ऐतिहासिक उपन्यासकार डॉ प्रो शत्रुघ्न प्रसाद की चौथी पूण्यतिथि पर विशेष ...!!

लेखक : राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव- शंखनाद साहित्यिक मंडली
भारत में अनेक भाषाओं के साहित्य में उपन्यास लेखन की समृद्ध परम्परा रही है। उपन्यास का मूल सम्बन्ध यथार्थवाद से माना गया है। ऐतिहासिक उपन्यासकार डॉ. प्रो शत्रुघ्न प्रसाद ने मगधांचल में हिंदी को पाला-पोसा, बड़ा किया और उसे एक संस्कार दिया। प्रो शत्रुघ्न प्रसाद ने कहानी और ऐतिहासिक उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने वर्तमान सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। अपने बाद की एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर शत्रुघ्न प्रसाद ने साहित्य को आम आदमी और जमीन से जोड़ा। उनका लेखन हिंदी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिंदी के विकास का अध्ययन अधूरा है।

डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद का जन्म, शिक्षा और पारिवारिक जीवन :

हिंदी की ऐतिहासिक उपन्यास परंपरा के अग्रणी अमिट हस्ताक्षर डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद छपरा के राजेन्द्र कॉलेज से स्नातक करने के बाद पटना विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद प्रारंभिक शिक्षा के बाद वे एम. ए. हिंदी पटना विश्वविद्यालय व पी. एच.डी द्विवेदी युगीन हिंदी नाटक, पटना विश्वविद्यालय से किये। किसान कॉलेज नालंदा (सोहसराय, बिहारशरीफ) में हिंदी के प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष रहे। डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद किसान कॉलेज में वर्ष 1957 से 1992 तक रहे। डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दक्षिण बिहार प्रान्त के पूर्व संघचालक, ऐतिहासिक विषयों के उपन्यासकर रहे। श्री जगन्नाथ प्रसाद व मानकी देवी के पुत्र डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद का जन्म 12 फरवरी 1932 को बिहार के सारण जिले के छपरा में हुआ था। इनका विवाह सारण के प्रतिष्ठित व्यवसायी स्व० भग्गी साह की पौत्री से हुआ था। डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद के तीन पुत्र- रणेंद्र कुमार, बिजेंद्र कुमार और ज्ञानेंद्र कुमार हैं तथा तीन पुत्री- उपमा, अणिमा, महिमा समेत भरा-पूरा परिवार हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय सदस्य थे डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद :

डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद बाल्यकाल से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय सदस्य थे। ये विद्यार्थी जीवन में निष्ठापूर्वक संघकार्य को करते रहे। इनको सामाजिक कार्यों के साथ-साथ साहित्य में अपार रूचि थी। नालन्दा संस्कृति का सिद्धपीठ है। नालन्दा ज्ञान, कला साहित्य एवं संस्कृति की समृद्ध परम्पराओं की भूमि है। यह भारत की महान सामासिक संस्कृति के जन्म-ग्रहण की भूमि है, धार्मिक रूढ़ी-वादिता के विरुद्ध सुधारक सामाजिक क्रांतियों के सूत्रपात की भूमि है। तथागत और तीर्थङ्कर के पद-चिन्हों से पाबन इस भूमि ने युग-युगों में देश-देशान्तरों को उनका जीवन-दर्शन दिया है। हिन्दी के आदिकवि सरहपा से लेकर हिन्दी के भारतेन्दु कालीन महोउन्नायक, विहार के पहले हिन्दी पत्रकार, पं० केशवराम भट्ट तक की साधनाएँ इस भूमि में समाहित हैं।

किसान कॉलेज सोहसराय नालंदा में प्रो. डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद का प्रादुर्भाव :

नालंदा की भूमि पर प्रो. डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद का प्रादुर्भाव 1957 में किसान कॉलेज नालंदा (सोहसराय, बिहारशरीफ) में हुआ। डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद प्रारंभिक शिक्षा के बाद वे एम. ए. हिंदी पटना विश्वविद्यालय व पी. एच.डी द्विवेदी युगीन हिंदी नाटक, पटना विश्वविद्यालय से किये। डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद किसान कॉलेज में 1957 से 1992) तक रहे। प्राध्यापक के पद से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये पटना में ही रहते थे। 

 एक आदर्श शिक्षक, प्रबुद्ध चिंतक और उच्च कोटि के साहित्यकार थे : 

 अवकाशप्राप्ति के बाद कभी-कभी शत्रुघ्न प्रसाद का छपरा में आना-जाना हुआ करता था। छपरा में प्रवास के दौरान वे मौना बानगंज स्थित ‘तिलक प्रभात शाखा’ में संघ की प्रार्थना सभा में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। शाखा के सभी स्वयंसेवकों से उन्हें काफी लगाव रहता था। हिंदी की ऐतिहासिक उपन्यास परम्परा के अग्रणी हस्ताक्षर डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद एक आदर्श शिक्षक के साथ एक प्रबुद्ध चिंतक और कवि भी थे। 

शत्रुघ्न प्रसाद के ऐतिहासिक उपन्यास और साहित्यिक रचना :

