्रसाद सिंह और रानी भुवनेश्वरी कुंवर के पांच पुत्र

रानी भुवनेश्वरी कुंवर अमावां स्टेट की प्रतापी महारानी हुईं। महारानी रानी भुवनेश्वरी कुंवर धर्मपरायण, विद्या अनुरागी एवं उदार हृदय वाली यशस्वी महिला थीं। उन्होंने धार्मिक शैक्षणिक एवं कई जनउपयोगी कार्य कर अमावां स्टेट का उज्जवल कृतिमान स्थापित कीं।

अमावां स्टेट के राजा हरिहर प्रसाद सिंह और रानी भुवनेश्वरी कुंवर के पांच पुत्र और पांच पुत्रियाँ हुई थी। (1) राजकुमार रघुवंश मणि प्रसाद सिंह, (२) राघवेन्द्र नारायण सिंह, (3) कौशलेन्द्र नारायण सिंह, (4) अवधेन्द्र नारायण सिंह, (5) अध्केश्वरी नारायण सिंह हुए। राजा हरिहर प्रसाद सिंह के बड़े पुत्र राजकुमार रघुवंश मणि प्रसाद सिंह के दो पुत्र और एक पुत्री हुईं। 1. डॉक्टर सीताराम सिंह, 2. भरत प्रसाद नारायण सिंह और एक पुत्री राजलक्ष्मी कुंवर ये सभी परिवार अब इंग्लैंड में रह रहे हैं। मंझले पुत्र कौशलेन्द्र नारायण सिंह और संझले पुत्र राघवेन्द्र नारायण सिंह के परिवार पटना में खास महल सरकारी भवन 90 साल के लीज पर में रह रहें हैं।   

हिंदुस्तान की दूसरी सबसे धनी महारानी भुनेश्वरी कुंवर का जीवन कष्ट में बिता 

हिंदुस्तान की दूसरी सबसे धनी रानी भुनेश्वरी कुंवर का अपने जीवन काल में ही रानी से रंक की स्थिति में पटना के बोरिंग रोड में अपने राज के मुलाजिम मैनेजर पारस नाथ सिंह के छोटे से किराये के मकान सीता राम सदन में अपना जीवन त्याग करना पड़ा था। इनकी दस पुत्र-पुत्रियों में से कोई भी इनकी सहायता के लिए आगे नहीं आया। धन के दुरूपयोग और पारिवारिक कटुता का इससे क्रूर उदहारण इतिहास के पन्नों में ढूढने से भी नहीं मिलता।

 
राजा और रानी ने किसानों के लिए जल प्रबंधन किया 

अमावां राज में राजा हरिहर प्रसाद सिंह ने किसानों के लिए आहर-पइन प्रणाली काफी विकसित किया था। आहर बहते पानी को घेरने वाले आयताकार बाँधयुक्त क्षेत्र हुआ करते थे, जबकि पइन पहाड़ी नदियों के पानी को खेतों तक पहुंचाया जाता था। इसका उपयोग प्रजा लोग मिल-जुलकर किया करते थे, लेकिन वर्तमान समय में निरन्तर बाढ़ों के कारण इनका प्राचीन स्वरूप परिवर्तित हो गया है। आज आवश्यकता है कि हम अपनी परम्परागत जल संचयन प्रणालियों को संवारें और जल संचयन से जुड़े सामाजिक कार्यों व सामाजिक सहयोग से और अधिक बेहतर बनाने पर लोग जोर दें। 

राजा और रानी विद्या अनुरागी थे  

राजा हरिहर प्रसाद सिंह और रानी भुनेश्वरी कुंवर का विद्या अनुराग अद्वितीय था। वे कवियों और विद्वानों का बहुत सम्मान करती थी इसी कारण देश के कोने-कोने से प्रतिभाशाली व्यक्ति उनके दरबार में आते थे। विद्वानों और कवियों का स्थान दरबार में बहुत ऊंचा था। मंत्रियों को मत प्रकट करने की पूरी स्वतंत्रता थी। जनता के प्रतिनिधियों को दरबार में विशेष स्थान दिया जाता था। सभी महत्वपूर्ण निर्णय वाद विवाद के पश्चात सामूहिक रूप से लिए जाते थे। प्रजा को मौखिक रूप से न्याय तुरंत मिल जाता था। उनका शासन पद्धति में राजतंत्र और प्रजातंत्र का अनूठा मेल था।

राजा-रानी पर्यावरण प्रेमी और प्रजावत्सल थे 

राजा हरिहर प्रसाद सिंह और रानी भुनेश्वरी कुंवर ने परिसर में अपने हाथों से अनेक वृक्ष लगाए थे, जो आज भी फल फूल रहे हैं। वृक्षारोपण और पर्यावरण के महत्व को वे उस युग में भी अच्छी तरह समझती थी। उनके लगाए हुए अनेक उद्यान और छायादार वृक्षों की लंबी कतारें आज भी उनकी कीर्ति की महक चारों और बिखेर रही है। राजा हरिहर प्रसाद सिंह और महारानी भुनेश्वरी कुंवर की अनुपम दान शीलता उस समय सारे देश में प्रसिद्ध थी। महारानी दीन दुखियों की भाग्यलक्ष्मी कही जाती थी। रानी के सामने पहुंचकर कभी कोई निराश और अतृप्त नहीं लौटा। अनेक दरिद्र परिवारों की कन्याओं के विवाह रानी स्वयं करवा देती थी। इन शुभ कार्यों में रानी ने कभी जाति-पाती का भेदभाव नहीं रखा सदियों से वंचित अपने अटूट राजकोष को इस प्रजावत्सल महारानी ने जनकल्याण के ही कार्यों में लगाया।

