खुदीराम बोस ने आजादी के लिए चूमा था फांसी का फंदा...!!
बिहारशरीफ-बबुरबन्ना,11 अगस्त 2024: स्थानीय साहित्यिक भूमि बबुरबन्ना स्थित बिहारी सभागार में शंखनाद साहित्यिक मंडली के तत्वावधान में शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासज्ञ एवं प्रखर साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह के अध्यक्षता में राष्ट्रभक्ति के अप्रतिम योद्धा, साहस, शौर्य और स्वाभिमान के प्रतिबिम्ब, अमर शहीद खुदीराम बोस की 116 वीं पुण्यतिथि बलिदान दिवस के रुप में मनाई गई। जिसका संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने किया।
कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर तथा मंगलदीप प्रज्वलित कर किया।
मौके पर शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि अमर शहीद खुदीराम बोस एक ऐसे युवा क्रांतिकारी थे, जिन्होंने बहुत कम उम्र में देश की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लिया। देश की स्वाधीनता के लिए उनके क्रांतिकारी प्रयासों के कारण अंग्रेजों ने मात्र 18 वर्ष की अल्पायु में उन्हें फाँसी दे दी। उनका साहस व बलिदान समस्त देश के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। एक बार फिर जरूरत आन पड़ी है कि हम अपने महापुरुषों की जीवनी, उनकी सादगी व उनके असाधारण व्यक्तित्व से अपने बच्चों को अवगत कराएं। आज बच्चे अपने महापुरुषों के कृतित्व को भूलते जा रहे हैं, और पश्चात तौर-तरीके को अपनाकर समाज की मुख्य धारा से भटक गए हैं। आज जरूरत है कि उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराने की। ताकि वह इनसे प्रेरणा ले सके।
मौके पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि शहीद खुदीराम बोस मूल रूप से बंगाल के मिदनापुर गांव के रहने वाले थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में स्वतंत्रता सेनानी की भूमिका अदा की थी। खुदीराम बोस को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर बिहार के मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी थी। उस वक्त बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी में ही आता था। उन्हीं की याद में फांसी स्थल पर हर साल श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाता है।
मौके पर बहुभाषाविद बेनाम गिलानी ने कहा कि खुदीराम बोस जी की निर्भीकता ने क्रूर विदेशी शासन को इतना डरा दिया कि भय से उन्हें फांसी दे दी। उनका जीवन हमें यह सीख देता है कि देशप्रेम के लिए कोई बंधन नहीं होता और साहस की कोई आयु नहीं होती। ऐसे वीर बलिदानी का त्याग वंदनीय है।
मौके पर इंस्पेक्टर घनश्याम प्रसाद ने कहा कि युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस के मन में भारत माता को आजाद कराने की ऐसी लगन थी कि वे नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़कर आजादी के आंदोलन में कूद गए। वे मात्र 18 वर्ष की आयु में देश की आजादी के लिए फांसी पर चढ़ गए थे।
फ़िल्म निर्देशक रणजीत चंद्रा ने कहा कि आज के समय में 18 साल का लड़का आमतौर पर स्कूल या कॉलेज में पढ़ाई करते हुए अपने सुनहरे भविष्य के सपने देख रहा होता है। लेकिन भारत के इतिहास में एक लड़का ऐसा भी है, जो देश की आजादी के लिए महज 18 साल की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गया था।
समाजसेवी दीपक कुमार ने कहा कि खुदीराम बोस का जन्म बंगाल के मिदनापुर में हुआ था। बहुत कम उम्र से ही उन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए खुद को समर्पित कर दिया। महज 10 साल की उम्र में ही वो बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रचार-प्रसार करने वाली संस्था का हिस्सा बन गए थे।
शिक्षाविद् जाहिद हुसैन ने कहा कि युवा क्रांतिकारी अमर शहीद खुदीराम बोस एक सच्चे नायक थे। उन्होंने समता मूलक समाज का सपना देखा थाl
इस दौरान नेता मकसूदन शर्मा, योग गुरु रामजी प्रसाद यादव, शिक्षाविद् राजहंस कुमार, अरुण बिहारी शरण, समाजसेवी धीरज कुमार, सविता बिहारी, मोनी कुमारी, कंचन देवी, अर्जुन प्रसाद सहित दर्जनों लोग मौजूद रहे।
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