 मगधांचल में हिंदी साहित्य में ऐतिहासिक उपन्यासों की एक सशक्त परंपरा विकसित हुई है। हिंदी में इस परंपरा की शुरुआत सबसे पहले शत्रुघ्न प्रसाद ने की है। ऐतिहासिक उपन्यास अतीत के संदर्भ में वर्तमान का ऐसा अध्ययन है जिसमें अतीत अपने वर्तमान संदर्भ के पर्याप्त संकेतों सहित प्रकट होता है। श्रेष्ठ ऐतिहासिक उपन्यास साहित्य, समाज और भाषा के साथ राष्ट्र की अविचल संपत्ति है, जो आनेवाली पीढी को अतीत के तमाम राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिदृश्यों का परिचय कराता है ।
उपन्यास आज आधुनिक साहित्यिक विधाओं में सर्व लोकप्रिय एवं सशक्त गद्य विधा के रूप में मान्य है। ऐतिहासिक उपन्यास अतीतकालीन यथार्थ को अभिव्यक्त करने वाला उपन्यास का वह रूप है जिसमें उपन्यास और इतिहास का मेल होता है। इस विधा को विकसित एवं समृद्ध करने वाले उपन्यासकारों में शत्रुघ्न प्रसाद का उल्लेखनीय नाम है। उनका मानना है कि काल अखण्ड व अनवरत है। अतीत वर्तमान के साथ अनिवार्यतः जुड़ा हुआ है। अतः इतिहास, वर्तमान एवं भविष्य मानव जीवन की अनवरत कड़ी है। ऐतिहासिक उपन्यास लेखन को वर्तमान एवं भविष्य के लिए उपयोगी सिद्ध करते हुए उन्होंने भारतीय इतिहास के भिन्न-भिन्न कालखण्डों पर ऐतिहासिक उपन्यासों का श्रेष्ठ सृजन किया है। डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद अपने सेवाकाल में रहते हुए उन्होंने लक्ष्मीनारायण मिश्र के ऐतिहासिक नाटक-समीक्षा ग्रंथ, अनास्था के आसपास, कविता संग्रह, अनथके चरण कहानी संग्रह, स्वामी विवेकानंद जीवनी तथा हिंदी के ऐतिहासिक उपन्यासों में काल चेतना-समीक्षा ग्रंथ की रचना किये थे। इसके आलावा डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद ऐतिहासिक उपन्यास सिद्धियों के खंडहर, शिप्रा साक्षी है, हेमचंद्र विक्रमादित्य, सुनो भाई साधो, तुंगभद्रा पर सूर्योदय, कश्मीर की बेटी, अरावली का मुक्त शिखर, सरस्वती सदानीरा, शहजादा दारा शिकोह: दहशत का दंश, आहों का उल्लास (शीघ्र प्रकाश्य), श्रावस्ती के तट पर (शीघ्र प्रकाश्य), तख़्त ए ताऊस : गुरु तेगबहादुर की बलिदान गाथा 2020 तथा दो सौ से अधिक समीक्षा लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है। महान ऐतिहासिक साहित्यकार डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद की साहित्य सेवा से मगधांचल का हिंदी साहित्य धन्य हुआ है।

शत्रुघ्न प्रसाद को कुल 9 साहित्यिक सम्मान मिले थे :

लेखन के आलावा डॉ प्रसाद ने सदानीरा, साहित्य -संस्कृति की त्रैमासिक पत्रिका, पटना का सम्पादन भी किया करते थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ शत्रुघ्न प्रसाद को 9 सम्मान मिले थे। उन सम्मानों में 1. अवंति बाई पुरस्कार 2017, उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, 2. गणेश शंकर विद्यार्थी साहित्य सेवी सम्मान, 2014 केंद्रीय हिंदी संस्थान, राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों सम्मानित हुए थे।, 3. राष्ट्रीय मैथलीशरण गुप्त सम्मान, मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा 2008, 4. भारतीय संस्कृति संस्थान, चंडीगढ़ द्वारा मानवमूल्य विश्वकोश के निर्माण में सहयोग हेतु सम्मान 2006, 5. श्री प्रभाकर स्मृति अक्षर कुंभ पुरुस्कार 2005, 6. पं हीरा लाल शुक्ल रामेश्वरी देवी स्मृति सम्मान 2004, 7. भारतीय संस्कृति व शब्दब्रह्म उपासक सम्मान 1996, 8. आरसी साहित्य सम्मान 1996, 9. शान्ति प्रियदर्शी रचना पुरस्कार 1987 व 1989 में मिला था।

डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद का निधन

डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद अपने पटना आवास पर ही ज्यादा रहते थे। पटना प्रवास में ही पैर फिसलने के कारण बाथरूम में गिर गए थे। इसके बाद उनको पटना के आईजीआईएमएस (IGIMS) अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने बताया कि डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद ब्रेन हेमरेज के शिकार हो गए हैं। इसके बाद से स्थिति गंभीर बनी हुई थी। अनुभवी डॉक्टरों के नेतृत्व में उनका इलाज चल रहा था, ब्रेन का ऑपरेशन हुआ था लेकिन, स्थिति नाजुक होने की वजह से क्षिप्रा साक्षी है और कश्मीर की बेटी जैसी कालजयी उपन्यास लिखने वाले हिंदी के साहित्यकार डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद अन्ततः 1 जुलाई 2020 की रात्रि 1 बजकर 15 मिनट पर वे इस दुनिया को अलविदा कह गए। 88 वर्ष की आयु में भी शत्रुध्न बाबू साहित्य जगत में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।

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