साहित्यिक मंडली शंखनाद ने मनाई साहित्य साधक मुंशी प्रेमचंद की जयंती..!!
बिहारशरीफ,नालंदा 01अगस्त 2024 : 31 जुलाई 2024 दिन बुधवार को देरशाम स्थानीय बिहारशरीफ के भैसासुर मोहल्ले में शंखनाद साहित्यिक मंडली के तत्वावधान में शंखनाद कार्यलय स्थित सभागार में हिंदी-उर्दू और फारसी के उद्भट विद्वान, क्रांतिकारी लेखक,आदर्शवादी शिक्षक, निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी, हिंदी के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की 144 वीं जयंती समारोह पर विचार गोष्ठी एवं माल्यार्पण कार्यक्रम आयोजित हुआ।
समारोह की अध्यक्षता शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने तथा संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने किया।
मौके पर कार्यक्रम के संयोजक शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने प्रेमचंद के जीवन और साहित्य पर चर्चा की। उन्होंने कहा- भ्रष्टाचार उस समय भी था और आज भी है इस लिए प्रेमचंद की कहानियां व उपन्यासों में कही गई बातें आज भी प्रासंगिक हैं। वर्षों पूर्व उन्होंने इस बात का चित्रण कर लिया था जो आज हमारे जीवन व संस्कारों से जुडे हुए हैं। प्रेमचंद जी किसानों व मजदूरों तथा लाचारों के कथाकार थे। उन्होंने कहा कि आज भी किसान होरी की तरह मजदूर बनने को मजबूर हैं। किसानों, मजदूरों और स्त्रियों की दशा आज भी बेहतर नहीं हो पा रही है। आज का साहित्यकार पीछे-पीछे चल रहा है वह राजनीति को प्रभावित नहीं कर पा रहा है। प्रेमचंद जी एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, जिम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जब हिन्दी में काम करने की तकनीकी सुविधाएं नहीं थीं फिर भी इतना काम करने वाला लेखक उनके सिवा कोई दूसरा नहीं हुआ। प्रेमचंद ऐसे कालजयी उपन्या्सकार थे, जिन्होंने अपनी लेखनी के दम पर पूरे विश्व में एक अलग पहचान बनाई। मुंशी प्रेमचंद का व्यक्तित्व बड़ा ही साधारण था। उनके निधन के 88 वर्ष बाद भी उनकी कालजयी रचना ‘कफन’, ‘गबन’, ‘गोदान’, ‘ईदगाह‘ और ‘नमक का दरोगा‘ हर किसी को बचपन की याद दिलाती है। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हज़ारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की।
अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने गोष्ठी में मुंशी प्रेमचंद जी के व्यक्तित्व एक कृतित्व की चर्चा करते हुए कहा कि मुंशी जी का रचना संसार बहुत ही विस्तृत और महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद जी की कहानियां और उपन्यास समाजिक यथार्थ से जुड़ी हुई थी। उनकी रचनाएं सामाजिक मुद्दों पर समाज में एक नई चेतना लाना चाहती थी। प्रेमचन्द, एक लोक प्रहरी थे। उनकी रचनाओं में लोक की अलौकिकता का खूबसूरत जमीनी चित्रण देखने को मिलता है, जिसमें सामाजिक दर्शन और इतिहास भी शामिल है। उनकी कथाओं में अमीरी-गरीबी, सुख-दुख, दर्द-पीड़ा, भूख-प्यास, के साथ दीन-हीन गरीब लोगों के प्रति समाज की निष्ठुरता का साक्षात्कार होता है। प्रेमचन्द, निर्विवाद रूप से सामाजिक पाखंड और अशिक्षा के विरोधी थे और वे चाहते थे कि भारत के लोगों इस पाखंड और अशिक्षा की दलदल से बाहर निकल कर, सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रयास करें। सीमित संसाधनों से ही उन्होंने प्रेस लगाया, पत्रिकाएं प्रकाशित किया, किताबें लिखीं,ताकि लोक जागरण का शंखनाद हो। उन्होंने गरीबी का प्रतिकार अपनी भूख को नियंत्रित कर, अदम्य धैर्य के साथ लेखन को अंगीकार कर किया। उनका यही संघर्ष, उनकी लेखनी में दिखता है, जो उन्हें महान बनाता है।
मौके पर हिंदी साहित्य के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर डॉ.शकील अहमद अंसारी ने कहा कि जो साहित्यकार दूसरे धर्मों से जितना नफ़रत करता है,वह अपने ईश्वर,अपने ख़ुदा से उतना ही दूर है। हमें इस घातक स्थिति से बचना चाहिए। साहित्यकार का लक्ष्य देशभक्ति तथा राजनीति के पीछे चलना नहीं है, बल्कि उसका लक्ष्य मसाल लेकर देशभक्ति व राजनीति के आगे-आगे चलते हुए उन्हें राह दिखाना है।