महारानी भुनेश्वरी कुंवर ने अयोध्या में बनवायी थी राम मंदिर

अमावां राज और टिकारी राज का अयोध्या से गहरा संबंध था। जिसका प्रमाण अयोध्या में बना भव्य राम मंदिर, विशाल महल और रसिक निवास है। अयोध्या की भूमि पर अमावां राज व टिकारी राज का कृति पताका फहराने का श्रेय धर्मपरायण, प्रजावत्सल, धर्मानुरागी और जनहित में रचनात्मक कार्यो में अटूट विश्वास रखने वाली महारानी भुनेश्वरी कुवंर को जाता है। जिन्होंने अयोध्या में भव्य राम मंदिर और विशाल महल का निर्माण कराया था। जो अमावां मंदिर के नाम से आज भी जाना जाता है। जो अयोध्या में राम जन्म भूमि यानि राम लला के मंदिर से ठीक सटा सबसे पहला मंदिर है। जिसका निर्माण रानी भुनेश्वरी कुंवर ने 1920-21 में करायी थी। इस मंदिर का निर्माण आठ एकड़ के विशाल भूखंड पर किया गया था। जिसमें से मंदिर परिसर का क्षेत्रफल तीन एकड़ का है और मंदिर के बगल में बने महल का क्षेत्रफल पांच एकड़ का है। मंदिर परिसर के दक्षिण में अयोध्या भ्रमण और तीर्थ यात्रा के लिए राज परिवार के ठहरने के लिए छोटा सा सुंदर महलनुमा आवासीय परिसर भी बना था। उस समय इस महल का नाम भुनेश्वरी भवन था। इस महल में अमावां और टिकारी किला के तर्ज पर बड़े आकर के 52 कमरे और आठ आंगन था। जब कभी राज परिवार के लोग राम मंदिर दर्शन करने के लिए अयोध्या जाते थे तो इसी महल में कुछ दिन के लिए विश्राम करते थे। मंदिर के गर्भ गृह में श्रीराम, लक्ष्मण और सीता की भव्य और आकर्षक मूर्ति प्रतिष्ठापित है। इस मंदिर में गर्भगृह में मुख्य रूप से राम-जानकी प्रतिमा के आस पास में छोटे-छोटे 12 मंदिर बने हुए है और उसमें अलग-अलग देवी-देवताओं के प्रतिमाएं विराजमान है। वर्तमान में पुराने मंदिर के स्थान पर नया राम मंदिर का निर्माण एक प्राइवेट ट्रस्ट निखिल भारतीय तीर्थ विकास समिति द्वारा कराया जा रहा है। 
अयोध्या अमावां मंदिर में छह नवंबर 2019 देवोत्थानी एकादशी के दिन पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल के निर्देशन में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के बीच कमल पर विराजमान चार फीट के बाल रूप में राम की मूर्ति की स्थापना कर दी गई। इस मूर्ति के निर्माण में पाच वर्ष लग गए। आसन मुद्रा में बाल रूप राम की मूर्ति वाला अयोध्या का यह पहला मंदिर है। रामलला का दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को करीब 200 मीटर दूर से ही यह दिखाई पड़ता है।

रानी द्वारा निर्मित राम मंदिर और महल में रिसर्च इंस्टीट्यूट संचालित

 अमावां राज की रानी भुनेश्वरी कुंवर द्वारा मिर्मित राम मंदिर और महल में रामायण रिसर्च इंस्टीट्यूट संचालित है। जहां रामायण के अध्ययन के साथ शोध भी किया जाता है। संस्कृत भाषा का ज्ञान, रामायण और महाभारत काल की ऐतिहासिक महत्व के अध्ययन, वाल्मीकि रामायण, हिंदी, संस्कृत एवं अन्य भाषाओं में शोधार्थी यहां शोध करते हैं। इसके अलावे यहां वेद, पुराण, गीता, भागवत, उपनिषद आदि प्रमुख धाíमक ग्रंथों पर शोध का कार्य हो रहा है। इंस्टीच्यूट में एक वर्ष का डिप्लोमा कोर्स करने वाले शोधार्थियों को 'रामायण विशारद' और छह वर्ष का सíटफिकेट कोर्स पूरा करने वाले शोधकर्ताओं को 'रामायण पंडित' का प्रमाण पत्र दिया जाता है। महल सहित पूरे भूमि की निबंधन निखिल भारतीय तीर्थ विकास समिति के अधीन है। जिसके सचिव भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे किशोर कुणाल है। इस समिति अथवा ट्रस्ट में भारतीय प्रशासनिक, पुलिस और न्यायिक सेवा सहित अन्य बड़े अधिकारी है।
सत्य है कि किसी व्यक्ति का नाम समय के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों से तभी अंकित हो पाता है, जब वह निष्काम भाव से जन-हितार्थ कार्य करता है, परोपकार करता हुआ ही मृत्यु को प्राप्त होता है। महारानी भुनेश्वरी कुंवर भी आजीवन तन-मन-धन से देश तथा समाज का कल्याण करती रहीं। उनके द्वारा किये गये लोकहितकारी कार्यों को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। महारानी भुनेश्वरी कुंवर का प्रजावत्सल व्यक्तित्व युग-युगांतर तक अविस्मरणीय रहेगा।

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