समारोह में शंखनाद के उपाध्यक्ष बहुभाषाविद साहित्यकार बेनाम गिलानी ने गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज कथा सम्राट प्रेमचंद का जन्म दिन है। इसे हर्षोल्लास के साथ पुरे भारत वर्ष में पर्व की तरह मनाया जाता है। शंखनाद भी यह पर्व मना रहा है। प्रेम चंद को लोग केवल कथाकार एवं जर्नलिस्ट के रूप में ही स्वीकार करते हैं। लेकिन सत्य यह है की वह समाज के बहुत बड़े आलोचक थे। दूसरी ओर उन्हें प्रगतिशील लेखक के रूप में प्रचारित करते हैं। जबकि 1935 में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई। तो क्या प्रेमचंद ने केवल 8-6 मास में इतने नावेल एवं कहानी यहां रच दीं। यथार्थ केवल ईतना है की प्रेम चंद प्रगतिशील लेखक के पहले एक यथार्थवादी लेखक थे। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद के रचनाकार मुंशी प्रेमचंद जी ने भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया था। वे न केवल ग्रामीण समाज के कुशल चित्रकार थे वरन नगरीय समाज की भी उन्हें अच्छी समझ थी। स्वतंत्रता के बाद भारत को जिस तरह से परखने, समझने और समाधान तक जाने की बागडोर अपने हाथ में ली वह अनुकरणीय है। हिंदी रचनाकारों में जितनी प्रसिद्धि गोस्वामी तुलसीदास जी की है उससे कहीं कम मुंशी प्रेमचंद की नहीं है। उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में जो काम गांधी जी ने आंदोलन करके किया वहीं काम मुंशी जी साहित्य में लिखकर करते रहे। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद जी जो देखा, जो जिए वही रचा। प्रेमचंद जी के पात्र ज्यादा निम्न वर्ग के ही थे। मुंशी जी को बहुत से लोग गांधीवादी, मार्क्सवादी या आर्यसमाजी मानते थे लेकिन उनका कहना था कि जिससे निम्न वर्ग का भला हो, उनके जीवन स्तर में सुधार आयें मैं उसी वाद से प्रभावित हूं। मुंशी प्रेमचंद की कहानी व उपन्यासों को पढ़कर समाज को एक संदेश मिलता है। उनका साहित्य आज भी हम सबको एक नई प्रेरणा दे रहा है।
मौके पर शिक्षाविद् राजहंस कुमार ने कहा कि कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी हिंदी साहित्य के महान लेखक ही नहीं वह एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने ब्रिटानी हुकूमत के खिलाफ जमकर कलम चलायी। वह हमेशा समाज में व्याप्त कुरीतियों, कुप्रथाओं के खिलाफ संघर्ष करते रहे। वह साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारने वाले लेखक थे। वह अपने लेखनी से सदैव समाज में व्याप्त गैरबराबरी समाप्त कर समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संघर्षरत रहे। आज जब देश में जाति और धर्म के नाम पर नफरत फ़ैलाने की कोशिश हो रही है ऐसे दौर में मुंशी प्रेमचंद जी आज भी प्रासंगिक हो उठे हैं।
मौके पर शिक्षाशास्त्री जाहिद हुसैन ने कहा कि प्रेमचंद लेखक ही नहीं,बल्कि एक बहुत बड़े चिंतक थे। समाज में उन्होंने जो भी कुरीतियां देखी उसे उन्होंने लिखा। उनकी चिंता यही थी कि समाज से कुरीतियों, अशिक्षा एवं अंधविश्वास कब मिटेगा? पूरी दुनिया में गोरकी और दोस्तोव्स्की की जो रूस के लेखक हैं, उनको पढ़ा जाता है लेकिन आपको जानना होगा कि प्रेमचंद को भी कई भाषाओं में पूरे दुनिया में पढ़ी जाती है। प्रेमचंद अपने आप में एक व्यक्तित्व ही नहीं, एक युग का नाम है। वे युग और तब के समस्याओं का निदान उन्होंने अपने लेखनी से लिखा है, ताकि समाज में सुधार किया जा सके। उनकी मातृभाषा उर्दू और फारसी थी। उन्होंने सोज़े वतन उर्दू में ही लिखा है। इनकी भाषा इतनी समृद्ध है कि जो प्रेमचंद को पढ़ता है, उसकी भाषा बहुत समृद्ध हो जाती है। प्रेमचंद केवल तरक्की पसंद लेखक ही नहीं थे, बल्कि वे हकीकत पसंद लेखक थे। वह यूटोपिया में नहीं जीते थे, वह धरती पर जीते थे और आम जीवन की समस्याओं को समझते थे। उनके साहित्य का इतिहास आज तक के इतिहास में क्रमागत सुधार कार्यक्रम है और आगे भी रहेगा।
मंच संचालन करते हुए मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने कहा कि प्रेमचंद एक ऐसे लेखक थे जो गांव, गरीबो के बीच रहकर लेखन का कार्य करते थे। जनता के बीच जाकर उनकी वास्तविकता को जानकर साहित्य की रचना की। प्रेमचंद की दूरदर्शी दृष्टि औद्योगीकरण और खुले बाजार के भयावह परिणामों को इतने समय पूर्व प्रकल्पित कर लेती है, ऐसी दृष्टि क्रांतदर्शी साहित्कार के पास ही होती है।
इस दौरान समाजसेवी अरुण बिहारी शरण, धीरज कुमार, लेखिका प्रियारत्नम, सहित कई लोगों ने गोष्ठी में भाग लिया।
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